पटना: बिहार विधानसभा के 2020 के चुनाव में ऑल इंडिया मजलिस ए इत्तेहादुल मुस्लिमीन (AIMIM) ने 5 सीटें जीतकर बिहार की राजनीति में एक मजबूत दखल दिया है. 2020 के लिए जब बिहार में चुनाव की बात चल रही थी तो एआईएमआईएम के अध्यक्ष असदुद्दीन ओवैसी सभी राजनीतिक दलों के साथ गठबंधन को लेकर सारे पत्ते खोल रखे थे, बीजेपी को रोकने के लिए ओवैसी ने बिहार की सभी विपक्षी दलों के साथ मिलकर चुनाव लड़ने का ऐलान भी किया, लेकिन बिहार के किसी भी सियासी दल ने उनके साथ उस समय जाने के लिए अपनी रजामंदी नहीं दिखाई. बिहार के राजनीतिक दलों को यह लगा था कि इस पार्टी को कोई जनाधार नहीं है लेकिन जिस तरह से ओवैसी ने पांच सीटें जीत कर अपनी धमक का एहसास करवाया है उससे भाजपा कम लेकिन विपक्ष की सांसें अटक गयी हैं. राजद ने आवैसी को पूर्ण बहुमत की सरकार नहीं बना पाने के लिए जिम्मदार तक कह दिया है.
बिहार चुनाव को लेकर असदुद्दीन ओवैसी ने अकेले अपने पार्टी को चुनाव मैदान में उतार दिया. 20 लोगों की पहली लिस्ट जारी कर दी, हालांकि बिहार में बदले राजनीतिक हालात के बाद जिस तरीके से स्थितियां बनी ओवैसी की पार्टी ने 9 अक्टूबर 2020 को छह अन्य राजनीतिक दलों के साथ मिलकर गठबंधन बना लिया. बिहार में 6 दलों ने मिलकर ग्रैंड डेमोक्रेटिक सेक्यूलर फ्रंट बना लिया, इसमें ओवैसी के साथ समाजवादी जनता दल डेमोक्रेटिक, उपेंद्र कुशवाहा की रालोसपा, बहुजन समाज पार्टी, सुहेलदेव भारतीय समाजवादी पार्टी, जनतांत्रिक सोशलिस्ट पार्टी को शामिल किया गया. ग्रैंड डेमोक्रेटिक सेक्यूलर फ्रंट बनने के बाद ओवैसी के हिस्से कुल 22 सीटें आई थी, जिनमें से ओवैसी के पार्टी के युवा अध्यक्ष को छोड़ दिया जाए तो कुल 21 सीटों पर ओवैसी चुनाव लड़े थे और 5 सीटों पर जीत दर्ज की है.
जिन सीटों पर ओवैसी की पार्टी जीती है उसमें कोचाधामन, जोकीहाट, बायसी, बहादुरगंज और अमौर सीट है. 2020 के चुनाव परिणाम आने के बाद ओवैसी की पार्टी सबसे ज्यादा चर्चा में है क्योंकि राजद ने ओवैसी पर सीधा आरोप लगा दिया कि बिहार में बीजेपी और एनडीए की सरकार बन रही है तो उसके लिए ओवैसी की पार्टी एआईएमआईएम ही जिम्मेदार है. दरअसल इसके पीछे का तर्क भी इन सीटों पर कब्जे के आधार पर ही रहा है, जिसे राष्ट्रीय जनता दल के प्रदेश अध्यक्ष जगदानंद सिंह ने ईटीवी भारत से खास बातचीत में कहा था.
2000 और 2005 तक कांग्रेस राजद का दबदबा
अगर वर्ष 2000 के चुनाव से इन सीटों की गणना करें तो जोकीहाट और बायसी, सीट पर राजद का कब्जा था, जबकि बहादुरगंज और अमौर सीट पर कांग्रेस का कब्जा था. कोचाधामन सीट 2005 में अस्तित्व में नहीं बनी थी. बात 2005 के फरवरी चुनाव की करें तो कोचाधामन सीट पर जदयू का कब्जा था, जबकि बायसी पर आरजेडी का बहादुरगंज पर निर्दलीय और अमौर सीट पर कांग्रेस का कब्जा था.
2005 अक्टूबर के चुनाव में भी राजद-कांग्रेस का रहा दबदबा
2005 के अक्टूबर के चुनाव में नीतीश कुमार की लहर थी और बिहार बदलाव देख रहा था. जिसमें जोकीहाट सीट पर जदयू ने फिर से कब्जा जमाया जबकि बायसी सीट पर निर्दलीय जीते बहादुरगंज सीट पर कांग्रेस का कब्जा था और अमौर और सीट भी कांग्रेस के खाते में ही गई थी.
2010 और 2015 में इन सीटों पर राजद-कांग्रेस रही मजबूत
2010 में जब नीतीश के विकास की लहर चल रही थी, उस समय भी कोचाधामन सीट राजद के खाते में गई थी. जोकीहाट जदयू के बायसी सीट बीजेपी के जबकि बहादुरगंज कांग्रेस के खाते में रही. 2015 के चुनाव में कोचाधामन सीट पर जदयू, जोकीहाट पर जदयू, जबकि बायसी पर राष्ट्रीय जनता दल, बहादुरगंज और अमौर सीट पर कांग्रेस का कब्जा रहा.
ओवैसी ने राजद-कांग्रेस को दिया ज्यादा घाटा
2020 के चुनाव की बात करें तो कोचाधामन, जोकीहाट, बायसी, बहादुरगंज और अमौर सीटों पर एआईएमआईएम ने कब्जा किया है. जिसमें से 3 सीटें सीधे तौर पर उसने महागठबंधन से छीनी है और 2 सीटें जदयू के खाते से हैं. महागठबंधन के खाते की 3 जीती हुई सीटों को ओवैसी ने अपने कब्जे में कर लिया है. दरअसल एआईएमआईएम ने जिन 5 सीटों पर जीत दर्ज की, सिर्फ वही राजद की टीस नहीं है. बाकी जिन 16 सीटों पर इनके उम्मीदवार लड़े हैं उन्होंने दलित पिछड़े और मुस्लिमों के वोट काटे हैं जो राजद कोटे का वोट माना जाता है. आवैसी जिन सीटों पर जीत दर्ज किए हैं कभी वह राजद के वोट बैंक का गढ़ माना जाता है और तस्लीमुद्दीन जैसे नेता इस क्षेत्र से राजद को मजबूती देते थे. बदले राजनीतिक हालात में अब तस्लीमुद्दीन जैसे नेताओं को दूसरी पीढ़ी भी राजद के साथ नहीं खड़ी है.
राजद के आरोप पर ओवैसी का जवाब
राजद के बिहार प्रदेश अध्यक्ष जगदानंद सिंह ने ओवैसी पर आरोप लगाया तो ओवैसी ने भी बिहार के विपक्षी राजनीतिक दलों को यह उत्तर दे दिया कि जब बिहार चुनाव के लिए तैयार हो रहा था तो हम सब के दरवाजे पर गए थे. ओवैसी ने कहा कि सबसे अनुरोध भी किए थे कि नरेंद्र मोदी को रोकने के लिए सब का एकजुट होना जरूरी है, लेकिन किसी भी राजनीतिक दल ने उनकी बात को तवज्जो ही नहीं दिया. आज इस तरह का आरोप लगाना गलत है. राजद अगर सरकार बनाने से चुकी है तो उसके लिए उसकी नीतियां ही जिम्मेदार हैं.
ओवैसी के पार्टी की राजनीतिक दखल
बिहार विधानसभा के चुनाव में ऑल इंडिया मजलिस ए इत्तेहादुल मुस्लिमीन (एआईएमआईएम) ने सभी वैसे विरोधी दलों से एकजुट होने की बात कही थी जो लोग नरेंद्र मोदी को रोकना चाहते हैं लेकिन लोगों ने इस पार्टी को तरजीह नहीं दी. ऐसा नहीं है कि यह पार्टी बहुत नई है. पार्टी और इसका संगठन 80 सालों से हैदराबाद की राजनीति में खुद को मजबूत कर रहा है. हैदराबाद की लोकसभा सीट पर 1984 से ही इस पार्टी का कब्जा है और हैदराबाद में वर्तमान मेयर भी इसी पार्टी से हैं.
एआईएमआईएम का हो रहा विस्तार
दरअसल 1928 में नवाब महमूद नवाज खान ने इसकी स्थापना की और हैदराबाद को एक अलग मुस्लिम राज्य बनाने की वकालत भी की थी. हालांकि 1948 में हैदराबाद में भारत शामिल हो गयाा. 1957 के बाद इस संगठन के नाम में ऑल इंडिया जोड़ दिया गया और उसके बाद से हैदराबाद के मशहूर वकील अब्दुल वाहिद ओवैसी जो संगठन के नेता कासिम रिजवी के पाकिस्तान चले जाने के बाद इस पार्टी की कमान को देख रहे हैं. अब्दुल वाहिद के बाद सलाहुद्दीन ओवैसी उसके अध्यक्ष बने और अब उनके पुत्र असुद्दीन ओवेसी संगठन के अध्यक्ष हैं और सांसद भी हैं. पार्टी संगठन को मजबूत करने के लिए लगातार काम कर रही है और सभी राजनीतिक दलों के लिए चुनौती भी बन रही है. यह पार्टी भारत के सभी राज्यों में धीरे-धीरे बढ़ रही है. महाराष्ट्र नगरपालिका के नांदेड़ में जीत की बात हो या फिर बिहार विधानसभा चुनाव में अपनी मजबूत उपस्थिति दर्ज कराने का ओवैसी की पार्टी अब गठबंधन में चल रही सरकारों के लिए एक नया समीकरण लेकर खड़ी हो गई है. राजद अगर ओवैसी की मजबूती से होने के हवा के रूख को समझ गए होते तो बिहार आज बदलाव की नई डगर पर होता.