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आर्थिक तंगी की वजह से 36 घंटे बाद भी नहीं हो सका शव का दाह संस्कार, कोई भी नहीं ले रहा सुध

परिजन ने बताया कि इतना कुछ हो जाने के बावजूद अभी तक कोई मदद करने नहीं आया. गांव के लोग, जनप्रतिनिधि या फिर सरकारी महकमे ने सुध तक नहीं ली है. जबकि घटना के बाद प्रशासन के अधिकारी और जनप्रतिनिधि अपनी खोखली दलीलें देकर चले गए.

शव का नहीं हो सका दाह संस्कार
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Published : Nov 14, 2019, 11:55 PM IST

नालंदाः आर्थिक तंगी की बेबसी क्या होती है ये एक गरीब परिवार ही समझ सकता है. सीएम के गृह जिला नालंदा में आर्थिक तंगी की वजह से एक दलित परिवार शव का दाह संस्कार नहीं कर पा रहा है. वहीं, दूसरी तरफ गांव के लोगों से लेकर सरकारी तंत्र के नुमाइंदे भी मदद का हाथ नहीं बढ़ा रहे हैं. मामला नालंदा के गिरियक प्रखंड का है, जहां मदद की आस में शव को खुले आसमान के नीचे रखने को मजबूर हैं.

nalanda
घर के आंगन में पड़ा शव

गौरतलब है कि 13 नवंबर को गिरियक में एक सड़क दुर्घटना हुई थी. घोड़ाही गांव के पास ऑटो और ट्रक के बीच सीधी टक्कर में 6 लोगों की दर्दनाक मौत घटनास्थल पर हो गई थी. मृतकों में एक बरछी विगहा गांव का नंदू चौधरी भी शामिल था.

nalanda
मृतक के परिजन

इस परिवार के पास दाह संस्कार के लिए पैसे तक नहीं हैं. घटना के 36 घंटे बीत जाने के बावजूद शव का दाह संस्कार नहीं किया जा सका है. आलम ये है कि पोस्टमार्टम के बाद गरीब परिवार शव को अपने घर पर खुले आसमान के नीचे रखा है.

ईटीवी भारत संवाददाता की रिपोर्ट

जनप्रतिनिधि और गांव वालों ने नहीं की मदद
परिजन ने बताया कि इतना कुछ हो जाने के बावजूद अभी तक कोई मदद करने नहीं आया. गांव के लोग, जनप्रतिनिधि या फिर सरकारी महकमे ने सुध तक नहीं ली है. जबकि घटना के बाद प्रशासन के अधिकारी और जनप्रतिनिधि अपनी खोखली दलीलें देकर चले गए. मुआवजे के तौर पर चार लाख का चेक देना था. लेकिन अब तक नहीं मिला. वहीं दूसरी तरफ कोई भी आर्थिक सहायता देने के लिए आगे नहीं आया.

नालंदाः आर्थिक तंगी की बेबसी क्या होती है ये एक गरीब परिवार ही समझ सकता है. सीएम के गृह जिला नालंदा में आर्थिक तंगी की वजह से एक दलित परिवार शव का दाह संस्कार नहीं कर पा रहा है. वहीं, दूसरी तरफ गांव के लोगों से लेकर सरकारी तंत्र के नुमाइंदे भी मदद का हाथ नहीं बढ़ा रहे हैं. मामला नालंदा के गिरियक प्रखंड का है, जहां मदद की आस में शव को खुले आसमान के नीचे रखने को मजबूर हैं.

nalanda
घर के आंगन में पड़ा शव

गौरतलब है कि 13 नवंबर को गिरियक में एक सड़क दुर्घटना हुई थी. घोड़ाही गांव के पास ऑटो और ट्रक के बीच सीधी टक्कर में 6 लोगों की दर्दनाक मौत घटनास्थल पर हो गई थी. मृतकों में एक बरछी विगहा गांव का नंदू चौधरी भी शामिल था.

nalanda
मृतक के परिजन

इस परिवार के पास दाह संस्कार के लिए पैसे तक नहीं हैं. घटना के 36 घंटे बीत जाने के बावजूद शव का दाह संस्कार नहीं किया जा सका है. आलम ये है कि पोस्टमार्टम के बाद गरीब परिवार शव को अपने घर पर खुले आसमान के नीचे रखा है.

ईटीवी भारत संवाददाता की रिपोर्ट

जनप्रतिनिधि और गांव वालों ने नहीं की मदद
परिजन ने बताया कि इतना कुछ हो जाने के बावजूद अभी तक कोई मदद करने नहीं आया. गांव के लोग, जनप्रतिनिधि या फिर सरकारी महकमे ने सुध तक नहीं ली है. जबकि घटना के बाद प्रशासन के अधिकारी और जनप्रतिनिधि अपनी खोखली दलीलें देकर चले गए. मुआवजे के तौर पर चार लाख का चेक देना था. लेकिन अब तक नहीं मिला. वहीं दूसरी तरफ कोई भी आर्थिक सहायता देने के लिए आगे नहीं आया.

Intro:आर्थिक तंगी की बेबसी क्या होती है यह भला एक गरीब परिवार ही समझ सकता है। अगर इसी आर्थिक तंगी की बेवशी को आपको देखना हो तो आपको कहीं दूसरे राज्यों में जाने की जरूरत नहीं है। मुख्यमंत्री के गृह क्षेत्र नालंदा जिले के गिरियक प्रखंड के बरछी विगहा गांव में ही आपको यह दर्दनाक वाक्या देखने को मिलेगा।Body: गौरतलब है कि 13 नवंबर को गिरियक थाना क्षेत्र इलाके के घोड़ाही गांव के समीप टेंपो और ट्रक के बीच सीधी टक्कर हो गई थी जिसमें 6 लोगों की दर्दनाक मौत घटनास्थल पर ही हो गई थी। इस घटना में एक मृतक का परिवार ऐसा भी है। जो घटना के 36 घंटे बीत जाने के बावजूद अभी तक आर्थिक तंगी के अभाव में शव का दाह संस्कार भी नहीं कर पाया है। आलम यह है कि पोस्टमार्टम के बाद यह गरीब परिवार शव को अपने घर पर ही खुले आसमान के नीचे रखकर अपनी आर्थिक तंगी की बेबसी पर आंसू बहा रहा है। सबसे बड़ी बात यह है कि इतना कुछ हो जाने के बावजूद अभी तक इस गरीब परिवार की मदद करने के लिए कोई भी गांव के लोग जनप्रतिनिधि या सरकारी महकमा आगे नहीं आया है। जबकि घटना के बाद प्रशासन के आला अधिकारी और जनप्रतिनिधि अपनी खोखली दलीलें देकर वहां से चले गए, परंतु अभी तक कोई भी इसे सहायता देने के लिए आगे नहीं आया है।

बाइट--शौखी चौधरी रिस्तेदार
बाइट--परिजन।Conclusion:यह परिवार दलित समुदाय से जुड़ा है, ना रहने को सही तरीके से घर और ना खाने पीने की चीजें भी घर में दिखाई दे रहा है ।अब सवाल यह उठता है कि सरकार के द्वारा चलाई जा रही उन कल्याणकारी योजनाओं का क्या हुआ। जिसके बारे में सरकार अक्सर ढोल पीटने का काम करती है।

राकेश कुमार संवाददाता
बिहारशरीफ
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