पटनाः जब से नीतीश कुमार NDA छोड़कर महागठबंधन बनाए हैं, तब से बिहार सरकार केंद्र पर कई आरोप लगा चुकी है. अब मामला सेंट्रल टैक्सेस का उठा है. बिहार सरकार के वित्त मंत्री विजय कुमार चौधरी ने यह आरोप लगाया है कि केंद्र सरकार ने सेंट्रल टैक्सेस में राज्य की हिस्सेदारी को घटा दिया है. इधर, वित्त मंत्री के आरोप को अर्थशास्त्री गलत बता रहे हैं. वहीं विशेषज्ञ इसे कुछ हद तक सही मान रहे हैं. देखिए एक रिपोर्ट...
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60 हजार करोड़ का नुकसानः वित्त मंत्री विजय कुमार चौधरी के अनुसार जो हिस्सा बिहार को मिल रहा है वह 13वें वित्त आयोग के अनुपात में कम है. NDA सरकार में बिहार को 61195 करोड़ से अधिक का नुकसान हुआ है. 2014-15 में NDA के आने से पहले जो हिस्सेदारी थी, उसमें बदलाव करके केंद्र ने जो राशि भेजी है, उसमें अनुदान में 31 हजार करोड़ और सेंट्रल टैक्सेस में करीब 50 से 60 हजार करोड़ का नुकसान हुआ है.
"NDA की सरकार बनने के बाद से बिहार की बहुत हकमारी हुई है. पुरानी हिस्सेदारी को बदल कर टैक्सेस में हिस्सेदारी दी गई. साल 2014-15 में दो हिस्से में टैक्सेस और अनुदान को मिलाकर 90 से 91 हजार करोड़ का नुकसान बिहार को हुआ है. UPA के समय जो हिस्सेदारी थी, उससे बहुत कम राशि मिल रही है." -विजय कुमार चौधरी, वित्त मंत्री, बिहार सरकार
5 लाख करोड़ रुपए अधिक राशि दीः इधर, टैक्स मामले के जानकार और अर्थशास्त्री एनके चौधरी ने बिहार सरकार के इस आरोप को खारिज किया है. उन्होंने कहा कि सरकार ने UPA की तुलना में NDA ने 5 लाख करोड़ रुपए अधिक राशि बिहार को दिया है. केंद्रीय राजस्व में काफी इजाफा हुआ है. वित्त आयोग ने उसके आधार पर ही सभी राज्यों का हिस्सेदारी तय की है. इसलिए केंद्र पर इस तरह का आरोप लगाना गलत है.
"वित्तीय आयोग संवैधानिक संस्था है, यह केंद्र की संस्था नहीं है. जिसका हर 5 साल पर गठन किया जाता है. बिहार को भी पहले की तुलना में अधिक राशि मिल रही है. यूपीए शासन की तुलना में बिहार को एनडीए शासन में 5 लाख करोड़ अधिक राशि मिली है. बिहार सरकार का आरोप सही नहीं है." -एनके चौधरी, अर्थशास्त्री
'पॉपुलेशन के वेटेज को कम किया गया': एएन सिन्हा इंस्टिट्यूट के विशेषज्ञ डॉ. विद्यार्थी विकास बिहार सरकार के आरोप को कुछ हद तक सही मान रहे हैं. उन्होंने वित्त आयोग से मिलने वाली राशि में घटौती की बात कही. उन्होंने कहा कि टैक्सेस में हिस्सेदारी कम होने के बिहार को नुकसान हुआ है. 11वें वित्त आयोग के मुकाबले 14 और 15वें में पॉपुलेशन के वेटेज को कम कर दिया गया है, जिससे बिहार सरकार को नुकसान हो रहा है.
"बिहार को मिलने वाली राशि का प्रतिशत घटा है. 11वें से 15वें वित्त आयोग के आंकड़ों को देखे तो साफ दिख रहा है. 11वें वित्त आयोग में जो पॉपुलेशन का वेटेज था उसे 14वें और 15वें वित्तीय आयोग में घटा दिया गया है, जिसका नुकसान बिहार जैसे राज्यों को हो रहा है." -डॉक्टर विद्यार्थी विकास, विशेषज्ञ, एएन सिन्हा संस्थान
NDA की सरकार में घटी हिस्सेदारीः बिहार सरकार का कहना है कि 13वें वित्त आयोग 2010 से 15 में केंद्रीय करों में बिहार की हिस्सेदारी 10.917% थी. 14वें वित्त आयोग में साल 2015-20 में घटकर 9.665% हो गयी. 15वें वित्त आयोग 2020-21 में 10.061% और 2021- 26 में 10.058% हो गयी. 13वें वित्त आयोग 2010 -15 में बिहार के लिए होरिजेंटल हिस्सेदारी की तुलना में 14वें वित्त आयोग 2015-20 व 15वें वित्त आयोग 2020-21 और 2021 -26 में होरिजेंटल हिस्सेदारी कमी की गई. इससे बिहार को 61195 .80 करोड़ की क्षति हुई.
केंद्र प्रायोजित स्कीम में भी कटौतीः बिहार सरकार का दावा है कि 13वें वित्त आयोग में 10.917% के हिसाब से सेंट्रल टैक्सेस में हिस्सेदारी मिली थी. वही स्थिति आज होती तो 14वें और 15वें वित्त आयोग में हर साल अधिक राशि मिलती. लेकिन ऐसा नहीं किया गया. बिहार सरकार का यह भी कहना है कि 2015-16 तक बिहार को केंद्र प्रायोजित स्कीम में 29% तक राशि मिलती थी, जो हजार 2022- 23 में घटकर 21% हो गयी है. इससे ₹31000 करोड़ का नुकसान बिहार को उठाना पड़ रहा है.
बिहार के बजट में 11 गुना की बढ़ोतरीः बिहार सरकार का 2004-05 में केवल 23885 करोड़ का बजट है. उस समय केंद्र में यूपीए की सरकार थी. आज 2023- 24 में बिहार सरकार का बजट 2 लाख 61 हजार 885 करोड़ पहुंच गया है, 2004-05 से 11 गुना अधिक है. यह इसलिये संभव हो पाया क्योंकि बिहार सरकार का अपना राजस्व भी बढ़ा है. केंद्रीय राजस्व में भी काफी इजाफा हुआ है, लेकिन यह भी सही है कि सेंट्रल टैक्सेस में और अनुदान में जो हिस्सेदारी 13वें वित्त आयोग के समय थी यदि वही हिस्सेदारी आज मिलती तो बिहार को 92 हजार करोड़ का लाभ होता.