पटनाः बिहार एनडीए में प्रमुख सहयोगी बीजेपी और जदयू के बीच कई मुद्दों पर सहमति नहीं बन पा रही है. सरकार से लेकर संगठन तक नए साल में नीतीश के लिए चुनौतियां कम नहीं होने वाली है. बीजेपी और जदयू के नेता आपस में बातचीत करेंगे, तो सभी चुनौतियों से एनडीए निकल जाएगा. नीतीश कुमार चुनौतियों का सामना करने में सक्षम होंगे. वहीं विपक्षी दल आरजेडी का कहना है नीतीश लाचार और बेबस है. 2021 कठिन होने वाला है.
बीजेपी जेडीयू में नहीं दिख रहा पहले वाला सामंजस्य
बिहार में एक महीना से अधिक नीतीश सरकार के बने हो गए हैं. लेकिन अभी भी सरकार के स्तर पर बीजेपी और जदयू के बीच सामंजस्य नहीं दिख रहा है. गठबंधन के स्तर पर भी लगातार दोनों के बीच संशय बना हुआ है. नया साल भी दस्तक दे रहा है. नीतीश कुमार ने बड़े फैसले भी लेने शुरू कर दिए हैं. पार्टी के राष्ट्रीय अध्यक्ष का पद छोड़ दिया. अपने विश्वासपात्र आरसीपी सिंह को राष्ट्रीय अध्यक्ष बना दिया है. जदयू कार्यकारिणी की बैठक से न केवल विपक्ष बल्कि सहयोगी को भी मैसेज देने की कोशिश की है.
सभी चुनौतियों से निपटने में हैं सक्षम
हालांकि जदयू प्रवक्ता राजीव रंजन का कहना है कि नीतीश कुमार सभी चुनौतियों से निपटने में सक्षम हैं. वहीं बीजेपी प्रवक्ता प्रेम रंजन पटेल का कहना है कि बिहार में किसी प्रकार की कोई चुनौती नहीं है. मजबूती से सरकार चल रही है और गठबंधन भी अटूट है. विपक्षी दल आरजेडी का कहना है कि नीतीश कुमार लाचार और बेबस मुख्यमंत्री हैं. अरुणाचल में जिस प्रकार से छह विधायकों को सहयोगी ने ही अपने पाले में कर लिया. कहने लगे कि मित्र दल गठबंधन धर्म का पालन नहीं कर रहा है तो इसी से अंदाजा लगाया जा सकता है कि कितने लाचार हैं. ऐसे में नया साल चुनौतियों भरा और कठिन होने वाला है.
चुनौती पर नीतीश की रणनीति
नीतीश कुमार बिहार में लंबे समय से एनडीए के साथ तालमेल में मुख्यमंत्री की कुर्सी संभाल रहे हैं. लेकिन अब अरुण जेटली जैसा बीजेपी में सहयोग करने वाला नेता नहीं है. और ना ही बिहार में सुशील मोदी जैसा सहयोगी साथ में है. ऐसे में नीतीश कुमार ने चुनौतियों को देखते हुए अपनी तैयारी जरूर शुरू कर दी है. सरकार बनने के बाद ही कानून व्यवस्था को लेकर 4 बार समीक्षा बैठक की है. विभागों की समीक्षा भी लगातार कर रहे हैं. वहीं संगठन स्तर पर भी बड़ा फैसल लिया है.
मंत्रिमंडल का विस्तार होता जा रहा है लंबा
आरसीपी सिंह को राष्ट्रीय अध्यक्ष पद की बड़ी जिम्मेदारी दे दी है. बंगाल सहित अन्य राज्यों में होने वाले चुनाव में पूरी ताकत से लड़ने की घोषणा भी की है. लेकिन इसके बाद भी मंत्रिमंडल का विस्तार लंबा होता जा रहा है. राज्यपाल कोटे से एमएलसी सीटों को भरने में भी काफी विलंब हो रहा है. साथ ही बीजेपी न केवल बिहार में बल्कि दूसरे राज्यों में भी चुनौती दे रही है. ऐसे में देखना है कि नए साल में ना केवल सहयोगी बल्कि विरोधी दल की ओर से मिलने वाली चुनौतियों से नीतीश किस प्रकार निपटेंगे.