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मूर्तियों में रंग भरने वालों की जिंदिगी हो रही बेरंग, सीजन खत्म होने के बाद भूखमरी की आती है नौबत - saraswati pooja

मूर्तिकारों का कहना है कि सिर्फ दुर्गा पूजा या सरस्वती पूजा में ही रोजगार मिलता है, जबकि पूरे साल बेरोजगारी झेलनी पड़ती है.

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Published : Feb 5, 2019, 1:20 PM IST

मधेपुराः दुर्गा पुजा हो या सरस्वती पूजा, जैसे ही ये त्योहार नजदीक आने लगते हैं, वैसे ही मूर्तिकार मूर्तियां बनाने में जुट जाते हैं. मूर्तिकार अपनी कला का इस्तेमाल करके मिट्टी के गिलावे को एक से बढ़ के एक देवी-देवाताओं का रूप देते हैं. फिर मट्टी की इन मूर्तियों को रंग बिरंगे अंदाज में सजाकर पुजा के लिए तैयार करते हैं, लेकिन मूर्तियों में रंग भरने वाले मूर्तिकारों की जिंदिगी खुद बेरंग हो कर रह गई है.

इन दिनों मूर्तिकारों की हालत बद से बदतर होती जा रही है. ऐसे मूर्तिकारों पर सरकार का भी कोई ध्यान नहीं है. जिससे ये लोग बेरोजगार होते जा रहे हैं. मूर्तिकारों के पास इतनी कला होती है कि जब चाहे किसी की भी मूर्ति बना देते हैं. लेकिन इनके बारे में सोचने वाला कोई नहीं है. सरस्वती पूजा जैसे ही नजदीक आने लगता है वैसे ही मूर्तिकार मूर्ति बनाने लगते हैं. मिट्टी गुथने के साथ साथ पूर्ण रूप से मूर्ति बनाना पड़ता है. एक मूर्ति बनाने में तीन से चार दिन लग जाता है.

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1000 से 1200 रुपये बिकती है मूर्तियां

पूरी तरह से तैयार करने के बाद 1000 से 1200 रुपये इसकी कीमत लगाई जाती है. जो महंगाई के हिसाब से बहुत कम है. इनका मानना है कि जब दशहरा या सरस्वती पूजा आता है, उसी समय काम मिलता है, इसी कमाई से पूरे एक साल तक पूरे परिवार को खिलाना पड़ता है. क्योंकि जो भी मूर्ति बनती है वो पर्व त्योहार में ही बनती है. बाकी दिन इसी तरह बैठकर खाना पड़ता है.

सरस्वती पूजा के लिए सजी मूर्तियां
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क्या है मूर्तिकारों का कहना

मूर्तिकारों का कहना है कि सरकार भी हमलोंगो के बारे में कुछ नहीं सोचती है. जहां मूर्ति हमलोग बनाते हैं वो जमीन एक से दो माह के लिए किराए पर लेते हैं. जबकि सरकार को मूर्तिकारों के लिए जमीन उपलब्ध करानी चाहिए, ताकि हमलोग वहां मूर्तियों का निर्माण कर सके, वहीं छत्रों का मानना है कि मूर्ति इतना महंगा हो गया है कि खरीदना मुश्किल हो गया है.

मधेपुराः दुर्गा पुजा हो या सरस्वती पूजा, जैसे ही ये त्योहार नजदीक आने लगते हैं, वैसे ही मूर्तिकार मूर्तियां बनाने में जुट जाते हैं. मूर्तिकार अपनी कला का इस्तेमाल करके मिट्टी के गिलावे को एक से बढ़ के एक देवी-देवाताओं का रूप देते हैं. फिर मट्टी की इन मूर्तियों को रंग बिरंगे अंदाज में सजाकर पुजा के लिए तैयार करते हैं, लेकिन मूर्तियों में रंग भरने वाले मूर्तिकारों की जिंदिगी खुद बेरंग हो कर रह गई है.

इन दिनों मूर्तिकारों की हालत बद से बदतर होती जा रही है. ऐसे मूर्तिकारों पर सरकार का भी कोई ध्यान नहीं है. जिससे ये लोग बेरोजगार होते जा रहे हैं. मूर्तिकारों के पास इतनी कला होती है कि जब चाहे किसी की भी मूर्ति बना देते हैं. लेकिन इनके बारे में सोचने वाला कोई नहीं है. सरस्वती पूजा जैसे ही नजदीक आने लगता है वैसे ही मूर्तिकार मूर्ति बनाने लगते हैं. मिट्टी गुथने के साथ साथ पूर्ण रूप से मूर्ति बनाना पड़ता है. एक मूर्ति बनाने में तीन से चार दिन लग जाता है.

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1000 से 1200 रुपये बिकती है मूर्तियां

पूरी तरह से तैयार करने के बाद 1000 से 1200 रुपये इसकी कीमत लगाई जाती है. जो महंगाई के हिसाब से बहुत कम है. इनका मानना है कि जब दशहरा या सरस्वती पूजा आता है, उसी समय काम मिलता है, इसी कमाई से पूरे एक साल तक पूरे परिवार को खिलाना पड़ता है. क्योंकि जो भी मूर्ति बनती है वो पर्व त्योहार में ही बनती है. बाकी दिन इसी तरह बैठकर खाना पड़ता है.

सरस्वती पूजा के लिए सजी मूर्तियां
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क्या है मूर्तिकारों का कहना

मूर्तिकारों का कहना है कि सरकार भी हमलोंगो के बारे में कुछ नहीं सोचती है. जहां मूर्ति हमलोग बनाते हैं वो जमीन एक से दो माह के लिए किराए पर लेते हैं. जबकि सरकार को मूर्तिकारों के लिए जमीन उपलब्ध करानी चाहिए, ताकि हमलोग वहां मूर्तियों का निर्माण कर सके, वहीं छत्रों का मानना है कि मूर्ति इतना महंगा हो गया है कि खरीदना मुश्किल हो गया है.

Intro:इन दिनों मूर्तिकारों की हालत बद से बदतर होती जा रही है। ऐसे मूर्तिकारों पर सरकार का भी ध्यान नही है।जिससे ये लोग बेरोजगार देते जा रहे हैं।


Body:मूर्तिकारों के पास इतना कला होता है कि जब चाहे किसी की मूर्ति बना देते हैं। लेकिन इनके बारे में सोचने वाला कोई नहीं है। सरस्वती पूजा जैसे ही नजदीक आने लगता है वैसे ही मूर्तिकार मूर्ति बनाने लगते हैं। मिट्टी गुथने के साथ साथ पूर्ण रूप से मूर्ति बनाना पड़ता है। एक मूर्ति बनाने में तीन से चार दिन लग जाता है। और पूर्ण रूप से सौन्दरिकर्ण करने के बाद 1000 से 1200 रुपए मूल्य लगाई जाती है। जो महंगाई के हिसाब से कम है। इनका मानना है कि जब दशहरा या सरस्वती पूजा आता है उसी समय काम मिलता है और इसी कमाई से पूरे दिन बेरोजगार होकर एक साल तक पूरे परिवार को खिलाना पड़ता है। क्योंकि जो भी मूर्ति बनता है वो पर्व त्योहार में ही बनता है। बाकी दिन इसी तरह बैठकर खाना पड़ता है। सरकार भी हमलोंगो के बारे में कुछ भी नही सोचती है जहां मूर्ति हमलोग बनाते हैं वो जमीन एक से दो माह के लिए किराय पर लेते हैं जबकि सरकार को मूर्तिकारों के लिए जमीन उपलब्ध करानी चाहिए ताकि हमलोग वहां मूर्तियों का निर्माण कर सके।वहीं छत्रों का मानना है कि मूर्ति इतना महंगा हो गया है कि खरीदना मुश्किल हो गया है
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2 मूर्तिकार
3 छात्र


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