नवादा: मगध साम्राज्य के प्रतापी राजा रहे जरासंध की जयंती शुक्रवार को बड़े ही धूमधाम से मनाई गई. चंद्रवंशी समाज के लोगों ने काफी उत्साह के साथ अपने इष्टदेव भगवान जरासंध की प्रतिमा स्थापित कर पूजा अर्चना की. महर्षि वेदव्यास द्वारा रचित महाभारत ग्रंथ में जरासंध का वर्णन है. भीम जरासंध के साथ 13 दिन तक कुश्ती लड़ने के बाद भगवान श्रीकृष्ण के इशारे पर उनका वध कर दिया था.
चंद्रवंशी समाज के लोगों का कहना है कि भगवान जरासंध हमारे इष्टदेव हैं. ये मगध साम्राज्य के राजा थे. प्रत्येक वर्ष एकादशी के दिन इनकी जयंती काफी धूमधाम से मनाई जाती है. पिछले 5 सालों से जिले में इनकी जयंती मनाई जा रही है. राजगीर में जरासंध का मंदिर भी है. वहां विधिवत रूप से इनकी पूजा-अर्चना की जाती है.
महाभारत ग्रंथ में जरासंध का वर्णन
मगध के राजा बृहद्रथ थे. उनकी दो पत्नियां थीं. लेकिन उनके दोनों पत्नी को कोई संतान नहीं थी. एक दिन संतान की चाह में वो महात्मा चंद्रकौशिक के पास गए और बड़े ही तन्मयता के उनकी सेवा करने लगे. एक दिन उनकी सेवा से प्रसन्न होकर महात्मा चंद्र कौशिक ने उन्हें एक फल दिया और कहा कि यह फल अपनी पत्नी को खिला देना. इससे तुम्हें संतान की प्राप्ति होगी.
ऐसे हुआ था जरासंध का जन्म
राजा बृहद्रथ ने उस फल को दो टुकड़ों में बांटकर अपनी दोनों पत्नियां को खिला दिया. कुछ दिनों बाद दोनों रानियों के गर्भ से शिशु के शरीर का एक-एक टुकड़ा पैदा हुआ. इसके बाद दोनों ने बच्चे को जगंल में फेंक दिया. जरा नाम की राक्षसी ने दोनों बच्चे के टुकड़े को संधि जानी से जोड़ दिया जिसके बाद उस बालक का नाम जरासंध रखा गया.
भीम ने किया था जरासंध का वध
जरासंध बड़ा बलशाली राजा था. जरासंध का वध भगवान श्रीकृष्ण के इशारों पर भीम ने किया. कहा जाता है कि जरासंध के दो टुकड़े करने के बाद सीधी दिशा में फेंकने पर पुनः जुड़ जाता था. तभी भगवान कृष्ण के इशारे पर भीम ने एक खर उठाकर उसके दो टुकड़े कर दो विपरीत दिशा में फेंक दिया जिसके बाद जरासंध पुनः जीवित नहीं हो सका.