पटनाः आपदा के समय सबकी हालत दयनीय हो जाती है. कोरोना काल इसका बड़ा उदाहरण है, लेकिन इस आपदा में कई ऐसे लोग भी सामने आए जो इसे अवसर माना और नई उंचाई को छुआ. इसी में मुजफ्फरपुर की इप्शा पाठक भी हैं, जिन्होंने कोराना काल में नौकरी छूटने के बाद अपने हुनर को हथियार बनाकर पहचान बनाई.
आवरण नाम से कंपनी चलाती है इप्शाः इप्शा पाठक मुजफ्फरपुर शहर के पुरानी बाजार निवासी हैं और आवरण नाम की कंपनी चलाती है. हैंड पेंटेड बैग, कड़े, कैलेंडर, मास्क, बेडशीट, पर्दा आदि बनाती है. यह प्रोडक्ट बिहार के साथ साथ देश-विदेशों में भी बेचे जाते हैं. इप्शा बताती हैं कि कोरोना काल से इसकी शुरुआत हुई थी. पहले मास्क बनाना शुरू की. फिर धीरे-धीरे प्रोडक्ट में बढ़ोतरी की गई.
मुजफ्फरपुर में हुई स्कूलिंगः इप्शा की पढ़ाई मुजफ्फरपुर से हुई. 1997 में मैट्रिक और 1999 में 12वीं कंप्लीट करने के बाद ग्रेजुएशन के लिए सिक्किम चली गई. ग्रेजुशन के लास्ट ईयर में एक निजी बैंक में काम किया. इसी दौरान दौरान पुणे में मैनेजमेंट एचआर एंड मार्केटिंग में पीजी की पढ़ाई की. इसके बाद 2010 में मुजफ्फरपुर ट्रांसफर हो गया. हालांकि किसी कारण उन्होंने काम छोड़ दिया.
मुजफ्फरपुर में एनजीओ में काम कीः इप्शा बताती हैं कि पुणे में काम करने के दौरान उनकी शादी तय हो गयी थी. परिवार के लोगों ने शादी कर लेने की बात कही. वर्ष 2008 में उनकी शादी हुई. शादी के बाद वे मुजफ्फरपुर आ गई थी. पति निजी कम्पनी में इंजीनियर हैं. एक बेटी भी है. शादी के बाद मुजफ्फरपुर से ही काम का सिलसिला शुरू हुआ है. एक एनजीओ में काम करने लगी थी.
कोराना काल में एनजीओ बंद हो गयाः सबकुछ अच्छा चल रहा था. इसी दौरान कोरोना को लेकर लॉक डाउन लगा. एनजीओ का काम बंद हो गया. एनजीओ में स्किल डेवलपमेंट सिखाने का काम किया जाता था. कुछ महीने घर बैठी रही और काफी परेशान रही. लॉकडाउन के दौरान उन्होंने मास्क खरीदने से बेहतर खुद से बनाने की ठानी. अपने और घर के लोगों के लिए डिजाइनदार मास्क बनाया.
मोहल्ले से शुरू किया बिजनेशः मोहल्ले के लोगों ने देखा तो काफी तारीफ की. इसके बाद लोगों ने मास्क बनाने के लिए ऑर्डर दिए. इप्शा मोहल्ले के लोगों के लिए मास्क बनाना शुरू किया. बताती है कि पटना में एक भाजपा कार्यकर्ता ने मास्क बनाया था, उसपर उन्होंने डिजाइन बनाई, जिसकी खूब चर्चा हुई थी.
मिथिला पेंटिंग वाले प्रोडक्ट बनाती हैः इप्शा बताती हैं कि फेसबुक पर एक बड़ी कंपनी का नंबर देखने के बाद ऑर्डर के लिए कॉल की लेकिन वह गलत निकला. इसके बाद उन्होंने खुद से मिथिला पेंटिंग से काम की शुरुआत की. इसके बाद धीरे धीरे मिथिला पेंटिंग वाले प्रोडक्ट बनाने लगी.
2021 में छठ पूजा में मिली पहचानः उन्होंने बताया की वर्ष 2021 में छठ पर्व में उन्हें ब्रेक थ्रू मिला. उन्होंने मिथिला पेंटिंग के बेस पर डगरा, दऊरा, बांस के सूप के दोनों ओर मधुबनी पेंटिंग शैली में भगवान सूर्य की तस्वीर बनाई. दउरा पर भी मिथिला की पेंटिंग की कलाकारी लोगों का दिल जीत लिया. लोगों के बीच यह काफी चर्चा का केंद्र बना रहा. मार्केट में इसकी खूब बिक्री हुई. इसके बाद ऑर्डर भी आने लगे.
5 से 6 लाख का सलाना बिजनेशः छठ पूजा के बाद बैग, कैलेंडर, साड़ी, साल समेत अन्य कई चीजों पर मिथिला पेंट के थीम से काम करने लगी. ऑनलाइन और ऑफलाइन बेचने लगी. धीरे-धीरे उन्होंने मार्केट फैलाया. काम बढ़ने लगा तो कुछ महिलाओं को भी जोड़ी. वर्तमान में आवरण के नाम से कंपनी चला रही है. फेस्टिवल सीजन में हर महीने 40 से 50 हजार रुपए कमा लेती है. सलाना 5 से 6 लाख रुपए की कमाई होती है.
विदेशों से आ रहे ऑर्डरः उन्होंने बताया कि जब मार्केट पकड़ा तो बिहार के अन्य जिलों से ऑर्डर आते थे, लेकिन, अब कई राज्य से ऑर्डर आते हैं. इसके अलावा अमेरिका, इंग्लैंड, दुबई से भी ऑर्डर आने लगे हैं. लोगों तक मिथिला पेंटिंग से सजे कपड़े और सामान पहुंच सके इसके लिए कोशिश की जा रही है. ऑनलाइन और ऑफलाइन प्रोडक्ट के ऑर्डर आ रहे हैं.
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