नवादाः जिले में मगहिया संस्कृति की पहचान मगही पान अब खत्म होने की कागार पर है. जिले में पड़ रही ठंड के कारण पकरीबरावां प्रखंड के छतरवार और डोला गांव के किसान परेशान हैं. किसानों के जरिए की गई मगही पान की खेती ठंड और शीतलहर के कारण बर्बाद हो गई है. वहीं, पिछले 3 सालों से इन्हें सरकारी अनुदान भी नहीं मिल रहा है.
50 एकड़ में लगे पान बर्बाद
जिला मुख्यालय से 25 किमी दूर पकरीबरावां प्रखंड के छतरवार और डोला गांव में किसानों के जरिए की गई मगही पान की खेती बर्बाद हो गई है. दोनों गांव के किसान मिलकर करीब सौ एकड़ में पान की खेती करते हैं. उसी से होने वाली आमदनी से परिवार की रोजी-रोटी चलती है. लेकिन प्राकृतिक प्रकोप के कारण पिछले 3-4 सालों से लगातार फसलें बर्बाद हो रही हैं. इस बार भी लगभग 50 एकड़ में लगे पान बर्बाद हो चुके हैं. जिसके नुकसान की राशि करोड़ों में आंकी जा रही है.
![nawada](https://etvbharatimages.akamaized.net/etvbharat/prod-images/bh-naw-01-causingmajordamgaetobetelcropfarmersnotgettinggrant-pkg-7204999_07012020202844_0701f_1578409124_340.jpg)
मगध की शान है मगही पान
भारत में पान की खेती कई जगहों पर होती है. लेकिन मगध का मगही पान सर्वोत्तम माना जाता है. यह मग्ध की पहचान है. आर्थिक दृष्टिकोण से भी मगही पान की कीमत अन्य जगहों की पान की अपेक्षा अधिक है. बिहार के तीन जिलों नालन्दा औरंगाबाद और नवादा में मगही पान की खेती होती है. नवादा के मंझवे, तुंगी, बेलदारी, ठियौरी, कैथी हतिया, पचिया, नारदीगंज, छत्तरवार डोला और डफलपुरा में इसकी अच्छी खोती होती है. नवादा का मगही पान मगध की शान है.
विदेशों में भी हैं इसके शौकीन
पान उत्पादक कृषक, उनके परिजनों के साथ-साथ पान के थोक और खुदरा बिक्री से भी बड़ी संख्या में लोग जुड़े हैं. बीड़ा ,गीलोरी और अन्य कई नामों से पहचाने जाने वाला ये पान जिले के पान शौकिनों की शान है. इसके शौकीन तो वारणसी, पश्चिम बंगाल के अलावा नेपाल, बंगलादेश और पाकिस्तान तक में मौजूद हैं.
देश भर में जाता है मगही पान
देश में मगही पान का अपना अलग महत्व है. यही वजह है कि यहां के पान की बिक्री बनारस सहित देश के कई हिस्सों में होती है. किसानों की माने तो एक कट्टा में करीब 15-20 हजार रुपए की पूंजी लगती है. और फसल अच्छी हुई तो उससे 25-30 हजार कमा लेते हैं. मगही पान की कीमत अन्य पान से ज्यादा होती है.
3 वर्षों से नहीं मिल रहा अनुदान
किसानों ने बताया कि पहले सरकार की ओर से अनुदान की राशि मिलती थी, तो उससे नुकसान की भरपाई हो जाती थी. लेकिन अब अनुदान भी पिछले 3 सालों से बंद है. जिसके बाद से पान के खेती करनेवाले किसानों को भारी नुकसान उठाना पड़ रहा है.
ये भी पढ़ेंः पटनाः छुट्टियों के दिन में आम पर्यटकों के लिए खुलेगा बिहार का मुख्य सचिवालय
'अब तो सरकारी अनुदान का ही सहारा'
किसान महेश प्रसाद चौरसिया ने बताया कि एक कट्ठा में खेती करने के लिए 15 से 20 हजार पूंजी लग जाती है. अब इस ठंड के वजह से ऐसा नहीं लग रहा है कि 5000 की भी कमाई हो पाएगी. अब हमलोग को अनुदान का ही सहारा है. अनुदान मिलेगा तो बाल बच्चे का पालन-पोषण अच्छे ढंग से हो जाएगा.
![nawada](https://etvbharatimages.akamaized.net/etvbharat/prod-images/bh-naw-01-causingmajordamgaetobetelcropfarmersnotgettinggrant-pkg-7204999_07012020202844_0701f_1578409124_12.jpg)
खेत पट्टे पर लेकर होती है पान की खेती
पान के फसल के बारे में कहा जाता है कि जिस खेत में एक बार पान की फसल हो गई फिर उसके अगले साल उसमें फसल नहीं लगा सकते हैं. जिसके कारण किसान खेत पट्टे पर लेकर पान की खेती करते हैं, ऐसे में अगर फसल नुकसान हो जाए तो उनके लिए परेशानी बढ़ जाती है. यही वजह की इन किसानों की हालत दिनों दिन दयनीय होती जा रही है.
'शिकायत आई तो कराई जाएगी जांच'
वहीं, जिला सहायक उद्यान पदाधिकारी शम्भू प्रसाद का कहना है कि, अभी तक तो हमारे यहां लिखित में कोई सूचना नहीं मिली है. कि ठंड से कुछ नुकसान हुआ है. अगर हुवा है तो हम लोग उसकी जांच करेंगे. अगर 25% से ज्यादा का नुकसान हो गया है तो जांच कराकर रिपोर्ट आपदा को भेजेंगे. जहां से उसकी क्षतिपूर्ति किया जाएगी.