पटना: बिहार की राजनीति में इन दिनों जबरदस्त हलचल है. कहीं शोर है तो कहीं खामोशी. सत्ताधारी जेडीयू (JDU) में वैसे तो सब ठीक है, लेकिन पिछले कुछ दिनों से अध्यक्ष आरसीपी सिंह (RCP Singh) से कहीं अधिक संसदीय बोर्ड के अध्यक्ष उपेंद्र कुशवाहा (Upendra Kushwaha) चर्चा में हैं. ऐसे में तरह-तरह के कयास लगने शुरू हो गए हैं, वहीं विपक्ष का दावा है कि जल्द ही पार्टी दो गुट में बंट जाएगी.
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लव-कुश समीकरण पर जोर
2020 के बिहार विधानसभा चुनाव में जेडीयू के खराब प्रदर्शन के बाद नीतीश कुमार (Nitish Kumar) लव-कुश समीकरण को साधने में लगे हुए हैं. इसी कोशिश में उपेंद्र कुशवाहा को पार्टी में शामिल कराया गया और आरएलएसपी का भी विलय करा लिया. उन्हें विधान परिषद में भेजकर पार्टी में संसदीय बोर्ड का अध्यक्ष भी बना दिया है.
जेडीयू को महज 43 सीटें मिलीं
हालिया विधानसभा चुनाव में जेडीयू का प्रदर्शन उम्मीद के मुताबिक नहीं रहा. 115 सीटों पर चुनाव लड़ने वाली पार्टी के हिस्से केवल 43 सीटें आईं. खराब प्रदर्शन के तो कई कारण रहे, लेकिन जो दो प्रमुख कारण बताए गए, उनमें-
- चिराग पासवान की पार्टी एलजेपी की मुहिम ने जेडीयू को बड़ा नुकसान पहुंचाया.
- आधार वोट बैंक 'लव-कुश' में बिखराव के कारण कई सीटों पर हार मिली.
विधानसभा चुनाव के नतीजे के बाद जेडीयू के तीसरे नंबर की पार्टी होने के बावजूद भी नीतीश कुमार एक बार फिर से मुख्यमंत्री तो बन गए, लेकिन पार्टी ने समीक्षा के बाद पाया कि चिराग पासवान की मुहिम के कारण तो नुकसान पहुंचा ही. इसके साथ-साथ उसके सबसे बड़े आधार वोट बैंक 'लव-कुश' में बिखराव की वजह से भी कई सीटों पर हार मिली. लिहाजा नीतीश कुमार ने एक के बाद एक 'लव-कुश' समीकरण के तहत नेताओं को पार्टी से जोड़ने की कवायद तेज कर दी. इसी कड़ी में सबसे बड़ा चेहरा उपेंद्र कुशवाहा थे, जिन्हें जेडीयू में शामिल कराने में नीतीश कामयाब रहे.
कुशवाहा को बड़ी जिम्मेदारी
संसदीय बोर्ड के अध्यक्ष की बड़ी जिम्मेदारी और एमएलसी बनाने के साथ ही नीतीश ने कुशवाहा को मंत्री वाला बंगला भी मुहैया करा दिया. खास बात ये कि ये बंगला राष्ट्रीय अध्यक्ष आरसीपी सिंह के आवास के ठीक सामने में है. जानकार कहते हैं कि इसमें भी बड़ा संदेश छुपा था.बहरहाल नए आवास में उपेंद्र कुशवाहा से मिलने वालों का तांता लगा रहता है. मंत्री, सांसद, विधायक और नेता-कार्यकर्ता लगातार उनसे मिलने पहुंच रहे हैं. कहा जाता है कि आरसीपी सिंह के बरक्स उपेंद्र कुशवाहा पार्टी में दूसरे केंद्र बनने लगे हैं.
आरसीपी बहुत खुश नहीं!
कुशवाहा को मिले पद और बढ़ रहे कद से आरसीपी बिल्कुल भी अंजान नहीं हैं. उन्हें भी एहसास है कि कुशवाहा जितना मजबूत होंगे, उनके लिए भविष्य में मुश्किलें खड़ी हो सकती हैं. हालांकि दोनों कभी खुलकर एक-दूसरे के बारे में कुछ भी कहते नहीं हैं, लेकिन कहा जाता है कि कुशवाहा की एंट्री से आरसीपी खुश नहीं थे, जिसकी बानगी उनके ज्वॉइनिंग के वक्त ही दिख गई थी.
कुशवाहा की एंट्री, आरसीपी की गैर मौजूदगी
याद करिए 14 मार्च 2021 को, जब उपेंद्र कुशवाहा की पार्टी राष्ट्रीय लोक समता पार्टी का जेडीयू में विलय हो रहा था. मुख्यमंत्री नीतीश कुमार की मौजूदगी में कुशवाहा का जोरदार स्वागत किया गया, लेकिन राष्ट्रीय अध्यक्ष आरसीपी सिंह वहां मौजूद नहीं थे. उनकी गैर मौजूदगी तब काफी चर्चा में रही थी. उसके बाद भी दोनों में कभी बहुत नजदीकी दिखी नहीं.
सुर्खियों में कुशवाहा
आरसीपी सिंह के मुकाबले उपेंद्र कुशवाहा सोशल मीडिया में हमेशा सुर्खियों में रहते हैं. चाहे लालू प्रसाद यादव को जन्मदिन पर बधाई देने की बात हो या फिर बीजेपी के प्रदेश अध्यक्ष और अन्य नेताओं को जवाब देने की बात. यहां तक कि मुख्यमंत्री नीतीश कुमार के ट्वीट को रिट्वीट करने में भी कुशवाहा आरसीपी सिंह के मुकाबले आगे हैं.
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सोशल मीडिया पर कम एक्टिव
हालंकि आरसीपी सिंह पार्टी की बैठकों में सक्रिय रहते हैं, लेकिन सोशल मीडिया पर केवल उन बैठकों की खबरें ही ट्वीट करते हैं, जोकि समाचार पत्रों में प्रकाशित हो गई हैं. हाल के दिनों में केंद्रीय मंत्रिमंडल में जेडीयू की दावेदारी को लेकर जो उनका बयान था, वही एक काफी चर्चा में रहा.
- उपेंद्र कुशवाहा लगातार सोशल मीडिया पर सक्रिय रहते हैं. उनके कई ट्वीट काफी चर्चा में भी रहे हैं. कुशवाहा ने अप्रैल में 43 ट्वीट और रिट्वीट किया, मई में 35 ट्वीट और रिट्वीट किया. जबकि जून में 34 ट्वीट और रिट्वीट किया है.
- वहीं, आरसीपी सिंह की बात करें तो अप्रैल में उन्होंने ज्यादा ट्वीट किया था, लेकिन उसके बाद लगातार सोशल मीडिया पर संख्या घटी है. आरसीपी सिंह ने अप्रैल में 98 ट्वीट किया. मई में 33 ट्वीट किया, जून में आरसीपी ने 39 ट्वीट किया. हालांकि ज्यादार पार्टी की बैठक और बैठक से संबंधित खबरें, जो अखबारों में छपीं, उन्हें ही ट्विटर पर डाला गया.
- अगर सोशल मीडिया पर फालोअर्स की बात करें तो उपेंद्र कुशवाहा आरसीपी सिंह से काफी आगे हैं. टि्वटर पर उपेंद्र कुशवाहा के 130k फॉलोअर्स हैं, जबकि आरसीपी सिंह के 25.3k फॉलोअर्स हैं. अगर बात फेसबुक पर लाइक करने वालों की संख्या की करें तो उपेंद्र कुशवाहा के हिस्से 125k और आरसीपी सिंह के हिस्से 21k हैं.
'खेमेबाजी की बात गलत'
कुशवाहा की सक्रियता और अलग-अलग मामलों पर विपक्ष से लेकर बीजेपी को ट्वीट कर साधने का उनका अंदाज काफी चर्चा में है. जानकार कहते हैं कि उनकी सक्रियता और नीतीश कुमार से नजदीकी से आरसीपी बहुत सहज नहीं हैं. हालांकि पार्टी नेता ऐसी खेमेबाजी की संभावना से इंकार करते हैं. कुशवाहा से मिलने उनके आवास पर पहुंचे कटिहार से सांसद दुलाल चंद्र गोस्वामी ने उनकी जमकर तारीफ की.
उपेंद्र कुशवाहा के साथ आने से पार्टी को काफी मजबूती मिली है. अब आने वाले लोकसभा और विधानसभा चुनाओं में जेडीयू का बेहतर प्रदर्शन होगा. दो खेमों की बात बिल्कुल गलत है- दुलाल चंद्र गोस्वामी, सांसद, जेडीयू
'हमारे नेता एक हैं'
प्रदेश अध्यक्ष उमेश कुशवाहा भी कहते हैं कि राष्ट्रीय अध्यक्ष आरसीपी सिंह के नेतृत्व में संगठन का काम मजबूती से हो रहा है. उनके मुताबिक हमारे नेता एक हैं. मुख्यमंत्री नीतीश कुमार के नेतृत्व में पार्टी लगातार आगे बढ़ रही है.
बिखर जाएगा जेडीयू- आरजेडी
वहीं, विपक्ष का दावा है कि जेडीयू में गुटबाजी तेजी से बढ़ रही है. आरजेडी प्रवक्ता मृत्युंजय तिवारी की मानें तो पार्टी के अंदर अतर्कलह है. कुशवाहा और आरसीपी सिंह के बीच पार्टी दो धड़ों में बंट गई है. आने वाले दिनों में पार्टी दो खंड में बंट जाएगी.
दिसंबर में आरसीपी को कमान
आपको बताएं कि दिसंबर के अंत में जब पटना में जेडीयू की राष्ट्रीय कार्यकारिणी की दो दिवसीय बैठक हुई थी. तब अंतिम दिन राष्ट्रीय अध्यक्ष के तौर पर आरसीपी सिंह के नाम का ऐलान किया गया. तत्कालीन अध्यक्ष और सीएम नीतीश कुमार ने अपने सहयोगी और राज्यसभा सांसद आरसीपी सिंह को राष्ट्रीय अध्यक्ष बनाने का प्रस्ताव दिया था, जिसे सर्वसम्मति से तमाम सदस्यों ने समर्थन दिया था.