पटना: धान की खेती के बाद पराली जलाने (Stubble Burning Problem) को लेकर पूरे देश से लगातार खबरें आती रहती है. किसान अपने खेतों में पराली जलाते हैं, जिससे पर्यावरण प्रदूषित होता है और मिट्टी की उर्वरा शक्ति भी कम हो जाती है. बिहार सरकार ने अब खेतों की मिट्टी की कम होती उर्वरा शक्ति को बढ़ाने को लेकर पहल प्रारंभ की है. बिहार में अब किसानों के पराली से बायोचार बनाया जाने लगा (Biochar Made From Stubble) है. ये बायोचार एक उर्वरक है, जो किसानों के खतों की उर्वरा शक्ति बढ़ाएगी.
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बिहार कृषि विश्वविद्यालय (Bihar Agricultural University) ने पराली को लेकर शोध किया है और पराली के साथ-साथ गेंहू की भूसी और अपशिष्ट पदार्थ मिलाकर बायोचार का निर्माण किया जा रहा है. रोहतास जिले में इसे लेकर सबसे पहला प्लांट भी बैठाया गया और वहां एक प्लांट भी तैयार कर लिया गया है. जिसमें 53 प्रतिशत बायोचार प्राप्त हुआ है.
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बायोचार बनाने के लिए किसानों से उचित मूल्य देकर कृषि विभाग पराली का खरीद भी कर रहा है. अभी तक रोहतास कैमूर, नालंदा, पटना, भोजपुर, बक्सर, औरंगाबाद, गया, अरवल और बांका के कृषि विज्ञान केंद्रों पर बायोचार का बनना शुरू भी हो चुका है. बायोचार को लेकर कृषि मंत्री का कहना है कि हम जैविक खेती करना चाहते हैं और चाहते हैं कि हमारे किसान ज्यादा से ज्यादा केमिकल खाद का उपयोग नहीं करें. इसीलिए कृषि वैज्ञानिकों ने यह सुझाव दिया है और कहीं न कहीं बिहार के 10 केंद्रों पर बायोचार बनाया जा रहा है. निश्चित तौर पर किसानों को प्रेरित भी किया जा रहा है.
किसानों को बताया जा रहा है कि बायोचार का ज्यादा से ज्यादा उपयोग करें. इससे मिट्टी की उर्वरा शक्ति बढ़ेगी जिससे कहीं न कहीं प्राकृतिक तरीके से खाद बनाने की तैयारी भी की जा सकेगी. अभी तो सिर्फ गंगा से सटे हुए क्षेत्र पर बायोचार बनाया जा रहा है. धीरे-धीरे बिहार के सभी जिलों में कृषि विज्ञान केंद्र पर बायोचार बनाया जाएगा. जिसका उपयोग किसान अपनी फसल लगाने में करेंगे, तो निश्चित तौर पर फसल अच्छी होगी.
'सरकार का यह कदम सराहनीय है. किसान जो पराली जलाते थे उससे वातावरण प्रदूषित होता था. पराली जलाने से हवा में कार्बन डाईऑक्साइड और कार्बन मोनोऑक्साइड हवा में मिलता है. जो काफी खतरनाक होता है. अब सरकार ने अच्छी पहल की है. पराली से बायोचार बनायी जा रही है.' -अनिल कुमार झा, कृषि विशेषज्ञ
कृषि विशेषज्ञ ने कहा कि पराली किसानों से खरीदा जा रहा है. उसके मूल्य भी उन्हें दिए जा रहे है. अनिल झा ने कहा कि पराली को बिना ऑक्सीजन के संपर्क में लाये इसे थर्मल डिकॉम्पोज किया जाता है और इस प्रक्रिया में कुछ समय लगता है. उसके बाद ये पराली बायोचार बन जाता है, जो मिट्टी के उर्वरा शक्ति बढ़ाने में सहायक है.
बिहार कृषि विश्वविद्यालय के प्रसार शिक्षा निदेशक डॉक्टर आरके सोहाने के अनुसार पराली को 400 डिग्री तापमान पर जलाई जाती है. जितना पराली जलाया जाता है उसमें 60 प्रतिशत बायोचार के रूप में मिलती है. जिसमे कार्बन की भरपुर मात्रा होती है, जो मिट्टी के उर्वरा शक्ति बढ़ाने का सहायक है. कुल मिलाकर देखें तो बिहार सरकार की कृषि विभाग ने पराली जलाने से लेकर जो दिक्कतें होती थी उसका निदान खोज लिया है. अब किसानों की पराली खरीदे जाएंगे. उससे बायोचार नाम का उर्वरक बनाया जाएगा.
कृषि मंत्री का यह भी दावा है कि बहुत जल्द ही प्रचार प्रसार कथन किसानों को बायोचार का उपयोग करने के लिए प्रेरित किया जाएगा. अब समय ही बताएगा कि अगले सीजन में जब धान की खेती होगी, तो किसान क्या अपने पराली सरकार को बायोचार बनाने देंगे या नहीं या उसी तरह खेत मे जला देंगे.
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