पटना: राजधानी पटना में आए दिन क्राइम (Patna Crime News) की घटनाएं बढ़ती जा रही है. पुलिस प्रशासन की लाख कोशिशों के बाद भी आपराधिक घटनाओं में कमी नहीं आ रही है. क्राइम कंट्रोल हो भी तो कैसे जब पटना पुलिस (Patna Police) की तीसरी आंख ही खराब है. राजधानी पटना की सड़कों पर निगरानी के लिए लगाई गई तीसरी आंख यानी कि सीसीटीवी कैमरे (CCTV in Patna) खराब पड़े हुए हैं.
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राजधानी के 63 चेक पोस्ट पर लगाए गए 185 सीसीटीवी कैमरे के साथ 64 पीटीजे कैमरे बंद पड़े हैं. यही नहीं सीसीटीवी कैमरे के कंट्रोल रूम का सर्वर भी पिछले 6 महीने से खराब पड़ा हुआ है. ऐसे में सवाल उठता है कि आखिर अपराध पर कैसे नकेल सकी जाएगी. अपराध की घटना को अंजाम देने के बाद भागने वाले अपराधियों की पहचान सीसीटीवी कैमरों से कर पाना आसान हो जाता है. लेकिन राजधानी में फिलहाल ये मुमकिन नहीं है. महीनों से सीसीटीवी कैमरे खराब पड़े हुए हैं. आपको बता दें कि राजधानी पटना के चर्चित रूपेश सिंह हत्याकांड मामले को भी पटना पुलिस ने सीसीटीवी कैमरे के माध्यम से ही सुलझाया था.
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राजधानी पटना में डायल हंड्रेड की ओर से लगाए गए 80 कैमरे में से भी 50 कैमरे खराब पड़े हुए हैं. हालांकि जो कैमरे काम कर रहे हैं उनकी क्वालिटी इतनी खराब है कि वह गाड़ी के नंबर प्लेट की भी दूर से पहचान नहीं कर पाती है. यही कारण है कि राजधानी पटना में हाल के दिनों में हुई लूट, गोलीबारी और छिनतई की कई घटनाओं में सीसीटीवी फुटेज नहीं मिलने के कारण अपराधियों की पहचान नहीं हो सकी.
आपको बता दें कि राजधानी पटना शहर में कुल 185 सीसीटीवी कैमरे लगाए गए थे. लेकिन मेंटेनेंस के अभाव में करीब 100 कैमरे पिछले 7 महीने से खराब पड़े हुए हैं. मिल रही जानकारी के अनुसार जिस कंपनी को सीसीटीवी मेंटेनेंस का जिम्मा दिया गया था, उसका कार्यकाल पूरा हो गया. बाद में उसके कॉन्ट्रैक्ट को आगे नहीं बढ़ाया गया. जिसके अभाव में यह सब कैमरे खराब पड़े हुए हैं.
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पटना ट्रैफिक पुलिस की ओर से राजधानी पटना में गाड़ियों का नंबर प्लेट देखकर ऑनलाइन चालान काटने की व्यवस्था भी फेल है. साल 2012 में 30 एपीआर ऑटोमेटिक नंबर प्लेट रिकॉग्निशन कैमरे लगाए गए थे, इसका इस्तेमाल नहीं होने के कारण यह बेकार हो गए हैं. इन सीसीटीवी कैमरों की वैधता 5 साल होती है. समय पर रिपेयरिंग नहीं होने के कारण यह बेकार पड़े हुए हैं और इसका सर्वर भी पूर्ण रूप से खराब हो चुका है.
राजधानी पटना के सिर्फ सीसीटीवी कैमरे ही नहीं बल्कि ज्यादातर ट्रैफिक सिग्नल भी खराब पड़े हुए हैं. दरअसल नीदरलैंड के तौर पर राजधानी पटना में ट्रैफिक सिग्नल को हाईटेक करने का दावा हुआ था. इलेक्ट्रॉनिक ट्रैफिक लाइट सिस्टम के नाम पर 26 करोड़ खर्च भी हुए लेकिन साढ़े 4 साल में पूरा सिस्टम ध्वस्त हो गया है.
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जिस सिस्टम को चालू कराने के लिए पानी की तरह पैसा बहाया गया था, उसके रखरखाव के कार्य के लिए कॉन्ट्रैक्ट को स्टैंड तक नहीं किया गया. जिस वजह से राजधानी पटना के 90 फीसदी सिग्नल खराब या काम नहीं कर रहा हैं. हालात ऐसे हैं कि ट्रैफिक पुलिस 5 साल पहले जैसे काम कर रही थी, ठीक वैसे ही आज भी काम करने को विवश है.
"केंद्र सरकार और राज्य सरकार की योजना के तहत सीसीटीवी कैमरे और अन्य पुलिस की उपयोगी उपकरण लगाए गए थे. कुछ जगह पर यह कार्यरत हैं तो कुछ जगह पर यह कार्य नहीं कर रहा है. राज्य सरकार की योजना के तहत सार्वजनिक स्थलों, प्रमुख चौक चौराहों, थानों में सीसीटीवी कैमरे लगने हैं. जो पुराने कैमरे लगे हुए हैं, उनके मेंटेनेंस या रखरखाव में जो भी कमी है, उसकी रिपोर्ट लेकर संबंधित विभाग से पूछताछ की जाएगी. सीसीटीवी कैमरे ही नहीं, पुलिस के उपयोग होने वाले सभी संसाधन सही ढंग से कार्य करने चाहिए."- जितेंद्र सिंह गंगवार, एडीजी, पुलिस मुख्यालय
बता दें कि राजधानी पटना में इलेक्ट्रिक ट्रैफिक लाइट सिस्टम का लोकार्पण 24 फरवरी 2016 को हुआ था. पटना एसएसपी कार्यालय के बगल में सीसीटीव कंट्रोल रूम भी बनाया गया था. बुडको ने वर्ष 2015 में नीदरलैंड की कंपनी को 24 करोड़ की लागत से 97 स्थानों पर सिग्नल लगाने का कार्य दिया था. एक सिग्नल पर लगभग 25 लाख खर्च हुए थे.
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योजना के तहत 72 स्थानों पर ऑटोमेटिक और 25 स्थानों पर फिक्स सिग्नल लाइट लगाने का काम शुरू हुआ था. जिसके बाद जहां पर ट्रैफिक सिग्नल का दबाव नहीं था, वहां से कुछ महीनों में ही 14 सिग्नल को बंद कर दिया गया. इसके साथ-साथ सगुना मोड़ से लेकर डाकबंगला चौराहे तक यूटर्न बनाने के दौरान पांच चेक पोस्ट को हटा कर वहां से सिग्नल भी हटा दिया गया था. विभाग की योजना थी कि ट्रैफिक सिग्नल लाइट और ऑटोमेटिक चालान काटने की प्रक्रिया शुरू हो जाने के बाद ट्रैफिक पुलिस पर दबाव कम होने पर ट्रैफिक पुलिस की संख्या में भी कटौती की जाएगी, परंतु ऐसा होता नहीं दिख रहा है.
दरअसल ट्रैफिक के विशेष सूत्रों से मिली जानकारी के अनुसार ट्रैफिक सिग्नल की देखरेख और कंट्रोल रूम की मॉनिटरिंग करने के लिए बुडको ने जिस कंपनी को जिम्मा दिया था, उसका कॉन्ट्रैक्ट है 30 सितंबर 2018 को ही खत्म हो गया. जिसके बाद रिन्यूअल नहीं हुआ, जिस वजह से ट्रैफिक सिग्नल की मॉनिटरिंग भी लगभग बंद हो गई है.
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कंपनी के कॉन्ट्रैक्ट नहीं बढ़ने की वजह से कंपनी का प्रमुख चौराहे पर लगे सिग्नल के सेंसर से जोड़ने का कार्य भी अधूरा ही रह गया. इसके साथ-साथ ट्रैफिक नियमों का उल्लंघन करने वालों का कैमरे से चालान काटना भी बंद हो गया. हालांकि मिल रही जानकारी के अनुसार नवीकरण को लेकर एक बार फिर से पटना कमिश्नर को पत्र लिखा गया है. कुल मिलाकर यह कहा जा सकता है कि राजधानी पटना के चौक चौराहों पर लगे सीसीटीवी कैमरे और सिग्नल लाइट के खराब होने का मुख्य कारण उसका मेंटेनेंस और कंपनी का कॉन्ट्रैक्ट रिन्यू नहीं करना है.