पटना: आज देशभर में ईद उल अजहा (Eid al Adha) का पर्व मनाया जा रहा है. इस मौके पर बिहार के राज्यपाल फागू चौहान और मुख्यमंत्री नीतीश कुमार (CM Nitish Kumar) ने राज्यवासियों को विशेषकर मुस्लिम भाइयों और बहनों को मुबारकबाद दी है. राज्यपाल ने कहा है कि अनुपम त्याग और बलिदान का प्रतीक पर्व हमें अपने जीवन में आपसी प्रेम, सद्भाव और भाईचारा की भावना को आत्मसात करने एवं लोगों की भलाई के लिए काम करने की प्रेरणा देता है. राज्यपाल ने दुआ की है कि यह त्यौहार सभी राज्य वासियों के लिए तरक्की अमन और खुशियों का पैगाम लेकर आए. साथ ही राष्ट्रीय एकता एवं सामाजिक समरसता सुदृढ हो.
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नीतीश कुमार ने बकरीद की शुभकानाएं दी: बकरीद के अवसर पर बिहार के मुख्यमंत्री नीतीश कुमार ने भी राज्यवासियों को मुबारकबाद दी है. उन्होंने ट्वीट कर लिखा, "ईद-उल-अजहा (बकरीद) के अवसर पर प्रदेश एवं देशवासियों को बधाई एवं शुभकामनाएं। ईद-उल-अजहा का त्योहार असीम आस्था का त्योहार है. खुदा के हुक्म पर बड़ी से बड़ी कुर्बानी के लिए तैयार रहना इस त्योहार का आदर्श है. इस त्योहार को आपसी भाईचारे एवं सद्भाव के साथ मनाएं."
कब हुई बकरीद पर कुर्बानी की शुरुआत: इस्लाम धर्म की मान्यता के हिसाब से आखिरी पैगंबर हजरत मोहम्मद हुए. हजरत मोहम्मद के वक्त में ही इस्लाम ने पूर्ण रूप धारण किया और आज जो भी परंपराएं या तरीके मुसलमान अपनाते हैं वो पैगंबर मोहम्मद के वक्त के ही हैं लेकिन पैगंबर मोहम्मद से पहले भी बड़ी संख्या में पैगंबर आए और उन्होंने इस्लाम का प्रचार-प्रसार किया. कुल 1 लाख 24 हजार पैगंबरों में से एक थे हजरत इब्राहिम. इन्हीं के दौर से कुर्बानी का सिलसिला शुरू हुआ.
तीन हिस्सों में बंटते हैं कुर्बानी के गोश्त: हजरत इब्राहिम 80 साल की उम्र में पिता बने थे. उनके बेटे का नाम इस्माइल था. हजरत इब्राहिम अपने बेटे इस्माइल को बहुत प्यार करते थे. एक दिन हजरत इब्राहिम को ख्वाब आया कि अपनी सबसे प्यारी चीज को कुर्बान कीजिए. इस्लामिक जानकार बताते हैं कि ये अल्लाह का हुक्म था और हजरत इब्राहिम ने अपने प्यारे बेटे को कुर्बान करने का फैसला लिया. हजरत इब्राहिम ने अपनी आंखों पर पट्टी बांध ली और बेटे इस्माइल की गर्दन पर छुरी रख दी लेकिन इस्माइल की जगह एक बकरा आ गया. जब हजरत इब्राहिम ने अपनी आंखों से पट्टी हटाई तो उनके बेटे इस्माइल सही-सलामत खड़े हुए थे. कहा जाता है कि ये महज एक इम्तेहान था और हजरत इब्राहिम अल्लाह के हुकुम पर अपनी वफादारी दिखाने के लिए बेटे इस्माइल की कुर्बानी देने को तैयार हो गए थे. इस तरह जानवरों की कुर्बानी की यह परंपरा शुरू हुई. बकरीद के दिन कुर्बानी के गोश्त को तीन हिस्सों में बांटा जाता है. एक खुद के लिए, दूसरा सगे-संबंधियों के लिए और तीसरा गरीबों के लिए.
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