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किशनगंज: जिले के किसान कर रहे रेशम की खेती, कमा रहे लाखों

रेशम की खेती ऐसा व्यवसाय है. जिसमें किसान काफी अच्छा मुनाफा कमाते हैं. दुनिया के कुल कच्चे रेशम में से 14 फीसदी भारत में उत्पादित होता है. रेशम की चारों वैराइटी उत्पादित करने के कारण दुनिया में भारत का अलग स्थान है.

रेशम कीट के लिए शहतूत की खेती
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Published : Aug 19, 2019, 4:25 PM IST

किशनगंज: जिला मुख्यालय से 30 किलोमीटर दूर मैदा गांव बसा हुआ है. यहां के किसान ने पारंपरिक खेती छोड़ नई खेती को अपनाया है. नई खेती से किसानों की आमदनी बढ़ गई है.
किशनगंज के मैदा गांव के किसान शहतूत की खेती कर रहे हैं. पारंपरिक खेती से पैसे नहीं मिलने के बाद किसान अब इस खेती के भरोसे हैं. किसानों के शहतूत की खेती के पीछे रेशम बनाना है. रेशम के कीड़े शहतूत पेड़ के पत्तों को खाकर रेशम बनाते हैं.
से रेशम बनाते हैं किसान
रेशम की मांग अच्छी होने से इस खेती में मुनाफा भी अच्छा होता है. किशनगंज के किसान शहतूत के पौधे को चार से पांच बार लगाते हैं. जिससे उन्हें रेशम का कीड़ा भी चार से पांच बार पालना होता है. इसके बाद जो कीड़े से रेशम निकालता है. उसे धूप में सुखाकर बेच देते हैं.

रेशम की खेती

स्थायी बाजार का है अभाव
जिले के किसानों की ओर से चार बार रेशम तैयार किया जाता है. लेकिन सरकार की तरफ से केवल एक से दो बार ही खरीदा जाता है. स्थायी बाजार के नहीं होने से किसानों को बंगाल में रेशम बेचना पड़ता है. जिससे उन्हें उतना मुनाफा नहीं मिल पाता जितना मिलना चाहिए. किसानों का कहना है कि अगर सरकार हमें कीड़ा पालने और रेशम को बेचने की पूरे वर्ष की व्यवस्था कर दे तो हमारी बड़ी समस्या खत्म हो जाएगी. किसानों की दूसरी समस्या उचित प्रशिक्षण का नहीं मिलना है. उन्होंने बताया कि जीविका वाले हमें अच्छे से प्रशिक्षण नहीं देते हैं. जीविका की तरफ से रेशमकीट बीज भी नहीं दिया जाता है. इस वजह से हमें बीज और कीड़ा अधिक दाम खर्च करके बाहर से मंगवाने पड़ते हैं.

किशनगंज
शहतूत का पेड़
जीविका पदाधिकारी ने बतायाजीविका पदाधिकारी का कहना है कि हम लोगों ने एक उत्पादन समूह बनाया है. जो किसानों के रेशम को खरीदते हैं. उत्पादन समूह होने से ही किसानों को रेशम का उचित मूल्य मिलता है. उन्होंने कहा कि जीविका ने एक साल से किशनगंज में ही इनके रेशम को खरीदने की व्यवस्था की है.

किशनगंज: जिला मुख्यालय से 30 किलोमीटर दूर मैदा गांव बसा हुआ है. यहां के किसान ने पारंपरिक खेती छोड़ नई खेती को अपनाया है. नई खेती से किसानों की आमदनी बढ़ गई है.
किशनगंज के मैदा गांव के किसान शहतूत की खेती कर रहे हैं. पारंपरिक खेती से पैसे नहीं मिलने के बाद किसान अब इस खेती के भरोसे हैं. किसानों के शहतूत की खेती के पीछे रेशम बनाना है. रेशम के कीड़े शहतूत पेड़ के पत्तों को खाकर रेशम बनाते हैं.
से रेशम बनाते हैं किसान
रेशम की मांग अच्छी होने से इस खेती में मुनाफा भी अच्छा होता है. किशनगंज के किसान शहतूत के पौधे को चार से पांच बार लगाते हैं. जिससे उन्हें रेशम का कीड़ा भी चार से पांच बार पालना होता है. इसके बाद जो कीड़े से रेशम निकालता है. उसे धूप में सुखाकर बेच देते हैं.

रेशम की खेती

स्थायी बाजार का है अभाव
जिले के किसानों की ओर से चार बार रेशम तैयार किया जाता है. लेकिन सरकार की तरफ से केवल एक से दो बार ही खरीदा जाता है. स्थायी बाजार के नहीं होने से किसानों को बंगाल में रेशम बेचना पड़ता है. जिससे उन्हें उतना मुनाफा नहीं मिल पाता जितना मिलना चाहिए. किसानों का कहना है कि अगर सरकार हमें कीड़ा पालने और रेशम को बेचने की पूरे वर्ष की व्यवस्था कर दे तो हमारी बड़ी समस्या खत्म हो जाएगी. किसानों की दूसरी समस्या उचित प्रशिक्षण का नहीं मिलना है. उन्होंने बताया कि जीविका वाले हमें अच्छे से प्रशिक्षण नहीं देते हैं. जीविका की तरफ से रेशमकीट बीज भी नहीं दिया जाता है. इस वजह से हमें बीज और कीड़ा अधिक दाम खर्च करके बाहर से मंगवाने पड़ते हैं.

किशनगंज
शहतूत का पेड़
जीविका पदाधिकारी ने बतायाजीविका पदाधिकारी का कहना है कि हम लोगों ने एक उत्पादन समूह बनाया है. जो किसानों के रेशम को खरीदते हैं. उत्पादन समूह होने से ही किसानों को रेशम का उचित मूल्य मिलता है. उन्होंने कहा कि जीविका ने एक साल से किशनगंज में ही इनके रेशम को खरीदने की व्यवस्था की है.
Intro:किशनगंज:-किशनगंज जिले के लोग अब स्व रोजगार बनाने लगे है,ये लोग अब इस उम्मीद पर नही बैठते की इनको नौकरी मिलेगी तो ये अपना और अपने परिवार का लालन-पालन करेंगे।इस जिले के लोगो ने खेती के नए नए गुर अपना कर अच्छे नगद पैसे कमाने की शुरुआत कर दी है।ऐसे ही गाँव में कुछ लोग रेशम का व्यापार शुरू कर दिया है।


Body:किशनगंज:-किशनगंज जिले के लोग अब स्व रोजगार बनाने लगे है,ये लोग अब इस उम्मीद पर नही बैठते की इनको नौकरी मिलेगी तो ये अपना और अपने परिवार का लालन-पालन करेंगे।इस जिले के लोगो ने खेती के नए नए गुर अपना कर अच्छे नगद पैसे कमाने की शुरुआत कर दी है।ऐसे ही गाँव में कुछ लोग रेशम का व्यापार शुरू कर दिया है।
किशनगंज जिला से 30 किलोमीटर दूर स्थित मैदा गाँव के लोगो ने सहतुत की खेती पर किया है भरोसा,वे बीघा के बीघा सहतुत की खेती करते है।और अपने घरों में रेशम बनाने वाले कीड़ा पालते है,चुकी वो कीड़ा सिर्फ और सिर्फ सहतुत का पत्ता ही खाते हैं, इसीलिए ये किसान सिर्फ सहतुत का पौधा लगाते हैं।
किसानों के अनुसार जब वे कीड़ा पालते है तो उन्हें वो सहतुत का पत्ता खाने में देते हैं।
उनके अनुसार उन्हें इस खेती में अच्छा मुनाफा हो जाता है,चुकी रेशम की हर जगह अच्छी मांग है,जिसके वजह से उन्हें इस रेशम के अच्छे नगद पैसे मिल जाते है।उनके अनुसार वो इस पौधे को साल में 4-5 बार लगते है और कीड़ा भी 4-5 बार ही पालते है और बाद में जो रेशम निकलता है उन कीड़ो में से वे उसे धूप में सुखा के बेच देते है।

किसानों की समस्या:-इन किसानों की एक समस्या ये है कि इनके द्वारा रेसम साल में 4-5 बार तयार किया जाता है पर सरकार की तरफ से सिर्फ एक या दो बार ही खरीदा जाता है जिसके वजह से इन्हें इस रेशम को बंगाल के बाजारों में बेचना पड़ता है जिसका उन्हें उचित कीमत नही मिल पाती है।उनका कहना है कि अगर सरकार हमे कीड़ा पालने और रेशम को बेचने की पूरे वर्ष की उच्चित बेवस्था कर दे तो इन किसानों समस्या हल हो जाएगी।


Conclusion:आपको बता दे कि ये रेशम का व्यापार जीविका में आता है और किसानों का कहना है कि जीविका वाले हमे अच्छे से प्रशिक्षण नही देते है,न ही बीज देते है जिसके वजह से हमे बीज और कीड़ा अधिक दाम खर्च करके बाहर से मंगवाते है।
वही जीविका पदाधिकारी कहते है कि,हम लोगो ने एक उत्पादन समूह बनाया हुआ है जो इनके रेशम को खरीदते है और इन्हें इनके सामान का उचित मूल्य प्राप्त होता है।उन्होंने ये भी कहा कि हमने पिछले बार से किशनगंज में ही इनके रेशम को खरीदने की बेवस्था की है।और आगे इनके बेहतरी के लिए हमलोग लगातार कार्य कर रहे है ताकि इन्हें इनके मेहनत का फल मिल सके।

बाईट-किसान
बाईट-सुशील कुमार (जीविका अधिकारी)
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