पटना : वर्ष 2020 बिहार की राजनीति के लिए कई मायनों में खास रहा. कोरोना काल में हुए चुनाव में कई उतार चढ़ाव देखने को मिला. लेकिन सबसे बड़ी बात यह रही कि इस साल दो पार्टियों के दो युवा नेता उभरकर सामने आए. जिस पर शायद राज्य की जनता को बाद में विश्वास हो और सत्ता की कुर्सी भविष्य में मिले. एक तरफ लालू यादव के छोटे बेटे तेजस्वी यादव चुनावी मैदान में उतरे तो दूसरी तरफ पिता की मृत्यु के बाद चिराग पासवान अकेले ही मैदान में कूद पड़े.
पिता को पीछे छोड़ आगे निकले तेजस्वी
2015 के चुनाव में महागठबंधन के साथ नीतीश कुमार थे और उस समय में लालू यादव जेल से बाहर थे. लेकिन 2020 के चुनाव में तेजस्वी यादव का परिवार से सहयोग नहीं मिला. पिता लालू यादव जेल में बंद है, राबड़ी देवी और उनकी बहन मीसा भारती चुनाव प्रचार में नहीं उतरी. बावजूद तेजस्वी यादव ने पूरी ताकत के साथ एनडीए के खिलाफ चुनाव प्रचार किया. जिसमें बहुत हद तक उनको सफलता मिली.
आरजेडी बनी सबसे बड़ी पार्टी
महागठबंधन की तरफ से अकेले तेजस्वी यादव चुनाव में एनडीए के दिग्गजों को सामना किया. तेजस्वी के 10 लाख नौकरी देने का वादा ना सिर्फ नीतीश कुमार के विकास कार्य भारी पड़ा बलकि बीजेपी के दिग्गजों को सोचने पर मजबूर कर दिया कि इस बार नैया केसी पार होगी. यह अलग बात है कि तेजस्वी की लाख कोशिशों के बावजूद बिहार में महागठबंधन की सरकार नहीं बनी लेकिन तेजस्वी यादव के चुनाव प्रचार का असर यह हुआ है कि आरजेडी 2020 के चुनाव में 75 सीटों पर जीत दर्ज कर सबसे बड़ी पार्टी बन गई.
तेजस्वी से कहां हुई चूक
दस लाख नौकरी के दम पर तेजस्वी यादव की पार्टी यानी आरजेडी की 75 सीटों पर जीत हुई. महागठबंधन को कुल 110 सीटें मिली. 125 सीटों पर एनडीए की जीत हुई एक बार फिर से नीतीश कुमार मुख्यमंत्री बन गए. रिजल्ट के कुछ दिन बाद तक आरजेडी के लोगों ने बीजेपी पर धांधली का आरोप लगाया. लेकिन कुछ दिन में ही महागठबंधन में बयानबाजी शुरू हो गई. जिसमें कांग्रेस नेता ने अपनी ही पार्टी पर हार का ठिकरा फोड़ दिया. कांग्रेस के 70 सीटों पर चुनाव लड़ने के फैसलो को गलत बताया गया. राजनीतिक के जानकारों ने भी इन बातों से सहमत दिखे.
बिहार फर्स्ट बिहारी फर्स्ट के साथ चिराग
बिहार फर्स्ट बिहारी फर्स्ट को लेकर लोजपा अध्यक्ष चिराग पासवान चुनाव से पहले तेवर में थे. पार्टी कार्यकर्ताओं के साथ लगातार मीटिंग कर चिराग पासवान ने यह साफ संकेत दिया था कि एनडीए में साथ रहकर तभी चुनाव लड़ेंगे जब पार्टी को सम्मानजक सीटें मिलेंगी. लेकिन इस बीच उन्होंने नीतीश कुमार को ही निशाने पर ले लिया. और लगातार सियासी हमला बोला. चिराग के नीतीश कुमार पर तंज के बाद जेडीयू के दिग्ग्जों ने भी पलटवार शुरू किया लेकिन इससे चिराग पासवान पर कोई फर्क नहीं पड़ा
अकेले चुनाव लड़ने का फैसला
एक तरफ बिहार में चुनाव की तैयारियां हो रही थी तो दूसरी तरफ तैयारियों के बीच रामविलास पासवान अस्पताल में जिंदगी से जंग लड़ रहे थे. महीनों तक चिराग पासवान दिल्ली में बीमार पिता की सेवा में लगे रहे. लिहाजा वह चुनाव पर पूरी तरह से ध्यान नहीं दे पाए. एनडीए में सम्मानजनक सीट नहीं मिलने पर चिराग पासवान ने अकेले चुनाव लड़ने का ऐलान कर दिया. लोजपा ने उन सीटों पर सबसे ज्यादा उम्मीदवार उतारे. जहां जेडीयू के प्रत्याशी चुनाव लड़ रहे थे.
एनडीए में चिराग की वजह से कंफ्यूजन
यह अलग बात है कि चिराग पासवान एनडीए से अलग होकर चुनाव लड़ रहे थे लेकिन उन्होंने पीएम मोदी तारीफ करना नहीं छोड़ा. जिससे एनडीए में कंफ्यूजन की स्थिति पैदा हो गई. चुनावी सभा से मुख्यमंत्री नीतीश कुमार ने चिराग पासवान के सवालों का जवाब भी दिया लेकिन चिराग पासवान बार-बार नीतीश कुमार को भ्रष्टाचार का मुखिया बताते रहे. आखिर में बीजेपी के दिग्गजों को यहां तक कहना पड़ा कि एनडीए से लोजपा का कोई लेनादेना नहीं है.
चिराग की वजह से जेडीयू की हार?
एनडीए के अलग चुनाव लड़ रही लोजपा ने वहीं उम्मीदवार उतारे जहां जेडीयू के प्रत्याशी चुनाव लड़ रहे थे. नतीजा यह हुआ है कि कुछ सीटों पर लोजपा उम्मीदवार की वजह से जेडीयू की हार हुई. 2020 के चुनाव में जेडीयू मात्र 43 सीटों पर जीत दर्ज कर पाई. चुनाव से पहले और बाद तक लोजपा की भूमिका पर कई सवाल उठे. कुछ लोगों ने तो यहां कह दिया कि बीजेपी के इशारे पर ही चिराग पासवान काम कर रहे थे. हालांकि बीजेपी के दिग्गजों से पूरी तरह से खारिज कर दिया. वजह चाहे जो भी रहा हो लेकिन चिराग पासवान की वजह से जेडीयू कम सीटें जीत पाई इसमें कहीं से कोई दो राय नहीं है.
2020 में सियासी उठापटक
बिहार की राजनीति के दो युवा चेहरे 2020 में जनता के बीच थे. एक लालू यादव के छोटे बेटे चिराग पासवान तो दूसरी तरफ स्वर्गीय रामविलास पासवान के बेटे चिराग पासवान. हो सकता हे कि भविष्य में दोनों बेहतर कर पाएं लेकिन मौजूदा वक्त या फिर यूं कहें कि 2020 के चुनाव में दोनों की भूमिका क्या थी तो यह राज्य की जनता हमेशा याद रखेगी. पूरे चुनाप की बात करें तो आखिरकार नीतीश कुमार फिर से मुख्यमंत्री बन ही गए. विधानसभा की 243 सीटों पर हुए चुनाव में एनडीए ने 125 सीटें हासिल कर पूर्ण बहुमत प्राप्त कर लिया. महागठबंधन को इस चुनाव में 110 सीटें हासिल हुई हैं. अंतिम तौर पर घोषित नतीजों में बीजेपी को 74, जेडीयू को 43, आरजेडी को 75, कांग्रेस को 19 सीटों के अलावे भाकपा माले को 12 सीटों पर जीत हुई. इस चुनाव में असद़द्दीन ओवैसी की पार्टी एआइएमआइएम ने सबको चौंकाते हुए कुल 5 सीटें हासिल कीं.