पटनाः चिराग पासवान (Chirag Paswan) के हाथ अब कुछ नहीं बचा. लोजपा के पांच सांसदों ने चिराग का साथ छोड़ दिया है. लोजपा (LJP) के छह में से पांच सांसद ने अलग गुट पसंद कर लिया है. अब तक चिराग जिस पार्टी के मुखिया की जिम्मेदारी संभाल रहे थे, अब उसमें किसी और ने दावा ठोक दिया है. चिराग पासवान के चाचा पशुपति कुमार पारस (Pashupati kumar Paras) ने ही उनके खिलाफ मोर्चा खोल दिया है. लोकसभा में पार्टी के संसदीय दल के नेता भी बन गए हैं. अब दल-बदल कानून भी कुछ ऐसा है, जो पार्टी के दो तिहाई सदस्यों के अलग होने का साथ देता है.
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चिराग की ताकत भी हुई खत्म
चिराग पासवान की ताकत खत्म हो चुकी है. उनके पास अब ना खुद के सीट का दम बचा है, ना ही पार्टी के संसदीय दल के नेता होने का गुमान और ना ही उनके पांच सांसद. यह कहना गलत ना होगा कि चिराग का 'लौ' और 'तेल' दोनों खत्म हो चुका है. ऐसे में उनका चिराग बुझने के कगार पर है.
1985 से लागू हुआ दल-बदल कानून
दल-बदल कानून एक मार्च 1985 में अस्तित्व में आया. ताकि इससे पार्टी बदल लेने वाले विधायकों और सांसदों पर लगाम लगाई जा सके. 1985 से पहले दल-बदल के खिलाफ कोई कानून नहीं था. उस समय 'आया राम गया राम' मुहावरा खूब प्रचलित था. बता दें कि 1967 में हरियाणा के एक विधायक गया लाल ने एक दिन में तीन बार पार्टी बदली थी. उसके बाद आया राम गया राम प्रचलित हो गया था. उसके बाद 1985 में राजीव गांधी के नेतृत्व वाली कांग्रेस सरकार ने इसके खिलाफ विधेयक लाया.
इस कानून में ये बताया गया कि दल-बदल के कारण इनकी सदस्यता भी खत्म हो सकती है.
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जानें... किस परिस्थिति में लागू होगा कानून
- विधायक या सांसद खुद ही अपनी पार्टी की सदस्यता छोड़ देता है.
- निर्वाचित विधायक या सांसद पार्टी लाइन के खिलाफ जाता है.
- अगर कोई सदस्य पार्टी ह्विप के बावजूद वोट नहीं करता.
- सदन में पार्टी के निर्देशों का उल्लंघन कोई सदस्य करे तो.
बता दें कि विधायक या सांसद बनने के बाद खुद से पार्टी सदस्यता छोड़ने, पार्टी व्हिप या पार्टी निर्देश का उल्लंघन दल-बदल कानून में आता है.
पहले 'एक तिहाई विधायक' का था नियम
अगर किसी पार्टी के दो तिहाई विधायक या सांसद दूसरी पार्टी के साथ जाना चाहें, तो उनकी सदस्यता खत्म नहीं होगी. वर्ष 2003 में इस कानून में संशोधन भी किया गया. जब ये कानून बना तो प्रावधान ये था कि अगर किसी मूल पार्टी में बंटवारा होता है और एक तिहाई विधायक एक नया ग्रुप बनाते हैं, तो उनकी सदस्यता नहीं जाएगी. उसके बाद काफी दल-बदल हुए. महसूस किया गया कि पार्टी में टूट के प्रावधान का फायदा उठाया जा रहा है. इसके बाद यह प्रावधान खत्म कर दिया गया.
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ऐसे नहीं जाती है सदस्यता
विधायक कुछ परिस्थितियों में सदस्यता गंवाने से बच सकते हैं. अगर एक पार्टी के दो तिहाई सदस्य मूल पार्टी से अलग होकर दूसरी पार्टी में मिल जाते हैं, तो उनकी सदस्यता नहीं जाएगी. ऐसी स्थिति में न तो दूसरी पार्टी में विलय करने वाले सदस्य और न ही मूल पार्टी में रहने वाले सदस्य अयोग्य ठहराए जा सकते हैं.
नहीं लागू होगा दल बदल कानून
- जब पूरी पार्टी अन्य राजनीति पार्टी के साथ मिल जाएगी.
- किसी पार्टी के निर्वाचित सदस्य एक नई पार्टी बना लें तो.
- अगर किसी पार्टी के सदस्य दो पार्टियों का विलय स्वीकार नहीं करते और विलय के समय अलग ग्रुप में रहना स्वीकार करते है.
- जब किसी पार्टी के दो तिहाई सदस्य अलग होकर नई पार्टी में शामिल हो जाते हैं.
नीतीश कुमार के खिलाफ खोला था मोर्चा
रामविलास पासवान के निधन के बाद लोजपा में पहली बार परिवारिक टूट हुई है. राजनीतिक रूप से यह चिराग पासवान के लिए बड़ा झटका है. विधानसभा चुनाव में जिस तरह से चिराग पासवान ने नीतीश कुमार के खिलाफ मोर्चा खोला था और जदयू के सभी सीटों पर उम्मीदवार भी उतारे थे, उसके कारण जदयू को भारी नुकसान उठाना पड़ा था. पार्टी तीसरे नंबर पर पहुंच गई. उसके बाद से ही तय माना जा रहा था कि नीतीश कुमार चिराग पासवान से बदला लेंगे.
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दो दिनों से लगातार चल रही थी बैठकें
लोजपा के 5 सांसदों के बागी होने का बड़ा कारण चिराग पासवान का रवैया भी रहा है. लेकिन, पूरे घटनाक्रम में जेडीयू की अहम भूमिका रही है. नीतीश कुमार ने अपने कई नजदीकियों को लोजपा सांसदों को मनाने में लगाया था. विधानसभा चुनाव के बाद जेडीयू का लोजपा सफाई अभियान शुरू हो गया था और अभी जो घटना हुई है, उसके लिए पिछले 2 दिनों से लगातार बैठकों का दौर चला तब जाकर ये खेला हुआ है.
अलग गुट में गए ये सांसद
बता दें कि एलजेपी के 6 में से 5 सांसदों ने पशुपति पारस के नेतृत्व में अलग गुट बना लिया है. सभी सांसदों ने लोकसभा अध्यक्ष से मुलाकात कर अपना पक्ष साफ कर दिया है. जिन लोगों ने बगावत की है, उनमें हाजीपुर से पशुपति पारस, वैशाली से वीणा देवी, नवादा से चंदन कुमार सिंह, समस्तीपुर से प्रिंस राज और खगड़िया से महबूब अली कैसर शामिल हैं. हालांकि इन्हें मनाने के लिए चिराग पासवान अपने चाचा पशुपति कुमार पारस से मिलने उनके आवास भी गए थे, लेकिन मुलाकात नहीं हो पाई.
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