पटना: केंद्रीय बजट में देश की पांच नदी जोड़ परियोजना (India Five River Link Project) को स्वीकृति दी गई है, लेकिन बिहार की उसमें एक भी योजना शामिल नहीं है. कोसी मेची नदी जोड़ योजना (Kosi Mechi River Project) सभी शर्तों को पूरा करने के बाद भी केंद्र ने इसे राष्ट्रीय परियोजना में शामिल नहीं किया है. इसको लेकर लगातार बिहार की तरफ से मांग भी होती रही है, लेकिन डबल इंजन की सरकार में भी बाढ़ और सुखाड़ से निजात को लेकर केंद्र सरकार का रवैया उपेक्षा पूर्ण है. विशेषज्ञ कहते हैं कि नदी जोड़ योजना से बिहार को सिंचाई की सुविधा तो मिलेगी ही साथ ही बाढ़ से बड़े हिस्से को निजात मिल सकता है.
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बिहार में नीतीश कुमार के सत्ता में आने के बाद नदी जोड़ योजना को लेकर चर्चा शुरू हुई है. ऐसे तो केंद्र सरकार के पास कई प्रस्ताव भेजे गए केंद्र की तरफ से कई योजना पर चर्चा भी हुई, लेकिन कोसी मेची योजना को ही केंद्र ने अब तक स्वीकृति दी है, लेकिन कोसी मेची नदी जोड़ योजना राष्ट्रीय परियोजना में शामिल नहीं है. इसके कारण इस पर खर्च होने वाली बड़ी राशि के कारण काम शुरू नहीं हुआ है.
कोसी मेची नदी जोड़ योजना अररिया, पूर्णिया, किशनगंज और कटिहार में बड़ी आबादी को बाढ़ से राहत दिलाएगा साथ ही 2 लाख 14813 हेक्टेयर में सिंचाई की सुविधा भी होगी. कोसी मेची योजना में कोसी बेसिन के पानी को महानंदा बेसिन में लाया जाएगा इसके लिए मेची लिंक माध्यम बनेगा. दोनों नदियों को मिलाने के लिए 120 किलोमीटर में कैनाल का भी निर्माण होगा और यह केनाल नेपाल के तराई क्षेत्र से गुजरेगी. साथ ही बकरा रावता और कंकई जैसी छोटी नदियों को भी इस योजना के माध्यम से जोड़ा जाएगा.
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कोसी का पानी अभी खगड़िया के कुर्सेला में मिलता है, योजना में कोसी के पानी को अररिया में महानंदा में गिराया जाएगा और इस योजना पर 6000 करोड़ की राशि खर्च होगी. बिहार सरकार की ओर से राष्ट्रीय परियोजना में शामिल करने की मांग लंबे समय से हो रही है. राष्ट्रीय परियोजना में शामिल करने से इस परियोजना पर जो खर्चा आएगा उसमें 90% राशि केंद्र सरकार भुगतान करेगी और 10% राशि बिहार सरकार को देना पड़ेगा. ऐसे योजना की स्वीकृति केंद्र ने दे दी है, लेकिन राशि के कारण यह योजना अब तक लटकी पड़ी है. बिहार ने कई छोटी नदियों को जोड़ने की योजना पर भी काम शुरू किया है और उसका सर्वे का काम जल संसाधन विभाग कर रहा है, लेकिन सबसे बड़ी दिक्कत राशि की है.
केंद्रीय बजट में भी इस योजना को शामिल नहीं किया गया है, जबकि पांच बड़ी परियोजना को शामिल कर लिया गया है. विशेषज्ञ भी कहते हैं कि ये बिहार जैसे बाढ़ ग्रस्त इलाके के लिए बड़ी उपेक्षा है. एएन सिन्हा इंस्टीट्यूट के प्रोफेसर डॉक्टर विद्यार्थी विकास का कहना है कि कोसी मेची जैसी बड़ी परियोजना को केंद्र बजट में शामिल कर लेता तो बिहार को इसका पूरा लाभ मिलता.
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''केंद्र सरकार बिहार की उपेक्षा करती आ रही है. इस बजट में भी बिहार को उपेक्षा ही मिली है. इस बजट में नदी जोड़ योजना में मध्य प्रदेश, आंध्र प्रदेश, गुजरात और कर्नाटक से संबंधित हैं, जिसका जिक्र बजट में किया गया. केन बेतवा के लिए तो 600 करोड़ जारी भी कर दिए गए हैं. लेकिन बिहार के किसी प्रोजेक्ट को इसमें शामिल नहीं किया गया.''- डॉक्टर विद्यार्थी विकास, प्रोफेसर एएन सिन्हा इंस्टीट्यूट
''बिहार इसके लिए लगातार प्रयासरत है. केंद्र और बिहार में एनडीए की सरकार है. ऐसे में भी बिहार की परियोजना को शामिल नहीं किया जाता है, तो यह एक गलत संदेश होग है. बाढ़ और सुखाड़ दोनों से ही बिहार त्रस्त रहा है. ऐसे में यदि नदी जोड़ योजना का क्रियान्वयन होगा तो उससे बिहार को बहुत लाभ होगा. नदी जोड़ क ेलिए नीति का निर्धारण कैसे होता है इसको लेकर सवाल जरूर हैं.''- रवि उपाध्याय, वरिष्ठ पत्रकार
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''डबल इंजन सरकार का बिहार को कोई लाभ नहीं मिल रहा है. जिस तरह से बिहार के माननीय सांसद और सत्ता में सहयोगी जेडीयू के राष्ट्रीय अध्यक्ष ललन सिंह ने भी ये बात उठाई थी, जिस पर कोई सुनवाई नहीं हुई. बिहार को कुछ नहीं मिला सिर्फ धोखा दिया गया.''- मृत्युंजय तिवारी, प्रवक्ता आरजेडी
इसके साथ ही बिहार ने कई छोटी नदियों को जोड़ने की योजना पर भी काम शुरू किया है और उसका सर्वे का काम जल संसाधन विभाग कर रहा है, लेकिन सबसे बड़ी दिक्कत राशि की है. नदी जोड़ योजना की बात करें तो नदियों को आपस में जोड़ने का विचार 161 साल पुराना है. सरकार नदी जोड़ परियोजना में 30 नदियों को आपस में जोड़ना चाहती है और इसके लिए 15 हजार किलोमीटर लंबी नई नहर की खुदाई होगी, इसमें 174 घन मीटर पानी स्टोर किया जा सकेगा.
राष्ट्रीय नदी जोड़ प्रोजेक्ट में कुल 30 लिंक बनाने की योजना है, जिनसे 37 नदियां जुड़ी होगी. इसके लिए 3000 स्टोरेज डेम का नेटवर्क बनाने की योजना है. यह दो भागों में होगा एक हिस्सा हिमालई नदियों के विकास का होगा इसमें 14 लिंक चुने गए हैं. इसी के साथ गंगा और ब्रह्मपुत्र पर जलाशय बनाने की योजना भी है. दूसरा भाग प्रायदीप नदियों के विकास का है, यह दक्षिण जल ग्रिड है. इसके तहत 16 लिंक की योजना हैं, जो दक्षिण भारत की नदियों को जोड़ती हैं. इसके तहत महानदी, गोदावरी, कृष्णा, पेन्नार, कावेरी और वैगई नदी को जोड़ने की परिकल्पना है.
नदी जोड़ योजना में अब तक का प्रयास
- सबसे पहले 1858 में मद्रास प्रेसीडेंसी के ब्रिटिश राज के चर्चित मुख्य इंजीनियर सर कॉटन द्वारा एक प्रस्ताव प्रस्तुत किया गया था. जिसमें आंध्र प्रदेश और ओडिशा में सूखे से निपटने के लिए नदियों को जोड़ने का प्रस्ताव दिया था.
- 1960 में तत्कालीन सिंचाई राज्यमंत्री केएल राहुल ने गंगा और कावेरी नदियों को जोड़ने का प्रस्ताव दिया था.
- 1983 में पूर्व प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी ने नेशनल वॉटर डेवलपमेंट एजेंसी का गठन भी किया था.
- अक्टूबर 2002 में सुप्रीम कोर्ट ने एक जनहित याचिका की सुनवाई करते हुए नदी जोड़ योजना को शीघ्रता से पूरा करने का निर्देश दिया और 2003 तक प्लान बनाने के लिए भी कहा था.
- पूर्व प्रधानमंत्री अटल बिहारी वाजपेयी ने 2003 में सुरेश प्रभु की अध्यक्षता में एक टास्क फोर्स का भी गठन किया था और उस समय यह अनुमान लगाया गया कि करीब 5,50,000 करोड़ से अधिक का खर्च इस परियोजना पर आएगा.
- 2012 में सुप्रीम कोर्ट ने फिर से केंद्र सरकार को निर्देश दिया कि महत्वाकांक्षी परियोजना को जल्दी से जल्दी अमल में लाएं नहीं तो विलंब होने पर इसकी लागत बढ़ेगी.
- नरेंद्र मोदी के प्रधानमंत्री बनने के बाद 2014 में इसके लिए एक विशेष समिति का गठन किया गया.
- 2017 में केंद्र सरकार ने मध्य प्रदेश के केन बेतवा प्रोजेक्ट की पहली नदी जोड़ योजना की मंजूरी दी और इस पर काम भी शुरू हो गया. इससे उत्तर प्रदेश को भी लाभ मिलेगा.
- अब 2022 में केंद्र सरकार ने केंद्रीय बजट में पांच नदी परियोजना की स्वीकृति दी है, जिस पर 40,000 करोड़ से अधिक की राशि खर्च होगी.
- 9 राज्यों की ओर से केंद्र सरकार को नदियों को जोड़ने की अब तक 46 से अधिक प्रस्ताव दिए गए हैं. इसमें महाराष्ट्र, गुजरात, झारखंड, उड़ीसा, बिहार, राजस्थान, तमिलनाडु, कर्नाटक और छत्तीसगढ़ शामिल हैं.
बता दें कि बिहार में 28 जिले बाढ़ से प्रभावित (28 Districts affected by Flood in Bihar) होते हैं. हर साल हजारों करोड़ की संपत्ति का नुकसान होता है. नेपाल से आने वाले पानी के कारण बिहार को बाढ़ का सामना करना पड़ता है. नेपाल में हाई डैम बनाने की मांग भी लंबे समय से हो रही है, लेकिन बिहार की कई नदियों को जोड़कर बाढ़ से निजात पाया जा सकता है और अटल बिहारी वाजपेयी के समय से ही नदियों को जोड़ने की चर्चा होती रही है.
बिहार सरकार की तरफ से कोसी मेची नदी योजना को लेकर ही कई बार डीपीआर दिया गया और अंत में जाकर स्वीकृत भी हुआ. वन विभाग से भी स्वीकृति मिल चुकी है, लेकिन पिछले 3 सालों से केवल राशि के कारण यह योजना जमीन पर नहीं उतर पाई है. इस बजट में भी बिहार की योजना को शामिल नहीं किया गया है. ऐसे में बिहार को अभी बाढ़ और सुखाड़ से निजात के लिए और लंबा इंतजार करना होगा.
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