नालंदा: बिहार सरकार की ओर से स्वास्थ्य सेवाओं को बेहतर करने की बात कही तो जाती है, लेकिन सरकारी दावे उस समय खोखले साबित हो जाते हैं. जब अस्पतालों में डॉक्टरों की भारी कमी का मामला सामने आता है. ऐसे में चिकित्सकों की कमी का खामियाजा जिले के सदर अस्पताल में मरीजों को भुगतना पड़ रहा है. सदर अस्पताल में इलाज कराने पहुंचे मरीजों को इधर-उधर भटकना पड़ता है. यहां तक की कभी-कभी इमरजेंसी और ओपीडी सेवा को भी एक ही चिकित्सक के सहारे चलाना पड़ता है.
बता दें कि सरकार की ओर से स्वास्थ्य सेवाओं को बेहतर करने के लिए करोड़ों रुपये खर्च किए गए हैं. कई संसाधन मुहैया कराए गए हैं. भवन का भी निर्माण कराया गया है. लेकिन ये सारी व्यवस्थाएं उस समय बेबुनियाद साबित होती हैं, जब अस्पताल में डॉक्टर की भारी कमी सामने आती है.
'संसाधनों का नहीं हो पा रहा उपयोग'
सदर अस्पताल उपाधीक्षक डॉ. कृष्णा ने बताया कि अस्पताल में सरकार की ओर से कई तरह की सुविधा दी गई है. साथ ही भवन निर्माण भी कराया गया है. इसके अलावा कई तरह के संसाधन भी दिए गए हैं. लेकिन यह संसाधन डॉक्टरों की कमी की वजह से बेकार साबित हो रहा है. जिसकी वजह से मरीजों का समुचित इलाज नहीं हो पा रहा है. सदर अस्पताल में सीनियर सिटीजन वार्ड खोला गया है. साथ ही आईसीयू वार्ड, अल्ट्रासाउंड की सुविधा, एसएनसीयू की सुविधा उपलब्ध है, लेकिन डॉक्टर की कमी की कमी वजह से इन संसाधनों का उपयोग नहीं हो पा रहा है.
73 पद पड़े हैं खाली
जानकारी के मुताबिक बिहारशरीफ सदर अस्पताल में 89 चिकित्सक का पद स्वीकृत है. लेकिन इन पदों पर सिर्फ 16 चिकित्सक ही पदस्थापित हैं. जबकि 73 पद खाली पड़े हैं. ऐसे में अगर सदर अस्पताल की स्थिती ऐसी होगी तो जिले के दूसरे अस्पतालों की स्थिति क्या होगी. इसका अंदाजा इसकी स्थिति से लगाया जा सकता है. इतना ही नहीं अस्पताल में डॉक्टर की कमी तो है ही, लोकिन यहां जरूरत के समय विशेषज्ञ डॉक्टर भी मौजूद नहीं रहते हैं.
विशेषज्ञ का पद पूरी तरह से खाली
सदर अस्पताल में सिविल सर्जन उपाधीक्षक के अलावा फिजीशियन, जनरल फिजिशियन, स्त्री रोग विशेषज्ञ, मनोचिकित्सक, चर्म रोग विशेषज्ञ, शिशु रोग विशेषज्ञ, नेत्र रोग विशेषज्ञ, ईएनटी, हड्डी रोग विशेषज्ञ, रेडियोलॉजिस्ट, माइक्रोबायोलॉजिस्ट, पैथोलॉजिस्ट के पद स्वीकृत हैं. वहीं, कुछ विभाग में इक्का-दुक्का चिकित्सक भी हैं. लेकिन विभाग में विशेषज्ञ का पद पूरी तरह से खाली है.