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बिहार: संजय जायसवाल के जरिए कई मोर्चों पर किलेबंदी की कोशिश कर रही BJP

बीजेपी की ओर से नए प्रदेश अध्यक्ष की घोषणा के बाद यह माना जाने लगा है कि बीजेपी ने इस बार के बिहार विधानसभा चुनाव में पिछड़ा कार्ड खेलने की तैयारी कर ली है.

बीजेपी नेताओं की तस्वीर
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Published : Sep 19, 2019, 10:25 AM IST

पटना: बीजेपी के केंद्रीय नेतृत्व ने तमाम अटकलों को झुठलाते हुए बिहार अध्यक्ष पद के लिए नए चेहरे पर दांव लगाया है. यह कदम उठाकर बीजेपी ने सबको चौंकाया है. हालांकि, बिहार राजनीति के जानकारों का कहना है कि डॉ. संजय जायसवाल को यह जिम्मेदारी सौंपकर बीजेपी ने एक साथ कई मोर्चों पर किलेबंदी की है.

बुधवार को पटना पहुंचे संजय जायसवाल

बीजेपी की ओर से नए प्रदेश अध्यक्ष की घोषणा के बाद यह माना जाने लगा है कि बीजेपी ने इस बार के बिहार विधानसभा चुनाव में पिछड़ा कार्ड खेलने की तैयारी कर ली है. नित्यानंद राय के केन्द्रीय गृह राज्यमंत्री बनने के बाद उनकी जगह जिस डॉ. संजय जायसवाल को प्रदेश बीजेपी अध्यक्ष की जिम्मेदारी दी गई है, वह वैश्य वर्ग से आते हैं. बिहार में यह जाति बीजेपी का प्रमुख वोटबैंक मानी जाती है.

क्या कहते हैं राजनीतिक समीक्षक?
राजनीतिक समीक्षक सुरेंद्र किशोर कहते हैं कि बीजेपी ने जायसवाल जैसे अच्छी छवि वाले नेता को अध्यक्ष पद की जिम्मेदारी सौंपकर पार्टी में गुटबंदी को समाप्त करने की कोशिश की है. वहीं, अपने पुराने वोटबैंक पर ही विश्वास जताते हुए उसे मजबूत करने के संकेत भी दिए हैं.
उन्होंने कहा, "बीजेपी ने पिछली बार यादव वर्ग से आने वाले नित्यानंद राय को अध्यक्ष बनाया था, लेकिन आरजेडी के वोटबैंक में बीजेपी सेंध नहीं लगा सकी थी. यही कारण माना जा सकता है कि इसबार बीजेपी ने वैश्य, बनिया वर्ग से आने वाले नेता को दायित्व सौंपा है."

जायसवाल के आने से सुमो का कद होगा छोटा?
ऐसा भी माना जा रहा है कि बीजेपी ने पार्टी के वरिष्ठ नेता सुशील मोदी के कद को छोटा करने के लिए उसी समाज से आने वाले नेता को अध्यक्ष बनाया. इसपर किशोर ने कहा, "मैं ऐसा नहीं मानता. बीजेपी में जो भी निर्णय लेना है, वह प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और राष्ट्रीय अध्यक्ष अमित शाह लेते हैं. प्रधानमंत्री के नाम पर ही वोट मिलता है, इसलिए यह कोई मामला नहीं है. अध्यक्ष बनाना था, केंद्रीय नेतृत्व ने बना दिया."

patna
सुशील मोदी (फाइल फोटो)

कयास तो कुछ और ही थे...
डॉ. जायसवाल के अलावा प्रदेश में पिछड़ा वर्ग के कई दिग्गज चेहरे हैं. इनमें उपमुख्यमंत्री सुशील कुमार मोदी, नित्यानंद राय, पथ निर्माण मंत्री नन्दकिशोर यादव और कृषि मंत्री प्रेम कुमार शामिल हैं. इस बार कयास लगाया जा रहा था कि बीजेपी किसी सवर्ण को अध्यक्ष बनाएगी. लेकिन, केंद्रीय नेतृत्व ने एकबार फिर पिछड़ा वर्ग से ही आने वाले नेता पर विश्वास जताया.

दूसरी पंक्ति को मजबूत करने की कोशिश
वरिष्ठ पत्रकार संतोष सिंह कहते हैं कि प्रदेश में सुशील मोदी के समाज से दूसरे पंक्ति के नेता डॉ. जायसवाल को अध्यक्ष बनाकर केंद्रीय नेतृत्व ने दूसरी पंक्ति को मजबूत करने की कोशिश की है. उन्होंने कहा कि बेतिया क्षेत्र में बीजेपी के दिग्गज नेता अब ढलान पर हैं. ऐसे में बीजेपी केंद्रीय नेतृत्व ने जायसवाल जैसे राजनीतिक विरासत वाले नेता को आगे कर उस क्षेत्र में एक नेता खड़ा करने की कोशिश की है.

'क्षेत्रीय संतुलन साधने की कवायद'
सिंह कहते हैं कि, "नए अध्यक्ष के चयन में न सिर्फ अगले साल होने वाले विधानसभा चुनाव के मद्देनजर सामाजिक समीकरण को तवज्जो दिया गया है, बल्कि क्षेत्रीय संतुलन को भी साधने की कोशिश की गई है. उत्तर बिहार का चम्पारण क्षेत्र बीजेपीके खास असर वाला माना जाता है. इसके कई विधायक उसी क्षेत्र से आते हैं. जायसवाल खुद लगातार तीन बार से बेतिया से सांसद हैं."

बहरहाल, डॉ. जायसवाल के अध्यक्ष बनने के बाद समीक्षा का दौर जारी है, परंतु बीजेपी के केंद्रीय नेतृत्व की डॉ. जायसावल की रणनीति कितनी कारगर है, इसका पता अगले साल होने वाले विधानसभा चुनाव के परिणाम के बाद ही पता चल सकेगा. वैसे, मौजूदा समय में बीजेपी के नए अध्यक्ष संजय जायसवाल के सामने चुनौतियां भी कम नहीं हैं.

पटना: बीजेपी के केंद्रीय नेतृत्व ने तमाम अटकलों को झुठलाते हुए बिहार अध्यक्ष पद के लिए नए चेहरे पर दांव लगाया है. यह कदम उठाकर बीजेपी ने सबको चौंकाया है. हालांकि, बिहार राजनीति के जानकारों का कहना है कि डॉ. संजय जायसवाल को यह जिम्मेदारी सौंपकर बीजेपी ने एक साथ कई मोर्चों पर किलेबंदी की है.

बुधवार को पटना पहुंचे संजय जायसवाल

बीजेपी की ओर से नए प्रदेश अध्यक्ष की घोषणा के बाद यह माना जाने लगा है कि बीजेपी ने इस बार के बिहार विधानसभा चुनाव में पिछड़ा कार्ड खेलने की तैयारी कर ली है. नित्यानंद राय के केन्द्रीय गृह राज्यमंत्री बनने के बाद उनकी जगह जिस डॉ. संजय जायसवाल को प्रदेश बीजेपी अध्यक्ष की जिम्मेदारी दी गई है, वह वैश्य वर्ग से आते हैं. बिहार में यह जाति बीजेपी का प्रमुख वोटबैंक मानी जाती है.

क्या कहते हैं राजनीतिक समीक्षक?
राजनीतिक समीक्षक सुरेंद्र किशोर कहते हैं कि बीजेपी ने जायसवाल जैसे अच्छी छवि वाले नेता को अध्यक्ष पद की जिम्मेदारी सौंपकर पार्टी में गुटबंदी को समाप्त करने की कोशिश की है. वहीं, अपने पुराने वोटबैंक पर ही विश्वास जताते हुए उसे मजबूत करने के संकेत भी दिए हैं.
उन्होंने कहा, "बीजेपी ने पिछली बार यादव वर्ग से आने वाले नित्यानंद राय को अध्यक्ष बनाया था, लेकिन आरजेडी के वोटबैंक में बीजेपी सेंध नहीं लगा सकी थी. यही कारण माना जा सकता है कि इसबार बीजेपी ने वैश्य, बनिया वर्ग से आने वाले नेता को दायित्व सौंपा है."

जायसवाल के आने से सुमो का कद होगा छोटा?
ऐसा भी माना जा रहा है कि बीजेपी ने पार्टी के वरिष्ठ नेता सुशील मोदी के कद को छोटा करने के लिए उसी समाज से आने वाले नेता को अध्यक्ष बनाया. इसपर किशोर ने कहा, "मैं ऐसा नहीं मानता. बीजेपी में जो भी निर्णय लेना है, वह प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और राष्ट्रीय अध्यक्ष अमित शाह लेते हैं. प्रधानमंत्री के नाम पर ही वोट मिलता है, इसलिए यह कोई मामला नहीं है. अध्यक्ष बनाना था, केंद्रीय नेतृत्व ने बना दिया."

patna
सुशील मोदी (फाइल फोटो)

कयास तो कुछ और ही थे...
डॉ. जायसवाल के अलावा प्रदेश में पिछड़ा वर्ग के कई दिग्गज चेहरे हैं. इनमें उपमुख्यमंत्री सुशील कुमार मोदी, नित्यानंद राय, पथ निर्माण मंत्री नन्दकिशोर यादव और कृषि मंत्री प्रेम कुमार शामिल हैं. इस बार कयास लगाया जा रहा था कि बीजेपी किसी सवर्ण को अध्यक्ष बनाएगी. लेकिन, केंद्रीय नेतृत्व ने एकबार फिर पिछड़ा वर्ग से ही आने वाले नेता पर विश्वास जताया.

दूसरी पंक्ति को मजबूत करने की कोशिश
वरिष्ठ पत्रकार संतोष सिंह कहते हैं कि प्रदेश में सुशील मोदी के समाज से दूसरे पंक्ति के नेता डॉ. जायसवाल को अध्यक्ष बनाकर केंद्रीय नेतृत्व ने दूसरी पंक्ति को मजबूत करने की कोशिश की है. उन्होंने कहा कि बेतिया क्षेत्र में बीजेपी के दिग्गज नेता अब ढलान पर हैं. ऐसे में बीजेपी केंद्रीय नेतृत्व ने जायसवाल जैसे राजनीतिक विरासत वाले नेता को आगे कर उस क्षेत्र में एक नेता खड़ा करने की कोशिश की है.

'क्षेत्रीय संतुलन साधने की कवायद'
सिंह कहते हैं कि, "नए अध्यक्ष के चयन में न सिर्फ अगले साल होने वाले विधानसभा चुनाव के मद्देनजर सामाजिक समीकरण को तवज्जो दिया गया है, बल्कि क्षेत्रीय संतुलन को भी साधने की कोशिश की गई है. उत्तर बिहार का चम्पारण क्षेत्र बीजेपीके खास असर वाला माना जाता है. इसके कई विधायक उसी क्षेत्र से आते हैं. जायसवाल खुद लगातार तीन बार से बेतिया से सांसद हैं."

बहरहाल, डॉ. जायसवाल के अध्यक्ष बनने के बाद समीक्षा का दौर जारी है, परंतु बीजेपी के केंद्रीय नेतृत्व की डॉ. जायसावल की रणनीति कितनी कारगर है, इसका पता अगले साल होने वाले विधानसभा चुनाव के परिणाम के बाद ही पता चल सकेगा. वैसे, मौजूदा समय में बीजेपी के नए अध्यक्ष संजय जायसवाल के सामने चुनौतियां भी कम नहीं हैं.

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बिहार : 'संजय' के जरिए कई मोर्चे पर किलेबंदी की बीजेपी की कोशिश


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