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विधानसभा अध्यक्ष विजय सिन्हा पर लटकी तलवार तो हरिवंश सिंह और अवधेश नारायण सिंह पर संशय

पिछले कुछ दिनों से बिहार की राजनीति (Politics Of Bihar) काफी दिलचस्प हो गई है. नीतीश कुमार दूसरी बार भाजपा को चकमा देकर महागठबंधन सरकार का हिस्सा बन गए हैं. अब बात बिहार के उन नेताओं की हो रही है, जो एनडीए सरकार में संवैधानिक पदों पर बैठे थे. विधानसभा के अध्यक्ष विजय सिन्हा पर तलवार लटक गई है, तो वहीं विधान परिषद के सभापति अवधेश नारायण सिंह और राज्यसभा के उपसभापति हरिवंश सिंह कुर्सी बचाने में लगे हैं.

हरिवंश सिंह और विजय सिन्हा
हरिवंश सिंह और विजय सिन्हा
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Published : Aug 12, 2022, 10:03 AM IST

पटनाः नीतीश कुमार ने भाजपा के साथ गठबंधन तोड़ दिया है और अब वह महागठबंधन सरकार का हिस्सा हैं. गठबंधन टूटने का साइड इफेक्ट बिहार के कई नेताओं पर पड़ना तय है. एनडीए की सरकार जाने (after NDA government in bihar) से संवैधानिक पदों पर बैठे व्यक्तियों (many leader may loss his post) के लिए द्वंद की स्थिति है. बिहार विधानसभा के अध्यक्ष विजय सिन्हा पर तलवार लटक गई है. विपक्ष की ओर से विजय सिन्हा के खिलाफ अविश्वास प्रस्ताव का नोटिस दिया गया है. बिहार विधान परिषद के सभापति अवधेश नारायण सिंह भी डेंजर जोन में हैं, वो भाजपा कोटे से सभापति हैं. उधर राज्यसभा के उपसभापति हरिवंश सिंह ने अभी तक अपने पत्ते नहीं खोले हैं. हालांकि उन्होंने बैठक में नीतीश कुमार के साथ रहने का भरोसा दिलाया है.

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नीतीश ने दूसरी बार दिया बीजेपी को चकमाः दरअसल नीतीश कुमार ने दूसरी बार भाजपा को चकमा दिया है, नीतीश कुमार ने इस बार भाजपा का साथ अलग अंदाज में छोड़ा है. पिछली बार 2013 में नीतीश कुमार ने भाजपा कोटे के मंत्रियों को बर्खास्त कर दिया था, लेकिन इस बार नीतीश कुमार ने खुद ही इस्तीफा दे दिया और महागठबंधन के साथ मिलकर नई सरकार बना ली. नीतीश कुमार के इस्तीफे के बाद कई नेताओं के राजनीतिक भविष्य अधर में है. बिहार विधानसभा के अध्यक्ष विजय सिन्हा के खिलाफ विपक्ष ने अविश्वास प्रस्ताव का नोटिस दिया है और बिहार विधान परिषद के सभापति अवधेश नारायण सिंह डेंजर जोन में हैं. अवधेश नारायण सिंह भाजपा कोटे से सभापति हैं. गठबंधन टूट का असर उनके राजनीतिक भविष्य पर भी पड़ सकता है.

ये भी पढ़ें-24 अगस्त से बिहार विधानसभा का 2 दिवसीय विशेष सत्र, कैबिनेट की पहली बैठक में हुआ फैसला

कुर्सी बचाने में लगे अवधेश नारायण सिंहः पिछली बार जब भाजपा और जदयू की राहें अलग अलग हुई थी तब अवधेश नारायण सिंह ने नीतीश कुमार से नज़दीकियां बना कर अपनी कुर्सी बचा ली थी. इस बार भी शपथ ग्रहण समारोह और तेजस्वी यादव के आवास पर जाकर बधाई देकर अपनी स्थिति मजबूत करने की कोशिश की है. राज्यसभा के उपसभापति हरिवंश सिंह ने अभी तक अपने पत्ते नहीं खोले हैं, हालांकि बैठक में नीतीश कुमार के साथ रहने का उन्होंने भरोसा दिलाया है. आपको बता दें कि हरिवंश सिंह की नजदीकियां भी भाजपा के शीर्ष नेताओं से है.


हरिवंश सिंह और अवधेश नारायण ने नहीं खोले पत्तेः वहीं, जदयू के राष्ट्रीय अध्यक्ष ललन सिंह ने कहा है कि नीतीश कुमार को एनडीए में ले जाने वालों में एक नाम राजसभा के उपसभापति हरिवंश सिंह का भी है. हरिवंश सिंह ने कहा है कि मैं नीतीश कुमार के साथ रहूंगा, वही मुझे सार्वजनिक जीवन में लाए हैं. भाजपा प्रवक्ता प्रेम रंजन पटेल ने कहा है कि विधान परिषद और राज्यसभा का फैसला सदन में होता है पार्टी के स्तर पर इस बारे में कोई फैसला नहीं लिया गया है. अवधेश नारायण सिंह की भूमिका विधान परिषद में तय होगी तो हरिवंश सिंह की भूमिका राज्यसभा तय करेगा.

विजय सिन्हा का जाना तयः वहीं, राजनीतिक विश्लेषक डॉ संजय कुमार का मानना है कि विजय सिन्हा का जाना तो तय है, लेकिन हरिवंश सिंह और अवधेश नारायण सिंह को लेकर संशय की स्थिति है. हरिवंश सिंह पर फैसला जहां पीएम मोदी को लेना है वहीं अवधेश नारायण सिंह पर फैसला नीतीश कुमार को लेना है. दोनों नेता फिलहाल अपनी कुर्सी बचाने की जुगत में हैं.

पटनाः नीतीश कुमार ने भाजपा के साथ गठबंधन तोड़ दिया है और अब वह महागठबंधन सरकार का हिस्सा हैं. गठबंधन टूटने का साइड इफेक्ट बिहार के कई नेताओं पर पड़ना तय है. एनडीए की सरकार जाने (after NDA government in bihar) से संवैधानिक पदों पर बैठे व्यक्तियों (many leader may loss his post) के लिए द्वंद की स्थिति है. बिहार विधानसभा के अध्यक्ष विजय सिन्हा पर तलवार लटक गई है. विपक्ष की ओर से विजय सिन्हा के खिलाफ अविश्वास प्रस्ताव का नोटिस दिया गया है. बिहार विधान परिषद के सभापति अवधेश नारायण सिंह भी डेंजर जोन में हैं, वो भाजपा कोटे से सभापति हैं. उधर राज्यसभा के उपसभापति हरिवंश सिंह ने अभी तक अपने पत्ते नहीं खोले हैं. हालांकि उन्होंने बैठक में नीतीश कुमार के साथ रहने का भरोसा दिलाया है.

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नीतीश ने दूसरी बार दिया बीजेपी को चकमाः दरअसल नीतीश कुमार ने दूसरी बार भाजपा को चकमा दिया है, नीतीश कुमार ने इस बार भाजपा का साथ अलग अंदाज में छोड़ा है. पिछली बार 2013 में नीतीश कुमार ने भाजपा कोटे के मंत्रियों को बर्खास्त कर दिया था, लेकिन इस बार नीतीश कुमार ने खुद ही इस्तीफा दे दिया और महागठबंधन के साथ मिलकर नई सरकार बना ली. नीतीश कुमार के इस्तीफे के बाद कई नेताओं के राजनीतिक भविष्य अधर में है. बिहार विधानसभा के अध्यक्ष विजय सिन्हा के खिलाफ विपक्ष ने अविश्वास प्रस्ताव का नोटिस दिया है और बिहार विधान परिषद के सभापति अवधेश नारायण सिंह डेंजर जोन में हैं. अवधेश नारायण सिंह भाजपा कोटे से सभापति हैं. गठबंधन टूट का असर उनके राजनीतिक भविष्य पर भी पड़ सकता है.

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कुर्सी बचाने में लगे अवधेश नारायण सिंहः पिछली बार जब भाजपा और जदयू की राहें अलग अलग हुई थी तब अवधेश नारायण सिंह ने नीतीश कुमार से नज़दीकियां बना कर अपनी कुर्सी बचा ली थी. इस बार भी शपथ ग्रहण समारोह और तेजस्वी यादव के आवास पर जाकर बधाई देकर अपनी स्थिति मजबूत करने की कोशिश की है. राज्यसभा के उपसभापति हरिवंश सिंह ने अभी तक अपने पत्ते नहीं खोले हैं, हालांकि बैठक में नीतीश कुमार के साथ रहने का उन्होंने भरोसा दिलाया है. आपको बता दें कि हरिवंश सिंह की नजदीकियां भी भाजपा के शीर्ष नेताओं से है.


हरिवंश सिंह और अवधेश नारायण ने नहीं खोले पत्तेः वहीं, जदयू के राष्ट्रीय अध्यक्ष ललन सिंह ने कहा है कि नीतीश कुमार को एनडीए में ले जाने वालों में एक नाम राजसभा के उपसभापति हरिवंश सिंह का भी है. हरिवंश सिंह ने कहा है कि मैं नीतीश कुमार के साथ रहूंगा, वही मुझे सार्वजनिक जीवन में लाए हैं. भाजपा प्रवक्ता प्रेम रंजन पटेल ने कहा है कि विधान परिषद और राज्यसभा का फैसला सदन में होता है पार्टी के स्तर पर इस बारे में कोई फैसला नहीं लिया गया है. अवधेश नारायण सिंह की भूमिका विधान परिषद में तय होगी तो हरिवंश सिंह की भूमिका राज्यसभा तय करेगा.

विजय सिन्हा का जाना तयः वहीं, राजनीतिक विश्लेषक डॉ संजय कुमार का मानना है कि विजय सिन्हा का जाना तो तय है, लेकिन हरिवंश सिंह और अवधेश नारायण सिंह को लेकर संशय की स्थिति है. हरिवंश सिंह पर फैसला जहां पीएम मोदी को लेना है वहीं अवधेश नारायण सिंह पर फैसला नीतीश कुमार को लेना है. दोनों नेता फिलहाल अपनी कुर्सी बचाने की जुगत में हैं.

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