पटना: खुद को सोशल मीडिया से दूर करने की बात कहकर पीएम नरेंद्र मोदी ने देश में एक नई बहस की शुरुआत कर दी है. हालांकि इस विभेद को लेकर बिहार पहले से ही लड़ता रहा है और मॉडल पर जब भी चर्चा हुई बिहार के लिए नीतीश कुमार आगे ही खड़े दिखे. गुजरात के विकास का मॉडल और बिहार के नीतीश का मॉडल काफी चर्चा में रहा.
डिजिटल को लेकर जिस तरीके से पीएम मोदी आगे बढ़े थे. उसमें बिहार कुछ हद तक रुक गया था. लेकिन अब देश को आधुनिक तकनीक से जोड़ने और डिजिटल भारत का सपना लेकर लोगों के बीच फेसबुक टि्वटर इंस्टाग्राम और यूट्यूब के माध्यम से नरेंद्र मोदी इतने पॉपुलर हुए. वैसे राज्यों को इस विषय के लिए चर्चा में खड़ा होना पड़ा कि पीएम मोदी के इस हथियार का जवाब कैसे दिया जाए. हालांकि इसकी शुरुआत नरेंद्र मोदी के साथ तब हुई जब प्रशांत किशोर की पार्टी नरेंद्र मोदी के साथ गुजरात में जुड़ी हर हर मोदी घर घर मोदी से लेकर तमाम नारे लोगों के मोबाइल से लेकर स्मार्ट और डिजिटल माध्यम तक पहुंचे चर्चा भी खूब हुई और देश में बदलाव के लिए काम भी खूब हुए.
डिजिटल इंडिया के कदम में पीछे हो गए
खेती के लिए डिजिटल तकनीक की बात हो या फिर पैसा जमा करने से लेकर भारत को भीम ऐप देने तक खेती के लिए नई तकनीक की बात हो या फिर सरकारी व्यवस्था के कामकाज को दुरुस्त करने के लिए डिजिटलाइजेशन की यह तमाम चीजें देश में नरेंद्र मोदी के डिजिटल स्टार्टअप के सपने से जोड़कर देखा जा रहा था, और डिजिटल भारत उसकी अंतिम बानगी मानी जा रही थी, लेकिन पीएम मोदी ने खुद को सोशल मीडिया से दूर करने की बात कहकर देश में एक बार फिर इस विषय की चर्चा शुरू कर दी. डिजिटल इंडिया का सपना अपने मूल मुकाम से पहले ही भटक रहा है, सवाल विपक्ष के पास जरूर है, क्योंकि बहुत सारे ऐसे मुद्दे हैं जिनका जवाब विपक्ष के सवालों में इतनी मजबूती से खड़ा हुआ है, कि सत्तापक्ष उस पर या तो चुप हो गया है. या फिर जवाब भी सवाल बन गए हैं.
क्या जवाब नहीं दे पा रहे मोदी?
भ्रष्टाचार और काला धन को लेकर नरेंद्र मोदी ने जो मुहिम चलाई और 2014 के लोकसभा चुनाव में जिस तरीके से उसकी लहर बनी उसका असर हुआ, कि पीएम मोदी अपनी उस हर बात को कहने में सफल रहे. जो देश की जनता ने जनमत के साथ उन्हें गद्दी तक पहुंचाने में किया था, हालांकि काला धन आया नहीं तो विपक्ष ने जब सवाल किया, तो पार्टी की तरफ से जवाब दे दिया गया कि यह जुमला था. डिजिटल इंडिया का सपना लेकर बीजेपी जिस तरीके से आगे बढ़ी थी और लोगों के बीच जिस तरीके से डिजिटल इंडिया के स्वरूप ने स्वरूप लिया था. उससे एक बात तो तय लगने लगा था कि भारत की आधा से ज्यादा जानकारी लोगों के पास पहुंच रही थी.
डिजिटल मीडिया के कई खतरनाक स्वरूप
हालांकि डिजिटल मीडिया के कई खतरनाक स्वरूप भी रहे और माना यह भी जा रहा है, कि दिल्ली में हुई हालिया घटना में डिजिटल मीडिया की अहम भूमिका भी रही है. बाकी अगर हम देश के सबसे पिछड़े राज्य बिहार की बात करें तो वहां के नेता भी अब कम से कम सोशल मीडिया के फैन तो बन ही गए हैं. पहले नीतीश कुमार ट्वीट को चिपियाना कहते थे चिड़ियों का चहचहाना कहते थे, लेकिन अब खुद सोशल मीडिया पर इतने एक्टिव हैं कि बहुत सारे काम डिजिटल माध्यम में हो जा रहे हैं.
बीजेपी ही अपने मार्ग से भटक गई
समाज के नेतृत्व का स्वरूप भी यही है कि अगर मुखिया किसी चीज को लेकर चलता है, लोग उसे इसलिए भी फॉलो करते हैं कि शायद वह हमारी और देश की जरूरत हो. जिस तरीके से सोशल मीडिया से हटने की बात पीएम मोदी ने कही है. सवाल इसलिए उठ गए. अब डिजिटल मीडिया की बात करने वाली बीजेपी जो पूरे विश्व की सबसे बड़ी पार्टी होने का दावा भी करती है. डिजिटल मीडिया के माध्यम से ही बनी है, हालांकि बिहार झारखंड में इस बात का विशेष लगातार खड़ा रहा कि पार्टी का जो स्वरूप है और जिस तरीके से पार्टी चल रही है. वह हकीकत से काफी दूर है.
सरयू राय ने किया था तंज
कभी झारखंड में पार्टी के लिए चाणक्य की भूमिका में जाने जाने वाले सरयू राय ने जब पार्टी का विरोध किया तो साफ कह दिया कि बीजेपी ऐसी पार्टी बन गई है. जिसमें मिस कॉल मारने से लोग उसके सदस्य बन जाते हैं. 7 राज्यों में डिजिटल प्लेटफॉर्म और सोशल मीडिया का भरपूर उपयोग करने के बाद भी बीजेपी सत्ता गवां बैठे लोगों के बीच पहुंचे और पकड़ नरेंद्र मोदी का बड़ा नाम होने के बाद भी पार्टी को बहुत फायदा नहीं हुआ.
विपक्ष के पास अब मुद्दे ही मुद्दे
मामला साफ है कि बीजेपी के नेता बीजेपी पार्टी बीजेपी के पीएम बीजेपी के सीएम और बीजेपी की कार्यकारिणी जिस तरीके से डिजिटल हुई, शायद भारत के माटी से जुड़ने का जो मूल स्वरूप था. वह कहीं न कहीं हट गया अगर पीएम मोदी सोशल मीडिया और डिजिटल के सिस्टम से हटने की बात करते हैं और जिस तरीके से उन्होंने उसके लिए समय भी रख दिया है तो एक बात तो साफ है कि आने वाले समय में विपक्ष के पास मुद्दों की कोई कमी नहीं होगी.
जवाब मोदी को ही देना है
यह भी तय है कि जिस डिजिटल का स्वरूप इतने पढ़े फलक के साथ और टीवी और दूसरे माध्यमों से प्रचार के द्वारा कहा गया वह भटका नई भरपाई के लिए नई जमीन को तैयार करना भी बीजेपी के लिए आसान नहीं होगा. हालांकि राजनीतिक समीक्षकों का यह भी कहना है पीएम मोदी इतनी आसानी से इन चीजों से अलग होना नहीं चाहेंगे क्योंकि उन्हें पता है कि देश की जो आबादी उन्हें फॉलो कर रही है उसके मन में सवाल तो निश्चित तौर पर खड़ा होगा कि देश जो सवाल करता है उसका जवाब देने में अब चल रही मोदी की सरकार क्या फेल हो रही है या फिर डिजिटल भारत का सपना ही. जवाब तो मोदी को ही देना है.