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सुजनी कला की सिद्धहस्त कर्पूरी देवी का निधन, CM नीतीश कुमार ने जताया शोक

कर्पूरी देवी मिथिला की धरोहर मानी जाती थीं. उन्हें भारत सरकार ने पहली बार 1986 में नेशनल अवार्ड से सम्मानित किया था. उन्होंने देश ही नहीं बल्कि विदेशों में भी अपनी कला के बदौलत मिथिला की अलग पहचान बनाई थी.

कर्पूरी देवी
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Published : Jul 31, 2019, 1:16 PM IST

Updated : Jul 31, 2019, 3:28 PM IST

मधुबनी: मिथिला पेंटिंग और सुजनी कला की सिद्धहस्त शिल्पी कर्पूरी देवी का निधन हो गया है. वो 90 वर्ष की थी. कर्पूरी देवी लंबे समय से बीमार चल रही थीं. उनका इलाज शहर के एक निजी अस्पताल में चल रहा था, जहां उन्होंने अंतिम सांस ली. सीएम नीतीश कुमार ने उनके निधन पर गहरी संवेदना व्यक्त की है.

कर्पूरी देवी के निधन से सुजनी कला युग का अंत

1986 में मिला था नेशनल अवार्ड
कर्पूरी देवी मिथिला की धरोहर मानी जाती थीं. उन्हें भारत सरकार ने पहली बार 1986 में नेशनल अवार्ड से सम्मानित किया था. उन्हें कई अन्य पुरस्कारों से भी नवाजा जा चुका है. कर्पूरी देवी ने देश ही नहीं, बल्कि विदेशों में भी अपनी कला की बदौलत मिथिला की अलग पहचान बनाई थी.

madhubani
कर्पूरी देवी के निधन से सुजनी कला युग का अंत

सुजनी कला युग का अंत
कर्पूरी देवी के निधन से कला क्षेत्र के लोग मर्माहत हैं. कर्पूरी देवी के गांव राटी में उदासी छाई हुई है. उनके निधन से सुजनी कला युग का अंत हो गया.

पद्म श्री से किया गया था सम्मानित
पेंटिंग की सुजनी कला में कर्पूरी देवी को महारत हासिल थी. हाल ही में उनकी गोतनी महासुंदरी देवी को पद्म श्री से सम्मानित किया गया था. मिथिला पेंटिंग के क्षेत्र में देश ही नहीं बल्कि दुनिया भर में जाना पहचाना नाम थी कर्पूरी देवी. दुनियाभर में बिहार की कला को सांस्कृतिक दूत के रूप में पहुंचाने में इनका बड़ा योगदान था. फ्रांस हो या जर्मनी या फिर अमेरिका वहां की आर्ट गैलरी में इनकी मिथिला पेंटिंग लगती थी.

madhubani
मिथिला की धरोहर कर्पूरी देवी

विदेशों में भी बनाई थी पहचान
कर्पूरी देवी, जापान, अमेरिका और फ्रांस जा चुकी हैं. इनकी बनाई मिथिला पेंटिंग को इन देशों के लोग बड़े शौक से खरीदते थे. मिथिला पेंटिंग के संरक्षक जापानी हाशिगावा के निमंत्रण पर कर्पूरी देवी पहली बार 1988 में जापान गई थीं. बता दें कि हाशिगावा ने ही जापान में मिथिला म्यूजियम स्थापित किया है.

patna
जापानी संगीतकार हाशिगावा

कौन हैं हाशिगावा?
चर्चित जापानी संगीतकार हाशिगावा, 1982 में भारत की यात्रा पर आये थे. भारत में उन्होंने किसी से मधुबनी पेंटिंग के बारे में सुना था. जापान लौटने पर हाशिगावा ने अपने गृहनगर निगाता में मिथिला म्यूजियम की स्थापना की. हाशिगावा बिहार के कलाकारों से मधुबनी पेंटिंग खरीदते हैं. साथ ही कई कलाकारों को वे जापान भी बुलाते हैं. कर्पूरी देवी भी हाशिगावा के बुलावे पर जापान गई थी.

मधुबनी: मिथिला पेंटिंग और सुजनी कला की सिद्धहस्त शिल्पी कर्पूरी देवी का निधन हो गया है. वो 90 वर्ष की थी. कर्पूरी देवी लंबे समय से बीमार चल रही थीं. उनका इलाज शहर के एक निजी अस्पताल में चल रहा था, जहां उन्होंने अंतिम सांस ली. सीएम नीतीश कुमार ने उनके निधन पर गहरी संवेदना व्यक्त की है.

कर्पूरी देवी के निधन से सुजनी कला युग का अंत

1986 में मिला था नेशनल अवार्ड
कर्पूरी देवी मिथिला की धरोहर मानी जाती थीं. उन्हें भारत सरकार ने पहली बार 1986 में नेशनल अवार्ड से सम्मानित किया था. उन्हें कई अन्य पुरस्कारों से भी नवाजा जा चुका है. कर्पूरी देवी ने देश ही नहीं, बल्कि विदेशों में भी अपनी कला की बदौलत मिथिला की अलग पहचान बनाई थी.

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कर्पूरी देवी के निधन से सुजनी कला युग का अंत

सुजनी कला युग का अंत
कर्पूरी देवी के निधन से कला क्षेत्र के लोग मर्माहत हैं. कर्पूरी देवी के गांव राटी में उदासी छाई हुई है. उनके निधन से सुजनी कला युग का अंत हो गया.

पद्म श्री से किया गया था सम्मानित
पेंटिंग की सुजनी कला में कर्पूरी देवी को महारत हासिल थी. हाल ही में उनकी गोतनी महासुंदरी देवी को पद्म श्री से सम्मानित किया गया था. मिथिला पेंटिंग के क्षेत्र में देश ही नहीं बल्कि दुनिया भर में जाना पहचाना नाम थी कर्पूरी देवी. दुनियाभर में बिहार की कला को सांस्कृतिक दूत के रूप में पहुंचाने में इनका बड़ा योगदान था. फ्रांस हो या जर्मनी या फिर अमेरिका वहां की आर्ट गैलरी में इनकी मिथिला पेंटिंग लगती थी.

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मिथिला की धरोहर कर्पूरी देवी

विदेशों में भी बनाई थी पहचान
कर्पूरी देवी, जापान, अमेरिका और फ्रांस जा चुकी हैं. इनकी बनाई मिथिला पेंटिंग को इन देशों के लोग बड़े शौक से खरीदते थे. मिथिला पेंटिंग के संरक्षक जापानी हाशिगावा के निमंत्रण पर कर्पूरी देवी पहली बार 1988 में जापान गई थीं. बता दें कि हाशिगावा ने ही जापान में मिथिला म्यूजियम स्थापित किया है.

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जापानी संगीतकार हाशिगावा

कौन हैं हाशिगावा?
चर्चित जापानी संगीतकार हाशिगावा, 1982 में भारत की यात्रा पर आये थे. भारत में उन्होंने किसी से मधुबनी पेंटिंग के बारे में सुना था. जापान लौटने पर हाशिगावा ने अपने गृहनगर निगाता में मिथिला म्यूजियम की स्थापना की. हाशिगावा बिहार के कलाकारों से मधुबनी पेंटिंग खरीदते हैं. साथ ही कई कलाकारों को वे जापान भी बुलाते हैं. कर्पूरी देवी भी हाशिगावा के बुलावे पर जापान गई थी.

Intro:सुजनी कला के कर्पूरी देवी का हुआ निधन,मधुबनीBody:मधुबनी
मधुबनी मिथिला पेंटिंग के शिल्पी एबं नेशनल अवार्ड से सम्मानित कर्पूरी देवी का निधन हो गया।वे 90 बर्ष की थी।वे लंबे समय से बीमार चल रही थी।सोमवार की देर रात अंतिम सांस ली।निजी अस्पताल में उनका इलाज चल रहा था।वे मिथिला के धरोहर थी।उन्हें भारत सरकार ने पहली बार 1986 मे नेशनल अवार्ड से सम्मानित किया था।उन्हें कई अन्य पुरस्कारों से सम्मनित किया गया था।वे देश के अलावा विदेशो में भी अपनी कला के बदौलत अपनी मिथिला की अलग पहचान बनाई।वे अपनी कला को लेकर जापान,अमेरिका,फ्रांस में पहचान बनाई।वे कला को लेकर चार बार जापान दो बार अमेरिका की गई थी।उनके निधन से कला क्षेत्र के लोग मर्माहत है।उनके गांव राटी में उदासी छाई हुई हैं।उनके निधन से सुजनी कला युग का अंत हो गया।
बाइट खस्टिनाथ झा,समाजसेवि
राज कुमार झा,,मधुबनीConclusion:
Last Updated : Jul 31, 2019, 3:28 PM IST
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