पटना: 47 साल पहले इंदिरा गांधी ने आज ही के दिन देश में आपातकाल लगाया (47 years of Emergency) था. 25 जून 1975 को आपातकाल की घोषणा (Emergency in India 1975) के साथ ही सभी नागरिकों के मौलिक अधिकार खत्म कर दिए गए थे. अभिव्यक्ति का अधिकार ही नहीं, लोगों के पास जीवन का अधिकार भी नहीं रह गया था. जिसकी वजह से भारत के आपातकाल को देश का सबसे काला दिन कहा जाता है.
ये भी पढ़ें- 47 साल पहले JP ने 'संपूर्ण क्रांति' का नारा देकर कहा था- 'सिंहासन खाली करो कि जनता आती है'
इंदिरा गांधी के आपातकाल के दौरान जुल्म और ज्यादतियों के खिलाफ आवाज उठाने वाले नेताओं (1975 Prime Minister Indira Gandhi) से लेकर सामाजिक कार्यकर्ताओं तक को जेल में डाल दिया गया था. जेलों में जगह नहीं बची थी, लेकिन आपातकाल के विरोध में आवाज बुलंद करने वालों के हौसले बचे हुए थे और उन्होंने इस काम को बखूबी किया है. इसी का नतीजा था कि 21 महीने के बाद 21 मार्च 1977 को देश से आपातकाल हटा लिया गया. देश की जनता ने कुछ ही महीनों के बाद वोट देने की अपनी ताकत से इंदिरा गांधी को सत्ता से बेदखल कर दिया.
इमरजेंसी के 47 साल: इंदिरा गांधी के तानाशाही रवैए खिलाफ उठाने वालो में जयप्रकाश नारायण आपातकाल के प्रमुख नेता बनकर उभरे थे. इसके अलावा जॉर्ज फर्नांडिस, राम विलास पासवान, शरद यादव, लालू प्रसाद यादव, नीतीश कुमार और सुशील कुमार मोदी जैसे नेताओं को इंदिरा गांधी ने जेल में डलवा दिया था. हालांकि, बाद में इन्हीं नेताओं ने कांग्रेस को सत्ता से उखाड़ फेंका. आपातकाल के नायक आज ये नेता उन दिनों को याद कर क्या कहते है आइये जानते है.
इमरजेंसी की यादें ताजा करते हुए राष्ट्रीय जनता दल के राष्ट्रीय उपाध्यक्ष और पूर्व सांसद शिवानंद तिवारी ने कहा कि जो कुछ भी हुआ उसे अच्छा तो नहीं कहा जा सकता. इमरजेंसी देश के लिए किसी काले धब्बे से कम नहीं है. ऐसा नहीं होना चाहिए था. उस दौरान जयप्रकाश नारायण युवाओं को आगे आने के लिए प्रेरित कर रहे थे. जेपी के इस आंदोलन में शिवानंद तिवारी भी एक अहम हिस्सा थे.
''पटना के फुलवारी शरीफ जेल में बंद होने के दौरान मैंने महसूस किया कि इमरजेंसी का किसी ने भी विरोध नहीं किया था. अगर इमरजेंसी का चौतरफा विरोध होता तो शायद इतने दिनों तक इमरजेंसी नहीं लगती. कहीं ना कहीं इंदिरा गांधी को अपनी गलती का एहसास था. उनके साथ जेपी समेत कई बड़े नेताओं को जब जेल में डाला गया तो अंतरराष्ट्रीय स्तर पर भी काफी दबाव बनाया गया, जिसका प्रभाव यह हुआ कि आखिरकार इंदिरा गांधी को इमरजेंसी हटाकर फिर से चुनाव की घोषणा करनी पड़ी.'' - शिवानंद तिवारी, आरजेडी, राष्ट्रीय उपाध्यक्ष
इमरजेंसी को दौरान बीजेपी के वर्तमान विधायक अरुण कुमार सिन्हा सिवान जेल में थे. उन्होंने कहा कि इंदिरा गांधी ने कोर्ट का भी अपमान किया था. कोर्ट के फैसले के मुताबिक उन्हें पीएम पद से हटना चाहिए था तब उन्होंने आनन-फानन में देश पर इमरजेंसी थोप दी. इमरजेंसी के दौरान प्रेस की स्वतंत्रता खत्म हो गई. लोगों को कई तरह से प्रताड़ित किया गया. जबरदस्ती हर धर्म के लोगों को नसबंदी कराने को मजबूर किया गया. हैरानी की बात यह है कि जिन लोगों के कारण ऐसा हुआ वो लोग आज एक संपूर्ण बहुमत से चुनी हुई सरकार पर तरह-तरह के आरोप लगाते हैं, जो काफी हास्यास्पद है.
''मैं सिवान जेल में महाकवि नागार्जुन के साथ बंद था. उस दौरान नागार्जुन ने इंदिरा गांधी के खिलाफ कई कविताएं लिखी. हर ओर भय व्याप्त था. सबको लग रहा था कि अब देश में सैनिक शासन हो जाएगा. लोकतंत्र खत्म होने की कगार पर था. लेकिन, हमने उम्मीद नहीं छोड़ी. उस समय सुशील कुमार मोदी, नीतीश कुमार, लालू प्रसाद यादव, अश्विनी चौबे के साथ सभी प्रमुख नेताओं को जेल में डाल दिया गया था. केवल जॉर्ज फर्नांडीज अंडर ग्राउंड हो गए थे.'' - अरुण कुमार सिन्हा, विधायक, कुम्हरार
राजनीतिक विश्लेषक डॉ संजय कुमार कहते हैं कि जेपी ने किसी सरकार के खिलाफ नहीं, बल्कि व्यवस्था के खिलाफ आंदोलन छेड़ा था, लेकिन इंदिरा गांधी ने इसे अपने खिलाफ मान लिया और 'मीसा' लागू करके अपने तमाम राजनीतिक विरोधियों को जेल में डाल दिया. भारतीय इतिहास के काले पन्नों में दर्ज इमरजेंसी के दौरान नागरिकों के तमाम अधिकार छीन लिए गए थे. चुनाव स्थगित हो गए. यही नहीं, इंदिरा गांधी ने मेंटेनेंस ऑफ इंटरनल सिक्योरिटीएक्ट यानी मीसा लागू करके अपने तमाम राजनीतिक विरोधियों को कैद कर लिया था.
''उस दौरान जो घटनाएं हुई और उस दौरान जेपी आंदोलन से जो छात्र बाद में बिहार के बड़े राजनीतिक चेहरा बने, उनमें लालू यादव, नीतीश कुमार और सुशील कुमार मोदी समेत तमाम बड़े नेता शामिल थे. लेकिन जिस भ्रष्टाचार के खिलाफ जयप्रकाश नारायण ने आंदोलन छेड़ा था और उस लड़ाई में नीतीश, सुशील मोदी और रामविलास पासवान समेत तमाम नेता शामिल थे, इन लोगों के बिहार के क्षेत्र में सक्रिय होने के बाद भ्रष्टाचार और बेरोजगारी बढ़ती गई.'' - डॉ संजय कुमार, राजनीतिक विश्लेषक
डॉ कुमार कहते है कि चुनौतियां भी बरकरार हैं और देश को एक बार फिर बड़े आंदोलन की जरूरत है. लेकिन आपातकाल जिस तरह से लगाया गया और जिस तरह से संविधान में दी गई शक्तियों का दुरुपयोग किया गया, उससे सबक लेना जरूरी है ताकि देश में यह नौबत दोबारा न आए.