पटना: बिहार में महागठबंधन की सरकार में कम से कम दो से तीन बार ऐसे मौके जरूर आ चुके हैं, जब किसी न किसी मुद्दे पर जेडीयू और आरजेडी आमने सामने आए हो. ताजा मामला शिक्षा विभाग के मंत्री प्रोफेसर चंद्रशेखर और उन्हीं के विभाग के अपर मुख्य सचिव (एससीएस) केके पाठक के बीच का है. विभाग के शीर्ष दो पदों के इन लोगों के बीच पत्राचार हुआ. अब यह पत्राचार चर्चा का विषय बन गया है. इसके साथ ही महागठबंधन के घटक में अंदरुनी तनातनी की स्थिति बनती नजर आ रही है.
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आरजेडी केके पाठक पर हमलावर : राष्ट्रीय जनता दल के मुख्य प्रवक्ता शक्ति सिंह यादव ने सीधे तौर पर तो नहीं लेकिन घुमावदार तरीके से कहा है कि मैं किसी के खिलाफ नहीं बोलता, लेकिन इस व्यक्ति की तीन उपलब्धियों को बता दीजिए. जिस विभाग में वह रहे हो. चर्चा काम की होनी चाहिए, विवाद की चर्चा नहीं होनी चाहिए. अगर शिक्षा विभाग में मंत्री के स्तर से पीत पत्र लिखा जाता है तो पीत पत्र सुझाव है. किसी भी नियम, नियम की अनदेखी पर सुझाव है. अगर सुझाव है तो अनुपालन करना चाहिए, सुझाव नहीं है तो मिल बैठकर बात करनी चाहिए.
"सबके अपने अपने अधिकार प्रदत्त हैं. विभाग कार्यपालक नियमावली से चलता है, जो संविधान के अनुच्छेद 66 के तहत गठित है. कार्यपालक नियमावली स्पष्ट करता है कि अराजपत्रित अधिकारियों का स्थानांतरण, प्रतिनियुक्ति बिना अनुमोदन के नहीं कर सकते हैं. अगर आपने किया है और सच में ऐसा है तो यह उल्लंघन है और अगर उल्लंघन है तो इसकी सजा न्यूनतम निलंबन और बर्खास्तगी तक है" - शक्ति सिंह यादव, प्रवक्ता, आरजेडी
केके पाठक के बचाव में आई जेडीयू : उधर इसी मसले पर जनता दल यूनाइटेड के वरिष्ठ प्रवक्ता डॉ सुनील सिंह कहते हैं कि गुणवत्तापूर्ण शिक्षा नीतीश सरकार की प्राथमिकता है. गुणवत्तापूर्ण शिक्षा में विभाग सामंजस्य से चले. केके पाठक अच्छा प्रदर्शन करने वाले अचीवर, अच्छे ईमानदार ऑफिसर हैं. उनकी मुहिम से हम आंकड़ों में देखें तो प्राथमिक शिक्षा से लेकर उच्च शिक्षा तक शिक्षकों की उपस्थिति बढ़ी है. छात्रों की उपस्थिति बढ़ी है और हम गुणवत्तापूर्ण शिक्षा प्रदान करने में कारगर हो रहे हैं.
ऐसे अधिकारियों के फुल पोटेंशियल से काम लेने का दायित्व कार्यपालिका के प्रमुख शिक्षा मंत्री पर है. वैसा करने के बजाय अगर दूर होकर तारतम्यता खत्म होकर मीडिया में बातें आती हैं तो यह दुर्भाग्यपूर्ण है.शिक्षा मंत्री शिक्षित होकर के बाद भी किसी न किसी मामले से सरकार को असहज कर देते हैं. " - सुनील सिंह, प्रवक्ता जेडीयू
केके पाठक और शिक्षा मंत्री के बीच झगड़े का कारण : शिक्षा विभाग के एसीएस केके पाठक ने दलित टोले में स्थित स्कूलों में बच्चों की पर्याप्त उपस्थिति नहीं होने पर शिक्षकों के वेतन काटने का फरमान दिया था. इसी को लेकर शिक्षा मंत्री चंद्रशेखर ने केके पाठक को पीत पत्र लिखा. इसके अलावा एसीएस ने बिना सूचना के अनुपस्थित रहने वाले शिक्षकों, कर्मियों का वेतन काटने का आदेश दिया है. ऐसे कई आदेश हैं जिसे एसओपी का उल्लंघन माना जा रहा है. वहीं मंत्री एसीएस के कार्यशैली को लेकर सवाल उठाया था.
केके पाठक के फैसले से नाराजगी : चंद्रशेखर और केके पाठक के बीच का मामले ने तब और तूल पकड़ लिया, जब शिक्षा मंत्री प्रोफेसर चंद्रशेखर ने केके पाठक को लेकर एक पत्र जारी की. इसमें उन्होंने केके पाठक की कार्यशैली का जिक्र किया. पीत पत्र जारी होने के बाद राजद ने केके पाठक पर सीधा हमला बोला. पार्टी के वरिष्ठ नेता और विधायक भाई बिरेंद्र ने यहां तक कहा कि केके पाठक को क्या चाहिए मुझे पता है? मेरी सीएम नीतीश कुमार से मांग है कि ऐसे अधिकारियों को कान पकड़कर बाहर कर देना चाहिए. यह लोग सरकार को बदनाम कर रहे हैं.
आप्त सचिव के विभाग में प्रवेश पर रोक : पीत पत्र के जवाब में केके पाठक ने मंत्री के आप्त सचिव के विभाग में प्रवेश पर रोक लगा दी. साथ ही किसी भी प्रकार के पत्राचार का जवाब देते रहने से मना कर दिया. साथ ही कृष्ण नंद की सेवा लौटाने की बात भी लिखी.
जेडीयू का केके पाठक को समर्थन : राजद के विरोध के बाद जदयू ने केके पाठक का खुलकर समर्थन किया. बिहार सरकार के मंत्री और नीतीश कुमार के नजदीकी माने जाने वाले श्रवण कुमार ने कहा कि "बिहार का हर बंदा जानता है कि केके पाठक कितने कड़क अधिकारी हैं. वह हर कार्रवाई अपने अनुभव के आधार पर निष्पक्ष होकर और नियमों के अनुरूप करते हैं. हालांकि उन्होंने यह भी कहा कि शिक्षा मंत्री और उनके बीच का क्या मामला है? इसके बारे में मैं नहीं जानता हूं".
महगठबंधन में सबकुछ ठीक नहीं: महागठबंधन के घटक दल में टकराहट की स्थिति तब और चरम पर आ गई, जब शिक्षा विभाग में एसीएस के पद पर कड़क आईएएस ऑफिसर केके पाठक की तैनाती की गई. केके पाठक की काम करने की अपनी अलग शैली है. वह नियम के अनुरूप चलते हैं. केके पाठक ने विभागीय जिम्मेदारी संभालने के बाद अपने स्तर से विभाग की कार्यशैली में बदलाव लाने की कोशिश भी की. विभाग में जिम्मेदारी संभालने के बाद केके पाठक ने एक के बाद एक कई ताबड़तोड़ फैसले लिए और उन्हें लागू कराने के निर्देश भी जारी कर दिए.
चर्चा में रहते हैं केके पाठक:अपनी कड़क और सख्त अंदाज के लिए केके पाठक पहले भी चर्चा में रह चुके हैं. मद्य निषेध विभाग में सचिव के पद पर रहने के दौरान में केके पाठक का एक वीडियो भी वायरल हुआ था. इसमें वह कड़े शब्दों में अपने अधिकारियों की क्लास लगा रहे थे. इस वीडियो के जारी होने के बाद भी केके पाठक की चर्चा हर तरफ होने लगी थी. शिक्षा विभाग में एसीएस के पद पर तैनाती के दौरान केके पाठक ने जब बिहार राज्य शैक्षणिक आधारभूत संरचना विकास निगम लिमिटेड के कार्यों की समीक्षा की. इसमें भी उनका रौद्र रूप देखने को मिला.
जहां गए वहीं दिखाई सख्ती: केके पाठक ने समीक्षा के बाद जारी आधिकारिक पत्र में कहा कि बीएसईआईडीसी का काम बिल्कुल नगण्य है. इसके बाद उन्होंने संस्थान के सभी कर्मचारियों को जून से केवल 90% ही वेतन दिए जाने का आदेश जारी कर दिया. यानी उनके वेतन से 10% की कटौती कर दी गई. करीब 4 साल पहले केके पाठक तब भी चर्चा में आए थे, जब लघु सिंचाई विभाग के प्रधान सचिव रहने के दौरान उनके ऊपर विभाग के ठेकेदार कुमुद राज ने उनसे मारपीट करने और जान मारने की धमकी देने की प्राथमिकी दर्ज कराई थी.
लालू यादव ने चंद्रशेखर को बुलाया : आरजेडी सुप्रीमो लालू प्रसाद यादव ने चंद्रशेखर को मिलने बुलाया और उनसे बात की. बताया जा रहा है कि लालू यादव ने पूरे मामले की मंत्री से जानकारी ली. वैसे दोनों के बीच क्या बात हुई इस बारे में पूरी जानकारी नहीं मिल पाई है. हां, इस मुलाकात के बाद शिक्षा मंत्री ने बताया कि कहीं कोई विवाद नहीं है. वह सबकुछ देख रहे हैं. सब देखने के बाद ही कुछ बता पाएंगे.
सुधाकर मामले में भी आमने सामने हुए थे दोनों दल : ऐसा नहीं है कि शिक्षा मंत्री और एसीएस केके पाठक के मसले पर ही आरजेडी और जदयू आमने-सामने है. इसके पहले भी सुधाकर सिंह के मामले पर दोनों दलों में तल्खी हो चुकी है. दरअसल जब कृषि मंत्री रहने के दौरान सुधाकर सिंह ने सीएम नीतीश कुमार की कृषि नीतियों की आलोचना की थी, तो वह भी जदयू नेता नेताओं के निशाने पर आ गए थे. तब भी यह सवाल उठा था कि क्या बिहार में महागठबंधन की राजनीति में सब ठीक है ?
सुधाकर सिंह को देना पड़ा था इस्तीफा : सुधाकर सिंह ने जब सीएम नीतीश कुमार की कृषि नीतियों की आलोचना की थी तब जदयू में संसदीय दल के अध्यक्ष रहे और वर्तमान में राष्ट्रीय लोक जनता दल के सुप्रीमो उपेंद्र कुशवाहा ने काफी तल्खी में जवाब दिया था. हालांकि सुधाकर सिंह को इस प्रकरण के बाद अपने पद से इस्तीफा भी देना पड़ा था, लेकिन उनके कड़े बयानों ने राज्य में महागठबंधन की राजनीति में कड़वाहट को सामने ला दी थी.