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नालंदा विवि को बचाने के लिए PM मोदी को लिखी चिट्ठी से हड़कंप, जांच के लिए टीम गठित - PM Narendra Modi

प्राचीन नालंदा विश्वविद्यालय (Nalanda University) के भग्नावशेष उपेक्षा के शिकार हो रहे हैं. धरोहर को बचाने के लिए दिनकर न्यास समिति के अध्यक्ष नीरज कुमार ने पीएम मोदी को पत्र लिखा है. जिसके बाद संस्कृति मंत्रालय ने जांच टीम का गठन किया है.

नालंदा विवि
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Published : Jun 15, 2021, 8:48 PM IST

नालंदा: बिहार के प्राचीन नालंदा विश्वविद्यालय (Nalanda University) के भग्नावशेष की खराब होती स्थिति पर दिनकर न्यास समिति के अध्यक्ष नीरज कुमार ने प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी (PM Narendra Modi) को पत्र लिखकर धरोहर को बचाये रखने की अपील की है. प्रधानमंत्री को लिखे इस पत्र के चलते भारत सरकार (Government of India) के संस्कृति मंत्रालय ने जांच टीम का गठन कर दिया है.

ये भी पढ़ें- मजबूर दादी का शौचालय बना ठिकाना, टॉयलेट में जलता है चूल्हा, भीख मांगकर पोती को खिलातीं हैं खाना

यूनेस्को ने दिया है विश्व धरोहर का दर्जा
नीरज कुमार ने पत्र में कहा कि नालंदा केवल भारतीय ज्ञान का सर्वश्रेष्ठ केन्द्र ही नहीं था, बल्कि यह दुनिया का पहला व्यवस्थित विश्वविद्यालय भी था. सार्थक पहल और सद्प्रयास से प्राचीन नालंदा विश्वविद्यालय के भग्नावशेष को 2016 में यूनेस्को ने विश्व धरोहर का दर्जा दिया है.

भारतीय उपमहाद्वीप के सबसे प्राचीन नालंदा विश्वविद्यालय का नाम और पहचान पहले से ही जग जाहिर है. विश्व धरोहर का दर्जा मिलने के बाद इसकी प्रतिष्ठा दुनिया में फिर से बढ़ी है.

केवल 10 फीसदी भूभाग का उत्खनन
सरकारी उपेक्षा के कारण नालंदा महाविहार के केवल 10 फीसदी भूभाग का उत्खनन अबतक हो सका है. यहां केवल 14 हेक्टेयर में दुर्लभ पुरावशेष हैं. इसमें अनेक स्तूप, चैत्य, विहार (शैक्षणिक एवं आवासीय परिसर) में अनेक विशाल भवन, आंगन, कुआं, नालियां, भवनों की नक्काशी, पत्थर और धातु पर उकेरी गयी कलाकृतियां आदि मौजूद हैं. यहां गगनचुम्बी तीन विशाल पुस्तकालय थे, इनमें एक नौ मंजिला था.

दिनकर न्यास समिति की चिट्ठी
दिनकर न्यास समिति की चिट्ठी

भारत की संस्कृति का प्रतिबिंब
यह धरोहर केवल नालंदा ही नहीं बल्कि भारत के इतिहास और संस्कृति का प्रतिबिम्ब है. विश्व धरोहर का दर्जा मिलने के बाद इस धरोहर का रखखाव भी विश्व स्तरीय होना चाहिए था, लेकिन संस्कृति मंत्रालय और भारतीय पुरातत्व सर्वेक्षण की उपेक्षा के कारण इसका रखरखाव काफी निम्न स्तरीय है. विश्व धरोहर का दर्जा मिलने के बाद भी इसके लिए धन आवंटन में बदलाव नहीं किया गया है.

उपेक्षा के चलते प्रतिमाएं हो रही हैं नष्ट
विश्व धरोहर का दर्जा मिलने के बाद देश के अन्य विश्व धरोहरों की तरह इसके रखरखाव के लिए भी विशेष धन आवंटन अपेक्षित है, लेकिन चार साल में विश्व धरोहर में शामिल होने के शर्तों के अनुसार आवंटन में कोई भी वृद्धि नहीं की गई है.

रखरखाव के अभाव में नालंदा महाविहार के चैत्यों से भगवान बुद्ध की विशाल प्रतिमाओं का दिन पर दिन क्षरण होता जा रहा है. गच की प्रतिमाएं बड़े पैमाने पर नष्ट हो रही हैं.

ये भी पढ़ें- बेसहारा दादी को गले लगाकर बोलीं एक्ट्रेस अक्षरा- 'आपकी बेटी हूं, बेहिचक कीजिए फोन'

यही हाल रहा तो कुछ दिनों में चैत्यों से भगवान बुद्ध की प्रतिमाएं विलुप्त हो जाएंगी. स्तूपों और विहारों की हालत भी अच्छी नहीं है. रखरखाव के अभाव में विहारों की दीवारें जहां तहां गिरकर बिखर रही हैं.

धरोहर की दीवारों पर घास-फूस के अलावा बड़े-बड़े पेड़ पौधे उग आए हैं. इस धरोहर के रखरखाव के लिए तैनात कर्मियों में से तीन को छोड़कर सभी रिटायर हो गये हैं. आउटसोर्सिंग के भरोसे इसका रखरखाव किया जाता है.

अस्तित्व पर संकट के बादल
विश्व धरोहर का दर्जा मिलने के बाद यहां सीनियर सीए के पदस्थापन की जगह जूनियर सीए को तैनात किया गया है. संस्कृति मंत्रालय और भारतीय पुरातत्व सर्वेक्षण की इस उपेक्षा से विश्व धरोहर नालंदा के अस्तित्व पर संकट के बादल मंडरा ही नहीं रहे हैं, बल्कि भारत की प्रतिष्ठा दुनिया के देशों में धूमिल हो रही है.

विश्व के पहले आवासीय विश्वविद्यालय के भग्नावशेष को देखने के लिए दुनिया के कई देशों के राष्ट्राध्यक्ष नालंदा आये हैं. उनके अलावा लाखों देशी-विदेशी सैलानी और जिज्ञासु नालंदा हर साल आते हैं.

बुनियादी सुविधाओं का अभाव
पंडित जवाहरलाल नेहरू के अलावा भारत का कोई प्रधानमंत्री नालंदा के धरोहर के दीदार के लिए अब तक नहीं आ सके हैं. नालंदा में बुनियादी सुविधाओं का भी घोर अभाव है. यहां न तो शुद्ध पेयजल की व्यवस्था है और न ही एक सार्वजनिक शौचालय है. पर्यटक पानी खरीदकर पीने के लिए मजबूर हैं. उसी तरह पर्यटक खुले आसमान के नीचे शौच करने के लिए विवश हैं. महिला पर्यटकों को शर्मसार होना पड़ता है.

यहां सैलानियों के भोजन और विश्राम के लिए आजादी के 74 साल बाद भी एक होटल तक नहीं है. इतना ही नहीं धरोहर के पास न वेंडिंग जोन है और न ही पार्किंग स्थल है. धरोहर के प्रवेश द्वार के इर्दगिर्द ही दुकानें लगती है और वाहनों की पार्किंग की जाती है.

ये भी पढ़ें- VIDEO: सीएम नीतीश के जिले का स्वास्थ्य उपकेंद्र खस्ताहाल, कूड़ाघर बना अस्पताल

विश्व धरोहर के मानकों की पालना नहीं
यह कहना गलत नहीं होगा कि विश्व धरोहर की सूची में शामिल होने के बाद भी यूनेस्को और विश्व धरोहर के मानकों और शर्तों का अनुपालन संस्कृति मंत्रालय और भारतीय पुरातत्व सर्वेक्षण द्वारा नहीं किया जा रहा है. इस कारण इसके अस्तित्व पर खतरे के बादल मंडराते रहते हैं. डर इस बात का है कि कहीं यूनेस्कों का दिया वह ताज छिन ना जाए. नीरज कुमार ने नालंदा के धरोहरों की रक्षा के लिए सार्थक पहल करनी की अपील की.

नालंदा विश्वविद्यालय का इतिहास
बता दें कि भारत में ही दुनिया का पहला विश्वविद्यालय खुला था, जिसे नालंदा विश्वविद्यालय के नाम से जाना जाता है. प्राचीन नालंदा विश्वविद्यालय की स्थापना गुप्त काल के दौरान पांचवीं सदी में हुई थी. लेकिन 1193 में आक्रमण के बाद इसे नष्ट कर दिया गया था.

नालंदा: बिहार के प्राचीन नालंदा विश्वविद्यालय (Nalanda University) के भग्नावशेष की खराब होती स्थिति पर दिनकर न्यास समिति के अध्यक्ष नीरज कुमार ने प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी (PM Narendra Modi) को पत्र लिखकर धरोहर को बचाये रखने की अपील की है. प्रधानमंत्री को लिखे इस पत्र के चलते भारत सरकार (Government of India) के संस्कृति मंत्रालय ने जांच टीम का गठन कर दिया है.

ये भी पढ़ें- मजबूर दादी का शौचालय बना ठिकाना, टॉयलेट में जलता है चूल्हा, भीख मांगकर पोती को खिलातीं हैं खाना

यूनेस्को ने दिया है विश्व धरोहर का दर्जा
नीरज कुमार ने पत्र में कहा कि नालंदा केवल भारतीय ज्ञान का सर्वश्रेष्ठ केन्द्र ही नहीं था, बल्कि यह दुनिया का पहला व्यवस्थित विश्वविद्यालय भी था. सार्थक पहल और सद्प्रयास से प्राचीन नालंदा विश्वविद्यालय के भग्नावशेष को 2016 में यूनेस्को ने विश्व धरोहर का दर्जा दिया है.

भारतीय उपमहाद्वीप के सबसे प्राचीन नालंदा विश्वविद्यालय का नाम और पहचान पहले से ही जग जाहिर है. विश्व धरोहर का दर्जा मिलने के बाद इसकी प्रतिष्ठा दुनिया में फिर से बढ़ी है.

केवल 10 फीसदी भूभाग का उत्खनन
सरकारी उपेक्षा के कारण नालंदा महाविहार के केवल 10 फीसदी भूभाग का उत्खनन अबतक हो सका है. यहां केवल 14 हेक्टेयर में दुर्लभ पुरावशेष हैं. इसमें अनेक स्तूप, चैत्य, विहार (शैक्षणिक एवं आवासीय परिसर) में अनेक विशाल भवन, आंगन, कुआं, नालियां, भवनों की नक्काशी, पत्थर और धातु पर उकेरी गयी कलाकृतियां आदि मौजूद हैं. यहां गगनचुम्बी तीन विशाल पुस्तकालय थे, इनमें एक नौ मंजिला था.

दिनकर न्यास समिति की चिट्ठी
दिनकर न्यास समिति की चिट्ठी

भारत की संस्कृति का प्रतिबिंब
यह धरोहर केवल नालंदा ही नहीं बल्कि भारत के इतिहास और संस्कृति का प्रतिबिम्ब है. विश्व धरोहर का दर्जा मिलने के बाद इस धरोहर का रखखाव भी विश्व स्तरीय होना चाहिए था, लेकिन संस्कृति मंत्रालय और भारतीय पुरातत्व सर्वेक्षण की उपेक्षा के कारण इसका रखरखाव काफी निम्न स्तरीय है. विश्व धरोहर का दर्जा मिलने के बाद भी इसके लिए धन आवंटन में बदलाव नहीं किया गया है.

उपेक्षा के चलते प्रतिमाएं हो रही हैं नष्ट
विश्व धरोहर का दर्जा मिलने के बाद देश के अन्य विश्व धरोहरों की तरह इसके रखरखाव के लिए भी विशेष धन आवंटन अपेक्षित है, लेकिन चार साल में विश्व धरोहर में शामिल होने के शर्तों के अनुसार आवंटन में कोई भी वृद्धि नहीं की गई है.

रखरखाव के अभाव में नालंदा महाविहार के चैत्यों से भगवान बुद्ध की विशाल प्रतिमाओं का दिन पर दिन क्षरण होता जा रहा है. गच की प्रतिमाएं बड़े पैमाने पर नष्ट हो रही हैं.

ये भी पढ़ें- बेसहारा दादी को गले लगाकर बोलीं एक्ट्रेस अक्षरा- 'आपकी बेटी हूं, बेहिचक कीजिए फोन'

यही हाल रहा तो कुछ दिनों में चैत्यों से भगवान बुद्ध की प्रतिमाएं विलुप्त हो जाएंगी. स्तूपों और विहारों की हालत भी अच्छी नहीं है. रखरखाव के अभाव में विहारों की दीवारें जहां तहां गिरकर बिखर रही हैं.

धरोहर की दीवारों पर घास-फूस के अलावा बड़े-बड़े पेड़ पौधे उग आए हैं. इस धरोहर के रखरखाव के लिए तैनात कर्मियों में से तीन को छोड़कर सभी रिटायर हो गये हैं. आउटसोर्सिंग के भरोसे इसका रखरखाव किया जाता है.

अस्तित्व पर संकट के बादल
विश्व धरोहर का दर्जा मिलने के बाद यहां सीनियर सीए के पदस्थापन की जगह जूनियर सीए को तैनात किया गया है. संस्कृति मंत्रालय और भारतीय पुरातत्व सर्वेक्षण की इस उपेक्षा से विश्व धरोहर नालंदा के अस्तित्व पर संकट के बादल मंडरा ही नहीं रहे हैं, बल्कि भारत की प्रतिष्ठा दुनिया के देशों में धूमिल हो रही है.

विश्व के पहले आवासीय विश्वविद्यालय के भग्नावशेष को देखने के लिए दुनिया के कई देशों के राष्ट्राध्यक्ष नालंदा आये हैं. उनके अलावा लाखों देशी-विदेशी सैलानी और जिज्ञासु नालंदा हर साल आते हैं.

बुनियादी सुविधाओं का अभाव
पंडित जवाहरलाल नेहरू के अलावा भारत का कोई प्रधानमंत्री नालंदा के धरोहर के दीदार के लिए अब तक नहीं आ सके हैं. नालंदा में बुनियादी सुविधाओं का भी घोर अभाव है. यहां न तो शुद्ध पेयजल की व्यवस्था है और न ही एक सार्वजनिक शौचालय है. पर्यटक पानी खरीदकर पीने के लिए मजबूर हैं. उसी तरह पर्यटक खुले आसमान के नीचे शौच करने के लिए विवश हैं. महिला पर्यटकों को शर्मसार होना पड़ता है.

यहां सैलानियों के भोजन और विश्राम के लिए आजादी के 74 साल बाद भी एक होटल तक नहीं है. इतना ही नहीं धरोहर के पास न वेंडिंग जोन है और न ही पार्किंग स्थल है. धरोहर के प्रवेश द्वार के इर्दगिर्द ही दुकानें लगती है और वाहनों की पार्किंग की जाती है.

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विश्व धरोहर के मानकों की पालना नहीं
यह कहना गलत नहीं होगा कि विश्व धरोहर की सूची में शामिल होने के बाद भी यूनेस्को और विश्व धरोहर के मानकों और शर्तों का अनुपालन संस्कृति मंत्रालय और भारतीय पुरातत्व सर्वेक्षण द्वारा नहीं किया जा रहा है. इस कारण इसके अस्तित्व पर खतरे के बादल मंडराते रहते हैं. डर इस बात का है कि कहीं यूनेस्कों का दिया वह ताज छिन ना जाए. नीरज कुमार ने नालंदा के धरोहरों की रक्षा के लिए सार्थक पहल करनी की अपील की.

नालंदा विश्वविद्यालय का इतिहास
बता दें कि भारत में ही दुनिया का पहला विश्वविद्यालय खुला था, जिसे नालंदा विश्वविद्यालय के नाम से जाना जाता है. प्राचीन नालंदा विश्वविद्यालय की स्थापना गुप्त काल के दौरान पांचवीं सदी में हुई थी. लेकिन 1193 में आक्रमण के बाद इसे नष्ट कर दिया गया था.

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