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इतिहास बनने की राह में है किउल नदी, हर दिन फेंका जा रहा शहर का कचरा

लखीसराय शहर के लोग अपने घरों की गंदे नालियों का पानी किऊल नदी में बहा रहे हैं. लोगों ने नदी की जमीन पर खुदाई कर घर बनना भी शुरू कर दिया है. पुलिस एवं प्रशासन के आलाधिकारी भी इस मामले में उदासीन बने हुए हैं.

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Published : May 10, 2019, 12:05 AM IST

Updated : May 10, 2019, 12:12 AM IST

किउल नदी

लखीसराय: आबादी और विकास की वजह से देश की नदियां लगातार बदलाव से गुजर रही है. सालों भर जल प्रदान करने वाली नदियां अब मौसमी बनकर रह गयी हैं. कई छोटी नदियां पहले ही गायब हो चुकी हैं. जो बच गयी हैं वे एक चौड़े नाले की शक्ल ले चुकी हैं. लखीसराय शहर किनारे अवस्थित ऐतिहासिक किऊल नदी भी इन सबसे अलग नहीं है. इस नदी की स्थिति पर एक रिपोर्ट

संकट में है स्थानीय लोगों और जलीय जीवों का जीवन
पर्यावरण में हो रहे लगातार बदलाव से किउल नदी में बाढ़ और सूखे की स्थिति बार-बार पैदा हो रही है. मानसून के दौरान किऊल नदी कई गांव को खत्म कर देती है. लेकिन, बारिश का मौसम खत्म होने के बाद रेगिस्तान बन जाती है. कभी अपनी प्राकृतिक छटा के लिए मशहूर रही किऊल नदी के बहने वाले रास्ते में दूर-दूर तक बहुतायत में मिट्टी दिखने लगी है. इस कारण इस पर आश्रित रहने वाले स्थानीय लोगों और जलीय जीवों पर भी जीवन संकट में है.

स्थानीय लोगों का बयान

पुलिस एवं प्रशासन के आलाधिकारी हैं उदासीन
लखीसराय शहर के लोग अपने घरों की गंदी नालियों का पानी किऊल नदी में बहा रहे हैं. लोगों ने नदी की जमीन पर खुदाई कर घर बनाना भी शुरू कर दिया है. पुलिस एवं प्रशासन के आलाधिकारी भी इस मामले में उदासीन बने हुए हैं. सबकुछ देखने के बावजूद प्रशासन के अधिकारी मौन साधे हुए हैं. इस विषय पर वे कुछ भी बोलने से बचते हैं.

सतर्क नहीं हुए तो इतिहास बन जाएगी किउल
एक व्यापक नीति और सरकार के सख्त कार्रवाई के द्वारा इस नदी को पोषित किया जा सकता है जिससे यह नदी आने वाली पीढ़ियों का पालन पोषण कर सके. अगर समय रहते लोग सतर्क नहीं हुए तो इस नदी के इतिहास बनते देर नहीं लगेगी.

लखीसराय: आबादी और विकास की वजह से देश की नदियां लगातार बदलाव से गुजर रही है. सालों भर जल प्रदान करने वाली नदियां अब मौसमी बनकर रह गयी हैं. कई छोटी नदियां पहले ही गायब हो चुकी हैं. जो बच गयी हैं वे एक चौड़े नाले की शक्ल ले चुकी हैं. लखीसराय शहर किनारे अवस्थित ऐतिहासिक किऊल नदी भी इन सबसे अलग नहीं है. इस नदी की स्थिति पर एक रिपोर्ट

संकट में है स्थानीय लोगों और जलीय जीवों का जीवन
पर्यावरण में हो रहे लगातार बदलाव से किउल नदी में बाढ़ और सूखे की स्थिति बार-बार पैदा हो रही है. मानसून के दौरान किऊल नदी कई गांव को खत्म कर देती है. लेकिन, बारिश का मौसम खत्म होने के बाद रेगिस्तान बन जाती है. कभी अपनी प्राकृतिक छटा के लिए मशहूर रही किऊल नदी के बहने वाले रास्ते में दूर-दूर तक बहुतायत में मिट्टी दिखने लगी है. इस कारण इस पर आश्रित रहने वाले स्थानीय लोगों और जलीय जीवों पर भी जीवन संकट में है.

स्थानीय लोगों का बयान

पुलिस एवं प्रशासन के आलाधिकारी हैं उदासीन
लखीसराय शहर के लोग अपने घरों की गंदी नालियों का पानी किऊल नदी में बहा रहे हैं. लोगों ने नदी की जमीन पर खुदाई कर घर बनाना भी शुरू कर दिया है. पुलिस एवं प्रशासन के आलाधिकारी भी इस मामले में उदासीन बने हुए हैं. सबकुछ देखने के बावजूद प्रशासन के अधिकारी मौन साधे हुए हैं. इस विषय पर वे कुछ भी बोलने से बचते हैं.

सतर्क नहीं हुए तो इतिहास बन जाएगी किउल
एक व्यापक नीति और सरकार के सख्त कार्रवाई के द्वारा इस नदी को पोषित किया जा सकता है जिससे यह नदी आने वाली पीढ़ियों का पालन पोषण कर सके. अगर समय रहते लोग सतर्क नहीं हुए तो इस नदी के इतिहास बनते देर नहीं लगेगी.

Intro:Lakhisarai l bihar

Slug...सुखती नदियाँ, घटते जलस्तर से आमतौर पर पीने की पानी के लिए हो रही हैं परेशानी,

रिपोर्ट..रणजीत कुमार सम्राट

Date..09 May 2019

Anchor...लखीसराय जिले के ऐतिहासिक किऊल नदी सुख जाने से आमतौर पर जल स्तर घटने लग जाता हैं। स्थानीय लोगों के बीच पीने की पानी के लिए परेशानी शुरू होने लगता है।

किऊल नदी लगातार बदलाव से गुजर रही है। आबादी और विकास के दबाव के कारण हमारी नदियां मौसमी बन रही है । कई छोटी नदियां पहले ही गायब हो चुकी है। बाढ़ और सूखे की स्थिति बार-बार पैदा हो रही है । क्योंकि नदिया मानसून के दौरान बेकाबू हो जाती है और बारिश का मौसम खत्म होने के बाद गायब सी हो जाती है । लखीसराय शहर किनारे अवस्थित किऊल नदी लगातार कई वर्षों से रेगिस्तान बन गया है । विगत 15 सालों से अपने गुजारे के लिए जितने पानी की हमें जरूरत है उसका भी 50% जल किऊल नदी से नहीं मिल पाता है ।

किऊल नदी कभी हमारे लिए जल की 65 फीसदी जरूरत नदियों से पूरी होती थी। लखीसराय शहर में पहले से ही रोज पानी की कमी से जूझ रहे बहुत से शहरी लोगों को एक कैन पानी के लिए सामान से 10 गुना अधिक खर्च करना पड़ता है । हम सिर्फ पीने या घरेलू इस्तेमाल के लिए जल का उपयोग नहीं करते बल्कि 80फीसदी पानी हमारे भोजन को उगाने के लिए भी कृषि क्षेत्र में इस्तेमाल होता है। हर व्यक्ति की औसत जल की आवश्यकता 11लाख लीटर सालाना है। बाढ़ ,सूखा और नदियों के मौसमी होने से देश में फसल बर्बाद होने की घटनाएं भी बढ़ रही है । बिहार सरकार द्वारा इसी किऊल नदी से किऊल लोयर नहर का निर्माण किया गया। जिससे लखीसराय जिले के धनहर इलाकों मे धान और गेहूँ की खेतों में आनाज उपजाया जा रहा है। हलसी प्रखंड, रामगढ़ चौक प्रखंड, चानन प्रखंड और सूर्यगढ़ा प्रखंड के हजारों एकड़ जमीन पर दो फसलों की खेती की जा रही हैं। अब स्थिति ठीक विपरीत हो रही हैं।

लखीसराय मे 10 से 15 सालों में जलवायु परिवर्तन के कारण बाढ़ और सूखे की स्थिति और बदतर होगी । मानसून के समय नदियों में बाढ़ आएगी बाकी साल सूखा रहेगा। यह रुझान भी शुरू हो चुके हैं । यह बहुत ही मुश्किल परिस्थिति है पर एक व्यापक नीति और सरकार के सख्त कार्रवाई के द्वारा हमारी नदियों को पोषित किया जा सकता है जिससे पर आने वाली पीढ़ियों का पालन पोषण कर सकेगी । नदियों को नया जीवन देने के लिए जो समाधान सुलझाया जा रहा है उसके बारे में ज्यादा जानकारी भी हमें मिलनी चाहिए । जल संरक्षण अति आवश्यक है। हमें पानी संरक्षण के लिए कोई धरना या विरोध प्रदर्शन नहीं करना है बल्कि इसे एक अभियान चलाकर जलसंकट से निजात दिलाने के लिए जागरूकता फैलाना चाहिए। हमारी नदियां सूख रही है हर वह इंसान जो पानी पीता है उसे इस नदी मे जल संरक्षण अभियान में अपना सहयोग देना चाहिए। लेकिन ठीक उसके विपरीत लखीसराय शहर के लोग अपने घरों के गंदे नालीयों के पानी किऊल नदी में बहाया जा रहा है। जिससे किऊल नदी प्रदूषित हो चुका है। गर्मी का मौसम अभी शुरू ही हुआ है लेकिन क्यूल नदी सूखने लग गई है। घटते जलस्तर जन जीवन को प्रभावित करने लगा है। ।

किऊल नदी सिकुड़ती जा रही है। नदी के दोनों किनारों पर आम लोगों की बसावट बढ़ने लगा है । नदियों के जमीन पर खुदाई कर घर बनना भी शुरू हो चुका है। किऊल नदी रेगिस्तान जैसा दिख रहा है। नदियों की दुर्दशा को देखकर लोग परेशान हैं उसके ऊपर शहर के गंदे नाले के पानी नदियों को प्रदूषणयुक्त बनाया जा रहा है। अगर समय रहते लोग सतर्क नहीं हुआ तो एक दिन हर आम आदमी को परिणाम भुगतने पड़ सकते हैं।

बाइट.. डाँ संतोष कुमार... चिकित्सक

बाइट.. मो सिकंदर.. स्थानीय प्रभावित लोग



Body:सुखती नदियाँ, घटते जलस्तर से आमतौर पर पीने की पानी के लिए हो रही हैं परेशानी,

किऊल नदी लगातार बदलाव से गुजर रही है। आबादी और विकास के दबाव के कारण हमारी नदियां मौसमी बन रही है । कई छोटी नदियां पहले ही गायब हो चुकी है। बाढ़ और सूखे की स्थिति बार-बार पैदा हो रही है । क्योंकि नदिया मानसून के दौरान बेकाबू हो जाती है और बारिश का मौसम खत्म होने के बाद गायब सी हो जाती है । लखीसराय शहर किनारे अवस्थित किऊल नदी लगातार कई वर्षों से रेगिस्तान बन गया है । विगत 15 सालों से अपने गुजारे के लिए जितने पानी की हमें जरूरत है उसका भी 50% जल किऊल नदी से नहीं मिल पाता है ।

किऊल नदी कभी हमारे लिए जल की 65 फीसदी जरूरत नदियों से पूरी होती थी। लखीसराय शहर में पहले से ही रोज पानी की कमी से जूझ रहे बहुत से शहरी लोगों को एक कैन पानी के लिए सामान से 10 गुना अधिक खर्च करना पड़ता है । हम सिर्फ पीने या घरेलू इस्तेमाल के लिए जल का उपयोग नहीं करते बल्कि 80फीसदी पानी हमारे भोजन को उगाने के लिए भी कृषि क्षेत्र में इस्तेमाल होता है। हर व्यक्ति की औसत जल की आवश्यकता 11लाख लीटर सालाना है। बाढ़ ,सूखा और नदियों के मौसमी होने से देश में फसल बर्बाद होने की घटनाएं भी बढ़ रही है । बिहार सरकार द्वारा इसी किऊल नदी से किऊल लोयर नहर का निर्माण किया गया। जिससे लखीसराय जिले के धनहर इलाकों मे धान और गेहूँ की खेतों में आनाज उपजाया जा रहा है। हलसी प्रखंड, रामगढ़ चौक प्रखंड, चानन प्रखंड और सूर्यगढ़ा प्रखंड के हजारों एकड़ जमीन पर दो फसलों की खेती की जा रही हैं। अब स्थिति ठीक विपरीत हो रही हैं।


Conclusion:सुखती नदियाँ, घटते जलस्तर से आमतौर पर पीने की पानी के लिए हो रही हैं परेशानी,
किऊल नदी सिकुड़ती जा रही है। नदी के दोनों किनारों पर आम लोगों की बसावट बढ़ने लगा है । नदियों के जमीन पर खुदाई कर घर बनना भी शुरू हो चुका है। किऊल नदी रेगिस्तान जैसा दिख रहा है। नदियों की दुर्दशा को देखकर लोग परेशान हैं उसके ऊपर शहर के गंदे नाले के पानी नदियों को प्रदूषणयुक्त बनाया जा रहा है। अगर समय रहते लोग सतर्क नहीं हुआ तो एक दिन हर आम आदमी को परिणाम भुगतने पड़ सकते हैं।
Last Updated : May 10, 2019, 12:12 AM IST
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