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Chhath Puja 2022: कब है छठ पूजा? जानिए नहाय खाय और खरना से अर्घ्य तक की पूरी विधि - लोक आस्था का महापर्व छठ

बिहार के सबसे बड़े महापर्व चार दिवसीय छठ पूजा की शुरूआत इस बार 28 अक्टूबर 2022 से होने जा रही है. छठ पर्व में नहाय-खाय, खरना, सूर्यास्त पूजन और सूर्योदय पूजन का विशेष महत्व होता है. जानिए क्या है नहाय खाय से लेकर अर्घ्य देने तक की पूरी विधि....

Chhath Puja 2022
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Published : Oct 18, 2022, 11:32 AM IST

Updated : Oct 18, 2022, 12:09 PM IST

पटनाः बिहार में लोक आस्था (Bihar Chhath Puja) और पवित्रता का महापर्व छठ हर साल कार्तिक माह की शुक्ल पक्ष की षष्ठी के दिन मनाया जाता है. इसकी शुरुआत चतुर्थी तिथि से ही हो जाती है और सप्तमी तिथि के सुबह तक चलती है. इस बार छठ पूजा 28 अक्टूबर 2022, शुक्रवार से शुरु होकर 31 अक्टूबर 2022, सोमवार को समाप्त होगी. छठ व्रत, सुहाग, संतान, सुख-सौभाग्य और सुखमय जीवन की कामना के लिए किया जाता है. इस पर्व में तैयार की जाने वाली हर चिजों में शुद्धता का खास ख्याल रखा जाता है. आइए जानते हैं इस साल कब शुरु हो रहा छठ पर्व (Chhath Puja 2022 date) और क्या है नहाय खाय से लेकर सूर्योदय तक का शुभ मुहूर्त?

ये भी पढ़ेंः Chhath Puja 2022: 'सुनिहा अरज छठी मईया...' London में जोरों पर चल रही छठ की तैयारी

बिहार का सबसे बड़ा चार दिवसीय छठ पर्वः बिहार में चार दिवसीय छठ पर्व को तैयारी दशहरा के बाद से ही शुरू हो जाती है. घाटों की साफ-सफाई से लेकर मिट्टी के चूल्हे और दउरा बनाने तक के काम में लोग कई दिनों पहले से जुट जाते हैं. चार दिवसीय छठ पर्व में नहाय-खाय, खरना, सूर्यास्त पूजन और सूर्योदय पूजन का विशेष महत्व होता है. इस व्रत में महिलाएं संतान की लंबी आयु और कठिन कामों के पूरा होने की कामना लिए 36 घंटे का निर्जला व्रत रखती हैं. ये पर्व नहाय-खाय से शुरू होता है और सूर्योदय पूजन के साथ समाप्त होता है.

छठ के पहले दिन नहाय खाय से पूजा की शुरूआतः इस बार छठ महापर्व की शुरुआत 28 अक्टूबर को नहाय खाय से हो रही है. इस दिन महिलाएं स्नान करके नई साड़ियां पहनकर भगवान सूर्य की पूजा करती हैं. इस दिन इस दिन कद्दू भात का प्रसाद खाया जाता है. इस दिन व्रती घर में पवित्रता के साथ बनाएं गए सात्विक भोजन को ही ग्रहण करती हैं.

छठ पूजा के दूसरे दिन होता है खरनाः छठ महापर्व के दूसरे दिन को खरना कहा जाता है. इस बार खरना 29 अक्टूबर को पड़ रहा है. इस दिन सूर्यास्त के बाद गुड़, दूध वाली खीर और रोटी बनाई जाती है. खरना के दिन महिलाएं इसे सूर्य देव को भोग लगाकर प्रसाद के रूप में ग्रहण करती हैं. खरना के प्रसाद के बाद से महिलाओं का निर्जला उपहास 36 घंटे के लिए शुरू हो जाता है.

घाट पर सजा पूजा का दउरा
घाट पर सजा पूजा का दउरा

छठ पूजा के तीसरे दिन पहला अर्घ्यः यह महापर्व का सबसे प्रमुख दिन होता है. इस बार लोक आस्था का महापर्व छठ पूरे देश में 30 अक्टूबर को मनाया जाएगा. छठ पूजा के तीसरे दिन डूबते सूर्य को पहला अर्घ्य दिया जाता है. इस दिन छठी मईया की पूजा की जाती है. व्रती अपने घर में सुबह से ही घाट जाने की तैयारी में जुट जाते हैं. घर के सभी लोग पवित्रता के साथ पूजा की तैयारी में जुट जाते हैं, और शाम से पहले सिर पर प्रसाद का दउरा लेकर घर के पुरूष और महिलाएं घाट पहुंचती हैं, जहां डूबते सूर्य को अर्घ्य दिया जाता है. इस पूरी प्रकिया में शुद्धता का खास ख्याल रखा जाता है.

छठ पूजा के चौथे और आखिर दिन दूसरा अर्घ्यः कार्तिक माह के शुक्ल पक्ष की सप्तमी यानी छठ पूजा के चोथे दिन उगते सूर्य को अर्घ्य दिया जाता है. घर के सदस्य भोर से ही व्रती के साथ घाट पहुंच जाते हैं, जहां व्रती पानी में खड़े होकर उदीयमान सूर्य को अर्घ्य देने के लिए हाथ जल लेकर खड़े होते हैं, सूर्य की किरणों को देखते ही पूजा की विधी शुरू हो जाती है. इस बार सप्तमी तिथि 31 अक्टूबर को है. इस दिन उगते सूर्य के अर्घ्य देते हुए व्रत का समापन किया जाता है. व्रती छठ का प्रसाद ग्रहण कर व्रत को खत्म करते हैं.

घाट पर श्रद्धालुओं की भीड़
घाट पर श्रद्धालुओं की भीड़

क्या है छठ पूजा का महत्वः छठ पर्व श्रद्धा और आस्था से जुड़ा है, जो व्यक्ति इस व्रत को पूरी निष्ठा और श्रद्धा से करता हैं उसकी मनोकामनाएं पूरी होती है. छठ व्रत, सुहाग, संतान, सुख-सौभाग्य और सुखमय जीवन की कामना के लिए किया जाता है. इस पर्व में सूर्य देव की उपासना का खास महत्व है. मान्यताओं के अनुसार, छठ पूजा के दौरान पूजी जाने वाली छठी मईया सूर्य देव की बहन हैं. इस व्रत में सूर्य की आराधना करने से छठ माता प्रसन्न होती हैं और आशीर्वाद देती हैं. इस व्रत में जितनी श्रद्धा से नियमों और शुद्धता का पालन किया जाएगा, छठी मैया उतना ही प्रसन्न होंगी. छठ पर विशेष रूप से बनने वाले ठेकुए को प्रसाद के रूप में जरूर चढ़ाया जाता हैं.

पूजा में इस्तेमाल होने वाली समाग्रीः छठ पूजा में नई साड़ी, बांस की बनी हुए बड़ी-बड़ी टोकरियां, पीतल या बास का सूप, दूध, जल, लोटा, शाली, गन्ना, मौसमी फल, पान, सुथना, सुपारी, मिठाई, दिया आदि समानों की जरुरत होती है. दरअसल सूर्य देव को छठ के दिन इस मौसम में मिलने वाली सभी फल और सब्जी अर्पण किए जाते हैं.

क्या है छठ पूजा से जुड़ी पौराणिक कथा? एक पौराणिक कथा के मुताबिक, प्रियव्रत नाम के एक राजा थे. उनकी पत्नी का नाम मालिनी था. दोनों के कोई संतान नहीं थी. इस वजह से दोनों दुःखी रहते थे. एक दिन महर्षि कश्यप ने राजा प्रियव्रत से पुत्र प्राप्ति के लिए यज्ञ करने को कहा. महर्षि की आज्ञा मानते हुए राजा ने यज्ञ करवाया, जिसके बाद रानी ने एक सुंदर पुत्र को जन्म दिया. लेकिन दुर्भाग्यवश वह बच्चा मृत पैदा हुआ. इस बात से राजा और दुखी हो गए. उसी दौरान आसमान से एक विमान उतरा जिसमें माता षष्ठी विराजमान थीं. राजा के प्रार्थना करने पर उन्होंने अपना परिचय दिया. उन्होंने बताया कि मैं ब्रह्मा की मानस पुत्री षष्ठी हूं. मैं संसार के सभी लोगों की रक्षा करती हूं और निःसंतानों को संतान प्राप्ति का वरदान देती हूं. तभी देवी ने मृत शिशु को आशीर्वाद देते हुए हाथ लगाया, जिससे वह पुन: जीवित हो गया. देवी की इस कृपा से राजा बेहद खुश हुए और षष्ठी देवी की आराधना की. इसके बाद से ही इस पूजा का प्रसार हो गया.

पहला दिन- नहाय खाय (28 अक्टूबर 2022, शुक्रवार)

दूसरा दिन- खरना (29 अक्टूबर 2022, शनिवार)

तीसरा दिन- अस्तचलगामी सूर्य को अर्घ्य (30 अक्टूबर 2022, रविवार)

आखिरी दिन व चौथे दिन- उदीयमान सूर्य को अर्घ्य (31 अक्टूबर 2022, सोमवार)

पटनाः बिहार में लोक आस्था (Bihar Chhath Puja) और पवित्रता का महापर्व छठ हर साल कार्तिक माह की शुक्ल पक्ष की षष्ठी के दिन मनाया जाता है. इसकी शुरुआत चतुर्थी तिथि से ही हो जाती है और सप्तमी तिथि के सुबह तक चलती है. इस बार छठ पूजा 28 अक्टूबर 2022, शुक्रवार से शुरु होकर 31 अक्टूबर 2022, सोमवार को समाप्त होगी. छठ व्रत, सुहाग, संतान, सुख-सौभाग्य और सुखमय जीवन की कामना के लिए किया जाता है. इस पर्व में तैयार की जाने वाली हर चिजों में शुद्धता का खास ख्याल रखा जाता है. आइए जानते हैं इस साल कब शुरु हो रहा छठ पर्व (Chhath Puja 2022 date) और क्या है नहाय खाय से लेकर सूर्योदय तक का शुभ मुहूर्त?

ये भी पढ़ेंः Chhath Puja 2022: 'सुनिहा अरज छठी मईया...' London में जोरों पर चल रही छठ की तैयारी

बिहार का सबसे बड़ा चार दिवसीय छठ पर्वः बिहार में चार दिवसीय छठ पर्व को तैयारी दशहरा के बाद से ही शुरू हो जाती है. घाटों की साफ-सफाई से लेकर मिट्टी के चूल्हे और दउरा बनाने तक के काम में लोग कई दिनों पहले से जुट जाते हैं. चार दिवसीय छठ पर्व में नहाय-खाय, खरना, सूर्यास्त पूजन और सूर्योदय पूजन का विशेष महत्व होता है. इस व्रत में महिलाएं संतान की लंबी आयु और कठिन कामों के पूरा होने की कामना लिए 36 घंटे का निर्जला व्रत रखती हैं. ये पर्व नहाय-खाय से शुरू होता है और सूर्योदय पूजन के साथ समाप्त होता है.

छठ के पहले दिन नहाय खाय से पूजा की शुरूआतः इस बार छठ महापर्व की शुरुआत 28 अक्टूबर को नहाय खाय से हो रही है. इस दिन महिलाएं स्नान करके नई साड़ियां पहनकर भगवान सूर्य की पूजा करती हैं. इस दिन इस दिन कद्दू भात का प्रसाद खाया जाता है. इस दिन व्रती घर में पवित्रता के साथ बनाएं गए सात्विक भोजन को ही ग्रहण करती हैं.

छठ पूजा के दूसरे दिन होता है खरनाः छठ महापर्व के दूसरे दिन को खरना कहा जाता है. इस बार खरना 29 अक्टूबर को पड़ रहा है. इस दिन सूर्यास्त के बाद गुड़, दूध वाली खीर और रोटी बनाई जाती है. खरना के दिन महिलाएं इसे सूर्य देव को भोग लगाकर प्रसाद के रूप में ग्रहण करती हैं. खरना के प्रसाद के बाद से महिलाओं का निर्जला उपहास 36 घंटे के लिए शुरू हो जाता है.

घाट पर सजा पूजा का दउरा
घाट पर सजा पूजा का दउरा

छठ पूजा के तीसरे दिन पहला अर्घ्यः यह महापर्व का सबसे प्रमुख दिन होता है. इस बार लोक आस्था का महापर्व छठ पूरे देश में 30 अक्टूबर को मनाया जाएगा. छठ पूजा के तीसरे दिन डूबते सूर्य को पहला अर्घ्य दिया जाता है. इस दिन छठी मईया की पूजा की जाती है. व्रती अपने घर में सुबह से ही घाट जाने की तैयारी में जुट जाते हैं. घर के सभी लोग पवित्रता के साथ पूजा की तैयारी में जुट जाते हैं, और शाम से पहले सिर पर प्रसाद का दउरा लेकर घर के पुरूष और महिलाएं घाट पहुंचती हैं, जहां डूबते सूर्य को अर्घ्य दिया जाता है. इस पूरी प्रकिया में शुद्धता का खास ख्याल रखा जाता है.

छठ पूजा के चौथे और आखिर दिन दूसरा अर्घ्यः कार्तिक माह के शुक्ल पक्ष की सप्तमी यानी छठ पूजा के चोथे दिन उगते सूर्य को अर्घ्य दिया जाता है. घर के सदस्य भोर से ही व्रती के साथ घाट पहुंच जाते हैं, जहां व्रती पानी में खड़े होकर उदीयमान सूर्य को अर्घ्य देने के लिए हाथ जल लेकर खड़े होते हैं, सूर्य की किरणों को देखते ही पूजा की विधी शुरू हो जाती है. इस बार सप्तमी तिथि 31 अक्टूबर को है. इस दिन उगते सूर्य के अर्घ्य देते हुए व्रत का समापन किया जाता है. व्रती छठ का प्रसाद ग्रहण कर व्रत को खत्म करते हैं.

घाट पर श्रद्धालुओं की भीड़
घाट पर श्रद्धालुओं की भीड़

क्या है छठ पूजा का महत्वः छठ पर्व श्रद्धा और आस्था से जुड़ा है, जो व्यक्ति इस व्रत को पूरी निष्ठा और श्रद्धा से करता हैं उसकी मनोकामनाएं पूरी होती है. छठ व्रत, सुहाग, संतान, सुख-सौभाग्य और सुखमय जीवन की कामना के लिए किया जाता है. इस पर्व में सूर्य देव की उपासना का खास महत्व है. मान्यताओं के अनुसार, छठ पूजा के दौरान पूजी जाने वाली छठी मईया सूर्य देव की बहन हैं. इस व्रत में सूर्य की आराधना करने से छठ माता प्रसन्न होती हैं और आशीर्वाद देती हैं. इस व्रत में जितनी श्रद्धा से नियमों और शुद्धता का पालन किया जाएगा, छठी मैया उतना ही प्रसन्न होंगी. छठ पर विशेष रूप से बनने वाले ठेकुए को प्रसाद के रूप में जरूर चढ़ाया जाता हैं.

पूजा में इस्तेमाल होने वाली समाग्रीः छठ पूजा में नई साड़ी, बांस की बनी हुए बड़ी-बड़ी टोकरियां, पीतल या बास का सूप, दूध, जल, लोटा, शाली, गन्ना, मौसमी फल, पान, सुथना, सुपारी, मिठाई, दिया आदि समानों की जरुरत होती है. दरअसल सूर्य देव को छठ के दिन इस मौसम में मिलने वाली सभी फल और सब्जी अर्पण किए जाते हैं.

क्या है छठ पूजा से जुड़ी पौराणिक कथा? एक पौराणिक कथा के मुताबिक, प्रियव्रत नाम के एक राजा थे. उनकी पत्नी का नाम मालिनी था. दोनों के कोई संतान नहीं थी. इस वजह से दोनों दुःखी रहते थे. एक दिन महर्षि कश्यप ने राजा प्रियव्रत से पुत्र प्राप्ति के लिए यज्ञ करने को कहा. महर्षि की आज्ञा मानते हुए राजा ने यज्ञ करवाया, जिसके बाद रानी ने एक सुंदर पुत्र को जन्म दिया. लेकिन दुर्भाग्यवश वह बच्चा मृत पैदा हुआ. इस बात से राजा और दुखी हो गए. उसी दौरान आसमान से एक विमान उतरा जिसमें माता षष्ठी विराजमान थीं. राजा के प्रार्थना करने पर उन्होंने अपना परिचय दिया. उन्होंने बताया कि मैं ब्रह्मा की मानस पुत्री षष्ठी हूं. मैं संसार के सभी लोगों की रक्षा करती हूं और निःसंतानों को संतान प्राप्ति का वरदान देती हूं. तभी देवी ने मृत शिशु को आशीर्वाद देते हुए हाथ लगाया, जिससे वह पुन: जीवित हो गया. देवी की इस कृपा से राजा बेहद खुश हुए और षष्ठी देवी की आराधना की. इसके बाद से ही इस पूजा का प्रसार हो गया.

पहला दिन- नहाय खाय (28 अक्टूबर 2022, शुक्रवार)

दूसरा दिन- खरना (29 अक्टूबर 2022, शनिवार)

तीसरा दिन- अस्तचलगामी सूर्य को अर्घ्य (30 अक्टूबर 2022, रविवार)

आखिरी दिन व चौथे दिन- उदीयमान सूर्य को अर्घ्य (31 अक्टूबर 2022, सोमवार)

Last Updated : Oct 18, 2022, 12:09 PM IST
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