कटिहारः भारत अनादिकाल से आयुर्वेद का देश रहा है. वर्तमान समय में आयुर्वेद का विस्तार और प्रयोग बड़े पैमाने पर हो रहा है. यहां 16 सौ से भी अधिक दुर्लभ प्रजाति के मेडिसन प्लांट पाए जाते है. हालांकि देखरेख के अभाव में यह समय के साथ मिटते जा रहे है.
इसी को लेकर जिले में उद्यान विभाग ने एक अनोखी पहल शुरू की है. जिसके तहत लुप्त हो रहे मेडिसन प्लांट को लगाया जा रहा है. दरअसल, जिले के कटिहार-पूर्णिया मार्ग के रतौरा में जिला उद्यान विभाग ने पौधों की नर्सरी लगायी गयी हैं. जिसमें कई जिलो से लाकर औषधीय पौधे का संरक्षण किया जा रहा है.
'आयुर्वेदिक औषधि के महत्व जाने लोग'
इस बाबत जिले के कृषि विभाग आत्मा के उपपरियोजना निदेशक एस के झा बताते हैं कि इस नर्सरी को लगाने का मकसद आम लोगों में आयुर्वेदिक औषधीय पौधे के महत्व के प्रति जागरूक करना था. उन्होंने बताया कि पूरे देश में 16 सौ से भी अधिक की संख्या में आयुर्वेदिक पौधे मिलते हैं. जिसमें अश्वगंधा, अतीस, भुआमलकी,बाह्मी,चिरायता,सफेद मूसली ,पत्थरचूर, सर्पगंधा समेत कई वरदान के रूप में उपलब्ध है. हालांकि आंग्रेजी दवाओं के बढ़ते प्रचलन के कारण लोग आयुर्वेद को भूलते जा रहे है. जिस वजह से इन पौधों के अस्तित्व पर संकट आ गया है.
लुप्त होने के कगार पर है कई आयुर्वेदिक पौधे
इस बाबात आयुर्वेद के जानकार बताते है कि संरक्षण के अभाव में कई दुर्लभ प्रजाति के मेडिसन प्लांट लुप्त होने की कगार पर पहुंच गई है. आत्मा के उपपरियोजना निदेशक एस के झा बताते है कि हालांकि पहले की अपेक्षा लोगों में आयुर्वेद को लेकर काफी जागरूकता आई है.
जलवायु परिवर्तन से हो रहा औषधीय पौधों का नाश
गौरतलब है कि वैश्विक ताप में वृद्धि और जलवायु परिवर्तन के वजह से औषधीय पौधे लुप्त होने के कगार पर है. आयु्र्वेद के जानकार बताते है कि हिमालयी रेंज के 8 सौ से अधिक पौधे विलुप्त होने के कगार पर पहुंच चुकी है. यदि समय रहते इन औषधीय पौधों के संरक्षण की पहल नहीं हुई तो आयुर्वेद चिकित्सा पर संकट आ जाएगा.
पूरे विश्व में लगभग 25 सौ आयुर्वेदिक पौधे
बाताया जा रहा है कि पूरे विश्व में लगभग 25 सौ आयुर्वेदिक पौधे पाई जाती है. इनमें से 16 सौ से अधिक प्रजातियां भारत में पाई जाती है. इन औषधीय पौधों की सनातन उपयोगिता का अनुमान इसी से लगाया जा सकता है कि इनका कई वेदों में भी उल्लेख है.