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खगड़िया: बंद हो रहा दशकों पुराना खादी ग्राम उद्योग कारोबार, सैकड़ों लोग हुए बेरोजगार

मुस्लिम समुदाय के इस गांव में लगभग हर घर में ही सूत और खादी के कपड़ों की बुनाई की जाती थी. पास में खादी ग्राम उद्योग कारखाने की मदद से बने हुए कपड़ों को बेचा जाता था. ये कारीगर हाथों से चलने वाली मशीन और बिजली के मशीनों से कपड़ों की बुनाई किया करते थे.

खादी ग्राम उद्योग कारोबार
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Published : Sep 11, 2019, 12:01 PM IST

खगड़िया: गोगरी में दशकों पुराना खादी ग्राम उद्योग कारोबार आज के समय में पूरी तरह से बंद हो चुका है. 1960-65 में शुरू हुए इस रोजगार ने खगड़िया को एक अलग पहचान दी थी. लेकिन सरकार और बिजली विभाग की लापरवाही की सजा यहां के स्थानीय लोगों को मिली. आलम यह है कि आज इस पेशे से जुड़े लोग बेरोजगार हो गए और रोजी-रोटी के जुगाड़ में दूसरे व्यवसाय या मजदूरी के लिए दूसरे शहरों का रुख कर लिया है.

khadi gram udyog
खादी ग्राम उद्योग

बेरोजगार हो चुके हैं कारीगर
आज भी यहां के छोटे कारीगर किसी सरकारी योजना के लाभ में आंखें बिछा कर बैठे हैं कि सरकार की कोई नई शुरुआत हो और इस तरह के छोटे-मोटे कारखानों को फिर से एक नई पहचान मिल सके. खगड़िया के गोगरी में पूरा गांव ही एक समय में सूत और कपड़ा बुनाई का काम किया करता था. मुस्लिम समुदाय के इस गांव में लगभग हर घर में ही सूत और खादी के कपड़ों की बुनाई की जाती थी. पास में खादी ग्राम उद्योग कारखाने की मदद से बने हुए कपड़ों को बेचा जाता था. ये कारीगर हाथों से चलने वाली मशीन और बिजली के मशीनों से कपड़ों की बुनाई किया करते थे. लेकिन आज के समय में दोनों तरह के कारीगर बेरोजगार हो चुके हैं. जिसकी मुख्य वजह बिजली और रॉ मेटीरियल की महंगाई है.

खगड़िया में खतरे में दशकों पुराना खादी ग्राम उद्योग कारोबार

'बुनाई का काम हो गया ठप'
स्थानीय कारीगर कहते हैं कि एक दिन में खादी का 20 से 25 पीस गमछा और लुंगी तैयार करके बाजार में बेचते थे. लेकिन जिस तरह से इस गांव को बिजली नसीब ही नहीं हुई, मानो यहां विकास कभी पहुंचा ही नहीं, इसलिए धीरे-धीरे पहले एक दो बंद हुए फिर पूरी तरह से बुनाई का काम ठप हो गया. सभी लोग नए रोजगार की तलाश में लग गए. वहीं, जिला अधिकारी अनिरुद्ध कुमार भी मानते हैं कि बिजली और राॅ मेटीरियल की महंगाई के वजह से सभी बेरोजगार हुए हैं.

खगड़िया: गोगरी में दशकों पुराना खादी ग्राम उद्योग कारोबार आज के समय में पूरी तरह से बंद हो चुका है. 1960-65 में शुरू हुए इस रोजगार ने खगड़िया को एक अलग पहचान दी थी. लेकिन सरकार और बिजली विभाग की लापरवाही की सजा यहां के स्थानीय लोगों को मिली. आलम यह है कि आज इस पेशे से जुड़े लोग बेरोजगार हो गए और रोजी-रोटी के जुगाड़ में दूसरे व्यवसाय या मजदूरी के लिए दूसरे शहरों का रुख कर लिया है.

khadi gram udyog
खादी ग्राम उद्योग

बेरोजगार हो चुके हैं कारीगर
आज भी यहां के छोटे कारीगर किसी सरकारी योजना के लाभ में आंखें बिछा कर बैठे हैं कि सरकार की कोई नई शुरुआत हो और इस तरह के छोटे-मोटे कारखानों को फिर से एक नई पहचान मिल सके. खगड़िया के गोगरी में पूरा गांव ही एक समय में सूत और कपड़ा बुनाई का काम किया करता था. मुस्लिम समुदाय के इस गांव में लगभग हर घर में ही सूत और खादी के कपड़ों की बुनाई की जाती थी. पास में खादी ग्राम उद्योग कारखाने की मदद से बने हुए कपड़ों को बेचा जाता था. ये कारीगर हाथों से चलने वाली मशीन और बिजली के मशीनों से कपड़ों की बुनाई किया करते थे. लेकिन आज के समय में दोनों तरह के कारीगर बेरोजगार हो चुके हैं. जिसकी मुख्य वजह बिजली और रॉ मेटीरियल की महंगाई है.

खगड़िया में खतरे में दशकों पुराना खादी ग्राम उद्योग कारोबार

'बुनाई का काम हो गया ठप'
स्थानीय कारीगर कहते हैं कि एक दिन में खादी का 20 से 25 पीस गमछा और लुंगी तैयार करके बाजार में बेचते थे. लेकिन जिस तरह से इस गांव को बिजली नसीब ही नहीं हुई, मानो यहां विकास कभी पहुंचा ही नहीं, इसलिए धीरे-धीरे पहले एक दो बंद हुए फिर पूरी तरह से बुनाई का काम ठप हो गया. सभी लोग नए रोजगार की तलाश में लग गए. वहीं, जिला अधिकारी अनिरुद्ध कुमार भी मानते हैं कि बिजली और राॅ मेटीरियल की महंगाई के वजह से सभी बेरोजगार हुए हैं.

Intro:खगडिया के गोगरी में दशकों पुराना खादी ग्राम उद्योग कारोबार आज के समय मे पूरी तरह से बंद हो चुका ।1960 -65 में शुरू हुए। इस रोजगार ने खगडिया को एक अलग पहचान दी थी। लेकिन सरकार व बिजली विभाग के लापरवाही की सजा यंहा के अस्थानिये लोगो को मिली और सभी आज के समय मे या तो बेरोजगार हो गए नही तो रोजी रोटी चलाने के लिए नया रोजगार किये। आज भी यंहा के छोटे कारीगर किसी सरकारी योजना के लाभ में आंखे बिछा कर बैठा है कि कोई सरकार की नई शुरुआत हो और इस तरह के छोटे मोटे कारखाने को एक फिर से नई पहचान मिले।


Body:खगडिया के गोगरी में दशकों पुराना खादी ग्राम उद्योग कारोबार आज के समय मे पूरी तरह से बंद हो चुका ।1960 -65 में शुरू हुए। इस रोजगार ने खगडिया को एक अलग पहचान दी थी। लेकिन सरकार व बिजली विभाग के लापरवाही की सजा यंहा के अस्थानिये लोगो को मिली और सभी आज के समय मे या तो बेरोजगार हो गए नही तो रोजी रोटी चलाने के लिए नया रोजगार किये। आज भी यंहा के छोटे कारीगर किसी सरकारी योजना के लाभ में आंखे बिछा कर बैठा है कि कोई सरकार की नई शुरुआत हो और इस तरह के छोटे मोटे कारखाने को एक फिर से नई
पहचान मिले।
खगडिया के गोगरी में ये एक पूरा गांव ही एक समय मे सूत और कपड़ा बुनाई का काम किया करता था।मुश्लिम समुदाय के इस गांव में लगभग हर घर मे ही सूत और खड़ी के कपड़ो की बुनाई की जाती थी और पास में खादी ग्राम उधोयग कारखाने के मदद से बने हुए कपड़ो के बेचा जाता था ।ये कारीगर हाथों से चलने वाली मशीन और बिजली के मशीनों से कपड़ो की बुनाई किया करते लेकिन आज के समय मे दोनों तरह के कारीगर बेरोजगार हो चुके है।जिसकी मुख्य वजह बिजली और रॉ मेटीरियल की महंगाई थी।अस्थनीय कारीगर कहते है एक दिन में खादी के 20 से 25 पीस गमछा व लुंगी तैयार करते थे और बाजार में बेचते थे।लेकिन जिस तरह से इस गांव को बिजली नसीब ही नही हुई मानो यंहा विकाश कभी पहुचा ही नही इसलिए धीरे धीरे पहले एक दो बंद हुए फिर पूरी तरह से बुनाई का काम ठप हो गया एयर सभी लोग नए रोजगार की तलाश में लग गए।
जिला अधिकारी अनिरुद्ध कुमार भी मानते है कि बिजली व रा मेटीरियल की महंगाई के वजह से सभी बेरोजगार हुए।


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