पटना: चैत्र नवरात्र के आठवें दिन दुर्गा माता के महागौरी स्वरुप की पूजा की जा रही है. राजधानी पटना में भी महाअष्टमी की रौनक देखते ही बन रही है. दुर्गा सप्तशती के पाठ से वातावरण गुंजयमान हो रहा है. ऐसे में पटना के बांस घाट स्थित काली मंदिर में भी श्रद्धालु सुबह से ही मां की पूजा करने पहुंच रहे हैं. इस मंदिर की महत्ता के कारण दूर-दूर से भक्त यहां मत्था टेकने आते हैं.
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बांस घाट श्मशान भूमि पर मां का मंदिर: बांस घाट स्थित काली मंदिर श्मशान में स्थित है, जिसे सिद्धेश्वरी मंदिर के नाम से भी जाना जाता है. जहां माता का मंदिर बना है, वह श्मशान भूमि है. यहां कई लोगों की चिताएं जली थीं और आज वहां पर माता काली विराजमान है. माता काली के मंदिर में भैरव बाबा से लेकर भोलेनाथ बजरंगबली और माता सती भी विराजमान है.
सिद्धेश्वरी मंदिर पहुंचते हैं बड़ी संख्या में श्रद्धालु: बांस घाट स्थित माता काली का यह प्राचीन मंदिर सिद्ध पीठ है, जहां से कोई श्रद्धालु खाली हाथ नहीं लौटता है. जो श्रद्धालु मन्नत मांगने वाले पहुंचते हैं उनकी झोली भर जाती है और मनोकामना पूरी होने के बाद श्रद्धालु मंदिर आते हैं और अपनी श्रद्धा अनुसार प्रसाद चढ़ाते हैं, दान करते है. मान्यताओं के कारण माता के मंदिर में नवरात्र में भक्तों की भारी संख्या में भीड़ पहुंचती है.अमूमन मंगलवार और शनिवार को भीड़ देखते ही बनती है. मंगलवार शनिवार को मां काली देवी को श्रद्धालु श्रृंगार के सामान और नारियल चढ़ाते हैं और दीपक जलाते हैं. जो लोग विशेष कामना माता से करते हैं वह लोग धागा भी चढ़ाते हैं.
'मंदिर के सामने जलती हैं चिताएं': मंदिर के पुजारी सुमंत पांडे ने ईटीवी भारत से बातचीत के दौरान बताया कि इस मंदिर का इतिहास सदियों पुराना है. मंदिर के सामने आज भी चिताएं जलती रहती हैं पर भक्ति भाव में कोई कमी नहीं होती है. क्योंकि मां जागृत है. मां सिद्धेश्वरी के नाम से लोग जानते हैं उन्होंने बताया कि नवरात्रि में सप्तमी अष्टमी नवमी के दिन माता का देर रात तक पट खोलकर रखा जाता है. श्रद्धालु माता की पूजा अर्चना के लिए पहुंचते हैं. मंदिर में शाम में विशेष आरती होती है. लग्न सीजन में भी नए शादीशुदा जोड़े माता का आशीर्वाद लेने के लिए पहुंचते हैं.
"400 से अधिक वर्षों से इसका इतिहास जुड़ा हुआ है और इस मंदिर को अघौड़ी द्वारा स्थापित किया गया है. बांस घाट जहां पर चिताएं जलती हैं, इस मंदिर का ही हिस्सा है. पहले गंगा और सोन नदी इस मंदिर के बगल से गुजरती थी. दोनों नदियों के तट पर माता विराजमान हैं. आज भले ही गंगा मईया दूर हो गई है लेकिन सावन भादो के मौसम में गंगा मंदिर के पास तक आ जाती हैं."-सुमंत पांडेय, पुजारी
दूर-दूर से पहुंचते हैं श्रद्धालु: श्रद्धालुओं का कहना है कि मंदिर में आकर मां के दरबार में सच्चे मन से कुछ भी मांगने पर मनोकामना पूरी होती है. यहां की महिमा सुनकर मंदिर लोग आते हैं. माता के दर्शन से जीवन धन्य हो जाता है.
"काली मंदिर को जागृत मंदिर के रूप में भी जाना जाता है. यहां पर मैं बचपन से पूजा के लिए आ रहा हूं. मंगलवार और शनिवार को माता काली की पूजा अर्चना कर नारियल भी चढ़ाता हूं. जो लोग भी मां की पूजा अर्चना करके मनोकामना करते हैं, माता उनकी मनोकामना पूर्ण करती है. नवरात्रि में बहुत भीड़ होती है."- प्रियांशु कुमार, श्रद्धालु
"मैं अपने पिताजी के साथ 20 वर्षों से इस मंदिर में पूजा अर्चना के लिए आ रहा हूं. मंदिर की महिमा अपरंपार है. माता सभी भक्तों की मुराद पूरी करती हैं. इसी के लिए भक्तों की भीड़ प्रतिदिन पहुंचती है और आज नवरात्रि के अष्टमी दिन महिला पुरुष सभी लोग पहुंचकर मां की पूजा अर्चना कर रहे हैं."- मुकेश कुमार श्रद्धालु