पटनाः कर्नाटक विधानसभा चुनाव में कांग्रेस पार्टी को जबरदस्त सफलता मिली है. इससे पहले कांग्रेस की स्थिति अच्छी नहीं थी. भाजपा और जेडीएस से कड़ी टक्कर मिल रही थी. 1985 से राज्य में कांग्रेस की स्थिति खराब हो रही थी. हालांकि इस बीच में 1999 में और 2013 में बहुमत मिली था. कुछ ऐसे ही स्थिति बिहार में भी कांग्रेस की बनी.
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लगातार जनाधार खिसक रहाः 1990 से कांग्रेस यहां लगातार कमजोर हो रही है. इस बीच में राजद और जदयू का उदय हुआ. कांग्रेस लालू यादव के सहयोग से सरकार में आयी, लेकिन पार्टी कभी मजबूत स्थिति में खड़ी नहीं हो सकी. पार्टी की स्थिति ऐसी है कि पिछले 5 साल से कांग्रेस पार्टी ने बिहार प्रदेश स्तर की कमेटी का गठन ही नहीं किया है. इस बार भी बिहार कांग्रेस को नया प्रदेश अध्यक्ष बने 6 महीने बीत गये लेकिन प्रदेश कमेटी का गठन नहीं किया जा सका.
सत्ता तो मिली पर ताकत नहीं: लालू प्रसाद यादव के साथ कांग्रेस बिहार में सत्ता तो हासिल की है, लेकिन पार्टी का जनाधार लगातार कम होता रहा है. राजनीतिक गलियारे में इस बात की भी अक्सर चर्चा होते रहती है कि लालू प्रसाद यादव ही बिहार में तय करते थे कि कांग्रेस पार्टी का प्रदेश अध्यक्ष कौन होगा. यह भी कहा जाता रहा है कि लालू के कृपा पात्र नेता कांग्रेस पार्टी के अध्यक्ष पद पर बने रहते थे. राजनीतिक विश्लेषक मानते हैं कि इसी वजह से कांग्रेस बिहार में संगठनात्मक तौर पर कमजोर होते चली गई.
"कांग्रेस पार्टी का हाथ लालू के साथ चला गया. लालू के साथ जाने के चलते अगड़ी जाति के वोटर खिसक गए. कांग्रेस पार्टी के पास कोई कोर वोटर नहीं रह गया. जिसके चलते पार्टी संगठनात्मक तौर पर कमजोर होती चली गई. देखना यह दिलचस्प होगा कि नवनियुक्त प्रदेश अध्यक्ष अखिलेश सिंह कांग्रेस पार्टी को कितना धार दे पाते हैं"- कौशलेंद्र प्रियदर्शी, राजनीतिक विश्लेषक
प्रदेश कमेटी का गठन नहींः साल 2013 से 2017 तक अशोक चौधरी कांग्रेस पार्टी के प्रदेश अध्यक्ष रहे और इनके कार्यकाल में ही प्रदेश कमेटी का गठन हुआ था. अशोक चौधरी के कार्यकाल के बाद से अब तक बिहार कांग्रेस प्रदेश कमेटी का गठन अधर में है. कांग्रेस के प्रदेश अध्यक्ष डॉक्टर अखिलेश प्रसाद सिंह ने कहा है कि प्रखंड स्तर की कमेटी का गठन कर लिया गया है. अब जिला अध्यक्ष का चयन किया जाना है. उसके बाद फिर प्रदेश स्तर की कमेटी का गठन कर लिया जाएगा. इस महीने के अंत प्रदेश स्तर की कमेटी का गठन हो जाएगा. कांग्रेस पार्टी के मुख्य प्रवक्ता राजेश राठौर ने कहा है कि लोकसभा चुनाव के मद्देनजर हम लोग तैयारियों में जुटे हैं उपाध्यक्ष महासचिव सचिव और संगठन सचिव के पद के लिए चयन शीघ्र ही पूरा कर लिया जाएगा.
कौन-कौन होते हैं कमेटी मेंः कांग्रेस पार्टी में अध्यक्ष के बाद उपाध्यक्ष का स्थान आता है. कितने उपाध्यक्ष नियुक्त किए जा सकते हैं इसकी कोई उच्चतम सीमा नहीं है. लेकिन सामान्य तौर पर इनकी संख्या 15 से 30 के बीच होती है. उपाध्यक्ष के बाद कांग्रेस पार्टी में महासचिव का स्थान है. 30 के आसपास महासचिव नियुक्त किया जाता है. सचिव की संख्या भी तय नहीं है. प्रदेश अध्यक्ष के निर्णय पर निर्भर है. 70 से 80 के बीच सचिव पद पर नियुक्त किए जा सकते हैं. इसके अलावा 50 से 100 के बीच संगठन सचिव नियुक्त किया जा सकता है. कुल मिलाकर 250 से लेकर 300 के बीच पदाधिकारी नियुक्त किए जा सकते हैं.