मुंगेर : बिहार की स्वास्थ्य व्यवस्था हमेशा से सुर्खियों में रहा है. ऐसे में मुंगेर जिले से एक और शर्मसार कर देने वाली घटना सामने आई है. सदर अस्पताल में हुए इस अमानवीय व्यवहार को ईटीवी भारत संवाददाता ने रात के 1 बजे अपने कैमरे में कैद किया.
सोचिए, जिस घर की बेटी ने फांसी लगाकर खुदकुशी कर ली हो. उस घर के लोगों का क्या हाल होगा. मानसिक रूप से वे कितना परेशान होंगे. इसके बाद, उन्हें अपनी बेटी की लाश को मुखाग्नि देने के लिए सिर्फ इसलिए इंतजार करना पड़े क्योंकि उसका पोस्टमार्टम समय पर नहीं हो पाए तो क्या कहेंगे!
लाश के साथ गुजारी पूरी रात
रात के 1 बजे, जब ईटीवी भारत के संवाददाता सदर अस्पताल पहुंचे. यहां जो दृश्य उन्होंने देखा. उसे देख ये समझ में नहीं आया कि जिंदा और मरे हुए इंसान में क्या अंतर हो सकता है? क्योंकि यहां एक नहीं 11 लोग बेसुध लेटे हुए थे और उनके साथ वहीं, जमीन पर पड़ी हुई थी एक लाश. लाश के सिर के पास अगरबत्ती लगी थी, तो समझ आ रहा था कि वो लाश है. लेकिन ठंड के दरम्यान, जिस तरह लोग अपनी बेटी की लाश के पास लेटे हुए थे. वो रूह को कंपा देने वाला था.
मुंगेर जिले के कासिम बाजार थाना क्षेत्र में 14 वर्षीय प्रीति कुमारी ने शनिवार की दोपहर घर में फांसी लगाकर आत्महत्या कर ली. सूचना मिलने पर कासिम बाजार थाना पुलिस ने शव को कब्जे में लेकर सदर अस्पताल पोस्टमार्टम के लिए भेज दिया. इसके साथ ही युवती के परिजन भी शव के साथ सदर अस्पताल पहुंचे. लेकिन वहां देर रात तक पोस्टमार्टम नहीं हो पाया.
'शव को किसी तरह की सुरक्षा नहीं दी गई, उसे सड़क पर छोड़ दिया गया. कुत्ते या कोई अन्य अवारा जानवर उसे नोच लेते. इसलिए हम पूरी रात यहां बैठे हैं.'- अनीता देवी, मृतक प्रीती की बड़ी मां
शव को नहीं मिली दो गज जमीन
मृतक की बड़ी मां अनीता देवी ने कहा कि हम लोग शाम को 4 बजे यहां पहुंचे. यहां डाक्टरों ने कहा कि समय खत्म हो गया, अब सुबह पोस्टमार्टम होगा और बॉडी को सड़क किनारे ही छोड़ दिया गया. शव खुले में सड़क किनारे शाम 7 बजे से यूं ही पड़ा है. अनीता ने कहा कि हमारी बेटी का शव हम खुले में सड़क के पास कैसे छोड़ देते. लिहाजा, हम इसे लेकर सदर अस्पताल के गेट के पास आ गए. वहां, सुरक्षाकर्मियों ने हमें ये कहकर भगा दिया कि आप यहां लाश नहीं रख सकते. इसके बाद हम लोग दवा काउंटर के बाहर बने शेड के नीचे शव ले आए. अब सुबह का इंतजार कर रहे हैं.
11 लोग और लाश
लाश के साथ परिवार के लगभग 11 सदस्य मौजूद मिले. इनमें चार छोटे-छोटे बच्चे भी थे, जो बगल में ही कंबल ओढ़कर लेटे हुए थे. परिजनों ने बताया कि ठंड का मौसम है. शीतलहर भी चल रही है इसलिए शेड के नीचे बैठकर खुद ही अलाव जलाकर अपने आप को गर्म रखने की कोशिश कर रहे हैं. वहीं, मृतक प्रीति के मामा दीपक ने बताया कि कोई भी इंसान लाश के साथ नहीं सो सकता. लेकिन हम लोग क्या करें ? बगल में मेरी भांजी की लाश है और उसके बगल में हमारे बच्चे भी कंबल ओढ़ कर सोए हुए हैं.
यहां पूरे मामले को देख सिर्फ और सिर्फ सिस्टम पर ही सवाल खड़ा होता है. दरअसल, वहां मौजूद जवान ने बताया कि बड़े बाबू के निर्देश पर यहां डेड बॉडी के साथ हूं. उन्होंने कहा कि लाश को अकेले सड़क के किनारे छोड़ देते तो आवारा जानवर उसे नुकसान पहुंचा देते. इसलिए हम परिवार के साथ यहीं बैठे हुए अलाव सेक रहे हैं. क्या करें परिवार के लोग भी लाश के साथ ही सो रहे हैं. हम तो सरकारी मुलाजिम हैं, ड्यूटी निभा रहे हैं. अधिकारियों ने जो व्यवस्था की है, उसका पालन हंसकर या रोकर करना पड़ता है. लेकिन यह ठीक नहीं है कि एक लाश के साथ 11 लोग सोने को मजबूर हैं.
सच कहा, क्या करें मजबूरी है. तभी तो पोस्टमार्टम के नाम पर एक पीड़ित परिवार को इस तरह लाश के साथ रातभर सोना पड़ा. हां ये बिहार सरकार की मजबूरी है कि स्वास्थ्य व्यवस्था चरमराई हुई है.