मुंगेर: आलू के बिना ज्यादातर सब्जियां अधूरी मानी जाती है. यह एक ऐसी सब्जी है जो पूरे साल उपलब्ध रहती है, इसलिए इसे सब्जियों का राजा कहा जाता है. सब्जियों के राजा आलू की खेती (Farming of Potato) मुंगेर जिले में लगभग 1000 हेक्टेयर भूमि पर होती है. जिले के तारापुर, हवेली खड़कपुर, बरियारपुर ,धरहर और सदर प्रखंड में इसकी अच्छी खेती (Good Potato Cultivation) होती है, लेकिन अधिकतर किसान जानकारी के अभाव में सही बीज का चयन नहीं कर पाते और बोने की सही विधि की जानकारी नहीं होने से अच्छी पैदावार नहीं ले पाते. जिससे कई बार उनको नुकसान हो जाता है.
वहीं, इस बार कृषि विभाग (Agriculture Department) ट्रू पोटैटो सीड (True Potato Seed) विधि के बारे में उनको जानकारी दी जा रही है ताकि उन्हें अच्छी पैदावार मिल सके.
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आलू की बेहतर खेती (Good Potato Cultivation) के लिए कृषि वैज्ञानिक विनोद कुमार (Agriculture Scientist Vinod Kumar) ने बताया कि खेत की दो से तीन बार गहरी जुताई कर मिट्टी को अच्छी तरह से भुरभुरी कर लें. इसमें सड़ी हुई गोबर की खाद, घर से कूड़ा के रूप में निष्कासित राख और पशुओं के शेड के अवशिष्ट को अच्छी तरह मिट्टी में मिला कर समतल कर लें. इसके उपरांत बाजार में उपलब्ध कुफरी के अच्छी प्रजाति के आलू के बीज की किस्म को अपने आवश्यकता अनुसार चयन करें. मध्यम आकार के आलू के कन्द को 6 सेंटीमीटर की दूरी पर खेतों में लगाएं और कतार से कतार की दूरी 40 से 45 सेंटीमीटर रखें.
उन्होंने बताया कि आलू के कंद की बुवाई करते समय डीएपी एवं पोटाश की मात्रा मिट्टी के आवश्यकता अनुसार इस्तेमाल करें. कंद को मिट्टी से अच्छी प्रकार से ढक दें ताकि कंद के आसपास की नमी को संरक्षित रखा जा सके. बवाई के करीब एक माह बाद मिट्टी की नमी के अनुसार पहली सिंचाई कर दें ताकि अंकुरित पौधे जल्द से जल्द सही आकार एवं स्वस्थ होकर कतारों को भरने लायक हो जाएं. सिंचाई के उपरांत कृषक मिट्टी चढ़ाते वक्त पोटाश की अतिरिक्त मात्रा का इस्तेमाल करें ताकि आलू की अच्छी उपज ली जा सके.
आलू की फसल मे पोटाश की अधिक खुराक देने पर उपज में वृद्धि होती है. जब तापमान में असमय परिवर्तन होने लगे तथा आसमान में बादल दिखाई दें तो ऐसे समय में किसान आलू की फसल को पाले से बचाव हेतु उचित रासायनिक दवा का समय पर छिड़काव करें. मैदानी इलाकों में आलू के लिए पाला एक गंभीर बीमारी है. जो उपज को काफी प्रभावित करती है.
'आलू की बंगाल टाइगर किस्म को खेत में बीज के रूप में डाले हैं. उन्हें नहीं पता कि कौन सा बीज उन्नत होता है. दुकानदार ने बताया और बीज लेकर हमने खेत में डाल दिया. हमें आलू के झुलसा (पाला) रोग से डर लगा रहता है. अत्यधिक ठंड होने के कारण आलू की लत्तर में यह बीमारी लगती है और लत्तर गल जाती है. जिससे फसल नुकसान हो जाता है. कृषि विभाग द्वारा भी हमें कोई जानकारी नहीं मिलती.' -सुमन कुमार, किसान
'जिले में अभी एक हजार हैक्टेयर में आलू की खेती होती है. अधिक से अधिक किसानों को आलू की खेती करने के लिए प्रोत्साहित किया जा रहा है. ट्रू पोटैटो सीड (टीपीएस) विधि के बारे में किसानों को जानकारी दी जा रही है ताकि आलू बीज उत्पादन के मामले में जिले के किसान आत्मनिर्भर हो सकें' -विनोद कुमार, कृषि वैज्ञानिक
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