पटना: 1991 में बिहार में चरवाहा विद्यालय (Charwaha Vidyalaya) इस उम्मीद के साथ खुले कि 5 से 15 वर्ष तक के बच्चे गाय, भैंस चराने के दौरान पढ़ाई भी कर सकेंगे. लेकिन यह अत्यंत चर्चित योजना ना सिर्फ धराशाई हुई बल्कि इसने लालू (Lalu Yadav) और उनकी पार्टी (RJD) को ताउम्र एक राजनीतिक सदमा भी दे दिया.
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बिहार समेत पूरे देश में नई राष्ट्रीय शिक्षा नीति की चर्चा है और स्कूल कॉलेजों से निकले विद्यार्थियों को तकनीकी रूप से दक्ष बनाने की बात भी हो रही है. लेकिन बिहार की शिक्षा की जब-जब चर्चा होती है तब एक तरफ जहां बिहार से निकले शिक्षाविदों की बात होती है. तो वहीं दूसरी तरफ उस चरवाहा विद्यालय की चर्चा जरूर होती है जो एक वक्त अंतरराष्ट्रीय स्तर पर चर्चा का मुद्दा बन गया था.
वर्ष 1991 में लालू यादव ने 113 चरवाहा विद्यालय खोलने की घोषणा की. इस योजना के लिए स्कूलों की आधारभूत संरचना पर 1 करोड़ रुपए खर्च करने के अलावा कोई अलग खर्च का प्रस्ताव नहीं था. इसके लिए कृषि विभाग के बीज केंद्र की जमीन ली गई जिनका इस्तेमाल नहीं हो रहा था.
वहीं वन विभाग को चरवाहा विद्यालय के आसपास पेड़ और घास लगाने का जिम्मा दिया गया जबकि मत्स्य विभाग को विद्यालय परिसर में मछली पालन को बढ़ावा देने और पीडब्ल्यूडी को मिड डे मील की व्यवस्था करने को कहा गया.
तब बिहार के स्कूलों में शिक्षकों की संख्या काफी कम थी और चरवाहा विद्यालय खुलने पर नए शिक्षक की बहाली के बजाय उन्हीं शिक्षकों को चरवाहा विद्यालय में ट्रांसफर कर दिया गया. एक रिपोर्ट के मुताबिक इन चरवाहा स्कूलों में पढ़ने वाले अधिकतर बच्चे ओबीसी और अनुसूचित जाति से संबंध रखते थे.
क्या कहते हैं आंकड़े: बिहार में शिक्षक छात्र अनुपात तब 1:90 था यानि प्रति 90 विद्यार्थियों पर एक शिक्षक जो 2005 आते-आते 1:122 हो गया जबकि इसे 1:40 होना चाहिए था. कृषि विभाग के 114 कृषि बीज केंद्रों को चरवाहा विद्यालय में परिवर्तित कर दिया गया.
चरवाहा विद्यालय की लोकप्रियता इतनी ज्यादा थी कि कई अंतरराष्ट्रीय संस्थाओं ने इसके लिए मदद की पेशकश की. 1995 तक चरवाहा विद्यालयों की संख्या बढ़कर 354 तक पहुंच गई. लेकिन 1995 के चुनाव के बाद अचानक शिक्षकों ने चरवाहा विद्यालय आना बंद कर दिया.
लालू यादव ने 1995 से 2005 के बीच इन विद्यालयों की व्यवस्था सुधारने या इन्हें लगातार चलाने के लिए आगे कुछ भी ठोस नहीं किया. जिसका नतीजा यह हुआ कि चरवाहा विद्यालय बंद होते गए और उन्हें बंद करने के लिए किसी आधिकारिक आदेश की जरूरत भी नहीं पड़ी.
हालांकि वर्ष 2004 में लालू यादव ने फिर से इन विद्यालयों के नाम पर लोगों का समर्थन हासिल करने की कोशिश की. वर्ष 2005 के चुनाव से पहले तत्कालीन मुख्यमंत्री राबड़ी देवी ने 79 नए चरवाहा विद्यालय खोलने की घोषणा की लेकिन इसके जरिए लोगों का समर्थन पाने के उनके तमाम प्रयास बेकार साबित हुए.
इस बारे में तत्कालीन शिक्षा मंत्री रामचंद्र पूर्वे कहते हैं कि लालू यादव ने इस सोच के साथ चरवाहा विद्यालय की शुरुआत की थी कि अगर बच्चे स्कूल तक नहीं आते हैं तो स्कूल को बच्चों तक जाना चाहिए. बच्चों को ऐसे तैयार करना चाहिए कि वह भविष्य में खुद किसी काबिल बन सकें. इस कांसेप्ट के साथ हमने शुरुआत की और समय के साथ हम इसमें बदलाव भी चाहते थे लेकिन दुर्भाग्यवश हमारी सरकार आगे नहीं बन पाई.
'तत्कालीन योजना आयोग की रिपोर्ट के मुताबिक चरवाहा विद्यालय में शिक्षकों और कर्मचारियों की कमी और बिना मॉनिटरिंग के स्कूलों की व्यवस्था बिगड़ती गई. योजना आयोग के सुझाव पर भी लालू सरकार ने तब कोई ध्यान नहीं दिया. इस बात का जवाब तो लालू यादव को देना चाहिए कि चरवाहा विद्यालय के आधारभूत विकास के लिए मात्र 1 करोड़ और चरवाहा विद्यालय में चारे की सुविधा देने के लिए 6 करोड़ का बजट किस आधार पर रखा गया था.'- नीरज कुमार, मुख्य प्रवक्ता, जदयू
जदयू नेता नीरज कुमार ने बताया कि वर्ष 2005 में जब नीतीश कुमार की सरकार बनी तो करीब एक दशक से वीरान पड़े चरवाहा विद्यालय की जमीन पर फिर से कृषि बीज का उत्पादन शुरू हुआ. हाल में 2020-21 के आंकड़ों के मुताबिक इन कृषि बीज उत्पादन इकाइयों से 16668.85 क्विंटल बीज का उत्पादन किया गया जिन्हें किसानों को बांटा गया.
'वर्तमान सरकार दरअसल गुणवत्तापूर्ण शिक्षा देने में पूरी तरह फेल हो गई है. इनके पास अपनी कोई बात बताने के लिए नहीं, इसीलिए पुराने मुद्दों को उठाकर अपनी गलतियां छुपाने की कोशिश कर रहे हैं.'- प्रोफेसर रामबली चंद्रवंशी, राजद एमएलसी
इस बारे में लालू कार्यकाल को बेहद करीब से देखने और समझने वाले राजनीतिक विश्लेषक डॉ संजय कुमार कहते हैं कि यह कंसेप्ट बहुत बढ़िया था. अगर इस कंसेप्ट पर बेहतर तरीके से और बेहतर रणनीति के तहत काम किया जाता तो आज एक मिसाल बनता. लेकिन दुर्भाग्यवश लालू यादव ने चरवाहा विद्यालय खोलने के बाद उसे चलाने के लिए गंभीरता नहीं दिखाई. ना तो पर्याप्त संख्या में शिक्षकों को बहाल किया और ना ही उनके लिए एक बेहतर आधारभूत संरचना तैयार की.
चरवाहा विद्यालय में 5 से 15 साल की उम्र के वैसे बच्चों का नामांकन लिया जाता था, जो जानवरों को चराते थे. यूनिसेफ समेत अन्य कई अंतरराष्ट्रीय संस्थानों ने इसकी सराहना की थी. दिसंबर 1991 में वैशाली जिले के गोरौल में देश का पहला चरवाहा विद्यालय खुला था.
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