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देखिए सरकार.. कोरोना की तीसरी लहर में 'एंबुलेंस बीमार', जल्द हो इनका उपचार

आपातकालीन चिकित्सा सेवा उपलब्ध कराने और घायलों व बीमारों को अस्पताल तक पहुंचाने वाली नि:शुल्क एंबुलेंस सेवा 102 पिछले काफी दिनों से बीमार चल रही है. यह सेवा इतनी 'बीमार' है कि सामान्य उपचार से इसकी तबीयत ठीक नहीं होगी. पढ़ें पूरी रिपोर्ट...

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Published : Jan 22, 2022, 2:33 PM IST

पटना: इंसान के जीवन में ऑक्सीजन का क्या महत्व है, यह कोरोना की दूसरी लहर (Second Wave Of Corona Virus In Bihar) के दौरान देखने को मिला था. कोरोना काल में हम लोगों ने यह भी समझ लिया कि मरीजों को सांस में तकलीफ होने पर किस प्रकार वेंटिलेटर की आवश्यकता पड़ती है. उस वक्त वेंटिलेटर युक्त एंबुलेंस काफी उपयोगी होते हैं. इन सभी को देखते हुए सरकार ने दावा किया कि स्वास्थ्य व्यवस्थाओं को दुरुस्त कर लिया गया है लेकिन जमीनी हकीकत कुछ और ही है. जिले में एडवांस लाइफ सपोर्ट एंबुलेंस (Advance Life Support Ambulance) में वेंटिलेटर तक नहीं है, जिससे लोगों को काफी मुश्किलें हो रही हैं.

बिहार में डायल 102 नि:शुल्क एंबुलेंस सेवा के लिए बिहार सरकार ने 1200 एंबुलेंस खरीद कर प्राइवेट कंपनी पीडीपीएल (PDPL) को इसके संचालन का जिम्मा दिया है. इनमें से 300 एंबुलेंस एडवांस लाइफ सपोर्ट सिस्टम वाले हैं यानी कि इसमें तमाम जीवन रक्षक उपकरण मौजूद होने का दावा किया जाता है. लेकिन जब पीएमसीएच के कई एडवांस लाइफ सपोर्ट सिस्टम वाले एंबुलेंस का ईटीवी भारत की टीम ने रियलिटी चेक किया, तो पता चला कि सभी एंबुलेंस से वेंटिलेटर और अन्य जीवन रक्षक उपकरण गायब हैं. इतना ही नहीं, सभी गाड़ियों का निबंधन, पॉल्यूशन, रोड परमिट सब कुछ फेल है.

इसे भी पढ़ें: Gaya News : शराब तस्करी का नया तरीका, गया में एंबुलेंस से 100 कार्टन विदेशी शराब जब्त

यह स्थिति तब है जब बिहार सरकार प्रत्येक एंबुलेंस पर महीने में 2 लाख रुपये कंपनी को भुगतान करती है. राज्य सरकार की तरफ से प्रति माह प्रत्येक एंबुलेंस पर 2 लाख रुपये मेंटेनेंस और संचालन के लिए दिये जाते हैं. जिसमें वाहनों के रख-रखाव के साथ कर्मियों की सैलरी भी शामिल है. एडवांस लाइफ सपोर्ट सिस्टम वाली एंबुलेंस की स्थिति यह है कि गेट का लॉक टूटा हुआ है. जुगाड़ के माध्यम से गेट को बंद किया जाता है. एंबुलेंस के गेट के अंदर और बाहर दरवाजे का कुंडी लगाया गया है. एंबुलेंस के कर्मचारियों का कहना है कि जुगाड़ से तो वह बंद कर देते हैं लेकिन यदि आपात स्थिति हो जाती है या फिर दुर्घटना होती है, तो ऐसी स्थिति में अंदर से मरीजों को बाहर निकाल पाना काफी मुश्किल हो जाता है. कभी-कभी तो एंबुलेंसकर्मी मरीज को गोद में उठाकर अस्पताल परिसर तक पहुंचाते हैं.

ये भी पढ़ें: कोरोना संकट के बीच 102 एंबुलेंस ड्राइवरों का प्रदर्शन, 7 सूत्री मांगें पूरी नहीं करने पर दी हड़ताल की चेतावनी

बिहार 102 एंबुलेंस यूनियन के प्रदेश अध्यक्ष सोनू कुमार ने बताया कि यह सरकार की बहुत बेहतरीन योजना थी कि एक कॉल पर लोगों को नि:शुल्क एंबुलेंस सेवा उपलब्ध होती थी. अब इमरजेंसी की स्थिति में मरीज को अस्पताल तक पहुंचने में जान बची रहे, इसके लिए जो इमरजेंसी के उपकरण होते हैं, वह सब एंबुलेंस से गायब हैं. कंपनी ने सभी एडवांस लाइफ सपोर्ट एंबुलेंस से जीवन रक्षक उपकरण छह माह पहले मेंटेनेंस के नाम पर निकाल लिए हैं.

प्रदेश में 300 एडवांस लाइफ सपोर्ट एंबुलेंस चल रहे हैं. जिसमें से 80 फीसदी एंबुलेंस में तमाम जीवन रक्षक उपकरण गायब हैं. जैसे की हार्ट अटैक वालों के लिए इंजेक्शन पंप तक नहीं है. कई बार गंभीर मरीज एंबुलेंस में समय पर जीवन रक्षक उपकरण नहीं मिल पाने की वजह से अस्पताल पहुंचने से पहले ही दम तोड़ देते हैं. सरकार ने जिस उद्देश्य से एडवांस लाइफ सपोर्ट एंबुलेंस सेवा की नि:शुल्क शुरुआत की, उसका धरातल पर सही क्रियान्वयन नहीं हो रहा है. लोगों को यह सेवा और सुविधा नहीं मिल पा रही है.

इस मामले पर पीडीपीएल एजेंसी के डिप्टी डायरेक्टर विवेक भारद्वाज ने एंबुलेंस चालकों और कर्मियों के आरोपों को सिरे से नकार दिया. उनका कहना था कि जब इतने संख्या में एंबुलेंस चलेंगे, तो कुछ गाड़ियां नजर आएंगी. एंबुलेंस कर्मी जो भी आरोप लगा रहे हैं, वह गलत है. अगर उन्हें यह व्यवस्था पसंद नहीं तो इसमें नौकरी क्यों कर रहे हैं.

इन सब दावों से एक बड़ा सवाल यह उठता है कि आखिर इतनी संख्या में सरकार ने एंबुलेंस खरीदकर जब संचालन का जिम्मा एक निजी कंपनी को दिया है तो उसकी मॉनिटरिंग कैसे करा रही है? एंबुलेंस के चालक और कर्मचारी आरोप लगा रहे हैं और पड़ताल में साफ नजर आ रहा है कि काफी संख्या में एंबुलेंस की हालत खस्ता है. सरकार को इस मामले की जांच कराने की आवश्यकता है ताकि सरकार ने जिस उद्देश्य से यह व्यवस्था शुरू की, वह उद्देश्य धरातल पर पूरा हो सके और गरीब मरीजों को इमरजेंसी की स्थिति में सही मायने में एडवांस लाइफ सपोर्ट सिस्टम वाले एंबुलेंस की सेवा और सुविधा मिल सके.

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पटना: इंसान के जीवन में ऑक्सीजन का क्या महत्व है, यह कोरोना की दूसरी लहर (Second Wave Of Corona Virus In Bihar) के दौरान देखने को मिला था. कोरोना काल में हम लोगों ने यह भी समझ लिया कि मरीजों को सांस में तकलीफ होने पर किस प्रकार वेंटिलेटर की आवश्यकता पड़ती है. उस वक्त वेंटिलेटर युक्त एंबुलेंस काफी उपयोगी होते हैं. इन सभी को देखते हुए सरकार ने दावा किया कि स्वास्थ्य व्यवस्थाओं को दुरुस्त कर लिया गया है लेकिन जमीनी हकीकत कुछ और ही है. जिले में एडवांस लाइफ सपोर्ट एंबुलेंस (Advance Life Support Ambulance) में वेंटिलेटर तक नहीं है, जिससे लोगों को काफी मुश्किलें हो रही हैं.

बिहार में डायल 102 नि:शुल्क एंबुलेंस सेवा के लिए बिहार सरकार ने 1200 एंबुलेंस खरीद कर प्राइवेट कंपनी पीडीपीएल (PDPL) को इसके संचालन का जिम्मा दिया है. इनमें से 300 एंबुलेंस एडवांस लाइफ सपोर्ट सिस्टम वाले हैं यानी कि इसमें तमाम जीवन रक्षक उपकरण मौजूद होने का दावा किया जाता है. लेकिन जब पीएमसीएच के कई एडवांस लाइफ सपोर्ट सिस्टम वाले एंबुलेंस का ईटीवी भारत की टीम ने रियलिटी चेक किया, तो पता चला कि सभी एंबुलेंस से वेंटिलेटर और अन्य जीवन रक्षक उपकरण गायब हैं. इतना ही नहीं, सभी गाड़ियों का निबंधन, पॉल्यूशन, रोड परमिट सब कुछ फेल है.

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यह स्थिति तब है जब बिहार सरकार प्रत्येक एंबुलेंस पर महीने में 2 लाख रुपये कंपनी को भुगतान करती है. राज्य सरकार की तरफ से प्रति माह प्रत्येक एंबुलेंस पर 2 लाख रुपये मेंटेनेंस और संचालन के लिए दिये जाते हैं. जिसमें वाहनों के रख-रखाव के साथ कर्मियों की सैलरी भी शामिल है. एडवांस लाइफ सपोर्ट सिस्टम वाली एंबुलेंस की स्थिति यह है कि गेट का लॉक टूटा हुआ है. जुगाड़ के माध्यम से गेट को बंद किया जाता है. एंबुलेंस के गेट के अंदर और बाहर दरवाजे का कुंडी लगाया गया है. एंबुलेंस के कर्मचारियों का कहना है कि जुगाड़ से तो वह बंद कर देते हैं लेकिन यदि आपात स्थिति हो जाती है या फिर दुर्घटना होती है, तो ऐसी स्थिति में अंदर से मरीजों को बाहर निकाल पाना काफी मुश्किल हो जाता है. कभी-कभी तो एंबुलेंसकर्मी मरीज को गोद में उठाकर अस्पताल परिसर तक पहुंचाते हैं.

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बिहार 102 एंबुलेंस यूनियन के प्रदेश अध्यक्ष सोनू कुमार ने बताया कि यह सरकार की बहुत बेहतरीन योजना थी कि एक कॉल पर लोगों को नि:शुल्क एंबुलेंस सेवा उपलब्ध होती थी. अब इमरजेंसी की स्थिति में मरीज को अस्पताल तक पहुंचने में जान बची रहे, इसके लिए जो इमरजेंसी के उपकरण होते हैं, वह सब एंबुलेंस से गायब हैं. कंपनी ने सभी एडवांस लाइफ सपोर्ट एंबुलेंस से जीवन रक्षक उपकरण छह माह पहले मेंटेनेंस के नाम पर निकाल लिए हैं.

प्रदेश में 300 एडवांस लाइफ सपोर्ट एंबुलेंस चल रहे हैं. जिसमें से 80 फीसदी एंबुलेंस में तमाम जीवन रक्षक उपकरण गायब हैं. जैसे की हार्ट अटैक वालों के लिए इंजेक्शन पंप तक नहीं है. कई बार गंभीर मरीज एंबुलेंस में समय पर जीवन रक्षक उपकरण नहीं मिल पाने की वजह से अस्पताल पहुंचने से पहले ही दम तोड़ देते हैं. सरकार ने जिस उद्देश्य से एडवांस लाइफ सपोर्ट एंबुलेंस सेवा की नि:शुल्क शुरुआत की, उसका धरातल पर सही क्रियान्वयन नहीं हो रहा है. लोगों को यह सेवा और सुविधा नहीं मिल पा रही है.

इस मामले पर पीडीपीएल एजेंसी के डिप्टी डायरेक्टर विवेक भारद्वाज ने एंबुलेंस चालकों और कर्मियों के आरोपों को सिरे से नकार दिया. उनका कहना था कि जब इतने संख्या में एंबुलेंस चलेंगे, तो कुछ गाड़ियां नजर आएंगी. एंबुलेंस कर्मी जो भी आरोप लगा रहे हैं, वह गलत है. अगर उन्हें यह व्यवस्था पसंद नहीं तो इसमें नौकरी क्यों कर रहे हैं.

इन सब दावों से एक बड़ा सवाल यह उठता है कि आखिर इतनी संख्या में सरकार ने एंबुलेंस खरीदकर जब संचालन का जिम्मा एक निजी कंपनी को दिया है तो उसकी मॉनिटरिंग कैसे करा रही है? एंबुलेंस के चालक और कर्मचारी आरोप लगा रहे हैं और पड़ताल में साफ नजर आ रहा है कि काफी संख्या में एंबुलेंस की हालत खस्ता है. सरकार को इस मामले की जांच कराने की आवश्यकता है ताकि सरकार ने जिस उद्देश्य से यह व्यवस्था शुरू की, वह उद्देश्य धरातल पर पूरा हो सके और गरीब मरीजों को इमरजेंसी की स्थिति में सही मायने में एडवांस लाइफ सपोर्ट सिस्टम वाले एंबुलेंस की सेवा और सुविधा मिल सके.

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