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मां सरस्वती की प्रतिमा बनानेवाले मूर्तिकार निराश, कहा- नहीं मिल पा रहा उचित दाम

मूर्तिकार शिवनंदन पंडित का कहना है अब मूर्ति के कार्य में उचित मजदूरी नहीं, मिल पाता. अगर देखें तो 3 सौ रुपये  प्रतिदिन भी नहीं, पड़ता. यहां आज से मूर्तियां नहीं बनाई जाती, पुश्तैनी से बनती आ रही है.

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Published : Jan 28, 2020, 9:57 PM IST

नवादाः विद्या की देवी मां सरस्वती का पूजनोत्सव आगामी 30 जनवरी को होने वाला है. इसको लेकर मूर्तिकार अपने दिन रात मां वीणा वादिनी की प्रतिमाओं को आकर्षक और खूबसूरत रूप देने में लगे हैं. फिलहाल मूर्ती को अंतिम टच दिया जा रहा है. लेकिन मूर्तिकार को अफसोस है कि उन्हें मेहनत के मुताबिक दाम नहीं मिल रहे हैं. जिससे मूर्तिकार परेशान हैं.

पुस्तैनी धंधा से नहीं मिल रहा उचित मजदूरी
मूर्तिकार शिवनंदन पंडित का कहना है अब मूर्ति के कार्य में उचित मजदूरी नहीं मिल पाता. अगर देखें तो 3 सौ रुपये प्रतिदिन भी नहीं पड़ता. यहां आज से मूर्तियां नहीं बनाई जाती. पुश्तैनी से बनती आ रही है. हम लोग को उचित मजदूरी नहीं मिलती, जिससे हम अपने परिवार का पालन पोषण भी सही से नहीं कर पाते हैं.

ये भी पढ़ेंः पटना: बिहार दरोगा बहाली के प्रथम चरण का परिणाम घोषित, 42 पदों के लिए हुई परीक्षा

एक मूर्ति की सजावट में लग जाते हैं 2 हजार या 25 सौ रुपये
वहीं, एक पैर से दिव्यांग मूर्तिकार उमेश का कहना है कि रंग बनारस और गया से मंगाते हैं. लेकिन सजावट का सारा सामान कोलकाता से लाते हैं. महंगाई इतनी बढ़ गई है कि एक मूर्ति पर 2 हजार या 25 सौ रुपये तक की सजावट के सामान लग जाते हैं. वहीं, उमेश का यह भी कहना है कि दो-ढाई महीने तक पूरे परिवार के लोग मिलकर मूर्ति बनाते हैं. लेकिन इससे जो दाम मिलनी चाहिए, वो नहीं मिल पाती है. इससे आगे बढ़ने का कोई विकल्प हमें नहीं दिख रहा है.

नवादाः विद्या की देवी मां सरस्वती का पूजनोत्सव आगामी 30 जनवरी को होने वाला है. इसको लेकर मूर्तिकार अपने दिन रात मां वीणा वादिनी की प्रतिमाओं को आकर्षक और खूबसूरत रूप देने में लगे हैं. फिलहाल मूर्ती को अंतिम टच दिया जा रहा है. लेकिन मूर्तिकार को अफसोस है कि उन्हें मेहनत के मुताबिक दाम नहीं मिल रहे हैं. जिससे मूर्तिकार परेशान हैं.

पुस्तैनी धंधा से नहीं मिल रहा उचित मजदूरी
मूर्तिकार शिवनंदन पंडित का कहना है अब मूर्ति के कार्य में उचित मजदूरी नहीं मिल पाता. अगर देखें तो 3 सौ रुपये प्रतिदिन भी नहीं पड़ता. यहां आज से मूर्तियां नहीं बनाई जाती. पुश्तैनी से बनती आ रही है. हम लोग को उचित मजदूरी नहीं मिलती, जिससे हम अपने परिवार का पालन पोषण भी सही से नहीं कर पाते हैं.

ये भी पढ़ेंः पटना: बिहार दरोगा बहाली के प्रथम चरण का परिणाम घोषित, 42 पदों के लिए हुई परीक्षा

एक मूर्ति की सजावट में लग जाते हैं 2 हजार या 25 सौ रुपये
वहीं, एक पैर से दिव्यांग मूर्तिकार उमेश का कहना है कि रंग बनारस और गया से मंगाते हैं. लेकिन सजावट का सारा सामान कोलकाता से लाते हैं. महंगाई इतनी बढ़ गई है कि एक मूर्ति पर 2 हजार या 25 सौ रुपये तक की सजावट के सामान लग जाते हैं. वहीं, उमेश का यह भी कहना है कि दो-ढाई महीने तक पूरे परिवार के लोग मिलकर मूर्ति बनाते हैं. लेकिन इससे जो दाम मिलनी चाहिए, वो नहीं मिल पाती है. इससे आगे बढ़ने का कोई विकल्प हमें नहीं दिख रहा है.

Intro:समरी- कई जिलों में डिमांड है कादिरगंज के मूर्तिकार की मूर्तियों की। लेकिन महंगाई के इस दौर में उचित मजदूरी नहीं मिल पा रहा है।

नवादा। विद्या की देवी मां सरस्वती की पूजनोत्सव आगामी 30 जनवरी को होने वाली है इसको लेकर मूर्तिकार अपने दिन रात मां वीणा वादिनी की प्रतिमाओं को आकर्षक और खूबसूरत रूप देने में लगे हैं फ़िलहाल मूर्ती को अंतिम टच दिया जा रहा। लेकिन मूर्तिकार को अफ़सोस है कि उन्हें मेहनत के मुताबिक दाम नहीं मिल रहे हैं। दरअसल यह दर्द जिले के कादिरगंज में रहनेवाले जानेमाने मूर्तिकार शिवनंदन पंडित और उनके दिव्यांग पुत्र उमेश का कहना है।

पुस्तैनी धंधा से नहीं मिल रहा उचित मजदूरी

मूर्तिकार शिवनंदन पंडित का कहना है अब मूर्ति के कार्य में उचित मजदूरी नहीं मिल पाता अगर देखें तो ₹300 प्रतिदिन भी नहीं पड़ता यहां आज से नहीं पुश्तैनी से बनती आ रही है हम लोग को उचित मजदूरी मिलना चाहिए जिससे परिवार का पालन पोषण कर सकें।

बाइट- शिवनंदन पंडित, मूर्तिकार





Body:एक मूर्ति की सजावट में लग जाते हैं 2000-2500 रुपए

वहीं, एक पैर से दिव्यांग मूर्तिकार उमेश का कहना है कि रंग बनारस और गया से मंगाते है लेकिन सजावट का सारा सामान कोलकाता से लाते हैं महंगाई इतनी बढ़ गई है कि एक मूर्ति पर 2000-2500 रुपए तक की सजावट के सामान लग जाते हैं।

बाइट- उमेश पंडित, मूर्तिकार

आगे बढ़ने का नहीं दिख रहा स्कोप


उमेश का यह भी कहना है कि दो- ढाई महीने तक पूरे परिवार लग भीड़कर बनाते हैं लेकिन, इससे जो दाम मिलनी चाहिए वो नहीं मिल पाती है इससे आगे बढ़ने का कोई विकल्प नहीं दिख रहा है।

बाइट- उमेश पंडित, मूर्तिकार


बता दें कि यहां की रंग-बिरंगी डिजाइन की बनी मूर्तियों का भारी डिमांड है यहां से मां सरस्वती की मूर्ति लखीसराय, शेखपुरा, जमुई, गया और नालंदा जिले तक जाती है। फिर भी मूर्ति 3-4 हजार से ज्यादा दामों में नहीं बिक्री हो पाती है।

बाइट- उमेश पंडित, मूर्तिकार




Conclusion:महंगाई की इस दौर में पुस्तैनी मूर्तिकार की हालत सही नहीं फिर भी अपनी परम्परागत पेशा को आगे बढ़ाने में लगे हैं जरूरत है ऐसे मूर्तिकार के ऊपर ध्यान देने की।
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