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अंत्योदय अन्न योजना : यहां कई परिवारों को नहीं मिला अन्न का एक दाना - etv bharat

केंद्र सरकार ने अंत्योदय अन्न योजना के तहत गरीब परिवारों को राशन देने की बात कही थी. लेकिन कटिहार में कई ऐसे परिवार हैं, जो इस योजना से महरूम हैं. देखें और पढ़ें, ईटीवी भारत की रिपोर्ट...

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Published : Aug 31, 2020, 7:02 PM IST

कटिहार : सरकार गरीबों को अंत्योदय अन्न योजना के तहत राशन देने की बात कहती है. लेकिन जिले में आज भी कई ऐसे गरीब परिवार है, जिन्हें अंत्योदय अन्न योजना से एक अन्न का दाना नहीं मिला है. लिहाजा, यह लोग सरकार से मदद की गुहार लगा रहे हैं. लॉकडाउन के कारण गरीबों का रोजगार, काम धंधा सब कुछ ठप हो गया है. इसके चलते अब इन्हें अपना परिवार चलाने में दिक्कत हो रही है.

दरअसल, राष्ट्रीय खाद्य सुरक्षा अधिनियम के तहत पीएचएच और अंत्योदय अन्न योजना के अंतर्गत प्रति परिवार को 2 रुपये किलो की दर ये 14 किलो गेहूं, 3 रुपये किलो की दर से 21 किलो चावल 3 रुपये प्रति किलो की दर से कुल 35 किलो खाद्यान्न वितरण की बात केंद्र सरकार ने कही थी. लेकिन कटिहार में इस योजना का अस्तित्व धरातल पर नहीं दिखाई देता. पांच महीनें से लोगों को अन्न का एक दाना तक नहीं मिला है.

देखें ये रिपोर्ट

यहां नहीं बंटा अनाज
मामला कटिहार शहरी क्षेत्र के वार्ड संख्या 33 का है, जहां दर्जनों गरीब परिवारों को कोरोना काल के दौरान राशन नहीं मिल रहा है. इस वार्ड के कुछ ऐसे भी लोग हैं, जिनका 5 साल पहले से ही कार्ड बना हुआ है. बावजूद इसके, उन्हें राशन नहीं मिला.

ठेले पर सामान बेचकर और छोटी मोटी दुकान चलाकर, अपना घर-परिवार चलाने वाले इन गरीब परिवारों ने राशन के लिए कई बार स्थानीय जन वितरण प्रणाली दुकानदार का रुख किया. लेकिन वहां से इन्हें यह कहकर भगा दिया जाता है कि उनका नाम लिस्ट में नहीं है. झोपड़ी में गुजर-बसर करने वाले लोग इधर उधर से मांग कर अपना घर परिवार का गुजारा कर रहे हैं. घर में अन्न नहीं है. लिहाजा, गरीब परिवार किसी तरह अपने बच्चों को मुरी खिला-खिलाकर उनका पेट पाल रहे हैं.

नहीं मिला अन्न का एक भी दाना
'नहीं मिला अन्न का एक भी दाना'

'क्या करें साहब?'
सरस्वती देवी, मंजू देवी और डोमन लाल सिंह अपनी बेबसी बताते हुए कहते हैं कि सरकार ने कहा तो बहुत कुछ है लेकिन हमें उसका लाभ नहीं मिल रहा है. डीलर के पास जाते हैं, तो वह राशन कार्ड को फाड़कर फेंकने की बात कहते हैं. परिवार चलाना मुश्किल हो रहा है. कहीं काम धंधा भी नहीं है. हम करें भी तो क्या करें.

एक महिला ने ईटीवी भारत को बताया कि वो पिछले 20 सालों से किराये के मकान में रह रही है. ऐसे में राशन कार्ड नहीं बन पाया है. नगर निगम से डीलर के पास और डीलर से निगम के पास दौड़ाया जाता है. कुल मिलाकर राशन कार्ड नहीं बना है, तो राशन मिलने का सवाल ही नहीं उठता है.

सवाल, उठाना लाजमी...
लॉकडाउन लागू होते ही राशन बंटाने के लिए सरकार ने काफी कुछ वादे किये थे. सरकार ने कहा था कि जिनके पास राशन कार्ड नहीं हैं, उनके लिए इस दिशा में ठोस और शीघ्र कदम उठाए जाएंगे. बात ये भी निकलकर सामने आई थी कि आधार कार्ड से राशन मिल सकेगा. लेकिन ये सबकुछ धरातल पर उतरता नहीं दिख रहा है.

हालांकि, मामले में स्थानीय जन वितरण प्रणाली दुकानदार इंदिरा सिन्हा बताती हैं कि वह अपने सभी उपभोक्ताओं को राशन दे रही हैं और लॉकडाउन के दौरान सभी लोगों को अंत्योदय योजना का लाभ दिया गया है. चाहे वह राशन कार्ड धारी हो या सरकार की ओर से दिए जाने वाले 5 किलो मुफ्त अनाज हो. बहरहाल, लोगों ने जो कुछ कहा वो आपके सामने है.

कटिहार : सरकार गरीबों को अंत्योदय अन्न योजना के तहत राशन देने की बात कहती है. लेकिन जिले में आज भी कई ऐसे गरीब परिवार है, जिन्हें अंत्योदय अन्न योजना से एक अन्न का दाना नहीं मिला है. लिहाजा, यह लोग सरकार से मदद की गुहार लगा रहे हैं. लॉकडाउन के कारण गरीबों का रोजगार, काम धंधा सब कुछ ठप हो गया है. इसके चलते अब इन्हें अपना परिवार चलाने में दिक्कत हो रही है.

दरअसल, राष्ट्रीय खाद्य सुरक्षा अधिनियम के तहत पीएचएच और अंत्योदय अन्न योजना के अंतर्गत प्रति परिवार को 2 रुपये किलो की दर ये 14 किलो गेहूं, 3 रुपये किलो की दर से 21 किलो चावल 3 रुपये प्रति किलो की दर से कुल 35 किलो खाद्यान्न वितरण की बात केंद्र सरकार ने कही थी. लेकिन कटिहार में इस योजना का अस्तित्व धरातल पर नहीं दिखाई देता. पांच महीनें से लोगों को अन्न का एक दाना तक नहीं मिला है.

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यहां नहीं बंटा अनाज
मामला कटिहार शहरी क्षेत्र के वार्ड संख्या 33 का है, जहां दर्जनों गरीब परिवारों को कोरोना काल के दौरान राशन नहीं मिल रहा है. इस वार्ड के कुछ ऐसे भी लोग हैं, जिनका 5 साल पहले से ही कार्ड बना हुआ है. बावजूद इसके, उन्हें राशन नहीं मिला.

ठेले पर सामान बेचकर और छोटी मोटी दुकान चलाकर, अपना घर-परिवार चलाने वाले इन गरीब परिवारों ने राशन के लिए कई बार स्थानीय जन वितरण प्रणाली दुकानदार का रुख किया. लेकिन वहां से इन्हें यह कहकर भगा दिया जाता है कि उनका नाम लिस्ट में नहीं है. झोपड़ी में गुजर-बसर करने वाले लोग इधर उधर से मांग कर अपना घर परिवार का गुजारा कर रहे हैं. घर में अन्न नहीं है. लिहाजा, गरीब परिवार किसी तरह अपने बच्चों को मुरी खिला-खिलाकर उनका पेट पाल रहे हैं.

नहीं मिला अन्न का एक भी दाना
'नहीं मिला अन्न का एक भी दाना'

'क्या करें साहब?'
सरस्वती देवी, मंजू देवी और डोमन लाल सिंह अपनी बेबसी बताते हुए कहते हैं कि सरकार ने कहा तो बहुत कुछ है लेकिन हमें उसका लाभ नहीं मिल रहा है. डीलर के पास जाते हैं, तो वह राशन कार्ड को फाड़कर फेंकने की बात कहते हैं. परिवार चलाना मुश्किल हो रहा है. कहीं काम धंधा भी नहीं है. हम करें भी तो क्या करें.

एक महिला ने ईटीवी भारत को बताया कि वो पिछले 20 सालों से किराये के मकान में रह रही है. ऐसे में राशन कार्ड नहीं बन पाया है. नगर निगम से डीलर के पास और डीलर से निगम के पास दौड़ाया जाता है. कुल मिलाकर राशन कार्ड नहीं बना है, तो राशन मिलने का सवाल ही नहीं उठता है.

सवाल, उठाना लाजमी...
लॉकडाउन लागू होते ही राशन बंटाने के लिए सरकार ने काफी कुछ वादे किये थे. सरकार ने कहा था कि जिनके पास राशन कार्ड नहीं हैं, उनके लिए इस दिशा में ठोस और शीघ्र कदम उठाए जाएंगे. बात ये भी निकलकर सामने आई थी कि आधार कार्ड से राशन मिल सकेगा. लेकिन ये सबकुछ धरातल पर उतरता नहीं दिख रहा है.

हालांकि, मामले में स्थानीय जन वितरण प्रणाली दुकानदार इंदिरा सिन्हा बताती हैं कि वह अपने सभी उपभोक्ताओं को राशन दे रही हैं और लॉकडाउन के दौरान सभी लोगों को अंत्योदय योजना का लाभ दिया गया है. चाहे वह राशन कार्ड धारी हो या सरकार की ओर से दिए जाने वाले 5 किलो मुफ्त अनाज हो. बहरहाल, लोगों ने जो कुछ कहा वो आपके सामने है.

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