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कोरोना और बाढ़ की दोहरी मार झेल रहे पशुपालक, ज्यादा कीमत देने पर भी नहीं मिल रहा चारा

किशनगंज में कोरोना और बाढ़ के कारण जन जीवन बुरी तरह से बाधित हो रखा है. पशुपालकों के सामने मवेशियों का जिंदा रखने का संकट आन पड़ा है. तमाम कोशिशों के बावजूद वे चारे का इंतजाम नहीं कर पा रहे हैं.

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Published : Sep 10, 2020, 7:34 PM IST

डिजाइन इमेज
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किशनगंज: इस साल बिहार में कोरोना संक्रमण के बीच आए बाढ़ के कारण लोगों की मुसीबतें काफी बढ़ी हुई है. जान बचाने के लिए लोग एनएच पर शरण लिए हुए हैं. ऐसे में पशुपालकों के सामने आपने साथ-साथ मवेशियों के पेट पालने की भी चिंता है. सरकार की ओर से चलाए जा रहे कम्यूनिटी किचन से उनका काम चल रहा है लेकिन मवेशियों के लिए दो वक्त का चारा जुटाना काफी जद्दोजहद भरा साबित हो रहा है.

नदियों में उफान की वजह से किशनगंज के बहादुरगंज, ठाकुरगंज, कोचाधामान और टेढागाछ प्रखंड सबसे ज्यादा प्रभावित हुए हैं. इन प्रखंडों में पशुपालकों का चारा भी बेकार हो गया है. इस कारण चारा की कालाबाजारी शुरू हो गई है. कभी-कभी तो दोगुनी कीमत चुकाने पर भी चारा नहीं मिल रहा है.

चारे की राह देखती गाय
चारे की राह देखती गाय

हर साल बाढ़ झेलता है किशनगंज
दरअसल, किशनगंज एक बाढ ग्रस्त जिला है. हर साल यह जिला महानंदा, कन्काई, डॉक, रतुआ और बूढ़ी कन्काई के कारण जलमग्न हो जाता है. यह चारों ओर से इन नदियों से घिरा हुआ है. इस इलाके के लोग अमूमन खेती और पशुपालन पर ही आधारित हैं. इससे ही वे अपना जीविकोपार्जन करते हैं.

एनएच पर गुजर बसर कर रहे लोग
एनएच पर गुजर बसर कर रहे लोग

एनएच पर रह रहे लोग
बाढ़ के बाद जिले के पशुपालक अपने पशुओं के साथ सड़कों पर आ गए हैं. जिसके कारण सड़क चरागाह बना हुआ है. पशुपालकों के लगाए चारे बाढ़ के पानी में बह गए. ऐसे में अपने मवेशियों को खिलाने के लिए पशुपालकों को पड़ोसी राज्य जैसे बंगाल या फिर अन्य जिलों से चारा खरीदना पड़ रहा है. जिसके लिए उन्हें दोगुनी-तिगुनी कीमत चुकानी पड़ रही है.

चारा बेचने वाला दुकानदार
चारा बेचने वाला दुकानदार

ये है चारे का रेट
पीड़ित पशुपालक ने बताया कि पहले उन्हें लॉकडाउन की वजह से समस्या आ रही थी. अब बाढ़ ने तो बिल्कुल सड़क पर ही ला दिया है. पहले जो चारा 1200-1300 रुपये मे खरीदते थे अब वह चारा अब उन्हें 3000-3500 रुपये तक भी बड़ी मुश्किल से मिल रहा है. वहीं दूध के दामों में कोई बढ़ोतरी नहीं हुई है. उनका कहना है कि ऐसा ही चला तो वो मवेशी पालना छोड़ देंगे.

देखें पूरी रिपोर्ट.

पशुपालकों ने बताई परेशानी
वहीं, एक अन्य पशुपालक ने बताया कि बैंक से ऋण लेकर उन्होंने मवेशी खरीदे थे ताकि मवेशियों का दूध बेचकर कुछ नकद आमदनी के साथ-साथ बैंक का ऋण भी चुका देंगे. लेकिन बाढ़ की वजह से चारे का दाम इतना ज्यादा हो गया है कि अब उनके पहुंच से बाहर है. ऐसे में वे मवेशी बेचकर बैंक का ऋण चुकता कर रहे हैं. इस मामले पर किशनगंज के अनुमंडल पदाधिकारी शाहनवाज अख्तर नियाजी ने बताया कि उन्होंने जिला पशुपालन पदाधिकारी को आदेश दिया है कि ऐसे पशुपालको की लिस्ट बनाई जए और उन्हें जल्द से जल्द चारा मुहैया कराया जाए.

किशनगंज: इस साल बिहार में कोरोना संक्रमण के बीच आए बाढ़ के कारण लोगों की मुसीबतें काफी बढ़ी हुई है. जान बचाने के लिए लोग एनएच पर शरण लिए हुए हैं. ऐसे में पशुपालकों के सामने आपने साथ-साथ मवेशियों के पेट पालने की भी चिंता है. सरकार की ओर से चलाए जा रहे कम्यूनिटी किचन से उनका काम चल रहा है लेकिन मवेशियों के लिए दो वक्त का चारा जुटाना काफी जद्दोजहद भरा साबित हो रहा है.

नदियों में उफान की वजह से किशनगंज के बहादुरगंज, ठाकुरगंज, कोचाधामान और टेढागाछ प्रखंड सबसे ज्यादा प्रभावित हुए हैं. इन प्रखंडों में पशुपालकों का चारा भी बेकार हो गया है. इस कारण चारा की कालाबाजारी शुरू हो गई है. कभी-कभी तो दोगुनी कीमत चुकाने पर भी चारा नहीं मिल रहा है.

चारे की राह देखती गाय
चारे की राह देखती गाय

हर साल बाढ़ झेलता है किशनगंज
दरअसल, किशनगंज एक बाढ ग्रस्त जिला है. हर साल यह जिला महानंदा, कन्काई, डॉक, रतुआ और बूढ़ी कन्काई के कारण जलमग्न हो जाता है. यह चारों ओर से इन नदियों से घिरा हुआ है. इस इलाके के लोग अमूमन खेती और पशुपालन पर ही आधारित हैं. इससे ही वे अपना जीविकोपार्जन करते हैं.

एनएच पर गुजर बसर कर रहे लोग
एनएच पर गुजर बसर कर रहे लोग

एनएच पर रह रहे लोग
बाढ़ के बाद जिले के पशुपालक अपने पशुओं के साथ सड़कों पर आ गए हैं. जिसके कारण सड़क चरागाह बना हुआ है. पशुपालकों के लगाए चारे बाढ़ के पानी में बह गए. ऐसे में अपने मवेशियों को खिलाने के लिए पशुपालकों को पड़ोसी राज्य जैसे बंगाल या फिर अन्य जिलों से चारा खरीदना पड़ रहा है. जिसके लिए उन्हें दोगुनी-तिगुनी कीमत चुकानी पड़ रही है.

चारा बेचने वाला दुकानदार
चारा बेचने वाला दुकानदार

ये है चारे का रेट
पीड़ित पशुपालक ने बताया कि पहले उन्हें लॉकडाउन की वजह से समस्या आ रही थी. अब बाढ़ ने तो बिल्कुल सड़क पर ही ला दिया है. पहले जो चारा 1200-1300 रुपये मे खरीदते थे अब वह चारा अब उन्हें 3000-3500 रुपये तक भी बड़ी मुश्किल से मिल रहा है. वहीं दूध के दामों में कोई बढ़ोतरी नहीं हुई है. उनका कहना है कि ऐसा ही चला तो वो मवेशी पालना छोड़ देंगे.

देखें पूरी रिपोर्ट.

पशुपालकों ने बताई परेशानी
वहीं, एक अन्य पशुपालक ने बताया कि बैंक से ऋण लेकर उन्होंने मवेशी खरीदे थे ताकि मवेशियों का दूध बेचकर कुछ नकद आमदनी के साथ-साथ बैंक का ऋण भी चुका देंगे. लेकिन बाढ़ की वजह से चारे का दाम इतना ज्यादा हो गया है कि अब उनके पहुंच से बाहर है. ऐसे में वे मवेशी बेचकर बैंक का ऋण चुकता कर रहे हैं. इस मामले पर किशनगंज के अनुमंडल पदाधिकारी शाहनवाज अख्तर नियाजी ने बताया कि उन्होंने जिला पशुपालन पदाधिकारी को आदेश दिया है कि ऐसे पशुपालको की लिस्ट बनाई जए और उन्हें जल्द से जल्द चारा मुहैया कराया जाए.

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