मुजफ्फरपुर: बिजली के बगैर शव की अंत्येष्टि की प्रक्रिया प्रदूषण मुक्त होने की कल्पना नहीं की जा सकती है. लेकिन अब ये कल्पना नहीं बल्कि हकीकत है. जिले के सिकंदरपुर मुक्तिधाम में ग्रीन ऊर्जा पर आधारित शवदाहगृह से अब प्रदूषणमुक्त अंत्येष्टि हो रही है. लकड़ी से संचालित इस आधुनिक शवदाहगृह को शहर के समाजिक संगठन के सहयोग से स्थापित किया है.
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ढाई मन लकड़ी में ही अंत्येष्टि
ग्रीन शवदाहगृह नौ मन लकड़ी की जगह दो से ढाई मन लकड़ी में ही शव का अंतिम संस्कार हो रहा है. लकड़ी आधारित ऊर्जा प्रदूषण मुक्त पारंपरिक शवदाह संयंत्र का विकास बनारस हिन्दू विश्वविद्यालय के अभियांत्रिकी विभाग के छात्रों ने किया है.
ग्रीन शवदाहगृह से प्रदूषण मुक्त अंत्येष्टि
दरअसल, ये संयंत्र लकड़ी के जलने से बिजली बनाता है. जिसकी मदद से बेहद कम लकड़ी के इस्तेमाल से ही शवों के अंतिम संस्कार की प्रक्रिया पूरी हो जाती है. जिससे पर्यावरण के संरक्षण के साथ-साथ प्रदूषण भी कम होता है. इस विधि से अंतिम संस्कार का खर्च भी कम हो जाता है.
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हिन्दू रीति-रिवाज का भी अनुपालन
इस तरीके से दाह-संस्कार करने में हिन्दू रीति-रिवाज की भावना का भी अनुपालन होता है. प्रदूषण मुक्त शवदाह की यह व्यवस्था सिकंदरपुर मुक्तिधाम में शुरू हो चुकी है, जहा अभी तक 17 शवो की अंतिम संस्कार इस संयंत्र से हो चुका है. इससे पहले इस तरह का एक संयत्र काठमांडू के भष्मेश्वर घाट में सफलतापूर्वक कार्य कर रहा है. मुजफ्फरपुर में चालीस लाख रुपये की लागत से लकड़ी आधारित ऊर्जा प्रदूषण मुक्त पारंपरिक शवदाह संयंत्र स्थापित किया गया है.