पटना: 2014 में मोदी लहर के आगे कोई भी पार्टी टिक नहीं पाई थी. 2024 ( BJP Mission 2024 In Bihar) के लोकसभा चुनाव में भी बीजेपी कुछ वैसे ही करिश्मे की उम्मीद कर रही है लेकिन अगर महागठबंधन के साथ नीतीश कुमार का साथ बरकरार रहा तो बीजेपी को बड़ा नुकसान उठाना पड़ सकता है. नीतीश कुमार के पाला बदलने के बाद से बिहार (BJP Focus On Bihar) में महागठबंधन के सांसद बढ़कर 17 हो गए हैं तो वहीं एनडीए के खाते में 23 सीटें रह गई हैं.
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बीजेपी का मिशन 2024 : जदयू अब महागठबंधन का हिस्सा है. महागठबंधन में फिलहाल सात राजनीतिक दल हैं. राष्ट्रीय जनतांत्रिक गठबंधन में दलों की संख्या कम रह गई है. चिराग पासवान और पशुपति पारस फिलहाल भाजपा के साथ दिख रहे हैं. कुल मिलाकर भाजपा के 23 सांसद हैं. भाजपा के लिए चुनौती अब मिशन 2024 है. मिशन 2024 को साधने के लिए दिल्ली में कोर कमेटी की बैठक हुई. बिहार भाजपा के कई बड़े नेताओं ने बैठक में हिस्सा लिया और अपनी राय रखी.
अति पिछड़ा वोट साधने की कोशिश: भाजपा की नजर अति पिछड़ा वोट बैंक पर है. भाजपा नेता अति पिछड़ा वोट बैंक साधने के लिए नरेंद्र मोदी को भी अति पिछड़ा करार दे रहे हैं. आपको बता दें कि बिहार में अति पिछड़ा वोट लगभग 20 प्रतिशत है. 2020 के विधानसभा चुनाव में जब भाजपा और जदयू साथ थी तब एनडीए को 35% वोट मिले थे. वहीं महागठबंधन के हित से 35% का वोट शेयर था.
2020 में पार्टियों का वोट शेयरिंग: जदयू और राजद के एक साथ होने के बाद से 50% वोट शेयर महागठबंधन के पक्ष में दिख रहा है. 2020 के चुनाव में भाजपा को 19. 46% तो जदयू को 15 .40% वोट मिले थे. राजद को 31.11% तो कांग्रेस को 9.48% वोट मिले थे.
2014 को दोहराने की कोशिश: आज के राजनीतिक हालात बिहार में कमोबेश वैसे ही है जैसे 2014 में थे. बिहार में भाजपा के समक्ष चुनौती 2014 के नतीजों को दोहराने की है. 2024 के लोकसभा चुनाव में भाजपा एकला चलो की राह पर दिख रही है. कुछ छोटे दल साथ हो सकते हैं. 2014 लोकसभा चुनाव में भी भाजपा और जदयू की राहें अलग-अलग थीं. भाजपा 30 सीटों पर चुनाव लड़ी थी और पार्टी को 22 सीटों पर जीत हासिल हुई थी.
मोदी लहर का दिखा था जलवा: 2014 में भाजपा को 29.38% वोट हासिल हुए थे. लोजपा को 7 में से 6 सीटों पर जीत हासिल हुई थी.l जनता दल यूनाइटेड की ओर से 38 सीटों पर उम्मीदवार खड़े किए गए थे लेकिन पार्टी को 2 सीटें मिली थीं. जदयू को 15.78% वोट मिले थे. राजद 4 सीट जीतने में कामयाब हुई थी और पार्टी को कुल 21% वोट मिले थे.
अति पिछड़ा वोट बैंक पर पार्टी की नजर: दिल्ली में भाजपा कोर कमेटी की बैठक हुई. एक साथ दो मोर्चों पर बिहार में कैसे लड़ाई लड़ी जाए इसे लेकर रणनीति तैयार हुई. पार्टी रणनीतिक तौर पर अब नीतीश कुमार के सियासत में मट्ठा डालने की कोशिश करेगी. पार्टी की कोशिश रहेगी कि जो अति पिछड़ा वोट बैंक लालू प्रसाद यादव के कारण खिसक कर नीतीश कुमार के साथ आ गए थे, वह बदली हुई परिस्थितियों में भाजपा के साथ आ जाएं. विधानसभा और विधान परिषद में पार्टी पिछड़ा और अति पिछड़ा उम्मीदवार पर दांव लगा सकती है.
"ना भ्रम में रहिए और ना भ्रम फैलाइये. कहीं कोई वोट नहीं गया है. नरेंद्र मोदी का चेहरा जबतक हमारे पास है तब तक भारतवर्ष का अंतिम पंक्ति का अंतिम व्यक्ति (मतदाता) हमारा है. नरेंद्र मोदी के चेहरे का मुकाबला कोई नहीं कर सकता है. हमारी पार्टी जातियों, गिरोह, परिवार की पार्टी नहीं बल्कि विचारों की पार्टी है. नरेंद्र मोदी खुद अति पिछड़ा हैं. अति पिछड़ा का वोट हमारे साथ है."- नवल किशोर यादव, भाजपा के वरिष्ठ नेता
राजनीतिक विशेषज्ञों की राय: वहीं राजनीतिक विशेषज्ञों का कहना है कि भाजपा के लिए 2024 का चुनाव कठिन तो है लेकिन महागठबंधन के 7 घटक दल गठबंधन में लड़ेंगे इसकी संभावना कम है. इसका फायदा भाजपा को मिल सकता है. 2014 के चुनाव में भाजपा अकेले लड़कर बेहतर नतीजे दे चुकी है.
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"बीजेपी और महागठबंधन दोनों के लिए कड़ी चुनौती होगी. बिहार में ऐसा पहली बार हो सकता है कि बीजेपी अकेले चुनाव लड़े. महागठबंधन को लेकर चर्चा जरूर है कि प्रदर्शन बेहतर होगा या मजबूत स्थिति में है लेकिन यह बात किसी को पच नहीं रहा है. जब नरेंद्र मोदी प्रचार में आते हैं तो तस्वीर बदल जाती है यह सभी को पता है. एलाइंस को बीजेपी से अच्छा कोई नहीं चला सकता है. महागठबंधन में कांग्रेस है जब कुछ त्यागने की बारी आएगी तो कांग्रेस पीछे हट जाएगी."- रवि उपाध्याय, वरिष्ठ पत्रकार
"भाजपा अति पिछड़ा वोट बैंक को साधने की कोशिश में जुट गई है. पार्टी नेता लगातार अब यह कहने लगे हैं कि महागठबंधन में अति पिछड़ों की उपेक्षा हो रही है. पार्टी को यह लगता है कि अति पिछड़ा वोट बैंक साथ कर वह बेहतर नतीजे दे सकते हैं."- डॉ संजय कुमार,राजनीतिक विश्लेषक