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कटिहार का कीट पालन केंद्र खंडहर में तब्दील, कभी यहां होती थी शहतूत की खेती

स्थानीय लोग बताते हैं कि यहां कभी कीट पालन और शहतूत की खेती होते देखा करते थे. लेकिन अब यहां कुछ नहीं रहा. आज इस कीट पालन केंद्र की स्थिति यह हो गई है कि कोई भी लोग यहां से ईंट, सरिया और पेड़ की डालियां काट कर ले जा रहे हैं.

कटिहार का कीट पालन केंद्र
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Published : Aug 27, 2019, 2:56 PM IST

कटिहार: यूं तो कटिहार की पहचान जूट नगरी के रूप में होती है. लेकिन यह बहुत कम लोगों को पता है कि कटिहार में रेशम उत्पादन के लिए दशकों पहले रेशम कीट पालन की स्थापना की गई थी. जहां रेशम कीट पालन के साथ शहतूत की खेती और रेशम का धागा तैयार किया जाता था. लेकिन सरकारी उपेक्षाओं के कारण यह महत्वाकांक्षी योजना लापरवाही की भेंट चढ़ गई और इसकी जगह बिहार के भागलपुर ने ले ली. कटिहार में सैंकड़ों एकड़ में फैला यह कीट पालन केंद्र आज अपनी दुर्दशा खुद बयां कर रहा है.

1950 ई में हुई थी इस केंद्र की स्थापना
शहर से 50 किलोमीटर दूर अमदाबाद प्रखंड के रोशना बाजार में स्थित है यह पालन केंद्र. इस इमारत का जर्रा जर्रा हिलता हुआ ईंट और खंडहर में तब्दील इमारत की सूरत यह बताने के लिए काफी है कि आज हालात किस कदर गिर चुके हैं. दरअसल 1950 में बिहार सरकार ने कटिहार के अमदाबाद इलाके के विकास के लिए रेशम कीट पालन केंद्र की स्थापना की थी. मकसद था कि रेशम कीट पालन के साथ-साथ शहतूत की खेती की जाए. ताकि रेशम उत्पादन होने के बाद सीमावर्ती पश्चिम बंगाल के बाजारों में व्यापार के लिए नजदीकी बाजार मिल सके.

कटिहार के कीट पालन केंद्र पर रिर्पोट


एक भी कर्मचारी की नहीं है यहां पोस्टिंग
इस रेशम कीट पालन केंद्र से पश्चिम बंगाल की दूरी केवल 3 किलोमीटर है. उस समय सरकार के आदेशानुसार यहां कई कर्मचारी काम करते थे. जिसमें कोई रेशम के कीट पालता था, तो कोई शहतूत की खेती की देखभाल और कोई सिल्क फॉर्म की निगरानी करता था. लेकिन बिहार में बदलते सरकार के दौर में यह कुप्रबंधन का शिकार हो गया और धीरे-धीरे हालात यहां तक गिर गए कि यहां आज एक भी कर्मचारी की पोस्टिंग नहीं है.

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वीरान पड़ा कीट पालन केंद्र


क्या कहते हैं स्थानीय निवासी
स्थानीय लोग बताते हैं कि यहां कभी कीट पालन और शहतूत की खेती होते देखा करते थे. लेकिन अब यहां कुछ नहीं रहा. आज इस कीट पालन केंद्र की स्थिति यह हो गई है कि कोई भी लोग यहां से ईंट, सरिया और पेड़ की डालियां काट कर ले जा रहे हैं. यह देखने वाला तक कोई नहीं है. हद तो इस बार हो गई जब स्वतंत्रता दिवस के मौके पर यहां झंडा तक नहीं फहराया गया. इससे पहले हर मौके पर चाहे वह गणतंत्र दिवस हो या स्वतंत्र दिवस, यहां हमेशा झंडा फहराया जाता था. लेकिन इस बार सरकारी लापरवाही की वजह से यहां झंडा तक नहीं फहराया गया. लेकिन अब बदहाल हो चुके कीट पालन केंद्र का स्थान सूबे में भागलपुर ने ले लिया है और आज स्मार्ट सिटी के साथ-साथ लोग उसे सिल्क सिटी भी कहते हैं. भागलपुर की पहचान पूरे भारत में सिल्क सिटी के नाम से है.

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स्थानीय निवासी

केंद्र पर है भू माफियाओं की नजर
सहतूत के पत्ते और ककून रेशम कीट के मुख्य भोजन हैं. लेकिन यहां एक भी शहतूत का पौधा नहीं बचा है. सब लोग इसे यहां से लेकर चले गए हैं. बात बस इतनी भर नहीं है. अब इस तबाह हो चुके रेशम कीट पालन केंद्र पर स्थानीय लोगों के साथ भू माफियाओं की भी नजर पड़ गई है. इसके साथ ही समय-समय पर उसे कब्जे में लेने की कोशिशे भी होती रहती है.

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खंडहर में तब्दील हो चुका है केंद्र

कटिहार: यूं तो कटिहार की पहचान जूट नगरी के रूप में होती है. लेकिन यह बहुत कम लोगों को पता है कि कटिहार में रेशम उत्पादन के लिए दशकों पहले रेशम कीट पालन की स्थापना की गई थी. जहां रेशम कीट पालन के साथ शहतूत की खेती और रेशम का धागा तैयार किया जाता था. लेकिन सरकारी उपेक्षाओं के कारण यह महत्वाकांक्षी योजना लापरवाही की भेंट चढ़ गई और इसकी जगह बिहार के भागलपुर ने ले ली. कटिहार में सैंकड़ों एकड़ में फैला यह कीट पालन केंद्र आज अपनी दुर्दशा खुद बयां कर रहा है.

1950 ई में हुई थी इस केंद्र की स्थापना
शहर से 50 किलोमीटर दूर अमदाबाद प्रखंड के रोशना बाजार में स्थित है यह पालन केंद्र. इस इमारत का जर्रा जर्रा हिलता हुआ ईंट और खंडहर में तब्दील इमारत की सूरत यह बताने के लिए काफी है कि आज हालात किस कदर गिर चुके हैं. दरअसल 1950 में बिहार सरकार ने कटिहार के अमदाबाद इलाके के विकास के लिए रेशम कीट पालन केंद्र की स्थापना की थी. मकसद था कि रेशम कीट पालन के साथ-साथ शहतूत की खेती की जाए. ताकि रेशम उत्पादन होने के बाद सीमावर्ती पश्चिम बंगाल के बाजारों में व्यापार के लिए नजदीकी बाजार मिल सके.

कटिहार के कीट पालन केंद्र पर रिर्पोट


एक भी कर्मचारी की नहीं है यहां पोस्टिंग
इस रेशम कीट पालन केंद्र से पश्चिम बंगाल की दूरी केवल 3 किलोमीटर है. उस समय सरकार के आदेशानुसार यहां कई कर्मचारी काम करते थे. जिसमें कोई रेशम के कीट पालता था, तो कोई शहतूत की खेती की देखभाल और कोई सिल्क फॉर्म की निगरानी करता था. लेकिन बिहार में बदलते सरकार के दौर में यह कुप्रबंधन का शिकार हो गया और धीरे-धीरे हालात यहां तक गिर गए कि यहां आज एक भी कर्मचारी की पोस्टिंग नहीं है.

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वीरान पड़ा कीट पालन केंद्र


क्या कहते हैं स्थानीय निवासी
स्थानीय लोग बताते हैं कि यहां कभी कीट पालन और शहतूत की खेती होते देखा करते थे. लेकिन अब यहां कुछ नहीं रहा. आज इस कीट पालन केंद्र की स्थिति यह हो गई है कि कोई भी लोग यहां से ईंट, सरिया और पेड़ की डालियां काट कर ले जा रहे हैं. यह देखने वाला तक कोई नहीं है. हद तो इस बार हो गई जब स्वतंत्रता दिवस के मौके पर यहां झंडा तक नहीं फहराया गया. इससे पहले हर मौके पर चाहे वह गणतंत्र दिवस हो या स्वतंत्र दिवस, यहां हमेशा झंडा फहराया जाता था. लेकिन इस बार सरकारी लापरवाही की वजह से यहां झंडा तक नहीं फहराया गया. लेकिन अब बदहाल हो चुके कीट पालन केंद्र का स्थान सूबे में भागलपुर ने ले लिया है और आज स्मार्ट सिटी के साथ-साथ लोग उसे सिल्क सिटी भी कहते हैं. भागलपुर की पहचान पूरे भारत में सिल्क सिटी के नाम से है.

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स्थानीय निवासी

केंद्र पर है भू माफियाओं की नजर
सहतूत के पत्ते और ककून रेशम कीट के मुख्य भोजन हैं. लेकिन यहां एक भी शहतूत का पौधा नहीं बचा है. सब लोग इसे यहां से लेकर चले गए हैं. बात बस इतनी भर नहीं है. अब इस तबाह हो चुके रेशम कीट पालन केंद्र पर स्थानीय लोगों के साथ भू माफियाओं की भी नजर पड़ गई है. इसके साथ ही समय-समय पर उसे कब्जे में लेने की कोशिशे भी होती रहती है.

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खंडहर में तब्दील हो चुका है केंद्र
Intro:कटिहार

यूं तो कटिहार की पहचान जूट नगरी के रूप में होती है लेकिन यह बहुत कम लोगों को पता है कि कटिहार में रेशम उत्पादन के लिए दशकों पहले रेशम कीट पालन की स्थापना की गई थी। जहां रेशम कीट पालन के साथ शहतूत की खेती और रेशम का धागा तैयार किया जाता था। लेकिन सरकारी उपेक्षाओं के कारण यह महत्वाकांक्षी योजना लापरवाही की भेंट चढ़ा गई और इसकी जगह बिहार के भागलपुर ने ले लिया। कटिहार में सैंकड़ों एकड़ में फैला यह कीट पालन केंद्र आज अपनी दुर्दशा खुद बयां कर रही है।


Body:शहर से 50 किलोमीटर दूर अमदाबाद प्रखंड के रोशना बाजार में स्थित यह है कि पालन केंद्र। इस इमारत के जर्रा जर्रा हिलता हुआ ईंट और खंडहर में तब्दील इमारत की सूरत यह बताने के लिए काफी है कि आज हालात किस कदर गिर चुके हैं। दरअसल 1950 ई में बिहार सरकार ने कटिहार के अमदाबाद इलाके के विकास के लिए रेशम कीट पालन केंद्र की स्थापना की थी। मकसद था कि रेशम कीट पालन के साथ-साथ शहतूत की खेती की जाए ताकि रेशम उत्पादन होने के बाद सीमावर्ती पश्चिम बंगाल के बाजारों में व्यापार के लिए नजदीकी बाजार मिल सके।

इस रेशम कीट पालन केंद्र से पश्चिम बंगाल की दूरी केवल 3 किलोमीटर पड़ती है। उस समय सरकार के आदेशानुसार यहां कई कर्मचारी काम करते थे जिसमें कोई रेशम के कीट पालता था तो कोई शहतूत की खेती की देखभाल और कोई सिल्क फॉर्म की निगरानी करता था लेकिन बिहार में बदलते सरकारों के दौर में यह कुप्रबंधन का शिकार हो गया और धीरे-धीरे हालात यहां तक गिर गए कि यहां आज एक भी कर्मचारी की पोस्टिंग नहीं है। कार्यालय के मकान के केवल ढांचे खड़े हैं खिड़की और किवाड़ भी गायब हो गए हैं।

स्थानीय लोग बताते हैं यहां कभी कीट पालन और शहतूत की खेती होते देखा करते थे लेकिन अब यहां कुछ नहीं रहा। आज इस कीट पालन केंद्र की स्थिति यह हो गई है कि कोई भी लोग यहां से ईंट, सरिया और पेड़ की डालियां काट कर ले जा रहे हैं यह देखने वाला तक नहीं है। हद तो इस बार हो गई जब स्वतंत्रता दिवस के मौके पर झंडा नहीं फहराया गया। इससे पहले हर मौके पर चाहे वह गणतंत्र दिवस हो या स्वतंत्र दिवस हमेशा झंडा फहराया जाता था लेकिन इस बार सरकारी लापरवाही की वजह से झंडा तक नहीं फहराया गया। लेकिन अब बदहाल हो चुके कीट पालन केंद्र का स्थान सूबे में भागलपुर ने ले लिया है और आज स्मार्ट सिटी के साथ-साथ लोग उसे सिल्क सिटी भी कहते हैं। भागलपुर की पहचान पूरे भारत में सिल्क सिटी के नाम से जाना जाता है।




Conclusion:सहतूत के पत्ते और ककून रेशम कीट के मुख्य भोजन है लेकिन यहां एक भी शहतूत का पौधा नहीं बचा। सब के सब लोग उठा ले चले गए। बात बस सिर्फ इतनी भर नहीं है। अब इस तबाह हो चुके रेशम कीट पालन केंद्र पर स्थानीय लोगों के साथ भू माफियाओं के नजर पड़ गई है और समय-समय पर उसे कब्जे में लेने के लिए कोशिशें भी होती रहती है।

बिहार के मुख्यमंत्री नीतीश कुमार सूबे में निवेश के लिए उद्योगपतियों को उद्योग लगाने के लिए आमंत्रण देते हैं लेकिन कटिहार का यह रेशम कीट पालन केंद्र पर केवल मुख्यमंत्री की नजरें इनायत हो जाए तो बदहाल हुए रेशम कीट पालन केंद्र के भी कयामत के दिन आ सकते हैं। कागजों पर दौड़ रहे यह रेशम कीट पालन केंद्र राज्य सरकार के विकास के नाम पर एक तमाचा है जो दिन भर यह कहते नहीं थकते कि बिहार विकास कर रहा है तो यह कैसा विकास है जहां दशकों पहले रेशम कीट पालन केंद्र की स्थापना की गई थी वह आज कोई झाड़ू मारने वाला तक नहीं है तो इसे आप क्या कहेंगे यह हमारे सरकार के डपोरशंकी और अधकचरे विकास का जीता जागता उदाहरण है जिससे एक महत्वपूर्ण योजना सरकारी लापरवाही की वजह से दम तोड़ दी है।
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