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रेलवे चाइल्ड हेल्प डेस्क में लॉकडाउन से दिसंबर तक आए 190 मामले

चाइल्ड हेल्प डेस्क में कोरोना लॉकडाउन से दिसंबर तक 190 मामले आए हैं. लॉकडाउन के वक्त ज्यादा फोन आते थे. बच्चों पर होने वाले अत्याचार की शिकायत चाइल्ड लाइन नंबर 1098 पर सकते हैं. इसपर सूचना देने वालों की पहचान गुप्त रखी जाएगी.

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Published : Feb 4, 2021, 8:59 PM IST

पटनाः यदि किसी-किसी बच्चे के साथ कोई शोषण या फिर अत्याचार हो रहा हो या उसे बहलाकर ले जाने की कोशिश कर रहा हो तो चाइल्ड लाइन नंबर 1098 पर सूचना देकर बच्चे को मुक्त कराया जा सकता है. सूचना मिलते ही चाइल्ड लाइन की टीम एक्टिव हो जाती है और उसकी मदद में जुट जाती है. सूचना देने वालों की पहचान गुप्त रखी जाएगी.

पटना जंक्शन स्थित प्लेटफार्म नंबर एक पर चाइल्ड हेल्पडेस्क कोऑर्डिनेटर अभय कुमार ने बताया कि संस्था की कोशिश है कि बच्चों के साथ हो रहे अत्याचार पर लगाम लग सके. चाइल्ड हेल्पडेस्क 24 घंटे खुली रहती है. पटना जंक्शन पर कई बच्चे परिजन से बिछड़ जाते हैं या किसी बच्चे को कोई बहला-फुसलाकर ले जाने की कोशिश करता है. ऐसे बच्चे की मदद के लिए इसकी शुरुआत की गई है.

चाइल्ड हेल्पडेस्क कोऑर्डिनेटर अभय कुमार
चाइल्ड हेल्पडेस्क कोऑर्डिनेटर अभय कुमार

लॉकडाउन से दिसंबर तक आए 190 मामले
चाइल्ड हेल्प डेस्क में कोरोना लॉकडाउन से दिसंबर तक 190 मामला आए हैं. लॉकडाउन के वक्त ज्यादा फोन आते थे. इसका कारण यह था कि उस समय ज्यादातर लोगों का समय घर पर बीत रहा था और लोग कई कारणों से तनाव में भी थे. लोग अपना तनाव बच्चों पर निकालते थे. चाइल्ड हेल्थ डेस्क की ओर से इसे लेकर पटना जंक्शन परिसर और शहर के प्रमुख चौक-चौराहों पर जागरुकता अभियान भी चलाया जाता है.

अभय ने बताया 'बच्चों को उनके लिए चल रही योजनाओं और सेवाओं के बारे में जानकारी होनी चाहिए. वे अपने आस-पास की गतिविधि से अनजान होते हैं. उन्हें अच्छा और बुरे की पहचान नहीं होती है. यही कारण है कि वे घटना के शिकार हो चाते हैं. महिला एवं बाल विकास मंत्रालय बच्चे के संरक्षण के लिए काम कर रहा है.'

इन परिस्थितियों में ले सकते हैं सिवा
इन परिस्थितियों में ले सकते हैं सिवा

बच्चों की होती है काउंसलिंग
उन्होंने बताया 'रेलवे स्टेशन पर भटके हुए अधिकांश बच्चे डरे-सहमे होते हैं. सबसे पहले उनकी मेडिकल जांच कराई जाती है. उसके बाद सीडब्लूसी को सौंपकर जीआरपी और आरपीएफ की मदद से परिजनों के बारे में जानकारी जुटाई जाती है और उन तक पहुंचाने की कोशिश होती है. इसके अलावा स्टेशन पर भीक मांगने वाले बच्चों की भी काउंसलिंग की जाती है और उन्हें जागरूक भी किया जाता है.

देखें वीडियो

ये भी पढ़ेंः नितिन गडकरी से मिले सांसद विवेक ठाकुर, बिहार में हस्तकला उद्योग को बढ़ावा देने की मांग

चाइल्ड हेल्प डेस्क की टीम रेलवे प्लेटफार्म पर घूमते और ट्रेनों में निगरानी करते रहते हैं. संदिग्ध दिखने वाले अकेले डरे सहमे या अनजान के पीछे-पीछे चक्कर काटने वाले बच्चों को हेल्प डेस्क पर लाकर पूछताछ की जाती है और उनके माता-पिता से संपर्क करने की कोशिश की जाती है. जो बच्चे बोलने की स्थिति में नहीं होते है, उन्हें सीडब्ल्यूसी के समक्ष पेश कर किशोर गृह और बालिका गृह में भेजा जाता है. वहां उनके रहने, खाने, पढ़ाई और दवाई की व्यवस्था होती है.

पटनाः यदि किसी-किसी बच्चे के साथ कोई शोषण या फिर अत्याचार हो रहा हो या उसे बहलाकर ले जाने की कोशिश कर रहा हो तो चाइल्ड लाइन नंबर 1098 पर सूचना देकर बच्चे को मुक्त कराया जा सकता है. सूचना मिलते ही चाइल्ड लाइन की टीम एक्टिव हो जाती है और उसकी मदद में जुट जाती है. सूचना देने वालों की पहचान गुप्त रखी जाएगी.

पटना जंक्शन स्थित प्लेटफार्म नंबर एक पर चाइल्ड हेल्पडेस्क कोऑर्डिनेटर अभय कुमार ने बताया कि संस्था की कोशिश है कि बच्चों के साथ हो रहे अत्याचार पर लगाम लग सके. चाइल्ड हेल्पडेस्क 24 घंटे खुली रहती है. पटना जंक्शन पर कई बच्चे परिजन से बिछड़ जाते हैं या किसी बच्चे को कोई बहला-फुसलाकर ले जाने की कोशिश करता है. ऐसे बच्चे की मदद के लिए इसकी शुरुआत की गई है.

चाइल्ड हेल्पडेस्क कोऑर्डिनेटर अभय कुमार
चाइल्ड हेल्पडेस्क कोऑर्डिनेटर अभय कुमार

लॉकडाउन से दिसंबर तक आए 190 मामले
चाइल्ड हेल्प डेस्क में कोरोना लॉकडाउन से दिसंबर तक 190 मामला आए हैं. लॉकडाउन के वक्त ज्यादा फोन आते थे. इसका कारण यह था कि उस समय ज्यादातर लोगों का समय घर पर बीत रहा था और लोग कई कारणों से तनाव में भी थे. लोग अपना तनाव बच्चों पर निकालते थे. चाइल्ड हेल्थ डेस्क की ओर से इसे लेकर पटना जंक्शन परिसर और शहर के प्रमुख चौक-चौराहों पर जागरुकता अभियान भी चलाया जाता है.

अभय ने बताया 'बच्चों को उनके लिए चल रही योजनाओं और सेवाओं के बारे में जानकारी होनी चाहिए. वे अपने आस-पास की गतिविधि से अनजान होते हैं. उन्हें अच्छा और बुरे की पहचान नहीं होती है. यही कारण है कि वे घटना के शिकार हो चाते हैं. महिला एवं बाल विकास मंत्रालय बच्चे के संरक्षण के लिए काम कर रहा है.'

इन परिस्थितियों में ले सकते हैं सिवा
इन परिस्थितियों में ले सकते हैं सिवा

बच्चों की होती है काउंसलिंग
उन्होंने बताया 'रेलवे स्टेशन पर भटके हुए अधिकांश बच्चे डरे-सहमे होते हैं. सबसे पहले उनकी मेडिकल जांच कराई जाती है. उसके बाद सीडब्लूसी को सौंपकर जीआरपी और आरपीएफ की मदद से परिजनों के बारे में जानकारी जुटाई जाती है और उन तक पहुंचाने की कोशिश होती है. इसके अलावा स्टेशन पर भीक मांगने वाले बच्चों की भी काउंसलिंग की जाती है और उन्हें जागरूक भी किया जाता है.

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चाइल्ड हेल्प डेस्क की टीम रेलवे प्लेटफार्म पर घूमते और ट्रेनों में निगरानी करते रहते हैं. संदिग्ध दिखने वाले अकेले डरे सहमे या अनजान के पीछे-पीछे चक्कर काटने वाले बच्चों को हेल्प डेस्क पर लाकर पूछताछ की जाती है और उनके माता-पिता से संपर्क करने की कोशिश की जाती है. जो बच्चे बोलने की स्थिति में नहीं होते है, उन्हें सीडब्ल्यूसी के समक्ष पेश कर किशोर गृह और बालिका गृह में भेजा जाता है. वहां उनके रहने, खाने, पढ़ाई और दवाई की व्यवस्था होती है.

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