पटना: बिहार जिसने सीता की जन्म स्थली पर धर्म का बिहार बनाया हो, जिसने गौतम बुद्ध के कर्मस्थली से ज्ञान का बिहार बनाया हो, जिसने लिच्छवी गणराज्य से लोकतंत्र वाला बिहार बनाया हो, नालंदा और तक्षशिला से ज्ञान फैलाने वाला बिहार बनाया हो, चंपारण सत्याग्रह से देश को आजादी दिलाने वाले नायक वाला बिहार बनाया हो, अब उस बिहार को हर बार नया बिहार बनाने की बात होती है. लालू जब सत्ता में थे तो हेमा मालिनी के गाल वाला बिहार बना रहे थे. नीतीश कुमार जब गद्दी पर बैठे तो बिहार को पेरिस बना रहे थे. गंगा के घाटों का निरीक्षण किया गया तो बनारस के घाटों वाला बिहार बनने की बात हो गई थी.
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बिहार को क्या बनाना है ?: अब 7 जून 2022 को गांधी सेतु के पूर्वी छोर के शुभारंभ के अवसर पर पहुंचे केंद्रीय सड़क परिवहन एवं राजमार्ग मंत्रालय के मंत्री नितिन गडकरी (Union Minister Nitin Gadkari) ने कह दिया कि बिहार को अमेरिका (bihar road network will be like america) बना देंगे. आखिर बिहार को बनाना क्या है बिहार समझ ही नहीं पा रहा है या फिर पूरी राजनीति ही बिहार को लेकर के कंफ्यूज है कि बिहार को बना क्या देना है क्योंकि बातें होती तो जरूर है बस काम नहीं होता है.
2014 में नरेंद्र मोदी का बिहार से किया गया वादा: 2014 में नरेंद्र मोदी के नेतृत्व में बीजेपी जब पूरे देश में सरकार बदलने की बात कर रही थी तो फरवरी में मुजफ्फरपुर की एक रैली में उस समय बीजेपी के प्रधानमंत्री पद के उम्मीदवार नरेंद्र मोदी ने कहा था कि बिहार में सड़क होनी चाहिए कि नहीं होनी चाहिए यह मैं बिहार की जनता से जानना चाहता हूं. बिहार में बिजली 24 घंटे आनी चाहिए कि नहीं आनी चाहिए या मैं बिहार की जनता से जानना चाहता हूं. बिहार से गुंडाराज खत्म होना चाहिए यह मैं बिहार की जनता से जानना चाहता हूं और अगर हमारी सरकार आई तो ऐसा ही बिहार बनाएंगे.
बोले नितिन गडकरी- बिहार को बनाएंगे अमेरिका: 2015 में नीतीश कुमार जब बीजेपी से अलग हो गए तो बीजेपी ने नए बिहार बनाने के लिए नया नारा गढ़ दिया जात पात से ऊपर की सरकार वाला बिहार बनाएंगे सड़क बिजली पानी सब को सुलभ हो वह वाला बिहार बनाएंगे जाति की राजनीति नहीं होगी वह वाला बिहार बनाएंगे यह नरेंद्र मोदी कह कर के गए थे. जो नेता बिहार आता है बिहार को कुछ बनाने की बात कह कर के चला जाता है. अब तो जिस बात की शुरुआत हो गई है उसे नितिन गडकरी ने मंच से कह दिया कि जो पत्रकार यहां बैठे हुए हैं वह अपनी डायरी में लिख लें कि मैं जो बोलता हूं वह करके दिखाता हूं बिहार को अमेरिका बना देंगे 2024 में यह हो जाएगा.
2014 के वादे आज भी अधूरे: बिहार को अमेरिका बनाने का दावा करके जाने वाले नितिन गडकरी भले ही सड़क के मामले में बिहार को अमेरिका बनाना चाह रहे हो लेकिन जिस आधारभूत संरचना की जरूरत बिहार को है उसे देने में 2024 में किए गए वादे जो पूरे करने के साथ हैं और 2014 में किए गए दावे जो आज पाइपलाइन में पूरा होने के लिए तैयार खड़े जैसे दिख रहे हैं. इनमें गेट भी बहुत ज्यादा है क्योंकि अमेरिका बनाने का दावा करने वाली सरकार कहां तक जा पाएगी कहना मुश्किल है.
अमेरिका बनाना आसान है क्या?: अमेरिका किन मामलों में भारत से बेहतर है यह किसी को बताने की जरूरत नहीं है क्योंकि डॉलर और रुपए का जो अंतर है वह बता देता है कि अमेरिका और भारत में कितनी समानता है. लेकिन एक आंकड़ा जरूर अमेरिका और बिहार के परिपेक्ष में रख दिया जाए और उसमें भारत कहां खड़ा दिखता है इसे भी जरा समझ लीजिए. अमेरिका के घर शहरीकरण की बात करें तो 2018 में अमेरिका की 82 फ़ीसदी आबादी का शहरीकरण हो चुका है जबकि लैटिन अमेरिका में 81 फ़ीसदी आबादी का शहरीकरण हो चुका है. वहीं भारत में एनसीपी के आंकड़े की बात करें तो 2036 तक भारत की 38.6 फीसदी आबादी का शहरीकरण हो पाएगा और 2050 तक 87 करोड़ लोग शहर तक पहुंच पाएंगे, जो भारत की कुल आबादी का लगभग 50 फीसदी होगा.
विकास के 8 आयाम: विकास के आयामों को समझें तो कुल 8 आयाम ऐसे हैं जिनमें किसी भी देश या राज्य के विकास के संरचना को रखा जाता है. नीतीश कुमार ने बिहार के लिए सात निश्चय तो जरूर किया है लेकिन कुल 8 आयाम हैं जिनसे बिहार आगे बढ़ सकता है. उसमें सबसे ऊपर कृषि संरचना को बढ़ाना है और बिहार में कृषि की प्रधानता है. लेकिन जो खेती बिहार के लोग करते हैं वह या तो बाढ़ में डूब जाती है या फिर नदियों के कटाव में बह जाती है. हां राजनीत की खेती जरूर इन बदहाल किसानों के नाम पर खूब होती है और राजनेताओं की राजनीति वाली फसल भी खूब लहलहाती है.
सड़क बिजली का रोडमैप: आधारभूत संरचना में जो विकास का दूसरा आयाम भी है उसमें सड़क और बिजली को बढ़ाना है. निश्चित तौर पर बिहार में इस दिशा में काम तो हुआ है लेकिन आगे और कहां तक होना है इसका रोडमैप शायद बिहार सरकार के पास नहीं है. ग्रामीण संरचना में राजस्व का आधार जब तक मजबूत नहीं होगा विश्रम रचनाएं जो शहरीकरण को मजबूत करती हो गांव तक पहुंचेगी ही नहीं और बिहार में कमाई का जो आधार है वह देश में कहां पर खड़ा होता है यह किसी से छुपा नहीं है. राजनेता इसे बेहतर तरीके से जानते भी हैं. बिहार में मानव संसाधन की बात करें तो काफी मजबूत है यूनियन पब्लिक सर्विस कमीशन के आने वाले परिणामों में बिहार के बेटे बेटियां नाम करते हैं लेकिन अगर उस परसेंटेज को छोड़ दिया जाए तो हमारे पास इतराने के लिए कुछ नहीं है क्योंकि पूरे देश की फैक्ट्रियों में अगर सबसे ज्यादा काम करने वाले लोग कहीं के हैं तो बिहार के हैं.
पलायन है जारी: आज भी बिहार का पलायन रुका नहीं है. शासन में सुधार और व्यवस्था में शुचिता की जरूरत इसके अगले आयाम में है जो बिहार में बहुत भटकती दिखती है. आए दिन बिहार में लूट की घटनाएं आम बात हो गई हैं जो शायद बिहार में रोजगार के सही ढंग से नहीं होने का एक बड़ा कारण है. सिविल सोसायटी को सही ढंग से दिखा देना है .आज बिहार की सोसाइटी किस तरह से सिविलाइजेशन को जी रही है इसका सबसे बड़ा अंदाजा इसी बात से लगाया जा सकता है कि 2 जून की रोटी के लिए जद्दोजहद करने वाला बिहार हर जगह बिहारी के नाम से ही पहचाना जाता है. इस दिशा में भी बहुत कुछ काम नहीं हो पाया जहां तक शैक्षणिक आधारभूत संरचना का विषय है उसमें ऊंचे संस्थान जिसमें बिहार के लोग अच्छी पढ़ाई कर सकें. बिहार के विकास का अध्ययन हो सके वह आज भी नहीं है और इस दिशा में बहुत ज्यादा काम भी नहीं हो रहा है.
शहरीकरण सिर्फ 31 फीसदी: बिहार के विकास की रफ्तार आप इसी तरह से समझ लीजिए कि एनसीपी के आंकड़े बताते हैं कि पूरे देश का शहरीकरण सिर्फ 31 फ़ीसदी हुआ है. जबकि बिहार का शहरीकरण सिर्फ 11 फ़ीसदी है किस रफ्तार से बिहार अमेरिका तक पहुंचेगा कहना मुश्किल है. हां यह जरूर कहा जा रहा है कि अमेरिका के पूर्व राष्ट्रपति ने कहा था कि अमेरिका आगे इसलिए बढ़ा है कि वहां की सड़कें अच्छी हैं. बिहार में सड़कें अच्छी तो बन जाएंगी लेकिन बिहार को अच्छा बनाने के लिए सिर्फ बिहार को बिहार बना दीजिए. उसे कुछ और बनाने की जरूरत नहीं है. बिहार अपने आप में ही अपनी बातें रख लेगा अपने लिए नए आधार खड़ा कर लेगा.
हकीकत से कोसों दूर हैं वादे: राजनीति जब देने पर आती है और मंच इतना बड़ा हो कि तालियों से उत्साह बढ़ जाए तो नेता देने से बाज नहीं आते. अब बिहार को अमेरिका बनाने का वादा तो दे दिया गया अब यह पहुंचेगा कैसे इसमें थोड़ी दिक्कत जरूर है. हो सकता है कि नेता यह भी कह दे कि यह बातें जुमला जैसी हो सकती हैं. लेकिन हकीकत तो यहीं है कि बिहार उम्मीदों की जिस प्लेट को सजा कर बिहार को बिहार बनाने का इंतजार कर रहा है वह किसी भी नेता के भाषण से आगे नहीं बढ़ा. उम्मीदें हकीकत के तराजू तक अभी पहुंची ही नहीं हैं.
आज तक नहीं मिला विशेष राज्य का दर्जा: नीतीश कुमार जब मुख्यमंत्री बने थे तो काफी जोर जोर से यह बातें शुरू हुई थी. बिहार को सिर्फ विशेष राज्य का दर्जा दे दीजिए. उसे और कुछ बनाने की जरूरत नहीं है. गांधी सेतु के पूर्वी लेन के उद्घाटन के अवसर पर सचिव मंच से नीतीश कुमार ने कह दिया कि 2007 में 21 हजार करोड़ की योजना एथेनॉल प्लांट के लिए बिहार के खाते में आई थी. लेकिन उस समय कि केंद्र की सरकार ने अनुमति नहीं दी. अगर इस बार अनुमति मिल जाए तो बिहार पूरे देश में एथेनॉल की सप्लाई करेगा. मामला साफ है कि रोजी-रोटी से लेकर कमाई तक का बहुत कुछ है तनाव से खड़ा हो सकता है. विशेष राज्य के दर्जे की मांग इसलिए नहीं की गई तब बिहार को दूसरे तरह की राजनीति में ले जाना है तो विशेष राज्य के दर्जे की जरूरत नहीं है. इथेनॉल को बनाने की अनुमति की जरूरत है.
बिहार कर रहा ये सवाल: सजे हुए मंच से जब बिहार को बहुत कुछ बनाने की बात चल रही थी. बिहार किसी कोने में खड़ा होकर के अपने भविष्य को तलाश रहा था कि आखिर कौन सा बिहार बन करके जनता के सामने जाऊं. लालू यादव वाले हेमा मालिनी के गाल जैसा बिहार नीतीश कुमार वाले पेरिस का जैसा बिहार, बनारस के घाट वाला बिहार जात-पात से ऊपर की सरकार वाला बिहार, लूट हत्या और आतंकवाद से निकल जाने वाला बिहार, देश को लोकतंत्र का पहला गौरव देने वाला बिहार, तक्षशिला और नालंदा से ज्ञान बांटने वाला बिहार, गौतम बुद्ध की कर्मस्थली वाला बिहार,सीता की जन्म स्थली वाला बिहार, गुरु गोविंद सिंह के हौसलों की उड़ान वाला बिहार, महावीर की जन्मस्थली वाला बिहार या फिर गडकरी के अमेरिका वाला बिहार.
बिहार जोर-जोर से यह कह रहा है कि न उसे हेमा मालिनी बनना है ना उसे पेरिस ना उसे अमेरिका उसे तो बस बिहार बना दीजिए बाहर खुद इतनी आ जाएगी. बिहार को किसी जैसा बनाने की जरूरत नहीं होगी. बिहार जैसा बनने की लड़ाई पूरे विश्व में शुरू हो जाएगी क्योंकि बिहार पूरे विश्व का धर्मगुरु भी रहा है ज्ञान गुरु भी रहा है और भारत का कंठ हार तो बिहार है यही विचार राजनीति और राजनेताओं को करना है और सोचना भी कि बिहार को बिहार रहने दीजिए हर मंच से बिहार को कुछ और मत बनाइए.
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