पटना: बिहार में जन्मे राष्ट्रकवि रामधारी सिंह दिनकर की आज 46वीं पुण्यतिथि है. पटना के दिनकर गोलंबर पर माल्यार्पण कर उन्हें श्रद्धांजलि दी गई. लॉकडाउन को देखते हुए उनकी पुण्यतिथि को बेहद ही साधारण तरीके से मनाया गया. इस दौरान लोगों ने उनकी उपलब्धियों और रचनाओं को याद किया.
बिहार का नाम देश-दुनिया में हिंदी साहित्य के माध्यम से अनंत ऊंचाइयों तक पहुंचाने वालों में राष्ट्रकवि दिनकर की अद्वितीय भूमिका रही है. उनके इसी साहित्य और लेखन के कारण वे ऐसे एकलौते कवि हुए जिन्हें 'राष्ट्रकवि' की उपाधि दी गई. वैसे तो ऐसी अनगिनत कृतियां हैं, जिनसे दिनकर की अलग पहचान बनी, लेकिन जिस कृती से वे प्रसिद्ध होकर दिनकर बने वो 'रश्मिरथी' ही थी. इसी ने उन्हें राष्ट्रकवि बनाया.
हिंदी साहित्य को दिया नया आयाम
रामधारी सिंह दिनकर पटना के आर्य कुमार रोड में दिनकर भवन में रहते थे और उन्होंने अपने जीवन का ज्यादातर समय पटना के दिनकर गोलंबर स्थित अपने आवास पर ही बिताया था. रश्मिरथी, उर्वशी और कुरुक्षेत्र समेत कई रचनायें उन्होंने की जिन्होंने देश में एक मिसाल कायम किया और हिंदी साहित्य को एक नया आयाम दिया.
बेगूसराय के रहने वाले थे दिनकर
रामधारी सिंह दिनकर मूल रूप से बेगूसराय के सिमरिया के रहने वाले थे. पटना में 1963 में दिनकर ने परशुराम की प्रतीक्षा का पाठ किया था. उस समय उन्होंने पटना विश्वविद्यालय के सीनेट हाउस में 'परशुराम की प्रतीक्षा' का सर्वजनिक पाठ किया था, जिसके बाद पूरा हॉल तालियों की गड़गड़ाहट से गूंज उठा था. उस समय रामधारी सिंह दिनकर बीए में पढ़ते थे. रामधारी सिंह का नैतिक समर्थन जेपी आंदोलन को रहा था. उनकी लिखी कविता को जेपी आंदोलन में नारे की तरह इस्तेमाल किया गया था.
हमेशा लेखन कार्य में लगे रहते थे दिनकर
दिनकर के पड़ोस में रहने वाले लगभग 55 वर्षीय ओमप्रकाश ने बताया कि वह बहुत ही मिलनसार व्यक्ति थे और मेरे दुकान से पत्रिका खरीदा करते थे. उस समय मैं लगभग 10 से 11 साल का था. दिनकर अपने घर के दरवाजे के पास कुर्सी पर बैठे रहते थे और दिनभर कुछ ना कुछ लेखन के काम में लगे रहते थे.