पटना: 2021 में बचे हुए महीने बिहार की राजनीति (Bihar Politics) के लिए काफी अहम हैं और नीतीश कुमार (CM Nitish Kumar) के लिए चुनौती भरे हैं. बिहार में चल रहे पंचायत चुनाव (Panchayat Election) की प्रक्रिया और उसके बाद बिहार विधान परिषद और विधानसभा के लिए नीतीश कुमार की जो परीक्षा होनी है, वह 2021 की विदाई के साथ कौन से सौगात का रंग लेकर आएगी, यह भी बिहार की राजनीति की दिशा तय करेगी.
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बिहार में हो रहे पंचायत चुनाव के बाद बिहार विधान परिषद की 14 सीटों पर नए विधान पार्षद तय होंगे. जिनका चयन पंचायतों से जीते हुए प्रतिनिधि करेंगे. बिहार विधानसभा की खाली हुई कुल 24 सीटों में से 14 सीट ग्राम पंचायत के इसी होने वाले चुनाव पर निर्भर हैं. पंचायत चुनाव दिसंबर महीने में खत्म हो रहा है और माना जा रहा है कि उसके तुरंत बाद ही एमएलसी के चुनाव हो जाएंगे.
नीतीश के लिए चिंता और चुनौती दोनों हैं. बीजेपी नीतीश के ही बूते पर बिहार में है क्योंकि चेहरा नीतीश हैं, ऐसे में जिन 14 सीटों को जीतना है सभी सीटें नीतीश कुमार को ही जीत दिलानी है और सबसे अहम बात यह है कि जिन 14 सीटों की चर्चा हो रही है वह सभी सीटें बीजेपी और जदयू कोटे की हैं. ऐसे में अगर इसमें से एक भी सीट नीतीश के हाथ से निकलती है तो नई राजनीति का खड़ा होना तय है, इसलिए 2021 की विदाई नए राजनीति की तैयारी देकर जाएगा.
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विधान परिषद के चुनाव के अलावा बिहार विधानसभा की 2 सीटों पर उपचुनाव होना है. निर्वाचन आयोग की जिस तरह से तैयारी चल रही है, उससे माना जा रहा है कि कोरोना और त्योहारों के कारण यह उपचुनाव नहीं हो रहे हैं, लेकिन जैसे ही इसमें थोड़ी सी राहत मिलेगी निर्वाचन आयोग इन सीटों पर चुनाव करवा देगा. बिहार में जिन 2 सीटों पर चुनाव होना है, वह तारापुर और कुशेश्वरस्थान हैं. इन दोनों स्थानों पर उपचुनाव होना है.
लिहाजा, किसकी तैयारी में आयोग जुटा हुआ है और इसे लेकर एक बैठक भी मुख्य निर्वाचन आयुक्त के नेतृत्व में हो चुकी है. इसमें बिहार ही नहीं आंध्रप्रदेश, असम, हरियाणा, हिमाचल प्रदेश, मध्य प्रदेश, मेघालय, राजस्थान, तेलंगाना, उत्तराखंड, उत्तर प्रदेश के साथ ही दादरा और नगर हवेली, दमन और दीव के मुख्य सचिव और मुख्य सलाहकार शामिल थे.
2021 के बचे हुए महीनों में बिहार की राजनीति एक नए रंग को ला रही है, जो 2022 में होने वाले कई राज्यों के विधानसभा चुनाव के लिए विकास और विकास के विश्वास पर नई सियासी दिशा तय करेगा. अब देखना ये है कि बिहार में चल रही दो इंजन की सरकार जिन चुनाव में जा रही है, उसके परिणाम विकास पर आते हैं या फिर जाति के जिस विकास की राजनीति को बिहार में एक दिशा दी गई है, उसका रंग दिखता है या फिर बिहार भरोसा ही करता है कि नीतीश कुमार हैं.