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नवादा: लाखों रुपए आवंटित होने के बाद भी अधूरा पड़ा है मदर शेड, माओं को हो रही दिक्कत - अस्पताल प्रशासन

नवादा जिले के सदर अस्पताल में बनाए गए मदर शेड की हालत खस्ता है. सरकार की तरफ से लाखों रुपए आवंटित होने के बाद भी इसका निर्माण अधूरा है.

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Published : Jul 17, 2019, 4:28 AM IST

नवादा: जिले की सरकारी अस्पतालों में स्वास्थ्य व्यवस्था चौपट नजर आती है. साथ ही इन्फ्रास्ट्रक्चर तैयार करने में भी लूट मची है. बच्चों की मृत्यु दर को कम करने के लिए सदर अस्पताल परिसर में एसएनसीयू वार्ड बनवाया गया. ठीक उसी के साथ एक मदर शेड भी बनाने की योजना बनी और मदर शेड बना भी, लेकिन शेड को देखने के बाद पता चलता है कि यहां मदर शेड के नाम पर काम नहीं बल्कि खानापूर्ति की गई है.

अधूरा पड़ा मदर शेड

मदर शेड को कवर्ड हॉल बनाया जाना था. साथ ही, शौचालय के साथ-साथ इलेक्ट्रिसिटी कार्य करना था ताकि नवजात के साथ आने वाली उसकी मां या परिजन यहां आराम कर सकें, लेकिन बनाने वालों ने ऐसी किसी व्यवस्था के बगैर पैसे लिए और चल दिए.

भटकते रहते हैं परिजन
इसके न होने से नवजात बच्चों के परिजन गर्मी-सर्दी से बचने के लिए दर-दर भटक रहे हैं. अर्धनिर्मित शेड पर अब कुत्तों ने अपना डेरा जमा लिया है, लेकिन इसपर किसी अस्पताल प्रबंधक की नजर नहीं पड़ी है.

वित्तिय वर्ष 2017-18 में 4 लाख का आवंटन
बच्चों की माता या परिजन को ठहरने के लिए मदर शेड बनाने की योजना लाई गई थी, जिसके लिए वित्तिय वर्ष 2017-18 में 4 लाख रुपये का आवंटन भी किया गया था. लेकिन विभाग के ढुलमुल रवैये के कारण यह आज भी अधूरा ही है.

नगर परिषद को मिली थी जिम्मेदारी
जिला स्वास्थ्य समिति ने बीते साल अप्रैल में 3 लाख 30 रुपये उपलब्ध कराए थे. इन पैसों से कोई मदर शेड नहीं बल्कि 10 पिलर डालकर टीन की झोपड़ी बनाई गई है, जबकि शेड को कवर्ड बनाना था. न यहां प्रस्तावित शौचालय नजर आता है न इलेक्ट्रिफिकेशन का काम. इस कारण नवजात के मां परिजन को काफी दिक्कतों का सामना करना पड़ रहा है. खासकर महिलाओं को अपने बच्चे को स्तनपान करवाने में परेशानियों से गुजरना पड़ता है.

क्या कहते हैं नवजात के परिजन और समाजसेवी
एक छोटे बच्चे का एसएनसीयू वार्ड में ईलाज कराने आई महिला परिजन का कहना है कि यहां पंखा नहीं लगा हुआ है. गर्मी में बच्चों को लेकर कहां जाएंगें. वहीं, समाजसेवी जितेंद्र प्रताप जीतू का कहना है कि इस शेड का निर्माण में 3 लाख 30 हजार से हुआ, लेकिन काम से तो नहीं लगता कि इसमें 3 लाख रुपये लगे हैं.

क्या कहते हैं पदाधिकारी
सिविल सर्जन श्रीनाथ प्रसाद का कहना है कि हमने इसको लेकर दो-तीन चिट्ठियां लिखी हैं और उन्हें बार-बार रिमाइंड करा रहा हूं कि इसको कम्पलीट करें. हमने उनसे राशि उपयोगिया का प्रमाण पत्र भी मांगा है. उसकी एक प्रति जिलाधिकारी को भी सौंपा है. हम कोशिश में है कि यह जल्द से जल्द कम्पलीट हो जाए.

नवादा: जिले की सरकारी अस्पतालों में स्वास्थ्य व्यवस्था चौपट नजर आती है. साथ ही इन्फ्रास्ट्रक्चर तैयार करने में भी लूट मची है. बच्चों की मृत्यु दर को कम करने के लिए सदर अस्पताल परिसर में एसएनसीयू वार्ड बनवाया गया. ठीक उसी के साथ एक मदर शेड भी बनाने की योजना बनी और मदर शेड बना भी, लेकिन शेड को देखने के बाद पता चलता है कि यहां मदर शेड के नाम पर काम नहीं बल्कि खानापूर्ति की गई है.

अधूरा पड़ा मदर शेड

मदर शेड को कवर्ड हॉल बनाया जाना था. साथ ही, शौचालय के साथ-साथ इलेक्ट्रिसिटी कार्य करना था ताकि नवजात के साथ आने वाली उसकी मां या परिजन यहां आराम कर सकें, लेकिन बनाने वालों ने ऐसी किसी व्यवस्था के बगैर पैसे लिए और चल दिए.

भटकते रहते हैं परिजन
इसके न होने से नवजात बच्चों के परिजन गर्मी-सर्दी से बचने के लिए दर-दर भटक रहे हैं. अर्धनिर्मित शेड पर अब कुत्तों ने अपना डेरा जमा लिया है, लेकिन इसपर किसी अस्पताल प्रबंधक की नजर नहीं पड़ी है.

वित्तिय वर्ष 2017-18 में 4 लाख का आवंटन
बच्चों की माता या परिजन को ठहरने के लिए मदर शेड बनाने की योजना लाई गई थी, जिसके लिए वित्तिय वर्ष 2017-18 में 4 लाख रुपये का आवंटन भी किया गया था. लेकिन विभाग के ढुलमुल रवैये के कारण यह आज भी अधूरा ही है.

नगर परिषद को मिली थी जिम्मेदारी
जिला स्वास्थ्य समिति ने बीते साल अप्रैल में 3 लाख 30 रुपये उपलब्ध कराए थे. इन पैसों से कोई मदर शेड नहीं बल्कि 10 पिलर डालकर टीन की झोपड़ी बनाई गई है, जबकि शेड को कवर्ड बनाना था. न यहां प्रस्तावित शौचालय नजर आता है न इलेक्ट्रिफिकेशन का काम. इस कारण नवजात के मां परिजन को काफी दिक्कतों का सामना करना पड़ रहा है. खासकर महिलाओं को अपने बच्चे को स्तनपान करवाने में परेशानियों से गुजरना पड़ता है.

क्या कहते हैं नवजात के परिजन और समाजसेवी
एक छोटे बच्चे का एसएनसीयू वार्ड में ईलाज कराने आई महिला परिजन का कहना है कि यहां पंखा नहीं लगा हुआ है. गर्मी में बच्चों को लेकर कहां जाएंगें. वहीं, समाजसेवी जितेंद्र प्रताप जीतू का कहना है कि इस शेड का निर्माण में 3 लाख 30 हजार से हुआ, लेकिन काम से तो नहीं लगता कि इसमें 3 लाख रुपये लगे हैं.

क्या कहते हैं पदाधिकारी
सिविल सर्जन श्रीनाथ प्रसाद का कहना है कि हमने इसको लेकर दो-तीन चिट्ठियां लिखी हैं और उन्हें बार-बार रिमाइंड करा रहा हूं कि इसको कम्पलीट करें. हमने उनसे राशि उपयोगिया का प्रमाण पत्र भी मांगा है. उसकी एक प्रति जिलाधिकारी को भी सौंपा है. हम कोशिश में है कि यह जल्द से जल्द कम्पलीट हो जाए.

Intro:नवादा। जिले की सरकारी अस्पतालों में स्वास्थ्य व्यवस्था चौपट है ही साथ-साथ इन्फ्रास्ट्रक्चर तैयार करने में लूट मची है। बच्चे की मृत्यु दर को कम करने के लिए सदर अस्पताल परिसर में एसएनसीयू वार्ड बनवाया गया ठीक उसी के साथ एक मदर शेड भी बनाने की योजना बनी और मदर शेड बना भी। लेकिन शेड को देखने के बाद पता चलता है कि यहां मदर शेड के नाम काम नहीं बल्कि खानापूर्ति की गई है। मदर शेड को कवर्ड हॉल बनाया जाना था, शौचालय के साथ-साथ इलेक्ट्रिसिटी कार्य करना था। ताकि नवजात के साथ आनेवाली उसकी मदर या परिजन यहां आराम कर सके लेकिन बनानेवालों ने ऐसा कुछ व्यवस्था किए बगैर पैसे लिए चल दिए। इसके न होने से नवजात बच्चे के परिजन गर्मियों से बचने के लिए दर-दर भटक रही है अर्धनिर्मित शेड पर अब कुत्तों ने अपना डेरा जमा लिया है लेकिन इसपे किसी अस्पताल प्रबंधक की नज़र नहीं पड़ी है।




Body:वित्तिय वर्ष 2017-18 में 4 लाख रुपये का हुआ था आवंटन

बच्चे की माता या परिजन को ठहरने के लिए मदर शेड बनानी थी जिसके लिए वित्तिय वर्ष 2017-18 में 4 लाख रुपये का आवंटन भी किया गया। लेकिन विभाग की ढुलमुल रवैये के कारण आज भी अधूरा ही बना पड़ा है।

नगर परिषद को करना था मदर शेड का निर्माण

जिला स्वास्थ्य समिति ने बीते साल अप्रैल के महीने 3 लाख 30 रुपये उपलब्ध कराए थे। जिससे अभी तक 10 पिलर डालकर ऊपर से ढाल दिया गया है जबकि, शेड को कवर्ड करना था। शौचालय बनानी थी और इलेक्ट्रिफिकेशन करानी थी। ऐसा न होने से नवजात के माता और उसके परिजन को काफी दिक्कतों का सामना करना पड़ रहा है। खासकर महिलाओं को अपने बच्चे को स्तनपान करवाने में परेशानियों से गुजरना पड़ता है।


क्या कहती है नवजात के परिजन और समाजसेवी

एक छोटे बच्चे को एसएनसीयू वार्ड में ईलाज़ कराने आई महिला परिजन का कहना है , पंखा नहीं लगा है गर्मी में बच्चों को लेकर कहाँ जाएंगें। वहीं, समाजसेवी जितेंद्र प्रताप जीतू का कहना है कि, इस शेड का निर्माण में 3 लाख 30 हजार से हुआ। क्या आपको लगता है कि इसमें 3 लाख रुपये लगे हैं जबकि इसका घेरा होना था और शौचालय बनना था।

क्या कहते हैं पदाधिकारी

सिविल सर्जन श्रीनाथ प्रसाद का कहना है कि, हमने इसको लेकर दो-तीन चिट्ठियां लिखी है और उन्हें बार -बार रिमाइंड करा रहा हूँ की इसको कम्पलीट करें। हमने उनसे राशि के उपयोगिया प्रमाण पत्र मांग है उसके एक प्रति जिलाधिकारी को भी सौंपा है हम कोशिश में है कि यह जल्द से जल्द कम्पलीट हो।




Conclusion:आखिर क्या वजह है कि अभी तक मदर शेड बनकर तैयार नहीं हुए हैं इसका स्पष्ट जबाव स्वास्थ्य के विभाग के अधिकारी के पास भी नहीं वो पिछले डेढ़ साल से इसके जिम्मेदार व्यक्ति को रिमाइंडर करवा रहे हैं लेकिन उनकी भी कोई सुनने को तैयार नहीं है।
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