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मुजफ्फरपुर के 'पावरफुल' नेताजी से गुहार- 'कब तक कटेगी चचरी पुल के सहारे जिंदगी?'

Muzaffarpur News बिहार सरकार भले ही किसी भी इलाके से राजधानी पहुंचने के लिए छह घंटे समय लगने का दावा कर अपनी पीठ थपथपा ले, लेकिन राज्य के ही कई इलाके आज भी आवागमन की समस्या के कारण अन्य दुनिया से कट जाते हैं. इस गांव के ग्रामीण प्रत्येक साल खुद को दुनिया से जोड़ने के लिए चचरी (लकड़ी, बांस निर्मित) पुल का निर्माण करते हैं. ऐसे में लोग क्षेत्र के सांसद और विधायक से यह सवाल पूछ रहे कि कब तक उनकी जिंदगी चचरी पुल के सहारे कटेगी. पढ़ें पूरी खबर

मुजफ्फरपुर में चचरी पुल के सहारे जिंदगी
मुजफ्फरपुर में चचरी पुल के सहारे जिंदगी
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Published : Dec 30, 2022, 6:30 AM IST

मुजफ्फरपुर: बिहार के मुजफ्फरपुर जिले के अलौली प्रखंड के मथुरापुर बुजुर्ग पंचायत के सुंदरखोली गांव ऐसा ही एक बदनसीब गांव है. जहां लखनदेई नदी पर पुल नहीं (Muzaffarpur Lakhandai river) होने के कारण प्रत्येक साल जब शादियों का मौसम आता है तो ग्रामीण खुद चंदा जमा कर चचरी पुल का निर्माण (chachri bridge in Muzaffarpur) करते हैं. करीब 5 हजार आबादी वाले इस गांव की भौगोलिक बनावट भी ऐसी है कि लोग बिना नदी पार किए गांव से निकल भी नहीं पाते. गांव के उत्तर से लखनदेई और दक्षिण से बागमती नदी बहती है.

ये भी पढ़ें: तीन जिलों की आबादी के लिए लाइफ लाइन बना 'चचरी पुल'

मुजफ्फरपुर में चचरी पुल के सहारे जिंदगी : ऐसा नहीं है कि बिहार में विकास नहीं हुआ है. लेकिन, आज भी कई जिलों के इलाके विकास की रोशनी से कोसों दूर हैं. मुजफ्फरपुर जिले के कई गांव आज भी मूलभूत सुविधा के अभाव का दंश झेल रहे हैं. मथुरापुर बुजुर्ग पंचायत के सुंदरखोली निवासी आसनारायण साह बताते हैं कि गांव में शादी ब्याह के मौसम के पूर्व ग्रामीण चचरी पुल के निर्माण में जुट जाते हैं और करीब 15 से 20 दिन में पुल का निर्माण कर लिया जाता है.

''यह प्रत्येक साल का काम है. बचपन से यह देखते आ रहे हैं. प्रत्येक साल गांव में एक से डेढ़ लाख का चंदा इकट्ठा होता है और पुल का निर्माण किया जाता है. पुल निर्माण करना मजबूरी है. अगर पुल ग्रामीण नहीं बनाए तो बच्चो को तीन चार किलोमीटर घूमकर स्कूल जाना पड़ता है.'' - मोहन कुमार, ग्रामीण, सुंदरखोली गांव

मुजफ्फरपुर में चचरी पुल के सहारे जिंदगी
मुजफ्फरपुर में चचरी पुल के सहारे जिंदगी

'नेता आते है..आश्वासन देते हैं..और चले जाते हैं' : ग्रामीण बताते हैं कि चुनाव के दौरान सभी दल के नेता आते हैं और पुल निर्माण का आश्वासन देकर चले जाते हैं, लेकिन अब तक मुजफ्फरपुर में लखनदेई नदी पर पुल नहीं बन पाया. ग्रामीण तो यहां तक कहते हैं कि इस गांव में लोग शादी भी करने से हिचकते हैं.

''हमलोग तो बचपन से इस गांव की दुर्दशा को देखते आ रहे हैं. हमलोगों ने अपने स्तर से कई बार पदाधिकारियों को भी इस समस्या से अवगत करवाया लेकिन कोई कार्रवाई नहीं हुई. ग्रामीण श्रमदान कर चचरी पुल का निर्माण करते हैं.'' - प्रहलाद कुमार, मुखिया, मथुरापुर बुजुर्ग पंचायत

मुजफ्फरपुर का औराई प्रखंड का चचरी पुल
मुजफ्फरपुर का औराई प्रखंड का चचरी पुल

'बाढ़ में गायब हो जाता है चचरी पुल' : ग्रामीण कहते हैं कि बरसात के समय चचरी पुल समाप्त हो जाता है और फिर ग्रामीण नाव के सहारे नदी पार करते हैं. किसी बीमार व्यक्ति को अस्पताल ले जाने में कितनी परेशानी होती है, वह इस गांव के लोग ही समझ सकते हैं.

मुजफ्फरपुर का औराई प्रखंड : मुजफ्फरपुर के एक अकेले गांव की यह कहानी नहीं है. जिले के औराई प्रखंड के सैकड़ों गांव तक पहुंचने के लिए आज भी चचरी पुल ही एकमात्र सहारा है. आज के आधुनिक दौर में भी औराई प्रखंड में एक दो नहीं बल्कि 50 से अधिक चचरी पुल इस इलाके में रहने वाली एक बड़ी आबादी के लिए किसी लाइफ लाइन से कम नहीं है. इसके सहारे ही यहां की दर्जनों पंचायत एक दूसरे से आजादी के कई दशक के बाद भी जुड़े हुए हैं.

चंदा लगाकर ग्रामीण बनाते हैं चचरी पुल : हालात ऐसे हो गए हैं कि इस प्रखंड के लोग अब चचरी पुल को ही अपनी नियत ही समझ बैठे हैं. खास बात यह है कि इस इलाके में बांस के चचरी पुल का भी निर्माण स्थानीय ठेकेदार पिछले कई पीढ़ियों से करते आ रहे हैं. जो इस पुल बनाने की एवज में जनता से टोल टैक्स की वसूली भी करते हैं.

''राजनेता हर साल चुनाव में इलाके की समस्या को हल करने का वादा करते हैं, लेकिन जैसे ही चुनाव खत्म होते हैं वह इस इलाके को भूल जाते हैं. आज स्थिति यह है कि पूरे ब्लॉक में 52 चचरी पुल अभी भी मौजूद है. ऐसे में किसी दल के नेता ने इस क्षेत्र की समस्या पर ध्यान नहीं दिया.'' - शंभू, ग्रामीण, औराई प्रखंड

चंदा लगाकर ग्रामीण बनाते हैं चचरी पुल
चंदा लगाकर ग्रामीण बनाते हैं चचरी पुल

'पावरफुल' नेताजी से ग्रामीणों की गुहार सुनिए: ग्रामीण अब किसी भी विधायक और सांसद के गांव में प्रवेश पर पाबंदी लगाने की योजना बना रहे हैं. ग्रामीण कहते हैं कि आखिर विधायक और सांसद की इच्छाशक्ति के कारण इस गांव के लिए पुल का निर्माण नहीं हो रहा है. ग्रामीण कहते है कि अगर नेताजी पॉवरफुल है तो हम लोगों के गांव में पक्का पुल का निर्माण क्यों नहीं कराते है?

मुजफ्फरपुर: बिहार के मुजफ्फरपुर जिले के अलौली प्रखंड के मथुरापुर बुजुर्ग पंचायत के सुंदरखोली गांव ऐसा ही एक बदनसीब गांव है. जहां लखनदेई नदी पर पुल नहीं (Muzaffarpur Lakhandai river) होने के कारण प्रत्येक साल जब शादियों का मौसम आता है तो ग्रामीण खुद चंदा जमा कर चचरी पुल का निर्माण (chachri bridge in Muzaffarpur) करते हैं. करीब 5 हजार आबादी वाले इस गांव की भौगोलिक बनावट भी ऐसी है कि लोग बिना नदी पार किए गांव से निकल भी नहीं पाते. गांव के उत्तर से लखनदेई और दक्षिण से बागमती नदी बहती है.

ये भी पढ़ें: तीन जिलों की आबादी के लिए लाइफ लाइन बना 'चचरी पुल'

मुजफ्फरपुर में चचरी पुल के सहारे जिंदगी : ऐसा नहीं है कि बिहार में विकास नहीं हुआ है. लेकिन, आज भी कई जिलों के इलाके विकास की रोशनी से कोसों दूर हैं. मुजफ्फरपुर जिले के कई गांव आज भी मूलभूत सुविधा के अभाव का दंश झेल रहे हैं. मथुरापुर बुजुर्ग पंचायत के सुंदरखोली निवासी आसनारायण साह बताते हैं कि गांव में शादी ब्याह के मौसम के पूर्व ग्रामीण चचरी पुल के निर्माण में जुट जाते हैं और करीब 15 से 20 दिन में पुल का निर्माण कर लिया जाता है.

''यह प्रत्येक साल का काम है. बचपन से यह देखते आ रहे हैं. प्रत्येक साल गांव में एक से डेढ़ लाख का चंदा इकट्ठा होता है और पुल का निर्माण किया जाता है. पुल निर्माण करना मजबूरी है. अगर पुल ग्रामीण नहीं बनाए तो बच्चो को तीन चार किलोमीटर घूमकर स्कूल जाना पड़ता है.'' - मोहन कुमार, ग्रामीण, सुंदरखोली गांव

मुजफ्फरपुर में चचरी पुल के सहारे जिंदगी
मुजफ्फरपुर में चचरी पुल के सहारे जिंदगी

'नेता आते है..आश्वासन देते हैं..और चले जाते हैं' : ग्रामीण बताते हैं कि चुनाव के दौरान सभी दल के नेता आते हैं और पुल निर्माण का आश्वासन देकर चले जाते हैं, लेकिन अब तक मुजफ्फरपुर में लखनदेई नदी पर पुल नहीं बन पाया. ग्रामीण तो यहां तक कहते हैं कि इस गांव में लोग शादी भी करने से हिचकते हैं.

''हमलोग तो बचपन से इस गांव की दुर्दशा को देखते आ रहे हैं. हमलोगों ने अपने स्तर से कई बार पदाधिकारियों को भी इस समस्या से अवगत करवाया लेकिन कोई कार्रवाई नहीं हुई. ग्रामीण श्रमदान कर चचरी पुल का निर्माण करते हैं.'' - प्रहलाद कुमार, मुखिया, मथुरापुर बुजुर्ग पंचायत

मुजफ्फरपुर का औराई प्रखंड का चचरी पुल
मुजफ्फरपुर का औराई प्रखंड का चचरी पुल

'बाढ़ में गायब हो जाता है चचरी पुल' : ग्रामीण कहते हैं कि बरसात के समय चचरी पुल समाप्त हो जाता है और फिर ग्रामीण नाव के सहारे नदी पार करते हैं. किसी बीमार व्यक्ति को अस्पताल ले जाने में कितनी परेशानी होती है, वह इस गांव के लोग ही समझ सकते हैं.

मुजफ्फरपुर का औराई प्रखंड : मुजफ्फरपुर के एक अकेले गांव की यह कहानी नहीं है. जिले के औराई प्रखंड के सैकड़ों गांव तक पहुंचने के लिए आज भी चचरी पुल ही एकमात्र सहारा है. आज के आधुनिक दौर में भी औराई प्रखंड में एक दो नहीं बल्कि 50 से अधिक चचरी पुल इस इलाके में रहने वाली एक बड़ी आबादी के लिए किसी लाइफ लाइन से कम नहीं है. इसके सहारे ही यहां की दर्जनों पंचायत एक दूसरे से आजादी के कई दशक के बाद भी जुड़े हुए हैं.

चंदा लगाकर ग्रामीण बनाते हैं चचरी पुल : हालात ऐसे हो गए हैं कि इस प्रखंड के लोग अब चचरी पुल को ही अपनी नियत ही समझ बैठे हैं. खास बात यह है कि इस इलाके में बांस के चचरी पुल का भी निर्माण स्थानीय ठेकेदार पिछले कई पीढ़ियों से करते आ रहे हैं. जो इस पुल बनाने की एवज में जनता से टोल टैक्स की वसूली भी करते हैं.

''राजनेता हर साल चुनाव में इलाके की समस्या को हल करने का वादा करते हैं, लेकिन जैसे ही चुनाव खत्म होते हैं वह इस इलाके को भूल जाते हैं. आज स्थिति यह है कि पूरे ब्लॉक में 52 चचरी पुल अभी भी मौजूद है. ऐसे में किसी दल के नेता ने इस क्षेत्र की समस्या पर ध्यान नहीं दिया.'' - शंभू, ग्रामीण, औराई प्रखंड

चंदा लगाकर ग्रामीण बनाते हैं चचरी पुल
चंदा लगाकर ग्रामीण बनाते हैं चचरी पुल

'पावरफुल' नेताजी से ग्रामीणों की गुहार सुनिए: ग्रामीण अब किसी भी विधायक और सांसद के गांव में प्रवेश पर पाबंदी लगाने की योजना बना रहे हैं. ग्रामीण कहते हैं कि आखिर विधायक और सांसद की इच्छाशक्ति के कारण इस गांव के लिए पुल का निर्माण नहीं हो रहा है. ग्रामीण कहते है कि अगर नेताजी पॉवरफुल है तो हम लोगों के गांव में पक्का पुल का निर्माण क्यों नहीं कराते है?

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