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जलियांवाला बाग की तरह मुंगेर में भी हुआ था नरसंहार, क्रांतिकारियों के छलनी हुए थे सीने

जलियांवाला बाग की तरह मुंगेर में भी अंग्रेजों ने नरसंहार किया था (British did massacre in Munger). आजादी के दीवानों ने हंसते-हंसते सीने पर गोलियां खाकर तारापुर थाना पर तिरंगा फहराया था. प्रत्येक साल 15 फरवरी को तारापुर शहीद दिवस (Tarapur Martyrs Day) मनाया जाता है. अब उनकी याद में स्मारक और पार्क बनाया गया है. पढ़ें ये रिपोर्ट..

Tarapur Martyrs Day
Tarapur Martyrs Day
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Published : Feb 14, 2022, 6:04 AM IST

Updated : Feb 14, 2022, 8:25 AM IST

मुंगेर: भारत में बहुत कम लोग जानते हैं कि 13 अप्रैल 1919 को अमृतसर के जलियांवाला बाग गोलीकांड की बर्बरता के बाद 15 फरवरी 1932 को भी अंग्रेजों ने मुंगेर जिले के तारापुर अनुमंडल के तारापुर थाना में सैकड़ों निहत्थे आजादी के दीवानों पर गोलियां चलवाई थी. 34 लोग इसमें शहीद हो गए थे. सैकड़ों लोगों को गोली लगी थी. जलियांवाला बाग के बाद मुंगेर के तारापुर में दूसरा सबसे बड़ा नरसंहार (Second biggest massacre in Tarapur) अंग्रेजों ने किया था.

ये भी पढ़ें- मुंगेर: तारापुर के शहीदों को किया गया याद, पीएम मोदी ने 'मन की बात' में किया था जिक्र

दरअसल, 1931 में गांधी-इरविन समझौता भंग होने के बाद ब्रिटिश हूकुमत ने कांग्रेस को प्रतिबंधित कर सभी कांग्रेस कार्यालय पर ब्रिटिश झंडा यूनियन जैक लहरा दिया था. महात्मा गांधी, सरदार पटेल और राजेंद्र बाबू सहित बड़े नेताओं को जेल में डाल दिया था, तो इसकी प्रतिक्रिया देश भर में होने लगी. बिहार में तो युद्धक समिति के प्रधान सरदार शार्दुल सिंह कवीश्वर द्वारा जारी संकल्प पत्र कांग्रेसियों और क्रांतिकारियों में आजादी का उन्माद पैदा कर गया.

संकल्प पत्र में आह्वान था कि 15 फरवरी सन 1932 को सभी सरकारी भवनों पर तिरंगा झंडा लहराया जाए और योजना थी कि प्रत्येक थाना क्षेत्र में पांच सत्याग्रहियों का जत्था झंडा लेकर धावा बोलेगा और शेष कार्यकर्त्ता 200 गज की दूरी पर खड़े होकर सत्याग्रहियों का मनोबल बढ़ाएंगे. उसी आह्वान को पूरा करने के लिए वर्तमान में संग्रामपुर थाना के सुपोर-जमुआ के श्रीभवन में एक गुप्त बैठक हुई, जिसमें इलाके भर के क्रांतिकारियों और अन्य देशभक्तों के धावक दल ने हिस्सा लिया. सैकड़ों लोगों ने धावक दल को अंग्रेजों के थाने पर झंडा फहराने का जिम्मा दिया था.

15 फरवरी की दोपहर में क्रांतिवीरों का जत्था निकला, सभी इलाके से निकल कर लो लखनपुर, गाजीपुर, तारापुर और रामपुर सड़क के दोनों किनारे खड़े रहें. तारापुर थाना भवन के पास भीड़ जमा हो गई. धावक दल हाथों में तिरंगा लेकर तारापुर थाना के पास पहुंचे. लोगों ने वंदे मातरम, भारत माता की जय के नारे लगाने शुरू किए. तारापुर थाना में आजादी के दीवाने धावक दल तिरंगा लगाने के लिए अंदर घुसे. मौके पर कलेक्टर ई ओ ली और एसपी डब्लू एस मैग्रेथ ने निहत्थे स्वतंत्रता सेनानियों पर अंधाधुंध गोलियां चलवाने का हुकुम अपने जवानों को दे दिया. फिर क्या था अंग्रेजों की गोलियों से आजादी के मस्तानों का सीना गोलियां से छलनी-छलनी होने लगा.

आजादी के दीवाने नौजवान वहां से हिले नहीं और सीने पर गोलियां खाईं. इसी बीच धावक दल के कार्तिक मंडल, परमानन्द झा, महावीर सिंह, मदन गोपाल सिंह, त्रिपुरारी सिंह ने तिरंगा फहरा दिया. अंग्रेजी हुकूमत की इस बर्बर कार्रवाई में 34 स्वतंत्रता प्रेमी शहीद हो गए थे. इनमें से 13 की तो पहचान हुई, बाकी 21 अज्ञात ही रह गये थे. कहा तो यहां तक जाता है कि इसमें 34 से अधिक क्रांतिकारी शहीद हुए थे, क्योंकि अंग्रेजों ने आनन-फानन में वीरगति को प्राप्त कई सेनानियों के शवों को वाहन में लदवाकर सुल्तानगंज गंगा में बहवा दिया था.

शहीद हुए आजादी के दीवानों में 13 की पहचान तो हो पाई, लेकिन 21 की पहचान नहीं हुई थी. कुल 34 लोगों के शहीद होने की बात सामने आई थी. जिनमें विश्वनाथ सिंह (छत्रहार), महिपाल सिंह (रामचुआ), शीतल चमार (असरगंज), सुकुल सोनार (तारापुर), संता पासी (तारापुर), झोंटी झा (सतखरिया), सिंहेश्वर राजहंस (बिहमा), बदरी मंडल (धनपुरा), वसंत धानुक (लौढिया), रामेश्वर मंडल (पढवारा), गैबी सिंह (महेशपुर), अशर्फी मंडल (कष्टीकरी), चंडी महतो (चोरगांव) शामिल थे. साथ ही 21 अज्ञात शहीद हुए. शहीदों की स्मृति में तारापुर थाना के सामने शहीद स्मारक भवन का निर्माण 1984 में तत्कालीन मुख्यमंत्री चंद्रशेखर सिंह ने करवाया था. आजादी से पूर्व तक अखिल भारतीय कांग्रेस द्वारा हर 15 फरवरी 1932 को तारापुर दिवस मनाया जाता था.

इस संबंध में शहीद तारापुर के स्वतंत्रता सेनानी के परिजनों ने कहा कि हमारे पूर्वज थाना में तिरंगा सीने पर गोलियां खाकर फहरा तो दी लेकिन देश इस कांड को भूल गया था. लेकिन, उन्होंने प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की तारीफ करते हुए कहा कि मन की बात में नरेंद्र मोदी ने इस घटना का जिक्र कर तारापुर का मान सम्मान फिर से बढ़ाया है और इस कारण में जो शहीद हुए हैं, उनको श्रद्धांजलि देने का काम किया गया है. शहीदों की याद में प्रत्येक साल 15 फरवरी को तारापुर शहीद दिवस मनाया जाता है और तारापुर थाना भवन में श्रद्धांजलि सभा का आयोजन कर शहीदों को याद (Tribute to martyrs in Munger) किया जाता है.

इस वर्ष तो शहीदों की याद में तारापुर चौक थाना के सामने शहीदों की प्रतिमा लगाई गई है और साथ ही तारापुर थाना का कायाकल्प किया जा रहा है. यह सरकार का बेहतरीन प्रयास है. वहीं, इस संबंध में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने मन की बात में इस स्थान और घटना का जिक्र किया था और जयराम विप्लव के प्रयास की सराहना की थी. इस संबंध में बिहार सरकार के पंचायती राज मंत्री सम्राट चौधरी और तारापुर के स्थानीय जदयू विधायक राजीव कुमार सिंह ने कहा कि तारापुर भवन को ऐतिहासिक स्मारक के रूप में विकसित किया जा रहा है. तारापुर चौक पर भी शहीदों की प्रतिमा स्थापित हो रही है.

इस संबंध में वरिष्ठ पत्रकार मनोज मिश्रा ने कहा कि ''पार्क और स्मारक तारापुर में दिवस की गाथा कहेंगे. इधर से जो भी लोग गुजरेंगे पार्क में बैठेंगे और स्मारक को देखकर चित्रों के माध्यम से भी जानेंगे कि आखिर 15 फरवरी 1932 को क्या हुआ था? पार्क और स्मारक बनने से आने वाले पीढ़ी जलियांवाला बाग हत्याकांड की तरह क्रांतिकारियों की इस घटना को भी जानेंगे.''

बता दें कि 2 जुलाई 1915 को अंग्रेजों द्वारा स्थापित तारापुर थाना के भवन को संरक्षित कर लिया गया है. तारापुर थाना में परिसर में ही बड़ा पार्क का निर्माण कराया जा रहा है. तारापुर थाना के सामने ही शहीद स्मारक का निर्माण कराया गया. जिसमें 13 अज्ञात क्रांतिकारियों की प्रतिमा लगाई जा रही है तो स्मारक के चारों ओर 100 मीटर का क्षेत्रफल का शहीद पार्क भी बनवाया गया है. पार्क की दीवारों पर क्रांतिकारियों के इतिहास की जानकारी दी जाएगी.

ये भी पढ़ें- CM नीतीश के सामने आया 'कालापानी' का मामला, तुरंत गृह सचिव को मिलाया फोन, जानें पूरा मामला

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मुंगेर: भारत में बहुत कम लोग जानते हैं कि 13 अप्रैल 1919 को अमृतसर के जलियांवाला बाग गोलीकांड की बर्बरता के बाद 15 फरवरी 1932 को भी अंग्रेजों ने मुंगेर जिले के तारापुर अनुमंडल के तारापुर थाना में सैकड़ों निहत्थे आजादी के दीवानों पर गोलियां चलवाई थी. 34 लोग इसमें शहीद हो गए थे. सैकड़ों लोगों को गोली लगी थी. जलियांवाला बाग के बाद मुंगेर के तारापुर में दूसरा सबसे बड़ा नरसंहार (Second biggest massacre in Tarapur) अंग्रेजों ने किया था.

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दरअसल, 1931 में गांधी-इरविन समझौता भंग होने के बाद ब्रिटिश हूकुमत ने कांग्रेस को प्रतिबंधित कर सभी कांग्रेस कार्यालय पर ब्रिटिश झंडा यूनियन जैक लहरा दिया था. महात्मा गांधी, सरदार पटेल और राजेंद्र बाबू सहित बड़े नेताओं को जेल में डाल दिया था, तो इसकी प्रतिक्रिया देश भर में होने लगी. बिहार में तो युद्धक समिति के प्रधान सरदार शार्दुल सिंह कवीश्वर द्वारा जारी संकल्प पत्र कांग्रेसियों और क्रांतिकारियों में आजादी का उन्माद पैदा कर गया.

संकल्प पत्र में आह्वान था कि 15 फरवरी सन 1932 को सभी सरकारी भवनों पर तिरंगा झंडा लहराया जाए और योजना थी कि प्रत्येक थाना क्षेत्र में पांच सत्याग्रहियों का जत्था झंडा लेकर धावा बोलेगा और शेष कार्यकर्त्ता 200 गज की दूरी पर खड़े होकर सत्याग्रहियों का मनोबल बढ़ाएंगे. उसी आह्वान को पूरा करने के लिए वर्तमान में संग्रामपुर थाना के सुपोर-जमुआ के श्रीभवन में एक गुप्त बैठक हुई, जिसमें इलाके भर के क्रांतिकारियों और अन्य देशभक्तों के धावक दल ने हिस्सा लिया. सैकड़ों लोगों ने धावक दल को अंग्रेजों के थाने पर झंडा फहराने का जिम्मा दिया था.

15 फरवरी की दोपहर में क्रांतिवीरों का जत्था निकला, सभी इलाके से निकल कर लो लखनपुर, गाजीपुर, तारापुर और रामपुर सड़क के दोनों किनारे खड़े रहें. तारापुर थाना भवन के पास भीड़ जमा हो गई. धावक दल हाथों में तिरंगा लेकर तारापुर थाना के पास पहुंचे. लोगों ने वंदे मातरम, भारत माता की जय के नारे लगाने शुरू किए. तारापुर थाना में आजादी के दीवाने धावक दल तिरंगा लगाने के लिए अंदर घुसे. मौके पर कलेक्टर ई ओ ली और एसपी डब्लू एस मैग्रेथ ने निहत्थे स्वतंत्रता सेनानियों पर अंधाधुंध गोलियां चलवाने का हुकुम अपने जवानों को दे दिया. फिर क्या था अंग्रेजों की गोलियों से आजादी के मस्तानों का सीना गोलियां से छलनी-छलनी होने लगा.

आजादी के दीवाने नौजवान वहां से हिले नहीं और सीने पर गोलियां खाईं. इसी बीच धावक दल के कार्तिक मंडल, परमानन्द झा, महावीर सिंह, मदन गोपाल सिंह, त्रिपुरारी सिंह ने तिरंगा फहरा दिया. अंग्रेजी हुकूमत की इस बर्बर कार्रवाई में 34 स्वतंत्रता प्रेमी शहीद हो गए थे. इनमें से 13 की तो पहचान हुई, बाकी 21 अज्ञात ही रह गये थे. कहा तो यहां तक जाता है कि इसमें 34 से अधिक क्रांतिकारी शहीद हुए थे, क्योंकि अंग्रेजों ने आनन-फानन में वीरगति को प्राप्त कई सेनानियों के शवों को वाहन में लदवाकर सुल्तानगंज गंगा में बहवा दिया था.

शहीद हुए आजादी के दीवानों में 13 की पहचान तो हो पाई, लेकिन 21 की पहचान नहीं हुई थी. कुल 34 लोगों के शहीद होने की बात सामने आई थी. जिनमें विश्वनाथ सिंह (छत्रहार), महिपाल सिंह (रामचुआ), शीतल चमार (असरगंज), सुकुल सोनार (तारापुर), संता पासी (तारापुर), झोंटी झा (सतखरिया), सिंहेश्वर राजहंस (बिहमा), बदरी मंडल (धनपुरा), वसंत धानुक (लौढिया), रामेश्वर मंडल (पढवारा), गैबी सिंह (महेशपुर), अशर्फी मंडल (कष्टीकरी), चंडी महतो (चोरगांव) शामिल थे. साथ ही 21 अज्ञात शहीद हुए. शहीदों की स्मृति में तारापुर थाना के सामने शहीद स्मारक भवन का निर्माण 1984 में तत्कालीन मुख्यमंत्री चंद्रशेखर सिंह ने करवाया था. आजादी से पूर्व तक अखिल भारतीय कांग्रेस द्वारा हर 15 फरवरी 1932 को तारापुर दिवस मनाया जाता था.

इस संबंध में शहीद तारापुर के स्वतंत्रता सेनानी के परिजनों ने कहा कि हमारे पूर्वज थाना में तिरंगा सीने पर गोलियां खाकर फहरा तो दी लेकिन देश इस कांड को भूल गया था. लेकिन, उन्होंने प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की तारीफ करते हुए कहा कि मन की बात में नरेंद्र मोदी ने इस घटना का जिक्र कर तारापुर का मान सम्मान फिर से बढ़ाया है और इस कारण में जो शहीद हुए हैं, उनको श्रद्धांजलि देने का काम किया गया है. शहीदों की याद में प्रत्येक साल 15 फरवरी को तारापुर शहीद दिवस मनाया जाता है और तारापुर थाना भवन में श्रद्धांजलि सभा का आयोजन कर शहीदों को याद (Tribute to martyrs in Munger) किया जाता है.

इस वर्ष तो शहीदों की याद में तारापुर चौक थाना के सामने शहीदों की प्रतिमा लगाई गई है और साथ ही तारापुर थाना का कायाकल्प किया जा रहा है. यह सरकार का बेहतरीन प्रयास है. वहीं, इस संबंध में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने मन की बात में इस स्थान और घटना का जिक्र किया था और जयराम विप्लव के प्रयास की सराहना की थी. इस संबंध में बिहार सरकार के पंचायती राज मंत्री सम्राट चौधरी और तारापुर के स्थानीय जदयू विधायक राजीव कुमार सिंह ने कहा कि तारापुर भवन को ऐतिहासिक स्मारक के रूप में विकसित किया जा रहा है. तारापुर चौक पर भी शहीदों की प्रतिमा स्थापित हो रही है.

इस संबंध में वरिष्ठ पत्रकार मनोज मिश्रा ने कहा कि ''पार्क और स्मारक तारापुर में दिवस की गाथा कहेंगे. इधर से जो भी लोग गुजरेंगे पार्क में बैठेंगे और स्मारक को देखकर चित्रों के माध्यम से भी जानेंगे कि आखिर 15 फरवरी 1932 को क्या हुआ था? पार्क और स्मारक बनने से आने वाले पीढ़ी जलियांवाला बाग हत्याकांड की तरह क्रांतिकारियों की इस घटना को भी जानेंगे.''

बता दें कि 2 जुलाई 1915 को अंग्रेजों द्वारा स्थापित तारापुर थाना के भवन को संरक्षित कर लिया गया है. तारापुर थाना में परिसर में ही बड़ा पार्क का निर्माण कराया जा रहा है. तारापुर थाना के सामने ही शहीद स्मारक का निर्माण कराया गया. जिसमें 13 अज्ञात क्रांतिकारियों की प्रतिमा लगाई जा रही है तो स्मारक के चारों ओर 100 मीटर का क्षेत्रफल का शहीद पार्क भी बनवाया गया है. पार्क की दीवारों पर क्रांतिकारियों के इतिहास की जानकारी दी जाएगी.

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Last Updated : Feb 14, 2022, 8:25 AM IST
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