ETV Bharat / state

गढ़ में शाही लीची को टक्कर दे रही चाइना वेरायटी की लीची

भारत में 200 साल पहले चीन के रास्ते आई थी लीची, भारत इसका दुनिया में दूसरा सबसे बड़ा उत्पादकभारत में लीची की प्रमुख किस्म- शाही, चायना, देहरा रोज, रोज सेंटेड, बम्बई, पूर्वी, कलकतिया, कस्बा, लौंगिया, देहरादून, बेदाना, गण्डकी, लालिमा, गंडकी संपदा, गंडकी योगिता, कसैलिया बढ़ रहे है चायना लीची के बाग

शाही लीची
शाही लीची
author img

By

Published : Jan 26, 2021, 2:31 PM IST

मुजफ्फरपुरः लीची की मिठास और बेहतरीन स्वाद पूरी दुनिया में मशहूर है. खासकर मुजफ्फरपुर शाही लीची की ख्याति और मांग पूरी दुनिया में है.बदलते समय और जलवायु में हो रहे परिवर्त्तन के बीच अब शाही लीची को अपनी ही जमीन पर लीची की कई दूसरी प्रजातियों से कड़ी टक्कर मिल रही है. विशेषकर चायना प्रजाति की लीची अपने चटकीले लाल रंग और बड़े आकार के कारण शाही लीची को मात दे रही है.

चाइना प्रजाति की लीची
चाइना प्रजाति की लीची

शाही लीची को दूसरी प्रजाति से कड़ी टक्कर
मुजफ्फरपुर की शाही लीची सबसे बेहतरीन गुणवत्ता के लिए जानी जाती है. शाही लीची की इस प्रजाति को रोज सेंटेड के नाम से भी जाना जाता है. मुज़फ्फरपुर की शान यह लीची देश-दुनिया के लगभग सभी भागों में जाती है.

गर्मी के महीनों में लोगों के खास पसंदीदा फल में लीची सबसे प्रचलित है. जिसे हर राज्य के लोग बड़े चाव से खाते हैं. लेकिन बदलते समय और जलवायु में हो रहे परिवर्त्तन के बीच अब शाही लीची को कई दूसरी प्रजाति से कड़ी टक्कर मिल रही है.

शाही लीची
शाही लीची

किसानों की पहली पसंद चायना लीची
दरअसल, लीची की चायना प्रजाति शाही लीची को अपने चटकीले लाल रंग, बड़े आकार और ज्यादा पैदावार की वजह से किसानों की पहली पसंद बन रही है. वहीं इस लीची की एक खासियत है कि इसके फल रस होने पर फटते नहीं हैं. जिससे इस प्रजाति की लीची में किसानों को नुकसान कम होता है.

चायना लीची के दाम
चायना लीची के दाम

60 फीसदी है शाही लीची का योगदान
फिलहाल मुजफ्फरपुर में दो तरह की लीची की सबसे अधिक पैदावर होती है. जिसमें शाही लीची सबसे मशहूर है. शहर के कुल लीची उत्पादन में अभी भी शाही लीची का योगदान 60 फीसदी है, जबकि चालीस फीसदी के आसपास चायना लीची का उत्पादन होता है.

ये भी पढ़ेंः मुजफ्फरपुर: कड़ाके की सर्दी से खेताें में लहलहाई सरसों की फसल, किसानों के चेहरे खिले

शाही लीची के उत्पादन में आई कमी
चाइना लीची की सबसे बड़ी खासियत यह है कि शाही लीची के मुकाबले यह काफी बड़ी होती है और लेट से पकती है. वही गर्म हवाओं और नमी नहीं होने के बाद भी इसके फल शाही लीची के तरह पेड़ पर फटता नहीं है. इसका रंग भी शाही लीची की तुलना में ज्यादा लाल होता है. जो अपनी खूबसूरती की वजह से लोगों को ज्यादा आकर्षित करता है.

हाल के कुछ वर्षों में मौसम के बदलते मिजाज की वजह से शाही लीची का उत्पादन में कमी आई है. ऐसे में चायना लीची किसानों की उम्मीद पर ज्यादा खरी उतरी है.

'चायना लीची का उत्पादन काफी बेहतर है. इसका वजन 21 से 23 ग्राम तक पाया गया है. मिठास भी 21 से 25 बिक्स तक पाई गई है. अब यह अपने तय मानक के अनुसार तैयार हाे रही है. यही वजह है कि किसान अब इसकी बागवानी की तरफ ज्यादा बढ़ रहे हैं'- प्रोफेसर डॉ विशालनाथ, निदेशक, राष्ट्रीय लीची अनुसंधान केंद्र

ईटीवी भारत की रिपोर्ट

भारत में अभी करीब साढ़े छह लाख से सात टन लीची का उत्पादन हो रहा है. दुनिया में चीन के बाद भारत लीची उत्पादन में दूसरे नंबर पर है. देश में लीची उत्पादन में बिहार का हिस्सा लगभग 50 फीसदी है.

भारत में लीची का इतिहास
भारत में लीची 1770 के आसपास चीन से आई थी. इतिहास बताता है कि यह पहले पूर्वोत्तर इलाके में आई. त्रिपुरा में लीची की खेती 1700 के आखिर में शुरू हो गई थी. फिर वहां से कुछ सालों बाद असम, बंगाल के रास्ते होकर बिहार तक पहुंची. बिहार में लोगों के पास जमीन के बड़े-बड़े टुकड़े थे, ऐसे में यहां इसकी बागवानी की जाने लगी और मुजफ्फरपुर लीची की बागवानी में सबसे आगे निकल गया.

मुजफ्फरपुरः लीची की मिठास और बेहतरीन स्वाद पूरी दुनिया में मशहूर है. खासकर मुजफ्फरपुर शाही लीची की ख्याति और मांग पूरी दुनिया में है.बदलते समय और जलवायु में हो रहे परिवर्त्तन के बीच अब शाही लीची को अपनी ही जमीन पर लीची की कई दूसरी प्रजातियों से कड़ी टक्कर मिल रही है. विशेषकर चायना प्रजाति की लीची अपने चटकीले लाल रंग और बड़े आकार के कारण शाही लीची को मात दे रही है.

चाइना प्रजाति की लीची
चाइना प्रजाति की लीची

शाही लीची को दूसरी प्रजाति से कड़ी टक्कर
मुजफ्फरपुर की शाही लीची सबसे बेहतरीन गुणवत्ता के लिए जानी जाती है. शाही लीची की इस प्रजाति को रोज सेंटेड के नाम से भी जाना जाता है. मुज़फ्फरपुर की शान यह लीची देश-दुनिया के लगभग सभी भागों में जाती है.

गर्मी के महीनों में लोगों के खास पसंदीदा फल में लीची सबसे प्रचलित है. जिसे हर राज्य के लोग बड़े चाव से खाते हैं. लेकिन बदलते समय और जलवायु में हो रहे परिवर्त्तन के बीच अब शाही लीची को कई दूसरी प्रजाति से कड़ी टक्कर मिल रही है.

शाही लीची
शाही लीची

किसानों की पहली पसंद चायना लीची
दरअसल, लीची की चायना प्रजाति शाही लीची को अपने चटकीले लाल रंग, बड़े आकार और ज्यादा पैदावार की वजह से किसानों की पहली पसंद बन रही है. वहीं इस लीची की एक खासियत है कि इसके फल रस होने पर फटते नहीं हैं. जिससे इस प्रजाति की लीची में किसानों को नुकसान कम होता है.

चायना लीची के दाम
चायना लीची के दाम

60 फीसदी है शाही लीची का योगदान
फिलहाल मुजफ्फरपुर में दो तरह की लीची की सबसे अधिक पैदावर होती है. जिसमें शाही लीची सबसे मशहूर है. शहर के कुल लीची उत्पादन में अभी भी शाही लीची का योगदान 60 फीसदी है, जबकि चालीस फीसदी के आसपास चायना लीची का उत्पादन होता है.

ये भी पढ़ेंः मुजफ्फरपुर: कड़ाके की सर्दी से खेताें में लहलहाई सरसों की फसल, किसानों के चेहरे खिले

शाही लीची के उत्पादन में आई कमी
चाइना लीची की सबसे बड़ी खासियत यह है कि शाही लीची के मुकाबले यह काफी बड़ी होती है और लेट से पकती है. वही गर्म हवाओं और नमी नहीं होने के बाद भी इसके फल शाही लीची के तरह पेड़ पर फटता नहीं है. इसका रंग भी शाही लीची की तुलना में ज्यादा लाल होता है. जो अपनी खूबसूरती की वजह से लोगों को ज्यादा आकर्षित करता है.

हाल के कुछ वर्षों में मौसम के बदलते मिजाज की वजह से शाही लीची का उत्पादन में कमी आई है. ऐसे में चायना लीची किसानों की उम्मीद पर ज्यादा खरी उतरी है.

'चायना लीची का उत्पादन काफी बेहतर है. इसका वजन 21 से 23 ग्राम तक पाया गया है. मिठास भी 21 से 25 बिक्स तक पाई गई है. अब यह अपने तय मानक के अनुसार तैयार हाे रही है. यही वजह है कि किसान अब इसकी बागवानी की तरफ ज्यादा बढ़ रहे हैं'- प्रोफेसर डॉ विशालनाथ, निदेशक, राष्ट्रीय लीची अनुसंधान केंद्र

ईटीवी भारत की रिपोर्ट

भारत में अभी करीब साढ़े छह लाख से सात टन लीची का उत्पादन हो रहा है. दुनिया में चीन के बाद भारत लीची उत्पादन में दूसरे नंबर पर है. देश में लीची उत्पादन में बिहार का हिस्सा लगभग 50 फीसदी है.

भारत में लीची का इतिहास
भारत में लीची 1770 के आसपास चीन से आई थी. इतिहास बताता है कि यह पहले पूर्वोत्तर इलाके में आई. त्रिपुरा में लीची की खेती 1700 के आखिर में शुरू हो गई थी. फिर वहां से कुछ सालों बाद असम, बंगाल के रास्ते होकर बिहार तक पहुंची. बिहार में लोगों के पास जमीन के बड़े-बड़े टुकड़े थे, ऐसे में यहां इसकी बागवानी की जाने लगी और मुजफ्फरपुर लीची की बागवानी में सबसे आगे निकल गया.

ETV Bharat Logo

Copyright © 2024 Ushodaya Enterprises Pvt. Ltd., All Rights Reserved.