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कांग्रेस अध्यक्ष सोनिया गांधी की महागठबंधन नेताओं के साथ बैठक शुरू - Bihar Congress alliance meeting

विधानसभा चुनाव में राजनीतिक जमीन और जनाधार खड़ा करने में जुटे राजनीतिक दलों को यह बात तो समझ आ गई है कि गठजोड़ के बिना सियासत में मजबूत पकड़ नहीं बनेगी. बिहार में राजनीतिक दलों की बात करें तो राजद, हम, रालोसपा और कांग्रेस महागठबंधन बना रहे हैं. हालांकि इस महागठबंधन में पेंच एक नहीं कई है.

बिहार कांग्रेस महागठबंधन मीटिंग
बिहार कांग्रेस महागठबंधन मीटिंग
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Published : May 22, 2020, 11:39 AM IST

Updated : May 22, 2020, 4:25 PM IST

पटना: कांग्रेस अध्यक्ष सोनिया गांधी की बिहार के महागठबंधन नेताओं के साथ बैठक शुरू हो गई है. इस बैठक में महागठबंधन के सभी दलों के लगभग 22 नेता मौजूद हैं. आरजेडी से नेता प्रतिपक्ष तेजस्वी यादव, हम के अध्यक्ष जीतन राम मांझी, रालोसपा सुप्रीमो उपेंद्र कुशवाहा और वीआईपी पार्टी के अध्यक्ष मुकेश सहनी इस बैठक में शामिल हैं. साथ ही बिहार कांग्रेस के कई बड़े नेता भी मौजूद हैं. ये बैठक वीडियो कॉन्फ्रेंसिंग के जरिए हो रही है.

आम चुनाव के मुहाने पर खड़े बिहार की राजनीतिक गहमागहमी को कोराना महामारी के कारण थोड़ा ब्रेक जरूर लग गया है. लेकिन राजनीतिक दलों की छटपटाहट बढ़ी हुई है. अगर कोराना काल नहीं होता तो बिहार की राजनीतिक तपिस अपने चरम पर होती. इसी क्रम में शुक्रवार को महागठबंधन नेताओं के साथ कांग्रेस अध्यक्ष सोनिया गांधी की बैठक को बहुत महत्वपूर्ण माना जा रहा है.

2015 की बात करें तो नवम्बर महीने में आरजेडी गठबंधन के साथ नीतीश कुमार ने शपथ लिया था, लेकिन बदले हालात में बिहार की सियासत जब बदली तो फिर नीतीश और भाजपा साथ हो लिए. बीजेपी जेडीयू गठबंधन के जिस मुददे के साथ अब तक बिहार में राज किया है, उसमें सेंधमारी की तैयारी के लिए महागठबंधन तैयार तो कई बार हुआ, लेकिन अपने अंजाम तक पहुंचने से पहले ही दम तोड़ गया.

पटना
सोनिया गांधी

विधानसभा चुनाव में राजनीतिक जमीन और जनाधार खड़ा करने में जुटे राजनीतिक दलों को यह बात तो समझ आ गई है कि गठजोड़ के बिना सियासत में मजबूत पकड़ नहीं बनेगी. बिहार में राजनीतिक दलों की बात करें तो राजद, हम, रालोसपा और कांग्रेस महागठबंधन बना रहे हैं. हालांकि इस महागठबंधन में पेंच एक नहीं कई है.

चेहरे की राजनीति पर शुरू होती है लड़ाई
बिहार में सीएम चेहरे की लड़ाई खत्म होने का नाम ही नहीं ले रही हैं. सीएम के चेहरे की बात जब-जब आती है. गठबंधन के दल अपने नेता की फोटो लेकर अपनी-अपनी दलील देने में जुट जाते हैं. राजद का दावा है कि तेजस्वी सबसे दमदार हैं. हम को मांझी पर भरोसा है कि वे ही महागठबंधन को मझधार से पार लगा सकते हैं और उपेन्द्र कुशवाहा जाति के वोट प्रतिशत की हिस्सेदारी और भागीदारी के सवाल पर लड़ाई लड़ रहे हैं. ऐसे में चेहरे की राजनीति पर लड़ाई शुरू होती है और वहीं राजनतिक के गठबंधन पर सवालों के साथ विभेद खड़ा हो जाता है.

पटना
तेजस्वी यादव

खोई जमीन और जनाधार को बचाने में जुटी कांग्रेस
बिहार में कांग्रेस की हालत बहुत मजबूत नहीं है. अपनी खोई जमीन और जनाधार को बचाने में जुटी कांग्रेस 1990 से ही राजद के सियासत के छांव को अपना राजनीतिक वजूद बनाए हुए है. ऐसे में 2020 के चुनाव में कांग्रेस कितने मजबूती के साथ खड़ी होगी और महागठबंधन के नेताओं के कितना दबाव बना पाएगी कहना मुश्किल है, क्योंंकि एक बात तो साफ है, राजद के अलावा कोई ऐसा दल नहीं है. जो कांग्रेस के साथ चेहरे की कुर्बानी के लिए खड़ा रहे.

बहुत कुछ जमीन पर नहीं दिख रहा एकजुट
सोनिया गांधी जिस बैठक के साथ बिहार की राजनीति को समझना और महागठबंधन को समझााना चाह रही हैं. उसके लिए कांग्रेस को कम कसरत नहीं करनी है. 2015 में कांग्रेस को 26 सीटें मिली थी. तब कांग्रेस के लिए नीतीश कुमार ने वोट मांगा था और अशोक चौधरी कांग्रेस के प्रदेश अघ्यक्ष थे. आज आशोक चौधरी जदयू में है और नीतीश की नीतियों का बखान कर रहे हैं. जिस प्रदेश अध्यक्ष की नीतियों की बदौलत कांग्रेस ने 26 सीटें जीती थी. आज वह नीतीश नीति का गुणगान कर रहे हैं. मदन मोहन झा को बिहार प्रदेश अध्यक्ष की कमान देकर सोनिया ने एक बार फिर कांग्रेस को जगन्नाथ मिश्र के समय वाले वोट बैंक पर नजर डाली है. लेकिन अभी बहुत कुछ जमीन पर जुटता दिख नहीं रहा है. महागठबंधन के सभी दलों को इस बात की जानकारी भी है कि काम के नाम पर मदन मोहन झा नीतीश कैबिनेट के अपने मंत्रित्व काल की उप​लब्ध्यिों के अलावा कुछ भी बताने के हालात में नहीं है.

पटना
जीतन राम मांझी

इतने लोगों को एक मुद्दे पर राजी करना बड़ी चुनौती
बिहार में काम के नाम पर महागठबंधन वाले राजनीतिक दलों के पास का जाति की गिनती कराने का ही आधार हैं. काम के नाम पर नीतीश के साथ रहने पर जो किया वही है. ऐसे में कांग्रेस के पास गिनती कराने के लिए बहुत कुछ नहीं है. सोनिया गांधी की वार्ता में इसी बात पर जोर होगा कि कैसे नीतीश के विकास और मोदी के बात को टक्कर दिया जाय. लेकिन सवाल यही जिस हाथ को मजबूत करने के लिए सोनिया गांधी बैठक करने जा रही है. उसमें इतने लोगों को एक मुददे पर राजी करना बड़ी चुनौती है.

पटना
उपेन्द्र कुशवाहा

बिहार की सियासत के लिए चल रहे दांव-पेंच
सोनिया गांधी महागबंधन के नेताओं के साथ बैठक कर बिहार में राजनीतिक हालात पर चर्चा तो जरूर करेंगी. लेकिन यह अभी से तय है कि सीएम चेहरे की सियासत पर महागठबंधन की गांठ किसी एक नाम पर मजबूत होगी कहना मुश्किल है. बिहार की सियासत के लिए बिछ रहे दांव-पेंच में अभी महागठबंधन कई मुददों पर साथ होगा नहीं कहा जा सकता लेकिन हाथ के साथ कौन-कौन खड़ा रहेगा सोनिया की आज की बैठक के बाद बहुत कुछ साफ हो जाएगा.

पटना: कांग्रेस अध्यक्ष सोनिया गांधी की बिहार के महागठबंधन नेताओं के साथ बैठक शुरू हो गई है. इस बैठक में महागठबंधन के सभी दलों के लगभग 22 नेता मौजूद हैं. आरजेडी से नेता प्रतिपक्ष तेजस्वी यादव, हम के अध्यक्ष जीतन राम मांझी, रालोसपा सुप्रीमो उपेंद्र कुशवाहा और वीआईपी पार्टी के अध्यक्ष मुकेश सहनी इस बैठक में शामिल हैं. साथ ही बिहार कांग्रेस के कई बड़े नेता भी मौजूद हैं. ये बैठक वीडियो कॉन्फ्रेंसिंग के जरिए हो रही है.

आम चुनाव के मुहाने पर खड़े बिहार की राजनीतिक गहमागहमी को कोराना महामारी के कारण थोड़ा ब्रेक जरूर लग गया है. लेकिन राजनीतिक दलों की छटपटाहट बढ़ी हुई है. अगर कोराना काल नहीं होता तो बिहार की राजनीतिक तपिस अपने चरम पर होती. इसी क्रम में शुक्रवार को महागठबंधन नेताओं के साथ कांग्रेस अध्यक्ष सोनिया गांधी की बैठक को बहुत महत्वपूर्ण माना जा रहा है.

2015 की बात करें तो नवम्बर महीने में आरजेडी गठबंधन के साथ नीतीश कुमार ने शपथ लिया था, लेकिन बदले हालात में बिहार की सियासत जब बदली तो फिर नीतीश और भाजपा साथ हो लिए. बीजेपी जेडीयू गठबंधन के जिस मुददे के साथ अब तक बिहार में राज किया है, उसमें सेंधमारी की तैयारी के लिए महागठबंधन तैयार तो कई बार हुआ, लेकिन अपने अंजाम तक पहुंचने से पहले ही दम तोड़ गया.

पटना
सोनिया गांधी

विधानसभा चुनाव में राजनीतिक जमीन और जनाधार खड़ा करने में जुटे राजनीतिक दलों को यह बात तो समझ आ गई है कि गठजोड़ के बिना सियासत में मजबूत पकड़ नहीं बनेगी. बिहार में राजनीतिक दलों की बात करें तो राजद, हम, रालोसपा और कांग्रेस महागठबंधन बना रहे हैं. हालांकि इस महागठबंधन में पेंच एक नहीं कई है.

चेहरे की राजनीति पर शुरू होती है लड़ाई
बिहार में सीएम चेहरे की लड़ाई खत्म होने का नाम ही नहीं ले रही हैं. सीएम के चेहरे की बात जब-जब आती है. गठबंधन के दल अपने नेता की फोटो लेकर अपनी-अपनी दलील देने में जुट जाते हैं. राजद का दावा है कि तेजस्वी सबसे दमदार हैं. हम को मांझी पर भरोसा है कि वे ही महागठबंधन को मझधार से पार लगा सकते हैं और उपेन्द्र कुशवाहा जाति के वोट प्रतिशत की हिस्सेदारी और भागीदारी के सवाल पर लड़ाई लड़ रहे हैं. ऐसे में चेहरे की राजनीति पर लड़ाई शुरू होती है और वहीं राजनतिक के गठबंधन पर सवालों के साथ विभेद खड़ा हो जाता है.

पटना
तेजस्वी यादव

खोई जमीन और जनाधार को बचाने में जुटी कांग्रेस
बिहार में कांग्रेस की हालत बहुत मजबूत नहीं है. अपनी खोई जमीन और जनाधार को बचाने में जुटी कांग्रेस 1990 से ही राजद के सियासत के छांव को अपना राजनीतिक वजूद बनाए हुए है. ऐसे में 2020 के चुनाव में कांग्रेस कितने मजबूती के साथ खड़ी होगी और महागठबंधन के नेताओं के कितना दबाव बना पाएगी कहना मुश्किल है, क्योंंकि एक बात तो साफ है, राजद के अलावा कोई ऐसा दल नहीं है. जो कांग्रेस के साथ चेहरे की कुर्बानी के लिए खड़ा रहे.

बहुत कुछ जमीन पर नहीं दिख रहा एकजुट
सोनिया गांधी जिस बैठक के साथ बिहार की राजनीति को समझना और महागठबंधन को समझााना चाह रही हैं. उसके लिए कांग्रेस को कम कसरत नहीं करनी है. 2015 में कांग्रेस को 26 सीटें मिली थी. तब कांग्रेस के लिए नीतीश कुमार ने वोट मांगा था और अशोक चौधरी कांग्रेस के प्रदेश अघ्यक्ष थे. आज आशोक चौधरी जदयू में है और नीतीश की नीतियों का बखान कर रहे हैं. जिस प्रदेश अध्यक्ष की नीतियों की बदौलत कांग्रेस ने 26 सीटें जीती थी. आज वह नीतीश नीति का गुणगान कर रहे हैं. मदन मोहन झा को बिहार प्रदेश अध्यक्ष की कमान देकर सोनिया ने एक बार फिर कांग्रेस को जगन्नाथ मिश्र के समय वाले वोट बैंक पर नजर डाली है. लेकिन अभी बहुत कुछ जमीन पर जुटता दिख नहीं रहा है. महागठबंधन के सभी दलों को इस बात की जानकारी भी है कि काम के नाम पर मदन मोहन झा नीतीश कैबिनेट के अपने मंत्रित्व काल की उप​लब्ध्यिों के अलावा कुछ भी बताने के हालात में नहीं है.

पटना
जीतन राम मांझी

इतने लोगों को एक मुद्दे पर राजी करना बड़ी चुनौती
बिहार में काम के नाम पर महागठबंधन वाले राजनीतिक दलों के पास का जाति की गिनती कराने का ही आधार हैं. काम के नाम पर नीतीश के साथ रहने पर जो किया वही है. ऐसे में कांग्रेस के पास गिनती कराने के लिए बहुत कुछ नहीं है. सोनिया गांधी की वार्ता में इसी बात पर जोर होगा कि कैसे नीतीश के विकास और मोदी के बात को टक्कर दिया जाय. लेकिन सवाल यही जिस हाथ को मजबूत करने के लिए सोनिया गांधी बैठक करने जा रही है. उसमें इतने लोगों को एक मुददे पर राजी करना बड़ी चुनौती है.

पटना
उपेन्द्र कुशवाहा

बिहार की सियासत के लिए चल रहे दांव-पेंच
सोनिया गांधी महागबंधन के नेताओं के साथ बैठक कर बिहार में राजनीतिक हालात पर चर्चा तो जरूर करेंगी. लेकिन यह अभी से तय है कि सीएम चेहरे की सियासत पर महागठबंधन की गांठ किसी एक नाम पर मजबूत होगी कहना मुश्किल है. बिहार की सियासत के लिए बिछ रहे दांव-पेंच में अभी महागठबंधन कई मुददों पर साथ होगा नहीं कहा जा सकता लेकिन हाथ के साथ कौन-कौन खड़ा रहेगा सोनिया की आज की बैठक के बाद बहुत कुछ साफ हो जाएगा.

Last Updated : May 22, 2020, 4:25 PM IST
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