किशनगंज: 'बिहार का काला पानी' के नाम से चर्चित किशनगंज जिले में सफेद पानी का अवैध कारोबार धड़ल्ले से जारी है. लगभग पूरे शहर में 20 रुपये प्रति लीटर वॉटर का धंधा जोरों पर है. अधिकांश जगहों पर इस पानी की गुणवत्ता की कोई जांच नहीं होती है. साथ ही बिना लाइसेंस के यह कारोबार प्रशासन की नाक के नीचे फल-फूल रहा है.
मालूम हो कि 20 रुपये/ जार में जो पानी बेची जा रही है, इसके लिए गुणवत्ता सहित अन्य जरुरी लाइसेंस लेना अनिवार्य है. अगर बिना लाइसेंस कोई फिल्टर पानी बेचता है तो यह अवैध है. प्रशासन उसपर कार्रवाई कर सकता है. लेकिन, किशनगंज में धड़ल्ले से चल रहे इस धंधे की खबर प्रशासन को नहीं है.
पल्ला झाड़ रहा विभाग और प्रशासन
किशनगंज समेत सीमांचल में फिल्टर्ड वाटर प्लांट का काला कारोबार फलफूल रहा है. बिना पेयजल गुणवत्ता की जांच किए और बिना एनओसी के ही पेयजल का धंधा किया जा रहा है. ऐसे में पानी की गुणवत्ता और सेहत के नफा-नुकसान को लेकर कई सवाल उठते हैं. वहीं, शुद्ध पेयजल आपूर्ति के लिए जिम्मेदार पीएचईडी मसले से अपना पल्ला झाड़ रहा है. यहां तक कि जिला स्वास्थ्य विभाग भी इसकी जवाबदेही लेने को तैयार नहीं है.
अधिकारी नहीं ले रहे एक्शन
हैरानी की बात तो यह है कि फिल्टर्ड वाटर बताकर 20-25 रुपए में जो पानी बेचा जा रहा है, उसकी गुणवत्ता का प्रमाण न तो पानी सप्लॉयर के पास है ना ही किसी अधिकारी के पास. प्रशासन को इस बारे में जानकारी जरूर है. लेकिन, अधिकारी मूकदर्शक बने हुए हैं.
क्या है आंकड़े?
शहर में लगभग 20 और जिले में 80 के करीब ऐसे सप्लॉयर हैं. जिनके पास आईएसआई मार्का का पानी हो. यह प्रमाण किसी ने भी विभाग से नहीं लिया है. नतीजतन जागरूकता के अभाव में सफेद पानी की आड़ में लोगों की सेहत से खिलवाड़ किया जा रहा है.
नगर परिषद को लेना चाहिए संज्ञान
पीएचईडी के मुख्य अभियंता पवन कुमार ने बताया कि शहर में जितने भी निजी फिल्टर्ड वाटर सप्लाई किये जा रहे हैं, इन्होंने कहीं से लाइसेंस नहीं लिया है. यह लोग अपनी मर्जी से फिल्टर्ड प्लांट लगा कर पानी बेच रहे हैं. यह एक प्रशासनिक मामला है. इसमें नगर परिषद को संज्ञान लेना चाहिए. मुख्य अभियंता ने यह भी बताया कि विभाग की तरफ से नल जल योजना के तहत कार्य किया जा रहा है. जिससे लोगों को शुद्ध पानी जल्द मिलेगा.
क्यों कहा जाता है 'काला-पानी'
ऐसा कहा जाता है कि किशनगंज के पानी में आयरन की मात्रा बहुत अधिक है. यहां का पानी पीने से लोगों को पेट फूलने की शिकायत होती थी. इससे लोगों की मौत हो जाती थी. इस वजह से अंग्रेज इस जगह को सजा के तौर पर इस्तेमाल करते थे. कैदी को किशनगंज कारावास में डाल दिया जाता था.